भारत के कंधमाल में ईसाई विरोधी हिंसा की 12वीं बरसी
माग्रेट सुनीता मिंज - वाटिकन सिटी
कंधमाल, मंगलवार 25 अगस्त 2020 (वाटिकन न्यूज) : भारत में नागरिक समाज के संगठनों के एक समूह ने 12 साल पहले ईसाई-विरोधी हिंसा के पीड़ितों और बचे लोगों को याद करने के लिए दो सप्ताह के अभियान के लिए समर्थन का आह्वान किया है, जिनमें से कई अभी भी न्याय और मुआवजे की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
25 अगस्त 2008 को कंधमाल के ईसाइयों पर दुःख का पहाड़ टूट गया था, जब हिंदू अतिवादियों ने 23 अगस्त को हिंदू नेता स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के आरोप में उनपर हिंसा और प्रताड़ना देना शुरु कर दिया, हालांकि माओवादी विद्रोहियों ने उनकी हत्या का दावा किया था।
राष्ट्रीय एकता मंच (एनएसएफ) 70 नागरिक समाज और अधिकार संगठनों का एक नेटवर्क है, इसमें समाज कार्यकर्ता, पुरोहित, धर्मसमाजी, वकील, ईसाई, हिंदु और अन्य धर्मों के लोग भी शामिल हैं, उन्होंने ईसाईयों के प्रति हिंसा की याद में एक पखवाड़े का आह्वान किया है ईसाइयों पर "पिछले तीन शताब्दियों में भारत के इतिहास में सबसे बड़े सांप्रदायिक हमले हुए।"
लोकतांत्रिक और बहुलवादी मूल्यों का उत्थान
एक प्रेस विज्ञप्ति में, एनएसएफ ने कहा कि स्मरणोत्सव पीड़ितों और बचे लोगों के समर्थन में है, जिनकी अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया है। आयोजकों का इरादा भारत के लोकतांत्रिक और बहुलवादी मूल्यों को सर्वोत्तम प्रथाओं के रूप में और भारतीय संविधान द्वारा परिकल्पित के रूप में बढ़ावा देना है।
कोविद -19 स्वास्थ्य प्रतिबंधों के कारण, राष्ट्रीय एकता मंच लोगों को न्याय, शांति और सद्भाव के लिए वेबिनार आयोजित करने, घोषणाएं जारी करने, स्मारक के सामने मोमबत्ती जलाने के लिए प्रोत्साहित करता है। साथ ही कंधमाल अत्याचार पर फिल्मों, वीडियो, फोटो और कला प्रदर्शनियों की स्क्रीनिंग, सामाजिक और मुख्यधारा के मीडिया का उपयोग करने, घटना और संबंधित मुद्दों पर जागरूकता और सूचना फैलाने की भी सिफारिश करता है।
एनएसएफ ने प्रेस बयान में कहा, "हमें यकीन है कि यदि सभी लोग इस देश में शांति, न्याय और सद्भाव बनाने के लिए हाथ मिलाते हैं, तो हम पीड़ितों और बचे लोगों के समर्थन प्राप्त करने और भारतीय संविधान के मूल्यों की रक्षा करने में सक्षम होंगे ताकि" भारत में ऐसी कोई हिंसा कभी न हो।”
हिंसा का टोल
एनएसएफ ने बयान में कंधमाल में 2008 में ईसाई विरोधी हिंसा में संपत्ति और जीवन की भारी क्षति क भी याद किया। 395 गिरजाघऱों, आदिवासियों और दलितों के पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया गया। करीब 6,500 घर नष्ट हो गए। 100 से अधिक लोग मारे गए, 40 महिलाओं को बलात्कार, छेड़छाड़ और अपमान किया गया और कई शैक्षणिक, सामाजिक सेवा और स्वास्थ्य संस्थानों को नष्ट कर दिया गया और लूट लिया गया।
जबकि 75,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं और हिंदू धर्म में जबरन धर्म परिवर्तन के कई मामले भी सामने आए हैं।
न्याय ने इनकार किया
2008 की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान पुलिस के पास दायर 3,300 से अधिक शिकायतों में से केवल 820 दर्ज की गई थीं। इन 820 में से केवल 518 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया गया, जबकि अन्य को झूठा घोषित किया गया। 518 मामलों में से केवल 247 का ही निस्तारण किया गया। बाकी मामले सत्र और मजिस्ट्रेट की अदालतों के समक्ष लंबित हैं।
एनएसएफ ने कहा, "कई आरोपी बरी हो चुके हैं। विनाश के लिए जिम्मेदार कोई भी अपराधी आज जेल में नहीं है। हत्यारे, बलात्कारी, लूटेरे और विध्वंसक आज स्वतंत्र घूम फिर रहे हैं।" इसके बजाय, झूठे मामलों में फंसाये गये 7 निर्दोष 11 साल तक जेल में बंद रहने के बाद अब जमानत पर जेल से बाहर निकाले गये हैं।
राष्ट्रीय एकता मंच ने भारत के दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और अन्य हाशिए के वर्गों पर भी ध्यान आकर्षित किया, उन्होंने कहा कि वे हिंसा और अन्याय का सामना कर रहे हैं। ईसाइयों के खिलाफ हिंसा के 122 मामलों में से जून 2020 तक केवल 23 दर्ज किए गए थे। एनएसएफ ने उल्लेख किया कि 2014 के बाद से ईसाइयों पर हमले लगातार बढ़े हैं।
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