झारखंड में कोविड-19 का असर, धर्म की भूमिका
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
राँची, बुधवार, 29 अप्रैल 2020 (वीएन हिन्दी)- झारखंड राज्य में कोविड-19 की मार दोगुणी झेलनी पड़ रही है क्योंकि इसका असर न केवल लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है बल्कि उनके जीवन के हर पहलु पर बुरी तरह पड़ रहा है। राँची के येसु समाजी पुरोहित फ्राँसिस मिंज झारखंड राज्य में कोविड -19 के प्रभाव, परिणाम और उपायों के कुछ विन्दुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।
झारखंड में कोविड-19 के प्रभाव को आप किस तरह देखते हैं।
झारखंड, भारत का एक बहुत गरीब राज्य है और कोविड-19 से गरीब लोग सबसे अधिक पीड़ित हैं। झारखंड में कोरोना वायरस से संक्रमित तीन प्रमुख स्थल हैं- हिन्दपीढ़ी (राँची में), बोकारो और देवघर, जो शहरों में स्थित हैं, किन्तु हमारे यहाँ ग्रामीण क्षेत्र भी हैं जहाँ लोग अत्यधिक परेशान हैं। करीब 8 लाख से अधिक लोग दूसरे राज्यों में प्रवासी के रूप में कार्य करते हैं। उनकी स्थिति बहुत गंभीर है। उन्हें इस स्थिति का अनुमान नहीं था क्योंकि यह महामारी है। गंभीर बात ये है कि इससे सभी लोग संक्रमित हो रहे हैं और उससे भी दुखद बात ये है कि समाज के गरीब और उपेक्षित आदिवासी, दलित और हाशिये पर जीवनयापन करनेवाले लोग इससे बुरी तरह प्रभावित हैं।
कोरोना वायरस से लड़ने तथा जीवन को बचाने हेतु कदम उठाये जाने में झारखंड सरकार की क्या भूमिका है?
जैसे ही तालाबंदी की घोषणा की गई, झारखंड सरकार ने शीघ्रता और कर्मठता से कार्रवाई शुरू की एवं लोगों की मदद करना शुरू किया। तालाबंदी को सरकार ने बड़ी गंभीरता से लिया। एक दिन स्वयं मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेंन ने हिंदपीढ़ी (संक्रमण का प्रमुख स्थान) का दौरा किया। इस तरह वे व्यक्तिगत रूप से स्थिति का सामना कर रहें हैं। उससे भी बढ़कर, सरकार गरीबों को भोजन खिलाने में विशेष ध्यान दे रही है। सरकार ने गैरसरकारी संगठनों, सामाजिक संस्थाओं और अन्य उदार संस्थाओं को निमंत्रण दिया है कि वे गरीब लोगों की मदद करें जो सचमुच एक सराहनीय कार्य है जिसको मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेंन और झारखंड सरकार कर रही हैं। अतः एक नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है कि हम राशन बांटने और आवश्यक सामग्रियों को उपलब्ध कराने में अपने सह – नागरिकों की सहायता करें।
जीवन की रक्षा करने की झारखंड सरकार की योजना में ख्रीस्तीय मिशनरियों की क्या भूमिका है?
-मिशनरियों की भूमिका अभूतपूर्व है, विशेषकर, दो-तीन चीजों के लिए। जैसे ही लॉकडाउन की घोषणा हुई, हमारे अधिकारी सरकार की मदद करने के लिए एकजुट हुए, ताकि जरूरतमंदों की मदद की जा सके। उन्होंने लोगों की मदद करने के लिए कदम उठाया, अनुदान राशि एवं आवश्यक सामग्रियाँ जमा की। हमारे दो केंद्र मूरी में, एक तमाड़ में और एक खलारी में चलाये जा रहे हैं, इस तरह कुल 14 केंद्र खोले जाने की बात हुई है। एक्साईसेस राँची इसका नेतृत्व कर रहा है और फादर जेवियर सोरेंग इसके लिए रात-दिन काम कर रहे हैं। वे सब कुछ की देखरेख कर रहे हैं। यह लोगों के प्रति हमारे समर्पण का उदाहरण है, खासकर, समाज के गरीब और हाशिये पर जीवनयापन करनेवाले लोगों के प्रति।
मिशनरियों में न केवल जेस्विट बल्कि उर्सुलाईन धर्मबहनों और संत अन्ना की पुत्रियों ने भी अपना सहयोग दिया है। वे भी यहाँ आती हैं और शहर के विभिन्न क्षेत्रों में राशन बांटने में मदद दे रही हैं। वे स्वेच्छा से अपना सहयोग दे रही हैं जो सराहनीय है। चावल के हजारों बोरे यहाँ आते हैं और हम उसका वितरण कर रहे हैं। कोरोना वायरस ने हमें एक सीख दी है कि दुनिया हमेशा एक समान नहीं रहेगी। इसने धनी और गरीब के बीच गहरी खाई को दिखलाया है। अब हम जान गये हैं कि गरीब कौन है। सिर्फ झारखंड में 8 लाख से अधिक लोग प्रवासी मजदूर हैं। वे राज्य से बाहर काम करते थे और वहाँ फंसे हुए हैं। हम नहीं जानते कि उन्हें कुछ मिल रहा है अथवा नहीं। हम इसकी जिम्मेदारी वहाँ की राज्य सरकारों के हाथ में छोड़ते हैं। हम यह भी जान रहे हैं कि हमारे देश में करीब 14 करोड़ से अधिक भूमिहीन मजदूर हैं। वे बेरोजगार हो जायेंगे क्योंकि कुटीर उद्योगों के पास भी पर्याप्त पूँजी नहीं होगी। संभावना है कि लॉकडाउन के बाद अधिक समस्याएँ होंगी।
शिक्षा में कोविड-19 का क्या प्रभाव पड़ सकता है?
यह हमें समाज को देखने में मदद देगा, शिक्षा प्रणाली पर गौर करने में मदद देगा। इस समय शैक्षणिक संस्थाओं एवं विद्यार्थियों को व्यक्तिगत रूप से घाटा हो रहा है। यह साल का अच्छा समय होता है जब स्कूलों और कॉलेजों में कड़ी मेहनत की जाती हैं। हम नहीं जानते कि यह कब खुलेगा किन्तु उन्हें सचमुच कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। यह विद्यार्थियों एवं संस्थाओं के लिए नया अनुभव है जो ऑनलाईन कोर्स चला रहे हैं। जो एक सकारात्मक पहल है किन्तु इससे विद्यार्थियों को कितना फायदा हो रहा है, यह एक बड़ा सवाल है। जब तालाबंदी समाप्त हो जायेगी तो हमें सचमुच कड़ी मेहनत करनी होगी क्योंकि इसका प्रभाव हमारे शिक्षा प्रणाली पर पड़ा है।
इस कठिन समय में आदिवासी किस तरह अपने परिवार एवं अपने जीवन को आगे ले रहे है?
झारखंड में आदिवासियों की संख्या 26.3 प्रतिशत है। यह एक बड़ी किन्तु गरीब आबादी है, जो कृषि कार्य के लिए केवल वर्षा पानी पर निर्भर करती है। जंगल से प्राप्त होने वाले संसाधन, इस साल जलवायु परिवर्तन के कारण नहीं मिल रहे हैं। इसका प्रभाव जीविका पर रहा है। जो सब्जियाँ अथवा फसल उगाये जाते हैं उन्हें भी तालाबंदी के कारण बाजारों में बेचा नहीं जा सकता। लोग बेरोजगार हैं। इस समय में बहुत सारे लोग दैनिक मजदूरी करते हैं जो अभी संभव नहीं है। अतः कोरोना वायरस लॉकडाउन से आदिवासी लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं।
कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के निर्णय को आप किस तरह देखते हैं?
लॉकडाउन का निर्णय बिलकुल सही था किन्तु इसे लागू करने की तैयारी पर्याप्त नहीं थी जिसके कारण इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आदिवासी और गरीब लोग इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं, वे शैक्षणिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
कोविड-19 के इस दौर में, आम आदमी के जीवन में विश्वास और आशा को बनाये रखने एवं मानव प्रतिष्ठा प्राप्त करने में धर्म की क्या भूमिका है?
यह एक विवादास्पद विषय है किन्तु कोरोना वायरस धर्म का फर्क नहीं करता कि आप हिन्दू हैं, मुसलमान हैं अथवा ईसाई। यह हमारे देश की स्थिति है कि किसी खास धर्म के व्यक्ति को नीच दृष्टि से देखा जाता है। कोरोना वायरस किसी का फर्क नहीं करता, वह सभी पर हमला कर रहा है। विविधता में एकता हमारे देश का मूल मनोभाव है जिसको सम्मान और बढ़ावा दिया जाना एवं अभ्यास किया जाना चाहिए।
लोगों के विश्वास पर आप कोरोना वायरस का क्या असर देख रहे हैं? मानव जीवन को समर्थन देने के लिए आप किस तरह का ईशशास्त्रीय चिंतन देना चाहेंगे जो जीवन के चौराहे पर आज अस्त-व्यस्त स्थिति में जी रहे हैं?
लोगों का विश्वास निश्चय ही एक रूचिकर सवाल है। मैंने वाट्सऐप पर कई मेसेज प्राप्त किये हैं जिनमें कहा गया है कि दुनिया का अन्त होनेवाला है। हमें उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। यही संत पापा फ्राँसिस हमें बतलाते हैं। हम आशा में जीवन व्यतीत करें यद्यपि यह अंधकारमय समय है। हम ईश्वर पर भरोसा रखें और एक-दूसरे को प्यार करते हुए, एक-दूसरे की सेवा करते हुए, एक- दूसरे के लिए काम करते हुए, आशा में जीयें। हमें बस यही करना है। धर्म की भूमिका है शांति, भ्रातृत्व, सौहार्द एवं पूरे मानव परिवार के कल्याण को बढ़ावा देना।
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