शांति व धार्मिक सदभाव के लिए शहीद फा. रसकट की 58वीं पुण्यतिथि
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
कुटुंगिया, सोमवार, 28 मार्च 2022 (वीआर हिन्दी) ˸ कुटुंगिया के पल्ली पुरोहित फादर भलेनटीन केरकेट्टा ने बतलाया कि इस साल इस समारोह को अधिक धूमधाम से मनाया गया, इसका मुख्य कारण था आध्यात्मिक तैयारी। पुण्यतिथि के पूर्व तीन दिनों की आध्यात्मिक साधना का आयोजन किया गया था, जिसमें कुटुंगिया पल्ली के साथ-साथ आसपास की पल्लियों के विश्वासियों ने भारी संख्या में भाग लिया।
आध्यात्मिक साधना की शुरूआत 21 मार्च को हुई। तीन दिनों की इस आध्यात्मिक साधना में हरेक दिन अलग-अलग उदेशकों ने प्रवचन दिया। पहले दिन फा. जस्टिन तिरकी येसु समाजी ने जेस्विट मिशनरियों के मिशन के महत्व पर प्रकाश डाला। दूसरे दिन खूँटी धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष विनय कंडुलना ने प्रेम और बलिदान पर प्रवचन दिया तथा अंतिम दिन हजारीबाग के धर्माध्यक्ष आनन्द जोजो, जिनका घर भी कुटुंगिया पल्ली में पड़ता है, उन्होंने मिशन के फल पर अपने चिंतन प्रस्तुत किये, जिसमें उन्होंने सिनॉड पर प्रकाश डालते हुए क्षेत्र की आध्यात्मिक, आर्थिक और सामुदायिक आवश्यकताओं पर जोर दिया। उन्होंने बतलाया कि इन्हीं आवश्यकताओं से प्रेरित होकर फादर हेरमन रसकट ने अपना बलिदान कर दिया।
24 मार्च को रसकट दिवस मनाया गया। समारोह की शुरूआत सुबह 8 बजे ग्रोटो से रोजरीमाला विन्ती से की गई। रोजरी माला विन्ती के बाद शहीद फादर हेरमन रसकट के स्मारक पर दीप प्रज्वलन एवं श्रद्धांजलि अर्पित की गई, साथ ही उनकी जीवनी भी पढ़ी गई, तत्पश्चात् 10.00 बजे मिस्सा बलिदान शुरू हुआ। मिस्सा बलिदान को सिमडेगा धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष माननीय विशप भिंसेंट बरवा, खूँटी के धर्माध्यक्ष माननीय विशप विनय कंडुलना, हजारीबाग के धर्माध्यक्ष माननीय विशप आनन्द जोनो एवं राँची के जेस्विट प्रोविंशल अजित खेस्स ने अर्पित किया। समारोह में करीब 50 पुरोहितों, 60 धर्मबहनों एवं 8,000 काथलिकों ने भाग लिया। कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन एवं प्रीति भोज से हुआ। फादर भलेनटीन ने बतलाया कि कार्यक्रम बड़े व्यवस्थित, संगठित एवं भक्तिमय वातावरण में सम्पन्न हुआ।
फादर हेरमन रसकट की जीवनी
फादर हेरमन रसकट का जन्म 13 सितम्बर 1922 को निदरलैंड में हुआ था। उनके माता-पिता मूल रूप से बेल्जियम निवासी थे जो पलायन कर निदरलैंड चले गये थे। उन्होंने 7 सितम्बर 1941 को येसु समाज के नवशिष्यलय में प्रवेश किया था। 6 अगस्त 1947 को उनकी नियुक्ति राँची मिशन के लिए हुई थी और वे 3 दिसम्बर 1947 को भारत पहुँचे थे।
भारत आने के बाद 1949 से 1950 तक उन्होंने संत जॉन्स स्कूल में प्रध्यापक का काम किया। तत्पश्चात् 1951 से 1954 तक दार्जिलिंग में ईशशास्त्र की पढ़ाई की। पढ़ाई समाप्त करने के बाद 21 नवम्बर 1953 को उनका पुरोहित अभिषेक हुआ।
फादर हेरमन की नियुक्ति 13 नवम्बर 1955 को खुंटी के सहायक पुरोहित के रूप में हुई थी। उसके बाद 4 जून 1958 को वे कर्रा के पल्ली पुरोहित बने। वे एक सम्मानित व्यक्ति थे। वे जात और धर्म के भेदभाव पर ध्यान दिये बिना, सभी की बड़ी उदारता से मदद करते थे। कर्रा में कुछ ही दिन काम करने के बाद 1961 में उनकी नियुक्ति कुटुंगिया के पल्ली पुरोहित के रूप में हुई। कुटुंगिया में उनके कोई सहायक नहीं थे अतः वे प्रेरितिक कार्यों के साथ-साथ स्कूल और कॉपरेटिव क्रेडिट सोसाईटी की भी देखभाल करते थे।
शहादत की घटना
ईश सेवक शहीद फादर हेरमन रसकट की संत घोषणा प्रकरण के उप-पोस्टुलेटर फादर कुलवंत मिंज एस. जे. ने बतलाया कि अपनी शहादत के दिन 24 मार्च 1964 को शांति के अग्रदूत और मानवता के प्रेमी फादर हेरमन रसकट ने सबेरे का मिस्सा पूजा अर्पित किया। मिस्सा के बाद वे जैसे ही बाहर निकले, मुख्य प्रचारक ने फादर हेरमन को गेरदा गाँव की स्थिति के बारे बतलाया कि हिन्दू मुस्लिम दंगे के कारण दूसरे क्षेत्र के मुस्लिम भी गेरदा के छोटे से मस्जिद में जमा हो गये हैं और सुबह सात बजे ही हिन्दूओं ने मुसलमानों पर आक्रमण कर दिया है। इस हृदय विदारक घटना को सुनकर फादर हेरमन ने मन बना लिया कि ऐसे बर्बर कार्यों को कतई बर्दास्त नहीं किया जा सकता, यह तो बहुत बड़ा अन्याय है, इसे हर हाल में रोकना होगा। उन्हें इस बात का भी एहसास था कि गेरदा जाने पर उन्हें कितनी बड़ी जोखिम उठानी पड़ सकती है, फिर भी फादर हेरमन अपनी जान की परवाह किये बिना एवं शांति स्थापित करने के दृढ़-संकल्प के साथ अपनी साईकिल पकड़ी और गेरदा जाने के लिए तैयार हो गये। शिक्षकों एवं प्रचारकों ने यह कह कर उन्हें मना किया कि वहाँ जाना बहुत खतरनाक है। लेकिन उनका एक ही उत्तर था कि मैं जान देने के लिए भी तैयार हूँ। घटनास्थल पर पहुँचने के पहले भी उन्हें रोकने का असफल प्रयास किया गया, लेकिन फादर हेरमन नहीं माने। वे करीब 7.30 -8.00 बजे घटना स्थल पर पहुँच गये। उन्होंने अपनी साईकिल एक ओर फेंक दी। चारदीवारी पर चढ़कर मुसलमानों की दयनीय स्थिति देखी, महिलाओं के रूदन, बच्चों के क्रंदन और भीड़ को चींखते सुना। दया से द्रवित होकर उन्होंने चिल्लाकर कहा, "आपलोग यह क्या कर रहे हैं, यह ठीक नहीं है।" तभी भीड़ में से आवाज आयी, "इसे मार डालो यह भी मुसलमान है।" और इसके साथ ही एक दंगाई ने पीछे से उसपर वार किया और उसका गला काट दिया। एक चश्मदीद के गवाह अनुसार फादर हेरमन ने प्रार्थना करने के लिए घुटनी टेकने का प्रयास किया, किन्तु कई घातक प्रहार एवं गहरे घावों के कारण वे मस्जिद के सामने ही तत्काल शहीद हो गये। उग्र भीड़ ने लाश को जलाने के लिए उसे पुआल से ढंक दिया किन्तु कुछ काथलिकों ने ऐसा नहीं करने की अर्जी विन्ती की और मृत शरीर को गेरदा के गिरजाघर ले गये। दूसरे दिन 25 मार्च 1964 को संत अन्ना की तीन धर्मबहनें और कुछ शिक्षकों ने शव को कुटुंगिया पल्ली लाया और पुराने पल्ली भवन से पश्चिम दिशा में साल वृक्षों के झुरमुट में उन्हें दफना दिया गया।
फादर रसकट ने अपने शहादत के द्वारा शांति, दया, न्याय और सहअस्तित्व के मूल्यों को बढ़ावा दिया है। मानव भाईचारा की रक्षा के प्रयास ने उनकी जान ले ली। वे प्रेम के लिए शहीद हो गये और आज भी बहुत सारे लोगों के दिलों में राज करते हैं। आपसी भाईचारा, शांति और सद्भाव बनाये रखने के लिए उन्होंने जो सर्वोच्च बलिदान दिया, आज वह बहुतों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
सिमडेगा धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष मान्यवर विशप भिंसेंट बरवा ने ईश सेवक फादर हेरमन रसकट की संत घोषणा की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने हेतु एक कमिटी का गठन कर 25 अगस्त 2019 को उनके जीवन एवं शहादत की जाँच प्रक्रिया का उद्घाटन किया।
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