संत पापाः पवित्र आत्मा हमारे परिवारों के संचालक
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
अपने पिछले धर्मशिक्षा में हमने धर्मसार में पवित्र आत्मा के बारे में जिक्र किया। कलीसिया का विचार-मंथन यद्यपि विश्वास के उस संक्षिप्त घोषणा तक सीमित नहीं हुई। यह पूर्व और पश्चिम दोनों में, महान पुरोहितों और आचार्यों के कार्यों द्वारा विस्तृत हुई। आज विशेष रुप से हम पवित्र आत्मा के संबंध में कुछ धर्मसिद्धांत के बारे में विचार करेंगे जो कई टुकड़ों में लातीनी परांपरा में विकसित हुई है जिससे यह हमें इस बात को समझने में मदद करें कि यह कैसे पूरे ख्रीस्तीय जीवन को और खासकर विवाह संस्कार को आलोकित करता है।
पवित्र आत्मा पर धर्मसिद्धांत
इस धर्मसिद्धांत के प्रवर्तक संत अगुस्टीन हैं, उन्होंने पवित्र आत्मा पर धर्मसिद्धांत का विकास किया। वे इस रहस्य के प्रकटीकरण से शुरू करते हैं कि “ईश्वर प्रेम हैं”। यह हमारे लिए प्रेम करने वाले, प्रेम किये जाने वाले और स्वयं प्रेम की आवश्यकता का जिक्र करता है जो उन्हें संयुक्त करता है। तृत्वमय ईश्वर में, पिता प्रेम करते हैं, जो सारी चीजों के स्रोत हैं, पुत्र ईश्वर (प्रेमी) प्रेम किये जाते हैं और पवित्र आत्मा प्रेम हैं जो संयोजक स्वरूप हैं। ख्रीस्तीय धर्म में ईश्वर इस भांति “एक” हैं लेकिन वे अकेले नहीं हैं, हम इस ईश्वर में एकता और प्रेम को पाते हैं। इस संदर्भ में, कुछ लोग पवित्र आत्मा को “तीसरे जन” के रुप में घोषित करते हैं जो अकेले हैं, लेकिन ऐसा नहीं है हम उन्हें “प्रथम पुरूष बहुवचन” के रुप में पाते हैं। दूसरे शब्दों में वे पिता और पुत्र में दिव्यता के आधार हैं, अलग-अलग व्यक्तियों में एकता के माध्यम, कलीसिया की एकता का मूल सिद्धांत, जो वास्तव में, कई व्यक्तियों से मिलकर “एकमात्र निकाय” बनती है।
विवाहः स्वयं को देना
संत पापा फ्रांसिस ने कहा, जैसे कि मैंने कहा कि आज हम विशेष रुप से पवित्र आत्मा के बारे में चिंतन करेंगे कि वे हमारे परिवारों के लिए क्या करते हैं। हम विवाह से संबंधित पवित्र आत्मा के बारे में क्या कह सकते हैंॽ बहुत सारी बातें, शायद बहुत जरुरी चीजें, और मैं इसकी व्याख्या करने की कोशिश करूँगा। ख्रीस्तीय विवाह अपने में स्वयं को देने का संस्कार है, इसमें नर-नारी अपने को एक दूसरे के लिए देते हैं। सृष्टिकर्ता ने इसकी चाह ऐसी ही रखी,“जब उन्होंने मानव को अपने रूप में बनाया...उन्होंने उन्हें नर और नारी बनाया।” मानव दंपत्ति इस भांति प्रथम और अति मूलभूत रुप में ईश्वरीय प्रेममय एकता के प्रकटीकरण हैं जिसमें हम तृत्वमय ईश्वर को पाते हैं।
दांपत्य जीवन में “हम” अहम
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि दंपत्ति को चाहिए कि वे अपने को “हम” के रुप देखें। वे एक दूसरे और पूरे विश्व के सामने “मैं” और “तुम” के रुप में खड़ा होते हैं जिसमें “हम” के रुप में बच्चें भी शामिल हैं। एक माता को यह कहते हुए सुनना, “तुम्हारे पिता और मैं...”, जैसे कि मरियम ने येसु से कहा जब वे उन्हें बारह बरस की उम्र में मंदिर में पाते हैं। वैसे ही एक पिता का कहना, “तुम्हारी माता और मैं” मानो वे एक हो। बच्चों के लिए माता-पिता की यह एकता कितना जरूरी है और इसकी कमी में वे कितना दुःख का अनुभव करते हैं।
पवित्र आत्मा में पुर्नजन्म होता है
हालाँकि, इस आह्वान को जीने हेतु विवाह को उस व्यक्ति के समर्थन की आवश्यकता है जो स्वयं उपहार हैं, वास्तव में, सर्वोत्कृष्ट दाता। संत पापा ने कहा कि जहाँ पवित्र आत्मा का प्रवेश होता है, अपने को देने का पुनर्जन्म होता है। कुछ लातीनी कलीसिया के आचार्यों ने इसे पिता का पुत्र के संग पवित्र आत्मा में उपहार का आदान-प्रदान घोषित किया है, पवित्र आत्मा उनके बीच में व्याप्त खुशी का कारण होते हैं, और वे इसके बारे में बोलने हेतु भयभीत नहीं होते, वैवाहिक जीवन के संबंध को कुछ निशानियों में व्यक्त करने हेतु जैसे कि चुम्बन और आलिंगन में।
पवित्र आत्मा का कार्य आध्यात्मिक स्तर में
ऐसी एकता आज के समय में सहज नहीं है, लेकिन यह चीजों की सच्चाई है जैसा कि ईश्वर ने उन्हें बनाया है और इस भांति यह उनके स्वभाव में है। निश्चित रुप में हमारे लिए चट्टान की अपेक्षा बालू में घर का निर्माण करना सहज और सुगम होता है लेकिन इसका परिणाम येसु हमें बतलाते हैं। इस स्थिति में हमें दृष्टांत की भी जरूरत नहीं है क्योंकि बालू में डाले गये वैवाहिक जीवन की नींव से सभी वाकिफ हैं और इसका खमियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है। अलगाव के कारण बहुत से बच्चों को प्रेम की कमी का सामना करना पड़ता है। बहुत से दंपतियों के संबंध में, मरियम की यह बात दुहराई जा सकती है जिसे उन्होंने येसु को विवाह के काना भोज में कहा, “उनके पास अंगूरी नहीं रह गई है।” यद्यपि यह पवित्र आत्मा हैं जो निरंतर आध्यात्मिक स्तर पर अपने कार्यों को करते हैं, येसु के उस चमत्कार में हम पानी के उपयोग को आपसी मिलन की खुशी में बदलता पाते हैं। यह कोई एक पवित्र भम्र नहीं है। पवित्र आत्मा बहुत सारे विवाह में ऐसा ही करते हैं खास रुप से जब दंपत्ति उनकी दुहाई देने का विचार करते हैं।
इसलिए, यह कोई बुरी बात नहीं होगी, अगर विवाह हेतु सगाई करने वाले जोड़ों की तैयारी में दी जाने वाली कानूनी, मनोवैज्ञानिक और नैतिकता की जानकारी के साथ-साथ इस “आध्यात्मिक” तैयारी पर भी और अधिक गहराई से जोर दिया जाये। एक इतालवी कहावत है, “पति और पत्नी के बीच कभी भी उंगली न रखें, कभी भी हस्तक्षेप न करें”। वास्तव में, पति और पत्नी के बीच एक “उंगली” रखी जानी चाहिए, “ईश्वर की उंगली”: जो की पवित्र आत्मा हैं।
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