दलितों की मुक्ति को समर्पित रविवार, ईश पुत्र-पुत्रियों के रूप में उनकी प्रतिष्ठा
वाटिकन न्यूज
नई दिल्ली, शनिवार, 11 नवंबर 2023 (फिदेस एजेंसी) : 1सामाजिक स्तरीकरण की वह पदानुक्रमित प्रणाली, जो सख्ती से वंशानुगत थी, 1950 में भारत में औपचारिक रूप से समाप्त कर दी गई, लेकिन वास्तव में, यह अभी भी मानसिकता में निहित है, अभी भी श्रम के विभाजन को निर्धारित करती है, सत्ता के पदों की दौड़ को प्रभावित करती है। तथाकथित "अछूत" भारतीय समाज में वे सबसे पीछे हैं, हिंसा और अपनी गरिमा के दुरुपयोग के शिकार हैं।
यही कारण है कि काथलिक कलीसिया इस श्रेणी के हाशिए पर रहनेवाले और कमजोर लोगों पर हमेशा "विशेष नजर" रखती है और, 2007 से, भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीबीसीआई) "नेशनल काउंसिल ऑफ चर्च ऑफ इंडिया" (एक मंच जो प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स कलीसियाओं को एक साथ लाता है।) के सहयोग से, पूरे देश में विभिन्न कार्यक्रमों, गतिविधियों, बैठकों, वाद-विवाद, धार्मिक अनुष्ठानों और संगठित जुलूसों के साथ इस विशेष दिन को बढ़ावा देता है।
यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है: आधिकारिक अनुमान के अनुसार, भारत में 300 मिलियन से अधिक दलित हैं (1.3 बिलियन नागरिकों में से लगभग 25%) और, ख्रीस्तीय एवं मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच, छूआछूत का कलंक व्यापक है।
भारत के 28 मिलियन ईसाइयों में से दलितों की संख्या लगभग 60% हैं, जिसका अर्थ है कि वे अधिकांश समुदायों में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक हाशिए और बहिष्कार का अनुभव करते हैं।
दलितों की मुक्ति के लिए समर्पित रविवार, जिसमें हम बात करते, चर्चा करते, उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, ताकि नागरिक सह-अस्तित्व को एक ऐसे संविधान द्वारा विनियमित किया जा सके जो न्याय, समानता, समान अधिकार और सभी के लिए अवसरों की गारंटी देता है। दलितों की स्थिति, जो अभी भी सामाजिक कलंक से चिह्नित है, अक्सर सभी के द्वारा बहिष्कृत हैं, एक असहनीय उल्लंघन है और एक लोकतांत्रिक दुर्बलता को दर्शाता है।
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