धर्मसभा आध्यात्मिक साधना- सत्य का आत्मा

दोमेनिकन पुरोहित तिमथी पीटर रैडक्लिफ ने धर्मसभा आध्यात्मिक साधना में सहभागी हो रहे सभी प्रतिभागियों को सत्य के आत्मा पर चिंतन करने हेतु प्रवचन दिया।

वाटिकन सिटी

छटवाँ प्रवचनः सत्य का आत्मा

शिष्यों ने प्रभु की महिमा देखी और मूसा तथा एलियस का साक्ष्य देखा। अब वे पहाड़ से नीचे उतरने और येरूसालेम जाने का साहस करते हैं। आज के सुसमाचार में (लूका 9.51-56) हम उन्हें रास्ते में देखते हैं। उनका सामना सामरियों से होता है जो उनका विरोध करते हैं क्योंकि वे येरूसालेम की राह में हैं। शिष्यों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उनके ऊपर स्वर्ग से आग गिराने और उन्हें नष्ट करने की बात कही। इसके पहले उन्होंने ठीक एलियस को देखा और उन्होंने बाल के नबियों के साथ ऐसा ही किया था। परन्तु येसु उन्हें फटकारते हैं। वे अबतक उस यात्रा को नहीं समझ पाए हैं जिस पर प्रभु उन्हें ले जा रहे हैं।

आने वाले तीन सप्ताह, हम उन लोगों के संबंध में स्वर्ग से आग बरसाने के प्रलोभन में पड़ेंगे जिन से हम असहमत होंगे। हमारा समाज क्रोध की आग से दहकता है। ईश्वर हमें ऐसी विनाशकारी बातों से बाज आने का निमंत्रण देते हैं।   

यह विकृत करने वाला क्रोध हमारे लिए भय से उत्पन्न होता है, लेकिन हमें भयभीत होने की जरुरत नहीं है। येसु ने हमें पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा की है जो हमें सच्चाई की ओर ले चलेंगे। उस रात को अपनी मृत्यु से पहले येसु ने कहा, “मुझे और भी बहुत सारी चीजों के बारे में तुम्हें बतलाना है, लेकिन तुम अभी उन्हें नहीं समझोगे। जब सत्य का पवित्र आत्मा आयेगा, तो वह तुम्हें सत्य के मार्ग में ले जायेगा, क्योंकि वह अपनी ओर ने नहीं कहेगा, बल्कि उन सारी चीजों के बारे में कहेगा जो वह सुनेगा, और वह तुम्हें आने वाली चीजों के बारे में बतलायेगा”(यो.16.12-13)।

हमारी राहों में हम जो कुछ भी तकरार पाते, हम इस बात से निश्चित हों, कि पवित्र आत्मा हमें सत्य के मार्ग में अग्रसर कर रहा है। लेकिन यह सहज नहीं है। येसु ने अपने शिष्यों को इस बात से सचेत किया,“मुझे तुम्हें बहुत सारी चीजें बतलानी है, लेकिन तुम उन्हें अभी नहीं समझोगे।” पेत्रुस कैसेरिया फिलीपी प्रांत में इस बात को स्वीकार नहीं कर सकता कि येसु दुःख भोगेंगे और मार डाले जायेंगे। येसु की मृत्यु की अंतिम रात को पेत्रुस इस बात की सत्यता को भी स्वीकार नहीं करते कि वे उन्हें अस्वीकार करेंगे। सत्य की ओर अग्रसर होने का अर्थ है उन चीज़ों को सुनना जो अरुचिकर हैं।

आज वे कौन-सी सच्चाइयाँ हैं जिनका सामना करने में हम कठिनाई का अनुभव करते हैंॽ कलीसिया में यौन दुराचार और भ्रष्टचार के देखना हमें कितना गहरा दुःख देता है। यह जगने वाले के लिए एक डरावनी बात-सी लगती है। लेकिन यदि हम इस शर्मनाक सच्चाई का सामना साहसपूर्वक करें तो यह हमें स्वतंत्र करेगा। येसु इस बात की प्रतिज्ञा करते हैं,“तुम्हें दुःख होगा, लेकिन यह दुःख तुम्हारे लिए आनंद का कारण बनेगा”, जैसे कि हम प्रसव वेदना में पड़ी नारी को देखते हैं। धर्मसभा के ये दिन हमारे लिए दुःखदायी होंगे लेकिन यदि हम अपने को पवित्र आत्मा के द्वारा संचालित होने दें तो यह प्रसव वेदना कलीसिया के लिए एक नये जन्म का कारण होगी।

यह हमारा साक्ष्य है जिसे हम एक समाज को भागता पाते हैं। कवि टी.एस एलियोट ने कहा है,“मानव अपने में बहुत अधिक सच्चाई को सहन नहीं कर सकता है।” हम एक पारिस्थितिक तबाही की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन हमारे राजनीतिक नेता ज्यादातर दिखावा करते हैं मानो कि कुछ भी नहीं हो रहा है। हमारी दुनिया गरीबी और हिंसा की सूली पर चढ़ गई है, लेकिन अमीर देश हमारे उन लाखों भाइयों और बहनों को नहीं देखना चाहते जो पीड़ित हैं और घर की तलाश में हैं।

पश्चिमी समाज इस सच्चाई का सामना करने से डरता है कि हम कमजोर नश्वर, हाड़-मांस के पुरुष और महिलाएं हैं। हम अपने शारीरिक अस्तित्व की सच्चाई से भागते हैं, यह दिखावा करते हुए कि हम अपनी इच्छानुसार आत्म-पहचान स्थापित कर सकते हैं, मानो कि हम सिर्फ दिमागी हैं। परित्याग करने की संस्कृति का अर्थ है कि जिन लोगों से हम असहमत हैं, उन्हें चुपकर देना चाहिए, उन्हें किसी मंच पर नहीं आना चाहिए, जैसे शिष्य उन सामरियों पर आग बरसाना चाहते थे जिन्होंने येसु का स्वागत नहीं किया। वे कौन-सी दर्दनाक सच्चाइयाँ हैं जिनका सामना करने से महाद्वीपों के हमारे भाई-बहन डरते हैं? यह कहना मेरे बस की बात नहीं है। मैं उन दर्द भरी सच्चाइयों की चर्चा नहीं कर सकता हूँ, जिन्हें हमारे समय के भाई-बहनें सामना करने से डरते हैं।

यदि हम अपनी सच्चाइयों का सामना करने की चाह रखते कि हम कौन हैं, नश्वर क्षणभंगुर मानव, कलीसिया में हमारे भाई-बहनें जो सदैव साहसी और भ्रष्ट हैं, तो हम अधिकार के साथ दुनिया से बातें करेंगे जो सच्चाई की भूखी है यद्यपि यह इस बात से भयभीत होती कि इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है। यह साहस की मांग करता है जिसके बारे में संत थोमस आक्वीनस कहते हैं, फोरतीतूदो मेनतीस, मानसिक शक्ति जो चीजों को वैसे ही देख सके जैसे कि वे हैं, सच्ची दुनिया में निवास करना। कवि माया एंजेलो ने कहा है, “साहस सभी गुणों में सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि साहस के बिना आप किसी अन्य गुण का लगातार अभ्यास नहीं कर सकते।”  

जब संत ओस्कर रोमेरो अपने घर एल सालभादोर लौटे, तो एक प्रवासन अधिकारी ने कहा, “वहाँ सच्चाई जा रही है।” वे सच्चाई में मृत्यु का सामना करने को तैयार थे। समुद्रतट के किनारे बैठे उन्होंने एक मित्र से पूछा, यदि वह मरने से डरते हैं, उसके मित्र ने कहा कि वह नहीं डरता है। रोमेरो ने कहा, “लेकिन मैं डरता हूँ, मैं मरने से डरता हूँ।” यह सच्चाई है जो शहीद के जीवन को सुन्दर बनाता है। जब से उन्होंने अपने येसु संघी मित्र रूतेलीयो के क्षत-विक्षत शरीर को देखा था, वे इस बात को जानते थे कि उनके साथ क्या होने वाला है। जब वे शहीद हुए, उनके शरीर को पसीने से तर-बतर पाया गया। ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने हत्यारे को देखा था जो उन्हें मारे वाले थे लेकिन वे नहीं भागे।  उस आखरी रात को, येसु ने अपने शिष्यों को इस बात की चेतावनी दी यदि वे उनमें बने रहते हैं, सच्ची दखलाता के रुप में तो उन्हें छांटा जायेगा जिससे वे फल उत्पन्न करें। इस धर्मसभा में, हमें यह लगेगा की हम कांटे-छांटे जा रहे हैं। यह इसलिए जिससे हम और अधिक फल उत्पन्न कर सकें। इसका अर्थ है हम दूसरे के संबंध में अपने भ्रम और पूर्वाग्रह से परिशुद्ध किये जाते हैं- अपने भय और संकीर्ण आदर्श से, अपने घमंड से।

मेरे एक युवा भाई ने मुझे इस बिंदु पर व्यक्तिगत रूप से बोलने के लिए प्रोत्साहित किया, हालाँकि मैं ऐसा करने में झिझकता हूँ। कुछ साल पहले जबड़े के कैंसर के कारण मेरा एक बड़ा ऑपरेशन हुआ था। इसमें सत्रह घंटे लगे। मैं पाँच सप्ताह तक अस्पताल में था, खाने-पीने में असमर्थ था। मैं अक्सर उलझन में रहता था कि मैं कहाँ हूँ और कौन हूँ। मुझसे मेरा सम्मान छीन लिया गया है और यहाँ तक कि सबसे बुनियादी जरूरतों के लिए भी मैं पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हो गया हूँ। यह एक भयानक काट-छाँट थी। यह एक आशीर्वाद भी था। असहाय इस क्षण में, मैं कोई महत्व, कोई उपलब्धि का दावा नहीं कर सकता था। मैं वार्ड के एक बिस्तर पर सिर्फ एक बीमार व्यक्ति था जिसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं था। मैं प्रार्थना भी नहीं कर सकता था। तब मेरी आँखें प्रभु के प्रति कृतज्ञता के भाव में, निःस्वार्थ प्रेम के प्रति कुछ और अधिक खुल गईं। मैं इसके लिए कुछ नहीं कर सकता था और यह अद्भुत था कि मुझे ऐसा नहीं करना पड़ा।    

आत्मा हममें से प्रत्येक को सत्य की ओर एक साथ ले चलता है। मुझे महान धर्माध्यक्ष बटलर ने मेरा पुरोहिताभिषेक किया था, जो द्वितीय वाटिकन परिषद में एकमात्र व्यक्ति थे जो उत्तम सिसेरोनियन लैटिन बोल सकते थे। उन्हें यह कहने में अच्छा लगता था कि “हमें इस बात से डरना नहीं चाहिए कि सत्य से सत्य को भय हो सकता है।” यदि कोई दूसरा जो कहता है वह वास्तव में सत्य है, तो यह उस सत्य को खतरे में नहीं डालता जिसे मैं अपने में धारण करता हूँ। मुझे अपना दिल और दिमाग दिव्य सत्य की विशालता के लिए खोलना चाहिए। अगर मुझे विश्वास है कि दूसरा जो कहता है वह सच नहीं है, तो मुझे निश्चित रूप से उचित विनम्रता के साथ ऐसा कहना चाहिए। जर्मन में बहुत सुन्दर शब्द ज़्विसचेनराम है। अगर मैं इसे समझता हूँ, तो इसका मतलब है कि जब हम बात करते हैं तो सत्य की पूर्णता हमारे बीच के स्थान में होती है। ईश्वर का रहस्य हमेशा खाली स्थानों में प्रकट होता है।

स्पष्ट रूप से असंगत सत्यों का टकराव दर्दनाक और क्रोधपूर्ण हो सकता है। हम संत पौलुसस और संत पेत्रुस के मध्य अंताखिया में, उनके बीच संघर्ष के बारे में विचार करें, हम इसे गलातियों के नाम पत्र में पाते हैं, “जब कैफा अंताखिया  आया, तो मैंने उसके सामने उसका विरोध किया”(2.11)। लेकिन उन्होंने एक-दूसरे का सहयोग किया और कलीसिया दोनों को संस्थापक के रूप में देखती है। वे शहीदों के रूप में मौत के मुँह में समा गये।

हमें सच बोलने के तरीकों की तलाश करनी चाहिए ताकि दूसरा व्यक्ति निराश हुए बिना इसे सुन सके। उस समय के बारे में विचार करें जिसकी चर्चा संत योहन अपने अध्याय 21 में करते हैं, जो पेत्रुस समुद्र तट पर येसु से मिला था। येसु की मृत्यु से पहले आखिरी शाम को, पेत्रुस ने दावा किया था कि वह दूसरों की तुलना में प्रभु से अधिक प्यार करता है। लेकिन कुछ ही समय बाद उसने तीन बार प्रभु को इन्कार किया, जो उसके जीवन का सबसे शर्मनाक क्षण था। समुद्र तट पर, येसु उसकी असफलता के लिए उसे नहीं फटकारते हैं। वे धीरे से, शायद मुस्कुराते हुए, तीन बार पूछते हैं, “क्या तुम मुझे इन दूसरों से अधिक प्यार करते होॽ अति नम्रता में, वे पेत्रुस को उसके तीन बार के इनकार को दूर करने में मदद करते हैं। वे उसे प्रेम की संपूर्ण कोमलता को सच्चाई के साथ सामना करने की चुनौती देते हैं। क्या हम इतनी विनम्र सच्चाई के साथ एक-दूसरे को चुनौती दे सकते हैंॽ

अमेरीकी कवित्री एमिली डीकीन्स एक अच्छी सलाह देती हैं- सच बोलें लेकिन मुढ़े हुए रुप में, - सर्किट में सफलता झूठ बोलती है। इन शब्दों से उपयोग हेतु क्षमाप्रर्थी हूँ। इसका अनुभव हमारे लिए अति कठिन है। उनका कहने का तत्पर्य कभी-कभी सच्चाई अप्रत्यक्ष ढ़ंग से शक्तिशाली रुप में बोली जाती है जिसे दूसरे सुन सकें। यदि आप किसी को बताते हैं कि वे पितृसत्तात्मक अधिकारी हैं, तो संभवतः उनके लिए मददगार नहीं होगा। बेशक, यद्यपि यह कभी-कभी दर्दनाक होगा। लेकिन संत पापा फ्रांसिस कहते हैं- “सच बोलो भले ही यह असुविधाजनक ही क्यों न हो।”

इसके लिए हम सभी को नियंत्रण खोने की आवश्यकता है। येसु ने पेत्रुस से कहा, “मैं तुम से यह कहता हूँ, जवानी में तुम स्वयं अपनी कमर कस कर जहाँ चाहते थे, वहाँ घूमते-फिरते थे, लेकिन बुढ़ापे में तुम अपने हाथ फैलाओगे औऱ दूसरा व्यक्ति तुम्हारी कमर कस कर तुम्हें वहाँ ले जायेगा, जहाँ तुम नहीं जाना चाहते।” उसने यह बात यह बताने के लिए कही कि किस प्रकार की मृत्यु से वह ईश्वर की महिमा करेगा” (यो. 21.18)

यदि धर्मसभा का आयाम संसद की अपेक्षा प्रार्थनामय है, तो यह हम सभी से एक प्रकार का नियंत्रण छोड़ने, यहां तक कि मृत्यु की मांग करेगी। ईश्वर को ईश्वर ही रहने दें। एभेंजेली गौदियुम में, संत पापा ने इस बात की चर्चा की है, “ईश्वर के आत्मा से अपने को निर्देशित होने देने से बड़ी स्वतंत्रता औऱ कुछ भी नहीं है, इसके बजाय कि हम हर चीज़ की योजना बनाते और उसे अंतिम विस्तार तक नियंत्रित करने का हर प्रयास करते हैं बल्कि हमें चाहिए कि हम उनके द्वारा अपने को आलोकित,संचालित और निर्देशित होने दें,जिससे वे जहाँ भी चाहें हमें ले जायें” (280)। नियंत्रण छोड़ना अपने में कुछ नहीं करना है। चूँकि कलीसिया बहुत हद तक नियंत्रण की संरचना रही है, कभी-कभी पवित्र आत्मा को हमें यहाँ ले जाने के लिए मजबूत हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, जिसके बारे में हमने कभी नहीं सोचा था।    

नियंत्रण करना हमारी गहरी प्रवृत्ति है, यही कारण है कि कई लोग धर्मसभा से डरते हैं। पिन्तेकोस्त के दिन, पवित्र आत्मा शिष्यों पर शक्तिशाली रूप से उतरे और वे पृथ्वी के सीमांतों तक भेजे गये। लेकिन इसके बदले, प्रेरित येरूसालेम में बस गए और उसे छोड़ना नहीं चाहते थे। उन्हें वहाँ से बाहर निकालने और येरूसलेम से दूर भेजने के लिए उत्पीड़न की आवश्यकता पड़ी। यह कठिन प्रेम है। सांता सबीना में मेरे कार्यालय के ऊपर, हर साल केस्टरेल अपना घोंसला बनाते हैं। वह समय आता है जब माता-पिता युवा पक्षियों को अपने घोंसले से बाहर निकाल देते, ताकि वे उड़ें या नष्ट हों। अपनी मेज पर बैठे, मैं उन्हें हवा में बने रहने के लिए संघर्ष करते हुए देखा सकता हूँ। पवित्र आत्मा कभी-कभी हमें घोंसले से बाहर निकाल देते हैं और उड़ने के लिए कहते हैं। हम घबराहट में फड़फड़ाते हैं, लेकिन हम उड़ेंगे।

गेथसेमानी बारी में, येसु ने अपने जीवन पर नियंत्रण छोड़ दिया और अपने को पिता के लिए सौंप दिया। जैसा मैं चाहता वैसा नहीं। जब मैं एक युवा था, एक फ्रांसीसी दोमेनिकन, श्रमिक पुरोहित के रुप में समुदाय में रहता था। वे  सबसे गरीब लोगों की सेवा करने के लिए भारत जा रहे थे, और बंगाली सीखने के लिए ऑक्सफोर्ड आए। मैंने उनसे पूछा कि वे क्या करना चाहते हैं: “आपकी योजना क्या हैॽ” उन्होंने उत्तर दिया: “जब तक गरीब मुझे नहीं बताएंगे, मुझे कैसे पता चलेगाॽ”

युवा धर्माधिकारी के रुप में मैंनें दोमेनिकन मठों की भेंट की जो अपनी समाप्ति पर थे। केवल चार बुजुर्ग धर्मबहनें रह गई थीं। मैं भूतपूर्व प्रांतीय अधिकार, पीटर के साथ था। जब हमने धर्मबहनों से कहा कि मठवासी जीवन अनिश्चित लगता है, उनमें से एक ने कहा,“लेकिन तिमथी, हमारे प्रभु मठवासी जीवन का अंत होने नहीं देंगे, क्या वेॽ” पीटर ने तुंरत उत्तर दिया, “सिस्टर, उन्होंने अपने पुत्र को मर जाने दिया।” अतः हम चीजों का अंत होने दें निराशा में नहीं बल्कि आशा में, जिससे नये चीजों को स्थान मिल सके।

संत दोमेनिक ने धर्मसमाज की बागडोर अपने भाइयों के हाथों में सौंपी जिन्होंने पवित्र आत्मा को ग्रहण किया था। अतः पवित्र आत्मा के द्वारा संचालित होने का अर्थ नियंत्रित करने की संस्कृति से अपने को स्वतंत्र करना है। हमारे समाज में नेतृत्व का अर्थ अपनी हाथों में शक्ति को धारण करना है। संत पापा जोन 13वें मजाकिये लिहाज में ईश्वर से हर रात कहते थे, “संत पापा को अब सोचने जाना चाहिए, अतः आप ईश्वर, कुछ घंटों के लिए कलीसिया की देख-रेख करें। उन्होंने इन बात को अच्छी तरह समझा, नेतृत्व कभी-कभी अपने नियंत्रण को हाथों से जाने देना है।

इंस्त्रेमेतुम लाबोरिस हमें युवाओं के लिए विशेष विकल्प की बात कहता है। हम हर साल इस बात की याद करते हैं कि ईश्वर एक बालक के रुप में हमारे बीच जन्म लेते हैं। युवाओं पर विश्वास करना ख्रीस्तीय नेतृत्व का एक अंतरंग हिस्सा है। युवा यहाँ बुजुर्गों का स्थान लेने को नहीं हैं बल्कि उन चीजों को करने के लिए जिनके बारे में बुजुर्ग कल्पना नहीं करते हैं। जब संत दोमेनिक ने दो नवशिष्यों को प्रवचन देने के लिए भेजा, तो कुछ मठवासियों ने उन्हें सचेत किया कि वे उन्हें खो देंगे। दोमेनिक ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं निश्चित रुप से जानता हूँ कि मेरे युवा बाहर जायेंगे और लौटकर आयेंगे, लेकिन तुम्हारे युवा अंदर रहने के बाद भी बाहर निकल जायेंगे।”

सभी सच्चइयों में पवित्र आत्मा के द्वारा संचालित किये जाने का अर्थ वर्तमान परिस्थिति को पवित्र आत्मा में विश्वास करते हुए जाने देना है जिससे वे नयी चीजों को, नये ख्रीस्तीय जीवन, नयी प्रेरिताई को स्थापित कर सकें। विगत दो सहस्राब्दियों में पवित्र आत्मा अपने में क्रियाशील हैं जो कलीसिया में नये रुपों की स्थापना करते हैं। विगत सदियों में नये कलीसियाई अंदोलनों की शुरूआत हुई हैं। हम पवित्र आत्मा को सृजनात्मक रुप में हमारे बीच कार्य करने दें जिसे हम नये रुप में कल्पना नहीं कर सकते लेकिन युवागण कर सकते हैं। उनकी सुनो, पर्वत में यह वाणी सुनाई दी। यह हमारे लिए युवाओं को भी सुनना है जिनके द्वारा ईश्वर हमें अपनी बातों को कहते हैं (मत्ती.11.28)।

सच्चाई की ओर निर्देंशित किये जाने का तत्पर्य अपने में तर्कपूर्ण होना नहीं है। हम अपने में केवल बैद्धिक नहीं हैं। हम जो हैं अपने को खोलते हैं, एक-दूसरे के लिए हमारी मानवीय संवेदनशीलता। संत थोमस आक्वीनस ने अरीस्टोटल को यह कहना पसंद किया,“आत्मा, एक तरह से, अपने में सब कुछ है।” हम स्वयं को दूसरों के लिए खोलते हुए अपने को गहराई से समझते हैं। हम अपने को दूसरों से स्पर्श होने देते और दूसरों से मिलन द्वारा परिवर्तित होते हैं। सत्य की पूर्णता जिसमें पवित्र आत्मा हमें ले जा रहा है वह निष्पक्ष ज्ञान नहीं है जो दूर से निरीक्षण करता हो। यह प्रस्तावात्मक ज्ञान से कहीं अधिक है। यह परिवर्तनकारी प्रेम से अविभाज्य है (IL A.1 27)। दोमेनिकन तरीका यह है कि जानने के माध्यम से हमें प्रेम होता है। वहीं फ्रांसिस्कन स्वरुप यह है कि प्रेम करने के द्वारा हम जानते हैं। दोनों सही हैं।

रहस्य जिसकी ओर हम निर्देशित किये जाते वह एक प्रेम है जिसमें प्रतिस्पर्धा नहीं है। पिता के पास जो है वह पुत्र औऱ पवित्र आत्मा दोनों को दिया गया है। दिव्य जीवन में साझा होना अपने में प्रतिस्पर्धा और विरोधाभाव से स्वतंत्र होना है। यह वही दिव्य प्रेम है जो हमें विरोधाभाव से स्वतंत्र करता है जिसके द्वारा हमें धर्मसभा में एक-दूसरे को प्रेम करने की जरुरत है। संत योहन लिखते हैं, “वे जो कहते हैं,“मैं ईश्वर को प्रेम करता हूँ” और अपने भाई-बहन से घृणा करते, वे झूठे हैं, क्योंकि जो अपने भाई या बहन जिसे वे देखते है प्रेम नहीं करते, वे उस ईश्वर को कैसे प्रेम करेंगे जिसे वे नहीं देखते हैं” (1.यो.4.20)।

पूर्णता सत्य की यात्रा सीखने से लेकर प्रेम तक अविभाज्य है। गहरा बदलाव तभी आएगा जब प्रभु की इच्छा को समझने की खोज, उन लोगों से प्यार करना हेतु सीखने में होगा जिन्हें हम मुश्किल पाते हैं। जो लोग यहाँ नहीं हैं उन्हें यह बतलाना कठिन होगा। क्या ये सभी लोग वास्तव में, एक-दूसरे से प्यार करने के लिए, भारी खर्च करके, यहां इस तरह आए हैं? व्यावहारिक निर्णय निश्चित रूप से अपरिहार्य और आवश्यक हैं। लेकिन उन्हें हमारे व्यक्तिगत और सामुदायिक परिवर्तन से उत्पन्न होना चाहिए, अन्यथा वे केवल प्रबंधन बनकर रह जाएंगे।

एक-दूसरे के साथ सभी प्रतिस्पर्धाओं से मुक्त होने की खुशी की कल्पना करें, ताकि आम लोगों की आवाज का मतलब यह न हो कि धर्माध्यक्षों के अधिकार न्यूतम हो गए हैं, या महिलाओं को अधिक अधिकार दिए जाने का मतलब यह नहीं कि पुरुषों के पास कम है, या हमारे अफ़्रीकी भाइयों और बहनों को अधिक मान्यता देना, एशिया या पश्चिम में कलीसिया के अधिकार कम नहीं करना है।

यह हम प्रत्येक से गहन विनम्रता की माँग करती है क्योंकि हम ईश्वर के उपहारों की आत्म विश्वास से प्रतीक्षा करते हैं। सिमोन वेइल एक फ्रांसीसी यहूदी थे जिनकी 1943 में मृत्यु हो गई, जिन्होंने सत्य की अपनी यात्रा पर कहा था “मैं ईश्वर, तृत्वमय ईश्वर, मुक्ति, यूखारिस्तीय और धर्मग्रंथ की शिक्षाओं में विश्वास करती हूँ।” उन्होंने लिखा कि “हमें सबसे कीमती उपहार उनकी तलाश में जाने से नहीं, बल्कि उन्हें इंतजार करने में प्राप्त करते हैं... देखने का यह तरीका, प्रथम स्थान में, सतर्कता है। आत्मा उस मनुष्य को प्राप्त करने हेतु अपने को उन सारी चीजों से खाली कर देती है जिसे वह देख रही है, जैसा कि वह अपनी सम्पूर्ण सच्चाई में है।”

यदि हम स्वयं को सत्य की आत्मा द्वारा निर्देशित होने दें, तो हम निस्संदेह बहस करेंगे। यह कभी-कभी कष्टमय होगा। ऐसी सच्चाइयाँ होंगी जिनका हम सामना नहीं करना चाहेंगे। लेकिन हम दिव्य प्रेम के रहस्य में थोड़ा और गहराई में जायेंगे और हमें ऐसे आनंद का ज्ञान होगा कि लोग हमारे यहाँ होने से ईर्ष्या करेंगे और यह हमें धर्मसभा के अगले सत्र में भाग लेने को उत्सुक करेगा। 

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19 October 2023, 12:28