संत पापा ईश वचन रविवार का मिस्सा  बलिदान में प्रवचन देते हुए संत पापा ईश वचन रविवार का मिस्सा बलिदान में प्रवचन देते हुए   (ANSA)

संत पापाः ईश वचन हमारे जीवन का आधार बने

संत पापा फ्रांसिस ने ईश वचन रविवार की सालगिरह का ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए उसे जीवन का अंग बनाने का आहृवान किया।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने सन् 2019 में स्थापित ईश वचन रविवार की सालगिरह पर वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर में ख्रीस्ताग अर्पित करते हुए धर्मशिक्षकों और सुसमाचार उद्घोषकों का दीक्षांत समपन्न किया।

संत पापा ने मिस्सा बलिदान के अपने प्रवचन में कहा कि हमने येसु को अपने शिष्यों से कहते सुना, “मेरे पीछे चले आओ...ने तुरंत अपना जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिया।” ईश वचन में आपार शक्ति है जैसे कि हमने इसे आज के प्रथम पाठ में सुना। ईश्वर का वचन नबी योना के लिए आता है, “उठो और निनवे जाओ...और उन्हें सुसमाचार सुनाओ... अतः योना उठा और गया। ईश वचन में हम पवित्र आत्मा की शक्ति को हममें उतरता पाते हैं वह शक्ति जो लोगों को ईश्वर की ओर खींच लाती है जैसे कि हम उन युवा मछुवारों को येसु के वचनों से प्रभावित पाते और नबी योना को ईश्वर द्वारा दूर दूसरों के पास जाता पाते हैं। ईश वचन हमें ईश्वर की ओर आकर्षित करता और दूसरों की ओर भेजता है। यह हमें अपने में आत्म-मोहित नहीं रखता बल्कि हमारे हृदयों को विस्तृत करता, हमारी आदतों, कार्य में परिवर्तन लाता और नयी दिशाओं तथा नई क्षितिजों को हमारे लिए खोलता है।

ईश वचन का प्रभाव

संत पापा कहा कि ईश्वर का वचन हम सभों से यही चाह रखता है। प्रथम शिष्यों ने येसु के वचनों को सुना, और अपना जाल छोड़कर एक नयी शानदार खोज में निकल पड़े, उसी भांति हमारे जीवन के तट में हमारे परिवार रूपी नावों और दिनचर्या कार्यों के अलावे, ईश्वर का वचन हमें उनके बुलावे को सुनने में मदद करता है। यह हमें दूसरे के खातिर ईश्वर के संग आगे बढ़ने का आहृवान करता है। ईश वचन हमें प्रेरित बनाता है जहाँ हम उनके संदेशवाहक, दुनिया के लिए साक्षी बनते हैं यद्यपि उस वचन के भूखे-प्यासे हम उसे बहुधा नकारते हैं। इस संदर्भ में कलीसिया का आयाम जो ख्रीस्त में आकर्षित होती और बुलाई गई है दुनिया में उनका साक्ष्य देने को भेजी जाती है।

ईश वचन और ईश्वर के मित्रों का जीवन

संत पापा ने कहा कि ईश्वर के वचन के बिना हम कुछ नहीं कर सकते हैं यह हमारे लिए व्यक्तिगत वार्ता की भांति है जो हमारे हृदय का स्पर्श करता, हमारी आत्मा में अंकित होता जो उसे येसु की शांति में नवीन बनता है,जिसके फलस्वरुप हम दूसरों के लिए अपने को समर्पित करते हैं। यदि हम ईश्वर के मित्रों के बारे में विचार करें जिन्होंने इतिहास में सुसमाचार का साक्ष्य दिया, तो हम उनके जीवन में ईश्वर के वचनों का विशेष स्थान पाते हैं। प्रथम मठवासी अंतोनी ने मिस्सा बलिदान के दौरान ईश वचन को सुना और उससे प्रभावित ईश्वर के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया। ईश वचन ने संत अगुस्टीन के हृदय को चंगा किया और उसका सब कुछ बदल गया। बालक येसु की संत तेरेसा ने संत पौलुस के पत्रों को पढ़ते हुए अपने बुलाहटीय जीवन को पहचाना। और वह संत जिनका नाम मैं अपने में धारण करता हूँ, आस्सीसी के संत फ्रांसिस ने सुसमाचार में पढ़ा कि येसु अपने शिष्यों को सुसमाचार की घोषणा हेतु भेजते हैं, वे लिखते हैं “मैं यही चाहता हूँ, मैं यही कहता हूँ, मेरे हृदय की तमन्ना यही है।” उन सभों का जीवन ईश वचन के कारण बदल गया।

ईश वचन हेतु समय दें

लेकिन यह कैसे कि हममें से बहुतों के लिए वैसा कुछ भी नहीं होता हैॽसंत पापा ने कहा कि बहुत बार हम ईश्वर के वचन को एक कान से सुनते और वह दूसरे कान से निकल जाता है। क्योंकि जैसा कि साक्ष्य हमें स्पष्ट बतलाते हैं, हम अपने को ईश वचनों के प्रति बहरे बना लेते हैं। यह हमसे फिसल कर निकल जाता है, यह हमारे लिए जोखिम का कारण कारण बनता है, हम ईश्वर के वचन को सुनते लेकिन वह हम हृदय में नहीं रहता है। हम उन्हें अपने में धारण करते हैं लेकिन वे हम परिवर्तन हेतु प्रेरित नहीं पाते हैं। इससे भी बढ़कर हम उन्हें पढ़ते हैं लेकिन हम उनपर चिंतन करते हुए प्रार्थना नहीं करते हैं। हम ख्रीस्तीय प्रार्थना के दो मूलभूत रुपों को न भूलें- ईश वचन को सुनना और ईश्वर की आराधना करना। हम ईश्वर के वचनों को प्रार्थनामय ढ़ंग से पढ़ने हेतु समय दें। ऐसे करना हमें प्रथम शिष्यों की अनुभूतियों से रुबरु करेगा। आज के सुसमाचार में, येसु के बुलावे के उपरांत हम दो चीजों को घटित होता पाते हैं- वे जाल छोड़ते और उनके पीछे हो लेते हैं। वे सब छोड़ते और येसु के पीछे चलते हैं।

संत पापा- ईश वचन जीवन का आधार बने

ईश वचन मीठास का कारण

छोड़ने पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि उन्होंने क्या छोड़ा। अपना नाव और अपने जाल, कहने का अर्थ अपना जीवन जिसे वे जी अब तक जी रहे थे। हमें अपनी सुरक्षा भरी चीजों, दिनचर्या, को छोड़ने में कितनी कठिनाई का अनुभव होता है, क्योंकि वे हमें जाल में मछली की तरह उलझाये रखते हैं। फिर भी, वे जो ईश वचन का प्रत्युत्तर देते वे अपने को अतीत के बंधनों, घावों से चंगाई प्राप्त करता पाते हैं। धर्मग्रंथ इस संदर्भ में हमें अच्छाई में स्थापित करता और कहता है कि हम सचमुच में ईश्वर की संतान हैं जो बचाये और प्रेम किये गये हैं। “ईश्वर के सुंगधित वचन हमारे लिए मधु की भांति है जो हमारे जीवन में स्वाद लाता और हमें ईश्वर के मीठा से भर देता है। वह हमारी आत्मा को पोषित करता भय और अकेलेपन को हम से दूर करता है।” शिष्यगण जिस भांति अपने निरस जीवन को छोड़ते जो नावों और जालों तक ही सीमित था वैसे ही हम अपने विश्वास में नवीन होता, उसे शुद्ध और एक नये रुप में पाते हैं। ईश्वर के द्वारा किये गये कार्यों को दुबारा गिनती करना हमारे सूखे विश्वास के जीवन को नवीन बनाता और हमें ईश्वर के संग प्रेम संबंध से संयुक्त करता है।

ईश वचन प्रभावकारी है 

संत पापा ने कहा कि इस भांति शिष्यों ने जाल छोड़ा और येसु का अनुसरण किया। वे अपने गुरू के पदचिन्हों में चलते हैं। क्योंकि येसु के वचन हमें न केवल अपने वर्तमान और अतीत के बोझ से मुक्त करता है बल्कि यह हमें प्रेम और सच्चाई में पुख्ता बनाता है। यह हमारे हृदय को सजीव बनाता उसे चुनौती देता, उसे दिखावे से शुद्ध करता और हममें आशा भरता है। धर्मग्रँथ स्वयं इसके बारे में हमें कहता है कि ईश्वर के वचन ठोस और प्रभावकारी हैं, वे पानी और हिम की भांति हैं जो भूमि को सींचते हैं। वह दुधारी तलवार की तरह है जो हमारे हृदय के गुप्त बातों की थाह लेता है, वह नष्टहीन बीज की भांति है जो छोटा और छिपा रहता लेकिन अपने में जन्मता और फल देता है। ईश वचन में ऐसी शक्ति और ताकत है, यह कलीसिया में उसके संतानों के विश्वास को मजबूती प्रदान करती है, यह हमारी आत्मा का पोषण करती और हमारे आध्यात्मिक जीवन को शुद्ध और खत्म न होने वाला एक स्रोत बनाती है।

ईश वचन प्यास बुझाती है

प्रिय भाइयो एव बहनो, संत पापा फ्रांसिस ने कहा, “ईश वचन का यह रविवार हमें खुशी में विश्वास के उद्गम की ओर लौट आने में मदद करे, जो येसु के संजीवन वचनों को सुनते में प्रस्फुटित होता है।” यह हमें जीवन के शब्दों को खोजने में मदद करे जो कलीसिया में ध्वनित होती है। यदि ऐसा नहीं होता तो हम उनके बारे में बातें करने के बदले अपने बारे में अधिक बाते कहते हैं, जो हमें येसु और उनके वचनों में केंद्रित होने के बदले अपने विचारों और समस्याओं में केंद्रित करता है। हम स्रोत की ओर लौटें जिससे हम दुनिया को संजीवन जल दे सकें जो इसकी प्यासी है पर उसे नहीं पाती है। समाज संचार माध्यमों में हिंसात्मक शब्दों का उपयोग करती है हम शांत शब्दों को अपनाने की कोशिश करें जो मुक्ति लाती है।

बाईबल का स्थान कहाँ हैॽ

संत पापा ने कहा कि अंत में हम अपने में कुछ सवाल करें। अपने निवास स्थल में मैं ईश्वर के वचनों को कौन-सा देता हूँॽ बहुत-सी किताबें, पत्रिकाएं, दूरदर्शन और दूरभाषों के बीच में बाईबल कहाँ हैॽ क्या मेरे कमरे में धर्मग्रंथ सहज ही मेरी पहुंच के करीब हैॽ अपने जीवन की राह में निष्ठावान बने रहने के लिए क्या मैं इसे रोज दिन पढ़ता हूँॽ मैंने धर्मग्रंथ को अपने साथ रखने के बारे में कई बार जिक्र किया है, अपने पर्स या थैली में, अपने फोन में। यदि दूसरे चीजों की अपेक्षा ईश्वर मेरे अधिक प्रिय हैं तो कैसे मैं उसे घर में छोड़ सकता हूँ और उनके शब्दों को अपने पास नहीं रखता हूँ। एक आखरी सवाल, संत पापा ने कहा कि क्या मैंने चारों सुसमाचारों को एक बार पढ़ा हैॽ सुसमाचार जीवन की पुस्तिका है। यह सरल और छोटा है यद्यपि बहुत से विश्वासियों ने किसी एक सुसमाचार को शुरू से लेकर अंत तक कभी नहीं पढ़ा है। धर्मग्रंथ हमें कहता है कि ईश्वर सुन्दरता के शिल्पकार हैं। आइए हम अपने को उस सुन्दर से विजयी होने दें जो ईश्वर के वचनों द्वारा हमारे जीवन में आता है।  

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21 January 2024, 12:43