स्वास्थ्य देखभाल सहायिका और धर्मबहन पीड़ितों के करीब
जॉन-चार्ल्स पुत्ज़ोलु द्वारा साक्षात्कार - वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, गुरुवार 7 मार्च 2024 : फ्रांस के ट्रॉयज़ में माता सहायिका धर्मसमाज की सिस्टर ऑरेली अलौचेरी हमें अपने बुलाहट की कहानी बताती हैं। उसने सोचा कि उसे अपने बच्चों के साथ पारिवारिक जीवन जीने और शिक्षिका बनकर अपनी सेवा देने के लिए बुलाया जाएगा। वह उस रास्ते का चित्रण करती है जो उसे पहले धर्मसमाजी जीवन की ओर ले गया, फिर बीमारों की सेवा करने के लिए ले गया।
सिस्टर ऑरेली अलौचेरी, आप माता सहायिका धर्मसमाज की धर्मबहन हैं, एक ऐसा धर्मसमाज जो अपने मिशन को तीन शब्दों में वर्णित करती है: करुणा, उपचार और मुक्ति। आपने 20 साल पहले अपनी प्रतिबद्धता जताई थी; आपने धार्मिक जीवन को कैसे अपनाया?
सच तो यह है कि मैं बचपन से ही गिरजा जाती रही हूँ। मेरे माता-पिता ने मुझे हमेशा रविवार को पवित्र मिस्सा में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया है; मेरी माँ एक संडे स्कूल शिक्षिका थीं और मैं एक धर्मार्थ संस्था का सदस्य थी। 25 साल की उम्र में, एक अच्छी जवानी बिताने के बाद, मैंने खुद से सवाल पूछा। मेरी बुलाहट क्या था? मुझे किस चीज़ से खुशी मिलती? इसलिए, मैंने रिम्स के धर्मप्रांत द्वारा प्रस्तावित एक वर्ष के आत्मपरख प्रक्रिया में भाग लिया, जो आध्यत्मिक साधना के साथ समाप्त हुआ, जिसके अंत में मेरे सवालों का उत्तर मेरे लिए स्पष्ट हो गया: मुझे वास्तव में अपना जीवन, अपना पूरा जीवन, मैं जो कुछ भी हूँ, अपना पूरा अस्तित्व मसीह को देने की इच्छा महसूस हुई।
संत पापा फ्राँसिस अक्सर कहते हैं कि कलीसिया को अपने कामों द्वारा आकर्षित करना चाहिए। क्या आपने ईश्वर के प्रति आकर्षण महसूस किया?
हाँ, मुझे ईश्वर की ओर आकर्षण महसूस हुआ। साथ ही, धर्मसमाजी जीवन और जिन धर्मबहनों से मैं मिली उन्हें लेकर भी मेरे मन में कई पूर्वाग्रह थे। मैंने पाया कि वे पुराने ज़माने के थे, बहुत आधुनिक नहीं थे, संक्षेप में कहें तो बहुत आकर्षक नहीं थे। यह भी सच है कि, उस आध्यात्मिक साधना में भाग लेते समय, मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि मैं अपने जीवन के बारे में क्या निर्णय लूँगी। मेरा झुकाव विवाह, वैवाहिक जीवन और बच्चों, अनेक बच्चों की ओर अधिक था। लेकिन अंत में, मैंने उसे नहीं चुना। मैंने धार्मिक जीवन चुना। यह ईश्वर की ओर से बुलावा था, यह बहुत मजबूत प्यार था जो मैंने उस एकांतवास के दौरान महसूस किया था, जिसने मुझे उनकी ओर आकर्षित किया और मुझे वह जीवन त्यागने पर मजबूर कर दिया जिसकी मैंने कल्पना की थी।
आप कहती हैं कि आपने उस जीवन का "त्याग" कर दिया है जिसकी आपने अपने लिए कल्पना की थी। क्या मसीह के प्रति आपकी विश्वसनीयता में बलिदान शामिल हैं?
मैं यह नहीं कह सकती कि इसमें बलिदान शामिल हैं क्योंकि मैं इस दिए गए, अर्पित किए गए जीवन से और बदले में मुझे मिलने वाले अनुग्रह से पूर्ण महसूस करती हूँ। निःसंदेह, मैं चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहना चाहती, लेकिन वास्तव में, ईश्वर, येसु मसीह के प्रति विश्वसनीयता का जीवन वास्तव में एक पूर्ण जीवन है। मैं और कुछ नहीं कह सकती। मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैं कोई बलिदान दे रहा हूँ। ऐसा कहा जा रहा है कि, जीवन के किसी भी अवस्था की तरह, कुछ चीज़ें हैं जिन्हें त्यागना पड़ता है। आप हर चीज़ का अनुभव नहीं कर सकते, सब कुछ नहीं कर सकते और सब कुछ नहीं चुन सकते। चुनाव करने का मतलब अनिवार्य रूप से कुछ को छोड़ना है।
धार्मिक जीवन सुंदर है क्योंकि यह विविध है। विभिन्न करिश्मे वाले कई धर्मसमाज हैं। आपने माता सहायिका धर्मसमाज को कैसे चुना?
यह सचमुच एक अप्रत्याशित मुलाकात थी। मैं शिक्षण के क्षेत्र से आयी हूँ और यह धर्मसमाज, जिसका मिशन स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना है, मेरे लिए बिल्कुल आदर्श नहीं थी और वास्तव में, यह केवल धर्मबहनों से मिलने और उन्हें सुनने के द्वारा ही था जब उन्होंने मुझे अपने मिशन के बारे में बताया, तब मैं घर और परिवारों में बीमारों के प्रति उनकी निकटता और येसु मसीह के पीड़ित सदस्यों को उनके द्वारा दी गई राहत से आकर्षित हुई।
आज आप उन युवा पुरुषों या महिलाओं को क्या कहेंगी जो अपने जीवन का निर्णय लेने के लिए खुद से सवाल पूछ रहे हैं और जो आध्यात्मिकता और एक विशेष प्रकार के जीवन की तलाश में हैं? आप उन्हें क्या मार्गदर्शन देंगी?
सलाह या मार्गदर्शन देना बहुत कठिन है क्योंकि हर किसी का अपना रास्ता होता है। मुझे सुसमाचार का वह वाक्यांश पसंद है जो कहता है, "आओ और देखो।" लोगों से मिलें, सुनें, निरीक्षण करें, चीज़ों को समझें। मुझे लगता है कि यह वास्तव में मसीह में निहित जीवन है, उसका अनुसरण करने की गहरी इच्छा है और प्रतिबद्धता का जीवन है।
आज क्या आप अपने जीवन में, अपने आध्यात्मिक और धर्मसमाजी जीवन में पूरी तरह से संतुष्ट महसूस करती हैं?
जी हां, और मैं वास्तव में यही कहना चाहती हूँ। धार्मिक जीवन के तीन संस्थापक स्तंभों के माध्यम से, जो सामुदायिक जीवन, प्रार्थनामय जीवन और प्रेरितिक जीवन हैं, व्यक्ति हमेशा अपने अस्तित्व, अपने व्यक्तित्व को एकजुट करने और दूसरों के लिए खुला रहते हुए पूर्णता तक पहुंचने का प्रयास करता है। यह एक ऐसा जीवन है जहां आप खुद को एक उपहार क् रुप में देते हैं और जिस क्षण आप खुद को देते हैं, तो मुझे लगता है कि आप स्वयं पूर्ण हो जाते हैं।
सिस्टर ऑरेली अलौचेरी, क्या आपकी बुलाहट शुरू से ही बीमारों के बिस्तर के पास रहना था?
नहीं, पहले तो इसने मुझे बिल्कुल भी आकर्षित नहीं किया। मैं एक शिक्षण पृष्ठभूमि से आयी थी और मैंने बच्चों की संगति में विशेषज्ञता के साथ शिक्षा के क्षेत्र में बने रहने के बारे में सोचा था। लेकिन ट्रॉयज़ में माता सहायिका की धर्मबहनों से मुलाकात ने वास्तव में मेरा मन बदल दिया है। मुझे यकीन था कि इसी तरह से मैं अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकूँगी।
इस महीने के लिए संत पापा की प्रार्थना का उद्देश्य असाध्य रोगियों के लिए है। इन लोगों के साथ जाने का क्या मतलब है? आप क्या देती हैं? और आपको क्या मिलता है?
व्यक्तिगत रूप से, मेरा मानना है कि मसीह की दयालु छवि वास्तव में मेरे भीतर निवास करती है। हर बार जब मैं बीमार के बिस्तर के पास जाती हूँ, तो मैं वास्तव में पवित्र आत्मा का आह्वान करती हूँ, ताकि उसकी उपस्थिति के रूप में मेरे पास से गुजर सके। तो, एक स्वास्थ्य देखभाल सहायक के रूप में, यह एक ऐसी उपस्थिति है जो देखभाल के सरल कार्यों में साकार होती है। आत्मा से भर जाने और उसका आह्वान करने का तथ्य, मुझे पूरी तरह से उपस्थित होने और मेरे द्वारा प्रभु को कार्य करने देना है। जहां तक जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे मरीज़ों के पास जाने की बात है, तो मैं कहूंगी कि यह किसी ऐसे बीमार व्यक्ति के साथ जाने के समान है जिसका हाल ही में गंभीर निदान हुआ हो। किसी के साथ जाने के लिए वास्तव में संपूर्ण उपस्थिति और गहन श्रवण की आवश्यकता होती है।
माता सहायिका धर्मबहनें एक तरह से माता मरिया के अपने बेटे के प्रति कोमलता, एक माँ की कोमलता की अभिव्यक्ति हैं। यह कोमलता आपके मिशन में कैसे व्यक्त होती है?
अगर मैं स्वास्थ्य देखभाल सहायिका की प्रेरिताई को ग्रहण करती हूँ, तो यह वास्तव में मेरी गतिविधियों के माध्यम से बोलता और कोमलता को प्रकट करता है जो सांत्वना देता है, जो राहत प्रदान करता है, और मरीज कभी-कभी ठीक हो जाते हैं। मगर उस अर्थ में नहीं, जिसमें "उपचार" को आम तौर पर समझा जाता है। माता सहायिका की धर्मबहनों का मिशन वास्तव में शरीर को अपनी बाहों में लेना और उसकी गरिमा को पुनः प्राप्त करना और शरीर रुपी मंदिर का सम्मान करने के लिए आवश्यक सभी देखभाल प्रदान करना है।
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