संत पापाः हम येसु का प्रचार करें
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघऱ के प्राँगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
पवित्र आत्मा के पवित्रिकरण और करिश्माई कार्य पर चिंतन करने के उपरांत आज की धर्मशिक्षा में हम एक अगल तथ्य सुसमाचार प्रचार में पवित्र आत्मा के कार्यों अर्थात कलीसिया में प्रवचन की भूमिका पर चिंतन करेंगे।
संत पेत्रुस का पहला पत्र हमें प्रेरितों को पवित्र आत्मा की शक्ति से सुसमाचार प्रचारकों के रुप में परिभाषित करता है। इस अभिव्यक्ति में हम ख्रीस्तीय सुसमाचार प्रचार की दो बातों को क्रमश पाते हैं- इसकी विषयवस्तु जो सुसमाचार है और माध्यम जो पवित्र आत्मा हैं।
सुसमाचार शब्द के दो अर्थ
संत पापा ने सुसमाचार की विषयवस्तु के बारे में चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा कि नये विधान में शब्द सुसमाचार के दो मुख्य अर्थ हैं। यह हमें चारो सुसमाचारों- मत्ती, मरकुस, लूकस और योहन की ओर इंगित कराता है, और इस परिभाषा के अनुसार सुसमाचार का अर्थ हमारे लिए शुभ संदेश है जिसे येसु ने पृथ्वी पर जीवन व्यतीत करते हुए घोषित किया। पास्का के उपरांत, सुसमाचार शब्द को हम एक नये अर्थ में पाते हैं जो येसु को शुभ संदेश के रुप में प्रस्तुत करता है अर्थात जहाँ हम येसु के पास्का रहस्य उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान को घोषित करते हैं। प्रेरित संत पौलुस इसे सुसमाचार कहते हैं जब वे लिखते हैं, “मुझे सुसमाचार से लज्जा नहीं। यह हर एक के लिए मुक्ति की शक्ति है जो इसमें विश्वास करते हैं।”
सुसमाचार घोषणा और नौतिकता
येसु का उपदेश और उसके उपरांत प्रेरितों की घोषणा दोनों में हम नौतिक कार्यों को पाते हैं जो सुसमाचार से आता है, जिसकी शुरूआत हम दस आज्ञाओं से होते हुए प्रेम की “नयी” आज्ञा में पाते हैं। लेकिन यदि हम प्रेरित पौलुस द्वारा की गई गलती को पुनः दुहराना नहीं चाहते जो नियम को कृपा से पहले और विश्वास को कार्य से पहले रखते हैं, तो यह हमारे लिए आवश्यक है कि मसीह ने हमारे लिए जो कुछ किया है उसकी घोषणा हम नये सिरे से शुरु करें। अतः, संत पापा कहते हैं कि प्रेरितिक पत्र एभेंजेली गौदियुम में मैंने इन दो बातों पर अधिक जोर दिया है मुख्यतः किरिग्मा या घोषणा, जिसमें सारी तरह की नौतिकता निर्भर करती है।
प्रथम घोषणा
वास्तव में, धर्मशिक्षा में हम किरिग्मा प्रथम उद्दघोषणा की महत्वपूर्ण को पाते हैं, जो कलीसिया के कार्य का केन्द्र-बिन्दु और विभिन्न रूपों में कलीसिया में नवीनता का प्रयास है... प्रथम उद्दघोषणा “प्रथम” कही जाती है इसलिए नहीं क्योंकि यह सबसे पहली हुई और इसका अंत हो गया या किसी दूसरी महत्वपूर्ण चीजों ने उसका स्थान ले लिया। यह गुणात्माक अर्थ में पहला है क्योंकि वह मुख्य घोषणा थी, जिसे हम विभिन्न रुपों में बार-बार सुनते हैं, जिसे हम धर्मशिक्षा के रुप में अलग-अलग रुपों में, विभिन्न स्थानों और समय में दूसरों के लिए प्रस्तुत करते हैं। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि धर्मशिक्षा में हम किरिग्मा को ठोस रूप व्यक्त करते हैं। सुसमाचार की पहली घोषणा की तुलना में कोई भी चीज अपने में अधिक ठोस, गहरी, अर्थपूर्ण और ज्ञान से भरी नहीं है।
सुसमाचार पवित्र आत्मा के माध्यम
अब तक हमने ख्रीस्तीय सुसमाचार प्रचार की विषयवस्तु के बारे में जिक्र किया है। हमने यद्यपि इस बात का ख्याल करने की जरूरत है कि किस माध्यम से हम सुसमाचार की घोषणा करते हैं। हमें सुसमाचार की घोषणा पवित्र आत्मा के माध्यम से करनी चाहिए। कलीसिया को चाहिए कि वह विशिष्ट रुप में येसु की उन बातों का अनुसरण करे जिसे उन्होंने अपने जनसामान्य प्रेरिताई कार्य से पहले कहा, “प्रभु का आत्मा मुझ में छाया रहता है क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है जिससे मैं द्ररिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ।” पवित्र आत्मा से अभिषिक्त सुसमाचार की घोषणा करने का अर्थ विचारों और धर्मसिद्धांतों को जीवन के माध्यम गहरे विश्वास के संग प्रसारित करना है। इसका अर्थ विश्वास के साथ ज्ञान की बातों को घोषित करना नहीं है बल्कि “पवित्र आत्मा की शक्ति से अपने कार्यों को करना” जैसा की संत पौलुस लिखते हैं।
सुसमाचार प्रचार हेतु पवित्र आत्मा का आह्वान
संत पापा ने कहा कि यह कहने में सहज है लेकिन हम कैसे इसे अपने दैनिक जीवन में अभ्यास कर सकते हैं, यदि यह हमारे ऊपर निर्भर नहीं करता बल्कि पवित्र आत्मा के उतरने पर होता है? वास्तव में, एक चीज है, बल्कि दो चीजें जो हम सभों पर निर्भर करती हैं संत पापा ने संक्षेप में उनका जिक्र करते हुए कहा कि पहला है प्रार्थना। पवित्र आत्मा उनपर उतरते हैं जो प्रार्थना करते हैं क्योंकि स्वर्गीय पिता जैसे कि लिखा है-“मांगने वालों को पवित्र आत्मा प्रदान करते हैं” विशेषकर यदि हम उनके बेटे के सुसमाचार प्रचार करने के लिए उसकी मांग करते हैं। धिक्कार उन्हें जो बिना प्रार्थना किये सुसमाचार का प्रचार करते हैं। उनके बारे में चर्चा करते हुए संत पौलुस कहते हैं, कि “वे खनखनाते घड़ियाल या एक झनझनती झाँझ मात्र हैं।”
येसु का सुसमाचार प्रचार करें
अतः पहली बात जो हमारे ऊपर निर्भर करती है वह है प्रार्थना, जिससे पवित्र आत्मा आ सकें। वहीं दूसरी बात संत पापा ने कहा कि हम अपने बारे में प्रचार न करें बल्कि यह येसु ख्रीस्त के बारे में हो। उन्होंने पुनः प्रवचन देने वालों को इस बात के लिए सचेत कराते हुए कहा कि हम कई बार अपने बारे में बातें करने लगते हैं और हमारे उपदेश लम्बे 20-30 मिनट के हो जाते हैं, उन्होंने कहा कि कृपया आप एक विचार के बारे प्रकाश डालें, आठ मिनट से लम्बा उपदेश ऊबाऊ हो जाता है। बहुत बार तो उपदेश शुरू होने पर लोग सिगरेट पीने को बाहर निकल जाते हैं और फिर लौट कर आते हैं। यह महत्वपूर्ण बात है कि हमारा उपदेश छोटा और ठोस हो। हम ईश्वर के बारे में कहें न कि अपने बारे में। संत पापा ने कहा कि मैं इसके बारे में अधिक चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि सुसमाचार प्रचार करने वाला व्यक्ति इसके बारे में जानता है इसका अर्थ उपदेश देना अपने बारे में कहना नहीं है। अपने बारे में नहीं कहना हमारे लिए इस बात को भी सम्माहित करता है कि हम सदैव प्रेरितिक कार्य की पहल नहीं करते हैं जो हमारी पहचान से जुड़ा हुआ है, बल्कि हमें चाहिए कि निवेदन किये जाने पर हम समुदायों के संग स्वेच्छा से सहयोग करें।
इस संदर्भ में पवित्र आत्मा हमारी सहायता करें, हमारे संग चलते हुए हमें शिक्षा दें जिससे हम वर्तमान समय के नर-नारियों के लिए सुसमाचार की घोषणा कर सकें।
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