ईश्वर के प्रेम का उत्तर अपने भाई-बहनों की सेवा करना है
सिस्टर रेजिना हाउफ़ेल ओ.पी.
बोगोटा, मंगलवार, 12 फरवरी 2024 (वाटिकन न्यूज, रेई) : पचास साल पहले, हम, येसु के पवित्र हृदय की दोमेनिकन मिशनरी धर्मसमाज की तीन धर्मबहनों ने संत पापा पॉल षष्टम की अपील का जवाब दिया, जिन्होंने मिशनरी धर्मसमाजों को लैटिन अमेरिका में सुसमाचार प्रचार का आह्वान किया था। 8 सितंबर 1973 को, हम (कोलंबिया) बोगोटा के दक्षिण में, बुनियादी ढांचे और सामाजिक विकास में गंभीर समस्याओं वाले हाशिए पर स्थित एक पड़ोस में पहुंचे।
हमने "सामुदायिक" कार्य स्थापित करने के प्रयास में, उस समय के पल्ली पुरोहित के साथ, क्षेत्र के समुदायों के बीच अपना काम शुरू किया, जो जीवन की गरिमा, मानव व्यक्ति के अभिन्न प्रशिक्षण और ख्रीस्तीय समुदायों के विकास की सुविधा प्रदान करेगा। इस तरह कलीसिया की सेवा में एक सामाजिक प्रेरितिक संगठन एफआईईएससीओ (सामाजिक एकीकरण और सामुदायिक विकास के लिए फाउंडेशन) बनाया गया। वर्षों के दौरान, धर्मबहनों के मार्गदर्शन में, यह संगठन क्षेत्र के हजारों परिवारों के जीवन को बदलने में कामयाब रहा है, जिससे सबसे जरूरतमंद लोगों के बीच विश्वास का अनुभव और राज्य की उन्नति दृश्यमान और संभव हो गई है।
समस्याओं का समाधान करना
हमारे आगमन पर, हमें एक ऐसी वास्तविकता का सामना करना पड़ा जो हमारे नए मिशन की कल्पना से कहीं परे थी: कई बच्चों वाले परिवार जिनमें बड़े बच्चे छोटे बच्चों की देखभाल करते थे जबकि माता-पिता ईंट कारखानों या फूलों की खेती में काम करते थे। शहर के सुदूर उत्तरी भाग में सड़कें कच्ची थीं और घर ईंटों, लकड़ी के खंभों और प्लास्टिक से बने थे और वहां पानी या बिजली नहीं थी। परिवार प्रोपेन स्टोव पर खाना पकाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर बच्चे जल जाते हैं। इलाके में कोई स्कूल भी नहीं था। कठिन परिस्थितियों के बावजूद, हमने देखा कि जो लोग वहां रहते थे, उनमें अपनी आस्था को अपनी परंपराओं के अनुसार जीने की गहरी इच्छा थी।
इस वास्तविकता का सामना करते हुए, धर्मबहनों और कुछ लोकधर्मियों ने बदलाव लाने का फैसला किया, जिसकी शुरुआत बच्चों, युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों पर समग्र ध्यान देने, शैक्षिक, आध्यात्मिक और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के साथ-साथ बुनियादी जरुरत सहायता सामग्री प्रदान करने से हुई। परिवर्तन, विकास और जीवन की गरिमा की प्रक्रिया बनाने की यह संयुक्त प्रतिबद्धता शुरू से ही हमारे मिशनरी कार्यों का सार थी। हम यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि लाभार्थी अपने स्वयं के विकास के एजेंट बनें और दूसरों के साथ मिलकर, पर्यावरण और समाज परिवर्तन में योगदान दें।
आज, हमारे मुख्य स्तंभ नर्सरी स्कूल और प्राथमिक विद्यालय (वर्तमान में 500 छात्र), समुदाय की महिलाओं और बुजुर्गों को सहायता और पुस्तकालय हैं।
भविष्य की ओर आशा की एक नजर
वर्तमान में, एफआईईएससीओ के माध्यम से धर्मबहनों का मिशनरी कार्य शिक्षा और सामुदायिक प्रबंधन के क्षेत्र में किया जाता है और स्यूदाद बोलिवर जिले के विभिन्न इलाकों में स्थित छह अभिन्न केंद्रों में फैला हुआ है, जिसकी आबादी लगभग दस लाख लोगों की है। यह उल्लेख आवश्यक है कि देश की कठिन राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति स्यूदाद बोलिवर में परिलक्षित होती है, जहां गरीबी, विस्थापन, प्रवासन, बेरोजगारी, हाशिए पर, ड्रग्स और हिंसा जैसी समस्याएं स्थानीय लोगों के लिए एक संकट हैं।
इसके अलावा, उच्च स्तर की निरक्षरता और प्राथमिक और माध्यमिक स्कूली शिक्षा के निम्न स्तर का लोगों पर प्रभाव पड़ता है, जिससे वे अपनी कमजोर स्थिति से उभर नहीं पाते हैं। इस स्थिति का प्रतिकार करने के उद्देश्य से हमारी वर्तमान पहलों में से एक "इंट्राएक्ट" पद्धति नामक एक पायलट साक्षरता कार्यक्रम शुरु किया गया है। जर्मनी में निर्मित, इस पद्धति का उद्देश्य पढ़ने की सीखने की प्रक्रिया में सुधार करना और अकादमिक प्रदर्शन को अधिकतम करना और सुविधाजनक बनाना है।
बचपन, बाल्यावस्था और युवावस्था हमारी प्राथमिकता है। वर्षों से हमने देखा है कि कठिन परिस्थितियों में भी, शिक्षा सामाजिक संदर्भ को बदल देती है और गुणवत्ता निर्माण से पारिवारों और उनके सामाजिक संदर्भों में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। प्रत्येक वर्ष, लगभग 100 छात्र प्राथमिक विद्यालय पूरा करते हैं और अपने बौद्धिक, नैतिक और धार्मिक विकास के लिए एक ठोस आधार लेकर निकलते हैं।
आज हमारा और एफआईईएससीओ से जुड़े सभी लोगों का बड़ा सपना एक स्कूल बनाना है, ताकि लड़के और लड़कियां अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी होने तक अपनी शिक्षा और प्रशिक्षण जारी रख सकें। हमें विश्वास है कि इस तरह वे अपने व्यक्तिगत और अपने परिवार के विकास के एजेंट बन सकेंगे, जिससे उनके समुदाय की सामान्य भलाई पर स्थायी प्रभाव पड़ेगा।
माध्यमिक शिक्षा एक परियोजना और एक बड़ा निवेश है जो हमारी वर्तमान संभावनाओं से परे प्रतीत होता है। लेकिन 50 साल पहले किसने सोचा होगा कि हम यह सब बना पाएंगे? ईश्वर की मदद से, हम सपनों को हकीकत में बदलने के लिए आशा और प्रतिबद्धता के साथ भविष्य की ओर देखना जारी रखते हैं!
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