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आदिवासी नृत्यु प्रस्तुत करता एक नृत्य दल आदिवासी नृत्यु प्रस्तुत करता एक नृत्य दल 

विश्व आदिवासी दिवस पर राँची के महाधर्माध्यक्ष का संदेश

राँची महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष माननीय बिशप फेलिक्स टोप्पो येसु समाजी ने 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर सभी आदिवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित की हैं तथा उन्हें प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दिया है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

राँची मंगलवार, 9 अगस्त 2022 (वीआर हिन्दी)˸ महाधर्मप्रांत के यूट्यूब चैनल के माध्यम से महाधर्माध्यक्ष फेलिक्स टोप्पो येसु समाजी ने 9 अगस्त को अपने संदेश में कहा, "सभी आदिवासियों को अपनी ओर से शुभकामनाएँ एवं जोहार देता हूँ। प्रत्येक आदिवासी को आदिवासी होने के नाते आत्म सम्मान और गौरव होना चाहिए। उन्हें इस बात का गर्व होना चाहिए कि वे आदिवासी हैं। इसके साथ साथ-साथ उन्हें अपने पुरखों को याद करना चाहिए। हम जो कुछ भी हैं हमारे पुरखों के बदौलत हैं। उन्होंने जंगल-झाड़, ऊँची-नीची जमीन को बहुत परिश्रम करके खेती-बारी के लायक बनाया और यहाँ की हरियाली को बनाये रखा। हम उनके कठिन परिश्रम के लिए उनको धन्यवाद देते हैं और उनका आदर सम्मान करते हैं।

आदिवासी संस्कृति की सुन्दरता

महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि हमारे पूरखों ने आदिवासियों की जो संस्कृति है उसे बनाये रखा। जैसे कि हम जानते हैं कि आदिवासियों में बहुत अच्छे मूल्य हैं, उनकी संस्कृति में सामुदायिक जीवन, आपसी प्रेम, एकता और सौहार्द है। जहाँ वे शादी-ब्याह और खेती बारी में भी एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते और आनन्द मनाते हैं। जहाँ नाच-गान है। एक-दूसरे की सहायता है, एक दूसरे में समानता है। वे किसी को बड़ा-छोटा नहीं मानते हैं। और कोई भी निर्णय लेना हो तो वे मिलकर निर्णय लेते हैं। ये हमारी संस्कृति की अच्छी बाते हैं।

एक साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता

"समय के साथ हमें भी जरूर प्रगति करना है और हम कर रहे हैं। हमारे बहुत सारे बच्चे अब पढ़-लिखकर आगे बढ़ रहे हैं। ये अच्छी बात है लेकिन जो पढ़ लिख गये हैं जिनके पास धन–सम्पति है जो समाज में सम्मान का स्थान रखते हैं उनको चाहिए कि वे पिछड़े लोगों को भी साथ लेकर चलने का प्रयत्न करें।"

अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना

"इस बात का भी ध्यान रखें कि हमारे पूर्वजों पर बहुत अत्याचार हुए हैं और आज भी यह किसी न किसी रूप में जारी है। इसके प्रति हमें सजग रहना चाहिए क्योंकि संविधान से हमें अधिकार मिला है। कर्तव्य भी मिले हैं। उन अधिकारों को हमें जानना है और उनके अनुसार अपनी रक्षा करनी है।"

महाधर्माध्यक्ष ने संविधान में निहित सी एन टी और एस पी टी एक्ट के तहत मिले अधिकारों के प्रति सजग रहने और अपनी जमान की रक्षा करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "क्योंकि हम जानते हैं कि आदिवासी लोगों का जमीन से बहुत गहरा संबंध होता है। वे अपने लिए उपज एवं जानवरों के भोजन के लिए भी जमीन पर आधारित रहते हैं। अतः वे संविधान में निहित अपने अधिकार को जानें और उसे बचाने का प्रयत्न करें।"

आदिवासी वनवासी नहीं

आज सरकार चाहती है कि उन प्रावधानों को परिवर्तित करे क्योंकि हमारे सम्पूर्ण क्षेत्र में खनिज पदार्थ हैं। उन खनिजों को दूसरे लोग ढूढ़ना चाहते हैं इसलिए उन्हें जमीन चाहिए। उन्होंने स्वीकार किया कि यह जरूरी है किन्तु किसी पर अत्याचार और शोसन करके नहीं, जिसको उन्होंने गलत बतलाया।

आगे उन्होंने कहा, "कुछ बाहरी तत्व ऐसे हैं जो आदिवासियों को वनवासी कहते हैं। आदिवासी वनवासी नहीं हैं। जरूर वे जंगलों में रहते या बाहर रहते थे किन्तु वे यहाँ के आदि पुरखे हैं। आदिम निवासी हैं इस बात को हमें ध्यान देना है। यदि उन्हें वनवासी कहेंगे तो यह हमारी आदिवासियत को एक प्रकार से समाप्त करने की साजिश है।

अपनी संस्कृति भूलना दुखद

महाधर्माध्यक्ष ने अपनी संस्कृति भूलनेवाले आदिवासियों के प्रति दुःख प्रकट करते हुए कहा, "मुझे दुःख लगता है कि आदिवासी लोग अपने गोत्र का अर्थ नहीं जानते। हमारे पूरखों ने एक गोत्र दिया था उस गोत्र का एक अर्थ होता था। अर्थात् वह पारिवारिक खानदानी ईस्ट आत्मा के साथ जुड़ा हुआ था। इसलिए हमें समझना है कि हमारे पूर्वजों ने क्यों ऐसा किया था। और यदि हम गहराई से इसका अध्ययन करें तो आदिवासी लोग धरती से जुड़े हुए थे। उसी का फल था।

आदिवासी पहचान नहीं मिटती

अभी बाहरी तत्व हमारे लोगों को समातन धर्मी कहते हैं। आदिवासी सनातन धर्म नहीं है। आदिवासी, आदिवासी हैं। वे सरना धर्म का पालन करते थे और उसी के आधार पर उनके त्यौहार होते थे "इसलिए हमने आग्रह किया है कि सरना कोड दिया जाए। ताकि उन्हें एक पहचान मिले कि वे आदिवासी हैं। और सरना धर्म का पालन करते हैं। इसी संदर्भ में हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति सोच-विचार करके स्वेच्छा से किसी दूसरे धर्म को स्वीकार करता है। चाहे हिन्दू धर्म हो, मुसलमान या ख्रीस्तीय धर्म हो उसकी आदिवासियत समाप्त नहीं हो जाती। इस बात को याद रखना है। वह आदिवासी आदिवासी ही रह जाता है। भले उसका विश्वास किसी अन्य देवता पर हो।"

युवाओं को आगे बढ़ने के लिए पढ़ाई जरूरी

उन्होंने युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा, "समय का परिवर्तन हो रहा है और उसके अनुसार युवाओं को आगे बढ़ने की जरूरत है, प्रगति करना है। और यह तभी संभव होगा यदि वे पढ़ाई-लिखाई में अपने आपको समर्पित करें। और जो अवसर आते हैं उसके लिए वे कार्यरत रहें। अगर युवा भटक जाता है तो वह अपना विनाश करेगा और सम्पूर्ण समाज विकृत हो जाएगा। इसलिए मैं युवाओं से निवेदन करता हूँ और उन्हें सलाह देता हूँ कि वे कान में तेल डाले न बैठे रहें बल्कि अपने आपकी प्रगति, परिवार और समाज की प्रगति के लिए अपने आप को तैयार करें। इसके साथ-साथ हमें ध्यान देना है कि वर्तमान में हमारी राजनीतिक स्थिति क्या है। क्योंकि राजनीति के कारण हमारे जीवन और भविष्य में बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। जैसे कि अभी देखा जा रहा है बहुत जगह नौकरी की कमी है। जो राजनीति के कारण से ही है अतः हमें इन सबको ध्यान देना है। तब हम आगे बढ़ सकते हैं।"

अंत में, उन्होंने सभी आदिवासियों को पुनः शुभकामनाएँ देते हुए याद दिलाया कि वे अपनी पहचान और सम्मान को बनाये रखें।

      

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09 अगस्त 2022, 16:54
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