विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासियों ने दिया एकजुटता का परिचय
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
भारत, बुधवार, 9 अगस्त 2023 (वीआर हिन्दी) : विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर भारत के आदिवासियों ने जल, जंगल, जमीन के संरक्षण में अपनी भूमिका की याद करते हुए प्रकृति के सच्चे सेवक बने रहने की प्रतिबद्धता दोहराई। 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1994 में यह महसूस करते हुए की 21वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवास करनेवाले जनजातीय मूल निवासी, उपेक्षा, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, सरकार के बड़े-बड़े उद्योग एवं सिंचाई बांध के कारण विस्थापन, बेरोजगारी एवं बंधुआ मजदूरी जैसी समस्याओं से ग्रसित हैं; आदिवासी समाज से उन समस्याओं के निराकरण हेतु विश्व आदिवासी दिवस की घोषणा की। इसके बाद से पूरे विश्व में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है जिसमें भारत भी प्रमुखता से शामिल है।
भारत के आदिवासी
भारत में लगभग 700 आदिवासी जनजाति समुदाय है जिनकी जनसंख्या लगभग 10 करोड़ है। आदिवासी प्राकृतिक पूजक है आज भी आदिवासी विकास के क्षेत्र में पिछड़े नजर आते हैं जल, जंगल, जमीन और खनिज के संरक्षण की लड़ाई के साथ अपनी परंपरा, संस्कृति, रीति-रिवाज और आदिवासी अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जबकि भारत देश के उत्थान और समग्र विकास की कल्पना आदिवासियों की सहभागिता के बगैर संभव नहीं है।
झारखंड की राजधानी राँची के महाधर्माध्यक्ष फेलिक्स टोप्पो येसु समाजी ने एक वीडियो संदेश में विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएँ दी हैं। उन्होंने संदेश में कहा है, “आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मैं आर्चविशप फेलिक्स टोप्पो आप सभी को विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएँ देता हूँ।” उन्होंने इस अवसर पर अपनी विचारधारा को साझा करते हुए कहा, “हम आदिवासी प्रकृति से जुड़े हुए हैं हमारा सम्पूर्ण जीवन प्रकृति के ईर्द गिर्द बुना तना है।” हमारे जो त्योहार हैं सभी प्रकृति से जुड़े हैं। हमारे पूजा पाठ भी प्रकृति से जुड़े हैं। प्रकृति से ही हमें अन्न, जल, फल फूल चावल दाल सभी प्राप्त होते हैं।”
आदिवासियों की विशेषता
महाधर्माध्यक्ष ने आदिवासियों के गुणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सारा गाँव एक परिवार के समान है, सभी के साथ आपसी संबंध होता है। सभी एक -दूसरे का सहयोग करते हैं। गाँव के मामलों में सभी मिलकर निर्णय लेते हैं जो बहुत बड़ी बात है।
आदिवासियों के स्वभाव पर प्रकाश डालते हुए महाधर्माध्यक्ष फेलिक्स ने कहा कि वे प्रसन्नचित होते हैं। उनमें किसी तरह का तनाव नहीं दिखाई पड़ता है। वे सीधे-सादे, गरीब और ईमानदार हैं।
शोषण के शिकार
महाधर्माध्यक्ष ने आदिवासियों की कमजोरियों पर भी गौर किया। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश, कई लोग अनपढ़ हैं, उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं है, इसलिए उनपर अन्याय, अत्यचार और शोषण होते हैं, सबसे बढ़कर, उनकी जमीन छीन ली जाती है। बाहर के लोग उनपर अपना आधिपत्य जमा लेते हैं।
उन्होंने सरकार से अपील करते हुए कहा कि उसका कर्तव्य है कि वह इन आदिवासी लोगों की रक्षा करे। संविधान में जो अधिकार उन्हें मिले हैं उनकी रक्षा करे।
महाधर्माध्यक्ष ने शिक्षित आदिवासियों को भी याद दिलाया कि उनकी भी एक बड़ी जिम्मेदारी है कि वे अपने आदिवासी भाई-बहनों की देखभाल करें, उन्हें अपने अधिकारों के प्रति सजग करें।
अपनी पहचान न खोयें
राँची के महाधर्माध्यक्ष ने आदिवासियों को जोर देते हुए याद दिलाया कि चाहे वे किसी भी धर्म को क्यों न अपना लें, उनकी आदिवासी होने की पहचान समाप्त नहीं हो जाती।
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर, झारखंड में राज्य स्तरीय कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। राज्य के आदिवासी भारी संख्या में पारम्परिक भेष-भूषा में अपने घरों से बाहर आकर अपनी एकता, शक्ति, संस्कृति, कला और पहचान का प्रदर्शन कर रहे हैं।
झारखंड में कार्यक्रम का आयोजन
वहीं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेंन ने 9 अगस्त को राँची के भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह-संग्राहालय में दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव का उद्घाटन किया।
एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, दुनिया भर में आदिवासी लोगों की संख्या 476 मिलियन हैं जो करीब 90 से अधिक देशों में रहते हैं। वे 5,000 से अधिक विभिन्न मूल निवासियों से संबंधित हैं और 4,000 से अधिक भाषाएँ बोलते हैं। दुनिया की आबादी में आदिवासियों की संख्या 5% है जिसमें से 70% आदिवासी एशिया में रहते हैं।
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