रेगिस्तान की रेत पर चलने का निशान रेगिस्तान की रेत पर चलने का निशान 

चालीसा काल 2024 के लिए पोप फ्राँसिस का संदेश

संत पापा फ्राँसिस ने 1 फरवरी को चालीसा काल के लिए अपना संदेश प्रकाशित किया।

वाटिकन न्यूज

“मरूभूमि के माध्यम से ईश्वर हमें स्वतंत्रता की ओर ले जाते हैं।”

प्रिय भाइयो और बहनो!

जब हमारे ईश्वर स्वयं को प्रकट करते हैं, तो उनका संदेश हमेशा स्वतंत्रता का होता है: "मैं प्रभु तुम्हारा ईश्वर हूँ, मैंने तुमको मिस्र देश से, गुलामी के घर से निकाल लाया।" (निर्ग.20:2)।

ये सिनाई पर्वत पर मूसा को दी गई दस आज्ञाओं के पहले शब्द हैं। जिन लोगों ने उसे सुना, वे उस निर्गमन से काफी परिचित थे जिसके बारे में ईश्वर ने बात की थी: उनके बंधन का अनुभव अभी भी उन पर भारी पड़ रहा था। मरूभूमि में, उन्हें स्वतंत्रता के मार्ग के रूप में "दस शब्द" प्राप्त हुए। हम उन्हें "आज्ञाएँ" कहते हैं, ताकि उस प्रेम की ताकत पर जोर दिया जा सके जिसके द्वारा ईश्वर अपनी प्रजा का निर्माण करते हैं। स्वतंत्रता के लिए बुलाहट अपेक्षाएँ रखती है। इसका उत्तर सीधे नहीं दिया जाता; इसे एक यात्रा के हिस्से के रूप में परिपक्व होना होगा। जिस प्रकार इस्राएली मरूभूमि में चलते हुए भी मिस्र से चिपके हुए थे - अक्सर अतीत की लालसा करते और ईश्वर तथा मूसा के विरूद्ध भुनभुना रहे थे - आज भी, ईश प्रजा एक दमनकारी बंधन से चिपकी रहना चाहती है जिसे पीछे छोड़ने के लिए कहा जाता है। हमें निराश महसूस होता है और हम मरूभूमि जैसे जीवन से भटकते हैं और हमारे गंतव्य के रूप में वादा की गई भूमि से दूर चले जाते हैं। चालीसा अनुग्रह का काल है जिसमें मरूभूमि फिर से - भविष्यवक्ता होशे के शब्दों में - हमारे पहले प्यार का स्थान बन सकता है(होसे 2:16-17)। ईश्वर अपने लोगों को आकार देते हैं, वे हमें अपनी गुलामी को पीछे छोड़ने और मृत्यु से जीवन में पार होने का अनुभव कराते हैं। एक दूल्हे की तरह, प्रभु हमारे दिलों में प्यार के शब्द फुसफुसाकर हमें एक बार फिर अपनी ओर खींचते हैं।

गुलामी से आजादी की ओर पलायन कोई अमूर्त यात्रा नहीं है। यदि चालीसा काल को मूर्त बनाना है, तो पहला कदम वास्तविकता के प्रति अपनी आँखें खोलने की इच्छा रखना है। जब जलती हुई झाड़ी में से ईश्वर ने मूसा को पुकारा, तो वे तुरन्त प्रकट करते हैं कि वे एक ऐसा ईश्वर हैं जो देखते और सबसे बढ़कर सुनते हैं: “मैं ने मिस्र में रहनेवाली अपनी प्रजा का दुःख देखा है; मैंने उनके मालिकों के कारण उनका रोना सुना है। मैं उनके दुःखों को जानता हूँ, और उन्हें मिस्रियों से छुड़ाने, और उस देश से निकाल कर एक अच्छे और चौड़े देश में, जहां दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं, पहुंचाने आया हूँ।'' (निर्गमन 3:7-8) आज भी, हमारे अनेक उत्पीड़ित भाई-बहनों की पुकार स्वर्ग तक उठ रही है। आइए, हम अपने आप से पूछें: क्या हम वह रूदन सुनते हैं? क्या वह हमें परेशान करता है? क्या वह हमें प्रेरित करता है? बहुत सारी चीजें हमें एक-दूसरे से अलग कर देती हैं, उस भाईचारे को नकारने के लिए मजबूर करती हैं, जो शुरू से ही हमें एक-दूसरे से बांधता है।

लम्पेदूसा की अपनी यात्रा के दौरान, उदासीनता के वैश्वीकरण का मुकाबला करने के एक तरीके के रूप में, मैंने दो प्रश्न पूछे थे, जो महत्वपूर्ण बन गए हैं: "तुम कहाँ हैं?" (उत्पत्ति 3:9) और "तुम्हारा भाई कहाँ है?" (उत्पत्ति 4:9)

हमारी चालीसा यात्रा तब मूर्त होगी जब उन दो प्रश्नों को एक बार फिर से सुनकर हमें यह एहसास होगा कि हम आज भी फिराऊन के शासन के अधीन हैं। एक नियम जो हमें थका हुआ और उदासीन बनाता है। विकास का एक मॉडल जो हमें विभाजित करता है और हमारा भविष्य छीन लेता है। पृथ्वी, वायु और जल को प्रदूषित करता है, उसी तरह हमारी आत्माएँ भी प्रदूषित हैं। सच है, बपतिस्मा ने हमारी मुक्ति की प्रक्रिया शुरू की है, फिर भी हमारे अंदर गुलामी के लिए एक अकथनीय लालसा बनी हुई है। हमारी स्वतंत्रता के लिए घातक, परिचित चीज़ों की सुरक्षा के प्रति एक प्रकार का आकर्षण।

निर्गमन ग्रंथ में, एक महत्वपूर्ण विवरण है: ये ईश्वर हैं जो देखते हैं, द्रवित होते हैं और स्वतंत्रता लाते हैं; इस्राइली यह नहीं मांगते। फिराऊन सपनों को दबाता, स्वर्ग के दृश्य को अवरुद्ध करता, ऐसा प्रतीत कराता है कि यह दुनिया, जिसमें मानवीय गरिमा को कुचला जाता है और प्रामाणिक बंधनों से इनकार किया जाता है, कभी नहीं बदल सकती। उसने हर चीज को अपने कब्जे में कर लेता है।

आइए, हम पूछें: क्या मुझे एक नई दुनिया चाहिए? क्या मैं पुरानी चीजों के साथ अपना समझौता छोड़ने के लिए तैयार हूँ? मेरे कई धर्माध्यक्ष भाइयों और बड़ी संख्या में शांति एवं न्याय के लिए काम करनेवालों की गवाही ने मुझे आश्वस्त किया है कि हमें आशा की कमी से लड़ने की जरूरत है जो सपनों को दबा देती है और उस पुकार को शांत कर देती है जो स्वर्ग तक पहुंचती और ईश्वर के दिल को छूती है। यह "आशा की कमी" गुलामी के प्रति उदासीनता के विपरीत नहीं है जिसने इस्राइलियों को रेगिस्तान में पंगु बना दिया और उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। पलायन को रोका जा सकता है: हम इस तथ्य को और कैसे समझ सकते हैं कि मानवता विश्व बंधुत्व की दहलीज पर और वैज्ञानिक, तकनीकी, सांस्कृतिक एवं न्यायिक विकास के स्तर पर पहुंच गई है जो सभी को सम्मान की गारंटी देने में सक्षम है, फिर भी असमानता और संघर्ष के अंधेरे में भटक रही है।

ईश्वर हमसे थके नहीं हैं। आइए, हम चालीसा काल का स्वागत उस महान अवसर के रूप में करें जिसमें वे हमें याद दिलाते हैं: "मैं प्रभु तुम्हारा ईश्वर हूँ, मैंने तुमको मिस्र देश से, गुलामी के घर से निकाल लाया।" (निर्ग.20:2)। चालीसा काल मन-परिवर्तन का अवसर है, स्वतंत्रता का समय है। येसु स्वयं, जैसा कि हम हर साल चालीसा के पहले रविवार को याद करते हैं, स्वतंत्रता की परीक्षा लेने के लिए आत्मा द्वारा रेगिस्तान में ले जाये गये थे। चालीस दिनों तक, शरीरधारी पुत्र हमारे सामने और हमारे साथ खड़े रहेंगे। फिराऊन के विपरीत, ईश्वर, प्रजा नहीं बल्कि बेटे और बेटियाँ चाहते हैं। रेगिस्तान वह स्थान है जहाँ हमारी स्वतंत्रता, दोबारा गुलामी में न पड़ने के व्यक्तिगत निर्णय से परिपक्व हो सकती है। चालीसा में, हमें न्याय के नए मानदंड और एक समुदाय मिलता है जिसके साथ हम उस रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं जिस पर अभी तक काम नहीं किया गया है।

हालाँकि, इसमें एक संघर्ष शामिल है, जिसको निर्गमन ग्रंथ और निर्जन प्रदेश में येसु के प्रलोभन हमें स्पष्ट करते हैं। ईश्वर की वाणी, जो कहती है, "तुम मेरे प्रिय पुत्र हो" (मारकुस 1:11), और "तुम्हारे सामने कोई अन्य देवता न हो" (निर्गमन 20:3) दुश्मन और उसके झूठ का विरोध करता है। जिन देवताओं को हम अपने लिये खड़े करते हैं फिराऊन से भी अधिक डरावनी हैं; हम उन्हें हमारे भीतर बोलती हुई उनकी आवाज मान सकते हैं। सबसे अधिक शक्तिशाली होना, सभी के द्वारा आदर की दृष्टि से देखा जाना, दूसरों पर प्रभुत्व स्थापित करना: हर इंसान को पता है कि झूठ कितना अधिक मोहक हो सकता है। यह एक अच्छी सड़क के समान है। हम पैसे से, कुछ परियोजनाओं, विचारों या लक्ष्यों से, अपने पद से, किसी परंपरा से, यहाँ तक कि कुछ व्यक्तियों से भी आसक्त हो जाते हैं। जो हमें आगे बढ़ाने के बजाय पंगु बना देते हैं। मुलाकात करने के बदले झगड़ा उत्पन्न करते  हैं। फिर भी एक नई मानवता है, छोटे लोगों और विनम्र लोगों का, जो झूठ के आकर्षण के आगे नहीं झुकते। जबकि जो लोग देवमूर्तियों की सेवा करते हैं वे उनके जैसे हो जाते हैं, गूंगे, अंधे, बहरे और गतिहीन। (स्तोत्र 114:4), मन के दीन लोग खुले और तत्पर होते हैं: यह अच्छाई की एक शांत शक्ति है जो दुनिया को ठीक करती है और बनाए रखती है।

यह कुछ करने का समय है, अर्थात् रूकने का समय : प्रार्थना के लिए रूकने, ईश वचन सुनने के लिए रूकने, समारी के समान घायल भाई-बहनों के लिए रूकने। ईश्वर के प्रति प्रेम और पड़ोसी के प्रति प्रेम एक ही हैं। अन्य देवताओं को न रखने का अर्थ है ईश्वर की उपस्थिति में अपने पड़ोसी के लिए रुकना। इस तरह, प्रार्थना, दान और उपवास तीन अलग-अलग कार्य नहीं हैं, बल्कि खुलेपन और अपने आपको खाली करने का एक एकल आंदोलन है, जिसमें हम उन देवमूर्तियों को बाहर निकालते हैं जो हमें दबाती हैं, उन आसक्तियों को बाहर करते हैं जो हमें कैद करती हैं। तभी हमारा कमजोर और अकेला हृदय सजीव रह सकता है। इसलिए धीरे चलें और रूकें। जीवन का चिंतनशील आयाम जिसे चालीसा काल हमें फिर से खोजने में मदद करता है, नई ऊर्जा जारी रहेगी। ईश्वर की उपस्थिति में, हम भाई-बहन बन जाते हैं, एक-दूसरे के प्रति अधिक संवेदनशील होते: खतरों और दुश्मनों के स्थान पर, साथियों और सहयात्रियों को पाते हैं। यह ईश्वर का सपना है, प्रतिज्ञा की हुई वह भूमि है जहाँ हम अपनी गुलामी को पीछे छोड़ने के बाद यात्रा करते हैं।

कलीसिया का सिनॉडल (एक साथ चलना) स्वरूप, जिसे इन वर्षों में हम फिर से खोज रहे हैं और विकसित कर रहे हैं, सुझाव देता है कि चालीसा काल सामुदायिक निर्णयों का भी समय है, छोटे और बड़े निर्णयों का, जो धारा के विपरीत हैं। ऐसे निर्णय जो व्यक्तियों और पूरे पड़ोस के दैनिक जीवन को बदलने में सक्षम हैं, जैसे कि हम जिस तरह से वस्तुएँ प्राप्त करते, सृष्टि की देखभाल करते, और उन लोगों को शामिल करने का प्रयास करते हैं जिनकी  अनदेखी होती या जिन्हें नीच दृष्टि से देखा जाता है। मैं प्रत्येक ख्रीस्तीय समुदाय को ऐसा करने के लिए आमंत्रित करता हूँ: कि अपने सदस्यों को उनकी जीवनशैली पर पुनर्विचार करने के लिए कुछ समय दिया जाए, समाज में उनकी उपस्थिति और उसकी बेहतरी में उनके योगदान की जांच करने का समय प्रदान किया जाए।

धिक्कार हमें यदि हमारी ख्रीस्तीय तपस्या उस प्रकार की तपस्या है जिसने येसु को निराश कर दिया था। हमारे लिए भी, वे कहते हैं: "जब कभी तुम उपवास करो, तो अपने को ढोंगियों की तरह उदास मत दिखाओ, क्योंकि वे दूसरों को दिखाने के लिये अपना चेहरा मलिन कर लेते हैं कि वे उपवास कर रहे हैं" (मत्ती 6:16)। इसके बजाय, दूसरों को हर्षित चेहरे देखने दें, स्वतंत्रता की खुशबू महसूस करने दें और उस प्यार का अनुभव करें जो सभी चीजों को नया बनाता है, सबसे छोटे से लेकर हमारे सबसे करीबी लोगों तक। यह हमारे प्रत्येक ख्रीस्तीय समुदाय में हो सकता है।

जब यह चालीसा काल मन-परिवर्तन का समय बन जाएगा, तब एक चिंतित मानव रचनात्मकता को प्रस्फूटित होते, नई आशा की चमक को महसूस करेगा। मुझे यह बात दोहराने दें जो मैंने उन युवाओं से कही थी जिनसे मैं पिछली गर्मियों में लिस्बन में मिला था: “खोजते रहो और जोखिम लेने के लिए तैयार रहो। इस समय, हम भारी जोखिमों का सामना कर रहे हैं; हम बहुत सारे लोगों की दर्दभरी गुहार सुनते हैं। दरअसल, हम टुकड़ों में लड़े गए तीसरे विश्व युद्ध का अनुभव कर रहे हैं। फिर भी आइए हम अपनी दुनिया को मृत्यु के कगार पर नहीं बल्कि जन्म देने की प्रक्रिया में देखने का साहस जुटाएँ, अंत नहीं बल्कि इतिहास के एक महान नए अध्याय की शुरुआत के रूप में। हमें इस तरह सोचने के लिए साहस की आवश्यकता है” (विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधन, 3 अगस्त 2023)।

गुलामी से उबरने से पैदा हुआ मन-परिवर्तन का साहस यही है। विश्वास और उदारता, आशा रूपी बच्ची का हाथ थाम लेते हैं। वे उसे चलना सिखाते हैं और वह भी उन्हें आगे ले जाती है।

मैं आप सभी को चालीसा काल की यात्रा की शुभकामनाएँ देता हूँ।        

     

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01 February 2024, 17:13