संत पापा फ्रांसिस ने अज़ाशियो द्वीप की एकदिवसीय प्रेरितिक यात्रा में संत पापा फ्रांसिस ने अज़ाशियो द्वीप की एकदिवसीय प्रेरितिक यात्रा में 

संत पापाः हम अपनी और दूसरों की चिंता करें

संत पापा फ्रांसिस ने अज़ाशियो द्वीप की एकदिवसीय प्रेरितिक यात्रा करते हुए स्वर्गारोहण के महागिरजाघऱ में धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मबंधुओं, समर्पित लोगों और गुरूकुल के विद्यार्थियों को संबोधित किया और उन्हें स्वयं और दूसरों की चिंता करने का संदेश दिया।

वाटिकन सिटी

संत पापा ने उन्हें अपने संबोधन में कहा कि मैं यहाँ आपके इस सुन्दर भूमि में केवल एक दिन की यात्रा में हूँ लेकिन मैं आप सभों से मिलते हुए थोड़ा समय आप सभों के संग व्यतीत करना चाहा। यह मुझे सर्वप्रथम आप के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है। आप के जीवन उपहार और यहाँ होने के लिए धन्यवाद। आप के दैनिक कार्य और प्रयासों के लिए धन्यवाद। आप सबों को धन्यवाद क्योंकि आप ईश्वर की करूणामय प्रेम और सुसमाचार के साक्ष्य हैं।

ईश्वर के लिए कार्य करें

संत पापा ने कहा कि इतालवी भाषा में “ग्रस्तसीय” कहना मुझे तुरंत ईश्वरीय कृपा की याद दिलाती है जो हमारे ख्रीस्तीय विश्वास और कलीसिया में सभी तरह के समर्पण की नींव है। आप इसे रोज दिन अनुभव करते हैं जो हमें निसहाय और अयोग्य होने की अनुभूति दिलाती है। आप अपने में छोटे हैं, आपके पास बहुतायत में साधनों की कमी है, आप सदैव सुसमाचार प्रचार करने हेतु एक खुले वातवारण में कार्य नहीं कर करते हैं, यद्यपि यह गरीब अपने में एक आशीष है। यह हमें इस विचार से बरी करती है कि हम अपनी मेहनत से सफलता प्राप्त करते हैं, यह हमें इस बात की शिक्षा देती है ख्रीस्तीय प्रेरिताई मानवीय योग्यता पर नहीं बल्कि ईश्वर पर निर्भर करता है जो सदैव थोड़े से ही अपने कार्य को करते हैं, जिन्हें हम उन्हें प्रदान करते हैं।

हम इस बात को कभी न भूलें कि यह ईश्वर से संबंधित है न कि मुझ से। हममें से हर समर्पित व्यक्ति को, हर सुबह इस बात को याद करने और इसे दुहराने की जरुरत है कि मेरे कार्य ईश्वर की सेवा हेतु हैं न कि मेरी सेवा हेतु।

हम ईश्वर के सहकर्मी हैं

ईश्वर की कृपा की प्रधानता का मतलब यह नहीं है कि हम अपनी ज़िम्मेदारियों को निर्वाहन किये बिना अपने लिए उपलब्ध चीजों पर आराम करें। इसके विपरीत, हमें चाहिए कि हम हमेशा अपने को ईश्वरीय कृपा में उनके सहकर्मी के रूप में देखें। ईश्वर के संग चलते हुए हम सदैव इन सावलों को ध्यान में रखें, मैं अपने पुरोहिताई को, समर्पित जीवन को, शिष्य के रुप में अपने जीवन को कैसे जी रहा हूँॽ क्या मैं उनके निकट हूँॽ संत पापा ने इस संदर्भ में जोर देते हुए कहा कि क्या मैं रोज दिन ईश्वर से गिरजाघर में जाकर उनसे मिलते हुए पूरे दिन के लिए धन्यवाद अदा करता और केवल तब विश्राम के लिए जाता हूँ।

संतुलन बनाये रखें

संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। मैं आप सभों के इस बात को याद रखने हेतु निवेदन करता हूँ कि आप आत्मपरीक्षण की बात को सहज से न लें, अपने अंदर देखना, यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम अपने दैनिक जीवन और जीवन के कार्य की गतिशीलता में अपने आंतरिक संतुलन को खो देते हैं। संत पापा ने इस संदर्भ में दो बातों- स्वयं की देख-रेख और दूसरों की चिंता करने पर बल दिया।  

स्वयं की देख-रेख करने पर जोर देते हुए संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए एक बार पूरे जीवन के लिए कहा गया “हाँ” नहीं है। हमारे लिए ईश्वर पर निर्भर रहे बिना जीवनयापना करना संभव नहीं है। हमें हर दिन उनसे मिलने वाली खुशी को नवीनीकृत करने की आवश्यकता है, हमें उनकी आवाज़ को हर क्षण नए सिरे से सुनने और पुनः उनका अनुसरण करने हेतु निर्णय लेने की जरुरत है।

अपनी देख-रेख करें

संत पापा ने कहा कि हमारे जीवन का अर्थ इसे उपहार स्वरुप देने में है लेकिन पुरोहित और समर्पित जीवन के लोग जिनता अधिक इसे ईश्वरीय राज्य हेतु करते, उतना ही उन्हें अपना ख्याल रखने की आवश्यकता है। “पुरोहित, धर्मबहन या उपयाजक जो अपने जीवन की देख-रेख नहीं करते वे अपने को सौंपे गये लोगों की देख-रेख करने में भी अनुउत्तरदायी होते हैं।” हमारे जीवन हेतु एक छोटे नियम की जरुरत है जिसे हम धर्मसंघी जीवन में पाते हैं। यह हमारे लिए रोज दिन अपने को प्रार्थना और यूख्रारीस्तीय भोज में शामिल करते हुए ईश्वर से वार्ता करना है, प्रत्येक को अपनी आध्यात्मिकता और जीवन शैली के अनुरूप।” संत पापा ने कहा, “आप एकांत में रहने हेतु समय निकालें, किसी धर्मबंधु या धर्मबहन जिनसे आप स्वतंत्र अनुभव करते हैं अपने हृदय की बातों को साझा करें, एक रूचि जगायें, अपने खाली समय को व्यतीत करने के उद्देश्य से नहीं बल्कि अपने दिन भर के भारी कार्य से हल्का होने के लिए, एक स्वस्थ्य आराम हेतु।” हमें उन लोगों के प्रति ध्यान देने की जरुरत है जो सदैव अपने में व्यस्त रहते हैं, सदैव अपने को कार्य से घिर, उत्साही पाते और अपने लिए कभी समय नहीं निकालते हैं। यह उचित नहीं है। हममें से हर पुरोहित और धर्मबहन को अपने लिए समय निकालने की जरूरत है। संत पापा ने इस बात पर भी जोर दिया कि हम माता मरियम को न भूलें।

खुशी और चुनौती को साझा करें

संत पापा फ्रांसिस ने कहा, “हमें न केवल अपने संघर्ष और चुनौतियों को साझा करने हेतु सीखने की जरुरत है बल्कि हमें चाहिए कि हम अपनी खुशी और मित्रता को भी एक दूसरे के संग साझा करें। उन्होंने एक धर्माध्यक्ष के विचारों को साझा करते हुए कहा, “हमें शोक गीत की पुस्तिका होने के बदले गीत-संगीत की पुस्तिका होने की आवश्यकता है।” यह हमारे लिए जरुरी है। एक स्त्रोत कहता है, “तूने मेरे शोक को नृत्य में बदल दिया है।” हम अपनी खुशी को प्रेरितों और येसु के शिष्यों की तरह साझा करें।

संत पापाः धर्मसंघियों और समर्पित लोगों को संत पापा का संदेश

दूसरों की चिंता

दूसरों की चिंता करने के संबंध में संत पापा ने कहा कि प्रेरिताई कार्य जिसे हम सभों ने पाया है वह एक ही है- लोग को येसु ख्रीस्त के निकट लाना, अपने भाई-बहनों के हृदय में सुसमाचार की सांत्वना को लाना। उन्होंने संत पौलुस के कुरिंथ समुदाय लौट की याद दिलाई जहाँ वे लिखते हैं,“मैं आप लोगों के लिए अपना सबकुछ खर्च करूंगा।” हम अपने को दूसरों की आत्माओं को बचाने हेतु समर्पित करें, दूसरों की सेवा हेतु जिनकी देख-रेख करने की जिम्मेदारी हमें सौंपी गई है।

सुनें और निकट रहें

हमें सुनने और लोगों के निकट रहने की जरुरत है यह भी हमारे लिए एक निमंत्रण है जो आज के संदर्भ में प्रभावकारी सुसमाचार प्रचार का रुप है। आप परिवर्तन से न डरें, पुरानी चीजों के अवलोकन में, विश्वास की भाषा को बदलने में, प्रेरिताई में मावनीय होने की बातों में- यह हमारे लिए विश्वास के सवाल को लाता है। हम दूसरों की सेवा करें जो ईश वचन की प्रतीक्षा करते हैं, जो उसे दूर चले गये हैं, जिन्हें निर्देशन या सांत्वना की जरुरत है जो दुःखी हैं। सभों की देख-रेख करें, प्रशिक्षण में और उनसे मिलन में। लोगों से मिले जहाँ वे कार्य करते और वहाँ वे रहते हैं। संत पापा ने पापस्वीकार में अधिक सवाल जबाव करने के बदले सभी पुरोहितों और धर्माध्यक्षों से अग्रह किया वे सदैव पापों को क्षमा करें।

हताश न हों

संत पापा ने सभी धर्माध्यक्षों पुरोहितों और समर्पित लोगों के लिए कार्यों के लिए उनका धन्यवाद अदा करते हुए कहा कि आप निरशा या चिंता भरी स्थितियों में हताश कभी न हों। आप अपना हृदय़ ईश्वर को सौप दें। आप ईश्वर के सामने रोना न भूलें। वे आप को अपने उपस्थिति से भर देंगे यदि आप अपनी और दूसरों की चिंता करते हैं। वे अपने चुने हुए लोगों के साथ जिन्हें वे अपने कार्यों के लिए भेजते हैं सदैव सांत्वना से भर देते हैं। आप साहस से आगे बढ़ें वे आप को खुशी से भर देंगे ।

अपने संबोधन के अंत में संत पापा ने युद्धग्रस्त देशों में शांति की कामना की और अंत में सभों के संग दूत संदेश प्रार्थना का पाठ करते हुए सबों को अपना प्रेरितिक आशीवार्द प्रदान किया। 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

15 December 2024, 16:06