विश्व शांति दिवस हेतु संत पापा का संदेश
वाटिकन सिटी
वाटिकन ने गुरूवार को प्रकाशित संत पापा फ्रांसिस के वार्षिक, 57वीं विश्व शांति संदेश प्रकाशित किया जिसकी विषयवस्तु कृत्रिम बुद्धिमत्ता और शांति पर आधारित है।
“नये तकनीकी विकास को सदैव शांति और जनसामान्य के हित हेतु होने की जरूरत है, जिससे व्यक्तियों और समुदायों का समग्र विकास और सेवा हो सके” उक्त बातें संत पापा ने विश्व शांति दिवस के अपने संदेश कही।
तकनीकी-वैज्ञानिक प्रगति की अंतर्निहित दुविधा
अपने विश्व शांति संदेश में संत पापा फ्रांसिस ने नई प्रौद्योगिकियों के "नैतिक आयाम" पर ध्यान आकर्षित कराया है जो जीवन के सभी क्षेत्रों, सारी मानवता में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति लाते हुए क्रांति ला रहे हैं।
उन्होंने कहा कि एक ओर, इसके द्वारा मानवता की भलाई हो सकती है और दुनिया में बदलाव आ सकता है यदि यह “मानव समाज में बेहतर व्यवस्था, भाईचारा और स्वतंत्रता में योगदान देता हो।” वहीं दूसरी ओर, तकनीकी-वैज्ञानिक प्रगति, विशेष रूप से डिजिटल क्षेत्र में, "मानव हाथों में विकल्पों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है, जिनमें कुछ ऐसे भी शामिल हैं जो हमारे अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं और हमारे सामान्य घर को खतरे में डाल सकते हैं।”
तकनीकी में नवीनता “तटस्थ” नहीं
संत पापा का संदेश याद दिलाता है कि कोई भी वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी अविष्कार "तटस्थ" नहीं है: मानवीय गतिविधियों के रूप में, वे जो दिशा-निर्देश देते हैं वह किसी भी युग में व्यक्तिगत, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा निर्धारित विकल्पों को दर्शाते हैं। उनके उत्पादित परिणामों के बारे में भी यही कहा जा सकता हैः हमारे आस-पास की दुनिया से संपर्क करने के मानवीय तरीकों, जो उन लोगों के निर्णयों को आधार प्रदान करता है जो अपने प्रयोग को कार्य रूप देते हैं जिससे वे अपने उत्पादन को निर्देशित कर सकें।
यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर भी लागू होता है, क्योंकि “किसी भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता उपकरण का प्रभाव न केवल उसके तकनीकी निर्माण पर निर्भर करता है, बल्कि उसके मालिकों और बनाने वालों के लक्ष्यों तथा हितों और उन स्थितियों पर भी निर्भर करता है जिनमें यह नियोजित किया जाएगा।”
इसलिए, हम “यह प्राथमिक रुप से नहीं मान सकते कि इसका विकास मानवता के भविष्य और लोगों के बीच शांति हेतु लाभकारी योगदान देगा। वह सकारात्मक परिणाम तभी प्राप्त किया जा सकता है जब हम जिम्मेदारी पूर्ण ढ़ंग से कार्य करने में सक्षम रहेंगे और “समावेश, पारदर्शिता, सुरक्षा, समानता, गोपनीयता और विश्वसनीयता” जैसे मौलिक मानवीय मूल्यों का सम्मान करेंगे।”
नौतिक सवाल
इसलिए, "इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले नैतिक मुद्दों की जांच करने और उन लोगों के अधिकारों की रक्षा हेतु निकायों की स्थापना करने की आवश्यकता है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करते हैं या उनसे प्रभावित हैं।"
"हमारा कर्तव्य है कि हम अपना दृष्टिकोण व्यापक करें, व्यक्तियों और समुदायों के विकास में शांति और सामान्य भलाई की दिशा में तकनीकी-वैज्ञानिक अनुसंधान को निर्देशित करें।"
संत पापा कहते हैं, “तकनीकी विकास जो सम्पूर्ण मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं लाती है, बल्कि इसके विपरीत असमानताओं और संघर्षों को बढ़वा देती है, तो उसे कभी भी सच्ची प्रगति नहीं मानी जा सकती है।"
यह संदेश कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा उत्पन्न कई चुनौतियों पर प्रकाश डालती है जो "मानवशास्त्रीय, शैक्षिक, सामाजिक और राजनीतिक" हैं।
लोकतांत्रिक समाजों के लिए जोखिम
सुसंगत पाठ तैयार करने के कुछ उपकरणों की क्षमता, "उनकी विश्वसनीयता की कोई गारंटी नहीं है।" संत पापा कहते हैं, "यह एक गंभीर समस्या है जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता को दुष्प्रचार के अभियानों में रखा जाता है जो झूठी खबरें फैलाते हैं और संचार माध्यमों के प्रति बढ़ते अविश्वास को जन्म देते हैं।”
इन प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग के अन्य नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं "जैसे कि भेदभाव, चुनावों में हस्तक्षेप, एक निगरानी समाज का उदय, डिजिटल बहिष्कार और समाज से तटस्थ व्यक्तिवाद का बढ़ना", ये विश्व शांति के लिए खतरे हैं।
इसके बाद संत पापा फ्रांसिस ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता और असीमित मानव शक्ति के पीछे प्रमुख लोकतांत्रिक समाजों और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के खतरों के बारे में चेतावनी दी: "हर चीज को नियंत्रित करने की चाह के द्वारा हम स्वयं अपना नियंत्रण खोने की जोखिम में पड़ जाते हैं।”
एल्गोरिदम का प्रभाव
संत पापा भेदभाव, हेरफेर या सामाजिक नियंत्रण सहित कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा उत्पन्न "ज्वलंत" नैतिक मुद्दों पर जोर देते हैं: "स्वचालित प्रक्रियाओं पर निर्भरता जो व्यक्तियों को वर्गीकृत करती है, उदाहरण के लिए, निगरानी के व्यापक उपयोग या सामाजिक क्रेडिट प्रणालियों को अपनाने से, नागरिकों के बीच रैंकिंग स्थापित करना सामाजिक ताने-बाने पर गहरा असर डालेगा।”
संत पापा ने कार्यस्थल पर नई प्रौद्योगिकियों के प्रभाव पर भी प्रकाश डालते हुए कहा, “एल्गोरिदम को यह निर्धारित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि हम मानवाधिकारों को कैसे समझते हैं।” हमें करुणा, दया और क्षमा के आवश्यक मानवीय मूल्यों को अलग रखने की आवश्यकता है।”
कृत्रिम बुद्धि का हथियारीकरण
संत पापा फ्रांसिस ने विशेष रूप से घातक स्वचालित हथियार प्रणालियों (एलएडब्ल्यूएस) का हवाला देते हुए, "कृत्रिम बुद्धिमत्ता के हथियारीकरण" पर विशेष चिंता व्यक्त की। "सबसे उन्नत तकनीकी का उपयोग संघर्षों के हिंसक समाधान के लिए नहीं, बल्कि शांति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए किया जाना चाहिए।"
सकारात्मक पक्ष पर, संत पापा ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग “कृषि, शिक्षा और संस्कृति में महत्वपूर्ण नयापन, संपूर्ण राष्ट्रों और लोगों के बेहतर जीवन स्तर और भाईचारे के विकास" को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है।
शिक्षा के लिए चुनौतियाँ
यह संदेश नई पीढ़ियों की शिक्षा के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालती है जो "प्रौद्योगिकी द्वारा व्याप्त सांस्कृतिक वातावरण में" बढ़ रही हैं।
इस संबंध में, संत पापा कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग में युवाओं को शिक्षित करने की तत्काल आवश्यकता की ओर इंगित करते हैं। वे कहते हैं, इस शिक्षा का लक्ष्य सबसे पहले तर्कपूर्ण सोच को बढ़ावा देना है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विनियमन हेतु एक अंतरराष्ट्रीय संधि जरूरी
संत पापा फ्रांसिस ने वैश्विक समुदाय से आग्रह किया है कि वे एक अंतरराष्ट्रीय संधि को अपनाने हेतु मिलकर काम करें जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास और उपयोग को कई रूपों में नियंत्रित करने में मददगार सिद्ध होगा। "कृत्रिम बुद्धिमत्ता का वैश्विक स्तर यह स्पष्ट करता है कि, संप्रभु राज्यों की जिम्मेदारी के साथ-साथ आंतरिक रूप में इसका उपयोग, अंतरराष्ट्रीय संगठन बहुपक्षीय समझौतों तक पहुंचने और उनके आवेदन और प्रवर्तन के समन्वय में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
अपने संदेश के अंत में संत पापा ने कहा कि हम आशा करते हैं कि "नए साल में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के रूपों के तेजी से विकास, दुनिया में मौजूद असमानता और अन्याय के मामले में बृद्धि नहीं करेंगे, बल्कि इसके द्वारा हमें युद्धों को समाप्त करने में मदद मिलेगी, और यह मानव परिवार को पीड़ित करने वाले कई प्रकार के कष्टों को कम करेगा।
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