लवीव के महाधर्माध्यक्ष : हम बंदूक से नहीं, रोजरी से लड़ते हैं
वाटिकन न्यूज
वाटिकन न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में महाधर्माध्यक्ष मिएक्ज़िस्लाव मोक्रज़ीकी कहते हैं कि जो चीज उन्हें ताकत, आशा और विश्वास देती हैं वह यह है कि ईश्वर की कृपा उनपर बनी हुई है और लोगों में विश्वास बहुत अधिक है। लविव के लातीनी महाधर्माध्यक्ष ने जोर देकर कहा कि युद्ध के इस अंधेरे समय में पूरा यूक्रेन प्रार्थना की श्रृंखला से घिरा हुआ है। उन्होंने कहा, “हम ईश्वर के योद्धा हैं, बंदूक से नहीं, बल्कि रोजरी माला से। युद्ध के मैदान पर नहीं, बल्कि पवित्रतम संस्कार के सामने अपने घुटनों पर।''
प्रश्न: लविव में सायरन बजना जारी है और शहर पर बमबारी की जा रही है। बड़े पैमाने पर जारी इस युद्ध की दूसरी वर्षगांठ पर आपके क्या विचार हैं?
आर्चबिशप मिएक्ज़िस्लाव मोक्रज़ीकी: सुसमाचार के पन्नों पर दर्ज कई शब्दों के बीच, मैं प्रभु येसु के एक छोटे से कथन से प्रभावित हुआ: "कोई अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं देता, न ही बुरा पेड़ अच्छा फल दे सकता है। क्योंकि हर पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है।”
ये शब्द हमारे लिए उन लोगों के आचरण का न्याय करने के लिए सत्य की आवाज हैं, जो बुराई का अनुसरण करके दूसरों के लिए कड़वे फल बन जाते हैं। और भले ही वे कहते हैं कि वे बचाव और मुक्ति चाहते हैं, हम देखते हैं कि वे ऐसा नहीं करते। वे शांति के स्थान पर युद्ध उत्पन्न करते हैं। वे प्रेम के स्थान पर घृणा उत्पन्न करते हैं। वे शांति के स्थान पर भय उत्पन्न करते हैं। यह उनका फल है, कड़वा और खट्टा।
अतः बिना किसी संदेह के यह कहा जा सकता है कि उनमें कुछ भी अच्छा नहीं है। क्योंकि वे बुरे वृक्ष हैं, और उनका फल काईन का दोष है। यह हमें पीड़ा पहुंचाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के कुछ दशकों बाद, हमें फिर से अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी पड़ रही है और यह विचार आ रहा है कि मनुष्य युद्ध के पीछे छोड़ी गई भयावहता को कैसे याद नहीं कर पा रहा है या याद नहीं कर सकता है। जबकि, हम इसे तरह से याद करते हैं - हम में से अधिकांश केवल इतिहास से जानते हैं, लेकिन हमारे बीच ऐसे लोग भी हैं जो व्यक्तिगत अनुभव से उस अवधि को याद करते हैं।
ऐसे में कलीसिया हर किसी की मदद के लिए चिंतित है। हम पुरोहित सेवा के माध्यम से लड़नेवाले सैनिकों की मदद करते हैं; मानवीय सहायता, भोजन, दवाएँ और उपकरण आदि प्रबंध करते हैं। हम अपने पारिशों में गरीब परिवारों को सहायता देते हैं। हम उनमें विश्वास और आशा को मजबूत करने के लिए व्यापक प्रेरितिक कार्य का आयोजन करते हैं।
प्रश्न : दुर्भाग्य से युद्ध आपका व्यक्तिगत अनुभव बन गया है। आपका दैनिक जीवन कैसा है?
दुर्भाग्य से, सैन्य गतिविधियाँ जारी हैं। मिसाइलें और ड्रोन लोगों और शहरों पर बरस रहे हैं। सैनिक और निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं। बहुत से लोग घायल हैं, अपने घरों और आजीविका से वंचित हैं, उनके पास काम का अभाव है।
यह सब भय, चिंता, अनिश्चितता को जन्म देता है। कई बच्चे, वयस्क, यहाँ तक कि पुरोहित भी निराशा, अवसाद और मानसिक बीमारी में पड़ गये हैं।
ऐसे में कलीसिया हर किसी की मदद के लिए चिंतित है। हम पुरोहित अपनी सेवा के माध्यम से लड़नेवाले सैनिकों की मदद करते हैं; हम मानवीय सहायता, भोजन, दवाएँ और उपकरण व्यवस्थित करते, और यहाँ तक कि ड्रोन खरीदने में भी मदद करते हैं। हम आईडीपी [आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों] का स्वागत करना और मानवीय सहायता प्रबंध करना और इसे युद्ध क्षेत्रों में भेजना जारी रखते हैं। हम अपने पारिशों में गरीब परिवारों को भी यह सहायता प्रदान करते हैं। हम उनमें विश्वास और आशा को मजबूत करने के लिए व्यापक प्रेरितिक कार्य का आयोजन करते हैं।
प्रश्न: इस समय आप लोगों को आशा और आंतरिक शक्ति पाने में कैसे मदद करते हैं?
सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, हम विश्वासियों को प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित करते हैं, प्रेरित संत याकूब के पत्र के शब्दों से प्रोत्साहित करते हैं, "आप में से जो कोई भी दुःख में है, प्रार्थना करें।"
निस्संदेह, युद्ध का दर्द हम पर आ गया है। इसीलिए प्रेरित का उद्धृत अनुरोध हमारे लिए एक आह्वान और एक कर्तव्य है। यही वह है जो हम आज अपने प्रियजनों और पूरे यूक्रेन को दे सकते हैं। हमारी प्रार्थना सुगंधित धूप की तरह होनी चाहिए जिसकी हमेशा एक ही दिशा होती है, पृथ्वी से स्वर्ग की ओर। यह एक हृदय और एक आत्मा की पुकार होनी चाहिए।
पोप फ्राँसिस ने हमें ऐसा ही करने के लिए कहा है, “आज स्वर्ग तक उठनेवाली प्रार्थनाएँ और निवेदन दुनिया के नेताओं के दिल और दिमाग को छू जाएँ, ताकि वे बातचीत और सभी की भलाई को निजी हितों से ऊपर रखें। युद्ध फिर कभी न हो!” संत पापा के साथ यही हमारी प्रार्थनाओं का निवेदन है, जो हमारी आजादी एवं शांति के लिए हमारे साथ खड़े हैं।
इसलिए, पीड़ा के अनुभव में, शांति के संघर्ष में हमारा हथियार प्रार्थना है। हम ईश्वर के योद्धा हैं, राइफल से नहीं बल्कि रोजरी माला से। युद्ध के मैदान पर नहीं, बल्कि धन्य संस्कार के सामने अपने घुटनों पर। इस तरह, हम प्रार्थनाओं की श्रृंखला के साथ पूरे देश को गले लगाते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो इस पागल युद्ध की अग्रिम पंक्ति में हैं, जो हमारी ओर से और हमारी खातिर मातृभूमि की आजादी के लिए लड़ रहे हैं। इस तरह, हम अपने जीवन में सुरक्षा और एकजुटता की भावना लाते हैं।
प्रार्थना के अलावा, एक और आयाम जो आशा और आंतरिक शक्ति का निर्माण करता है वह है अच्छे शब्द। आज हर तरफ से ऐसी ख़बरें आ रही हैं जो आशा तो नहीं लातीं, लेकिन अक्सर डरावनी होती हैं। इसीलिए आशा और सांत्वना, अच्छे शब्द हैं और आत्मा का समर्थन करते हैं जो हमारी ओर से प्रवाहित होते हैं। प्रभु येसु के शब्द, "एक दूसरे का बोझ उठाओ," एक कर्तव्य बन जाता है जिसके साथ हमें एक दूसरे के पास जाना चाहिए।
और यहाँ प्रेम के कार्य-आधारित दृष्टिकोण की परीक्षा है। हमें स्वयं को इस वास्तविकता में खोजना होगा। पोप फ्रांसिस ने हमसे कहा, "जो दयालु है वे दूसरों की समस्याओं के प्रति सहानुभूति रखना भी जानते हैं," और, "उदारता के कार्यों को बेहतर महसूस करने का नहीं, बल्कि दूसरों के दुखों में सहभागी होने का साधन बनने दें" , स्वयं को उजागर करने और स्वयं को असुविधाजनक बनाने की कीमत पर भी।”
इस कठिन समय में, हम इसी रवैये को प्रोत्साहित करते और अपनाने की कोशिश करते हैं ताकि लोग हमारे अच्छे कामों को देखें और स्वर्ग में हमारे पिता की स्तुति करें।
प्रश्न रूस और यूक्रेन को ईश्वर की माता को सौंपने के कार्य से क्या फल प्राप्त हुए हैं?
वाटिकन में संत पापा फ्राँसिस द्वारा रूस और यूक्रेन को ईश्वर की माता को समर्पित करने, साथ ही साथ हमारे पल्लियों एवं धर्मप्रांतों समर्पण के तुरंत बाद, हमने देखा कि पहले शनिवार को, रूसी सेना कीव से हट गई।
फातिमा की हमारी माता मरियम ने प्रार्थना, तपस्या और मन-परिवर्तन को प्रोत्साहित किया। हम इसे अपनी कलीसिया और अन्य संस्कारों एवं समुदायों के कई विश्वासियों में भी देखते हैं। लोग देखते हैं कि एकमात्र मुक्ति ईश्वर में है, और केवल चमत्कार ही यूक्रेन को बचा सकता है।
और ये ईश्वर की माँ पर निर्भरता के फल हैं कि इस कठिन परिस्थिति के बावजूद भी लोगों ने उम्मीद नहीं खोई है। उनमें अभी भी बहुत ताकत और उम्मीद है। वे जानते हैं कि कैसे बड़ी एकजुटता रखनी है और एक-दूसरे का भरपूर समर्थन करना है।
इन सब में, वे प्रार्थना की आवश्यकता और ईश्वर की कृपा की क्रिया देखते हैं। सैनिक अक्सर प्रार्थना की शक्ति के बारे में बात करते हैं जिसे वे अनुभव करते हैं और उन सभी के प्रति आभारी होते हैं जो उनके लिए प्रार्थना करते हैं।
प्रश्न : इस अंधकारमय समय में कोई आशा कहाँ पा सकता है?
जो चीज़ मुझे शक्ति, आशा और विश्वास देती है वह यह देखना है कि ईश्वर की दया हमें नहीं छोड़ती है और लोगों में बहुत अधिक विश्वास है।
एक सैनिक ने बतलाया किया कि मोर्चे पर उसके साथ क्या हुआ। उन्होंने कहा कि लड़ाई के दौरान उनके पास गोला-बारूद ख़त्म हो गया था और उन्हें पता था कि सब कुछ ख़त्म हो चुका है। वे खाइयों से बाहर नहीं निकल सके क्योंकि इससे तत्काल उनकी मृत्यु हो सकती थी। इसलिए थोड़ी देर बाद, वे एक-दूसरे को सलाम करने लगे और उन्होंने रूसी सैनिकों को अपनी ओर आते देखा। सैनिकों में से एक, जो जानता था कि उन दिनों उसके चाचा का अंतिम संस्कार होनेवाला था, जो युद्ध में मारे गए थे - और मैं उसके चाचा का अंतिम संस्कार कर रहा था - कहा, "हे प्रभु, कुछ करो, क्योंकि मेरा परिवार दो अंत्येष्टि से नहीं बच पाएगा। सैनिक ने बताया कि थोड़ी देर बाद रूसी रुके, मुड़े और वापस चले गए। उनके और हमारे लिए यह एक वास्तविक चमत्कार है, ईश्वर के हस्तक्षेप का चिन्ह है।
एक दूसरा उदाहरण। मेरा एक पुरोहित का भाई जो मोर्चा पर एक चिकित्सक के रूप में काम करता है, एक बार उसने अपने भाई से कहा था, "आप जानते हैं कि मैं आस्तिक नहीं हूँ, लेकिन मुझे पता है कि मैं अभी भी आपकी और आपके सहयोगियों की प्रार्थनाओं के कारण जीवित हूँ।”
प्रश्न: क्या प्रार्थना ताकत बनती है?
यूक्रेन जिस विशेष रूप से कठिन समय में है, उसमें हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के क्रूस के सामने सतर्कता बरतने की जिम्मेदारी हमारी है। आज, जब युद्ध एक वास्तविकता बन गया है, तो हमें क्रॉस को और भी अधिक गले लगाने और प्यार एवं मुक्ति के इस चिन्ह से जुड़े रहने की जरूरत है, जो मृत्यु पर जीवन की जीत, नफरत पर प्यार, झूठ पर सच्चाई, स्वार्थ पर विनम्रता की जीत का प्रतीक है। इस कठिन समय में यूक्रेन को भी एकजुटता और अच्छे दिलों की जरूरत है।
प्रश्न : पीड़ित यूक्रेन के साथ एकजुटता बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है?
इस बिंदु पर मैं यूक्रेन और विदेशों में, विशेष रूप से पोलैंड में कलीसिया के सभी पुरोहितों, धर्मसमाजियों और विश्वासियों के प्रति उनके प्रेम के सुंदर रवैये के लिए आभार व्यक्त करता हूँ। यह मनोभाव अच्छे कर्मों का जीवित सुसमाचार है। उन्होंने दुनिया को प्यार का ईश्वरीय चेहरा दिखाया। पोल्स के रवैये ने यूक्रेनियनों को आश्चर्यचकित कर दिया और वे जानते हैं कि उन्होंने अपनी सच्ची मानवता और ख्रीस्तीय धर्म का प्रदर्शन करते हुए कितना बड़ा दिल दिखाया।
अंत में, मैं यह भी कहना चाहूँगा कि प्रेम के इस दिव्य चेहरे को न खोएँ। हमें आनेवाले लंबे समय तक इसकी आवश्यकता होगी, तब भी जब वांछित शांति आएगी।
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