अल्बर्टाईन धर्मबहनें यूक्रेन की सेवा में
वाटिकन न्यूज
यूक्रेन, मंगलवार, 30 जुलाई 2024 (रेई) : युद्ध की शुरुआत भयांकर थी। भावनात्मक तनाव बहुत ज़्यादा था। पश्चिमी सीमा की ओर भागते हुए लोगों की भीड़ लवीव से गुजरी। शरणार्थियों से भरी ट्रेनें लवीव स्टेशन पर पहुँचीं। थके हुए, गंदे और भ्रमित लोग ट्रेन की बोगियों से उतरकर स्टेशन के सामने चौक पर आ गए। वे आश्रय पाने की उम्मीद में शहर में इधर-उधर भटकते रहे।
युद्ध के तीसरे दिन वाटिकन न्यूज से बात करते हुए सिस्टर जेरोनिमा ने कहा, "हम लगातार सतर्क रहते हैं, खासकर, इस तनाव के समय में, और हम हर दिन सड़कों पर उन लोगों से मिलने जाते हैं जो इधर-उधर भटकते रहते हैं और नहीं जानते कि क्या करें।" "कल भी महागिरजाघर में, युवा लड़कियों का एक दल बहुत रो रहा था। वे ओडेसा से थीं और उन्हें नहीं पता था कि कहाँ शरण लेना है। लोगों में बहुत निराशा, डर, चिंता और अनिश्चितता है। हम उन्हें आध्यात्मिक रूप से सहारा देती हैं। कई लोग हमें प्रार्थना करने के लिए बुलाते हैं, क्योंकि उनका बेटा या पति युद्ध में चला गया है।"
मानवीय आपदा का जोखिम
हमें जल्द ही एहसास हो गया कि बाहरी मदद के बिना, पोलैंड की सीमा की ओर जानेवाले लोगों का पलायन मानवीय आपदा का खतरा बन रहा था। सीमा की ओर जानेवाली सड़क पर कारों की कतारें कई किलोमीटरों तक फैली हुई थीं। महिलाएँ, माताएँ, दादी, मौसी अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर भोजन की तलाश में थीं। वे खुद को गर्म रखने के लिए जगह और आराम एवं सांत्वना के शब्दों की तलाश कर रही थीं।
फरवरी 2022 में, उस समय, लविव के अल्बर्टाईन समुदाय में तीन धर्मबहनें थीं: सिस्टर जेरोनिमा, दोरोतेया और रदोस्लावा। युद्ध के छठे दिन, धर्मबहनें यूक्रेनी-पोलिश सीमा पर लोगों की मदद करने के लिए रावा रुस्का पहुंचीं। वे कारितास-स्पेस बिल्डिंग की दीवार के पास थीं, जो सीमा पार से कुछ ही मिनटों की दूरी पर पूर्व फ्रांसिस्कन मठ में है।
वास्तव में, 2022 में, फ्रायर्स माइनर का यह मठ सिर्फ खंडहर के रूप में था। शौचालयों के साथ स्वच्छता की सुविधाएँ जल्दी ही प्रदान की गईं, और गेट के सामने टेबल लगाई गईं। रोमन काथलिक कारितास-स्पेस की जैकेट पहनी हुईं, धर्मबहनों ने गर्म पेय और सैंडविच वितरित करना शुरू किया। यह बात ज़ापोरिज्जा की स्वेतलाना ने वाटिकन न्यूज़ के एक पत्रकार को बताया।
अपने पोते को गोद में लेते हुए उन्होंने कहा, “मैं अपना जीवन बचाना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि यह सब खत्म हो जाए क्योंकि यह हमारी भूमि है, मेरा देश है, मेरा शहर है, मेरी जगह है। मैं यहाँ वापस आना चाहती हूँ ताकि मेरे और मेरे बच्चों के लिए सब कुछ सही सलामत रहे। मैं चाहती हूँ कि मेरा पोता उस देश में रहे जहाँ उसका जन्म हुआ है। क्योंकि अपनी भूमि ही मातृभूमि है। यहाँ बहुत सारी अनिश्चितताएँ और आँसू हैं।”
बेघर महिलाओं के लिए शरणस्थल
आज, यूक्रेन में सिर्फ़ चार अल्बर्टाईन धर्मबहनें हैं। दो पोलिश हैं और दो यूक्रेनी। 1945 तक, बहनों के पास यूक्रेन में कई आश्रय और घर थे। वे गरीबों की देखभाल करती थीं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब सोवियत सत्ता आई, तो उसने उन्हें सोवियत यूक्रेन में रहने की अनुमति नहीं दी। अब गरीबों की देखभाल का जिम्मा राज्य के पास था। असल में, गरीबों का अब अस्तित्व ही नहीं था; कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों ने यही वादा किया था।
अल्बर्टाईन बहनें कुछ साल पहले लविव लौट आईं। जानोव के प्रसिद्ध कब्रिस्तान में, उन्हें उन धर्मबहनों की भूली हुई कब्रें मिलीं, जो 1945 से पहले वहाँ रहती थीं। उन्होंने उनके लिए एक प्रतीकात्मक स्मारक बनवाया। उनका काम बेघर या अन्य कठिनाई की स्थितियों में रहनेवाली महिलाओं के लिए आश्रय बनाना था। उन्होंने इसे सितंबर 2023 में खोला।
उस दिन कार्डिनल कोनराड क्रेजवस्की ने उनसे मुलाकात की। जिन्होंने शुरू से ही उनके काम का समर्थन किया है, पोप की ओर से उस आवास को आशीष दी। पोप के परोपकार कार्यों के अध्यक्ष 2020 में पहली बार वहां गए थे। उस अवसर पर पहला पत्थर रखा गया था। उस समय, किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि बड़े पैमाने पर युद्ध छिड़ जाएगा या रूसी मिसाइलें लविव तक पहुँच जाएँगी।
लविव की अल्बर्टाइन धर्मबहनों की तत्कालीन सुपीरियर सिस्टर जेरोनिमा ने इस आयोजन पर टिप्पणी की: “यह बेघर महिलाओं और बच्चोंवाली माताओं के लिए एक घर होगा। हम इस घर को, ठीक वैसे ही बनाना चाहते हैं जैसा कि “शरण” नाम से पता चलता है, यह सभी के लिए एक स्वागत योग्य स्थान होगा। धर्म की परवाह किए बिना, हम इन महिलाओं को गर्मजोशी और सुरक्षा देना चाहते हैं ताकि वे अपनी गरिमा को फिर से हासिल कर सकें।”
अब इस घर में रोजाना करीब 100 लोगों को खाना परोसा जाता है। रूसी सेना द्वारा बमबारी किए गए शहरों से भागकर आई युवा माताओं और महिलाओं का स्वागत किया जाता है।
गरीबों के बीच सड़कों पर
बहनें लविव की गलियों से बहुत परिचित हैं। वे और भी बेहतर जानती हैं कि गरीब लोग कहाँ छिपते हैं। वे झुग्गियों में रहते हैं और कचरों से खाना जमाकर खाते हैं।
जब महामारी फैली, तो कोई भी उनके पास नहीं जाना चाहता था। शहर में कोई पर्यटक नहीं था और मरम्मत का काम रुका हुआ था। रेस्तराँ से बहुत कम खाना बचते थे। गरीबों में भूख हावी थी। चेहरे पर मास्क पहने और खाने से भरे बैग लेकर, धर्मबहनें ज़रूरतमंद लोगों की तलाश में शहर भर में घूमती थीं।
सिस्टर रदोस्लावा ने कहा, "बेशक हम कोविड से संक्रमित होने से डरते थे, लेकिन गरीबों के प्रति प्यार, जो हमारे अल्बर्टाईन करिज्म से आता है, वायरस के डर से ज्यादा मजबूत था।" बेहद खतरनाक स्वास्थ्य स्थिति के बावजूद, महामारी के समय, धर्मबहनें गरीब और परित्यक्त बुजुर्गों के घर गईं।
आज, नई महिलाएँ लगातार लविव की शरण में आती हैं। कुछ लोग महिलाओं को विनम्रता से बताते हैं कि ऐसी जगह मौजूद है, कुछ लोग उन्हें वहां ले जाते हैं। पहल शुरू हो रही है। लविव में वाया चेलबोवा (रोटी सड़क) न केवल उस बेकरी के कारण प्रसिद्ध हो रहा है जो वर्षों से वहाँ है, बल्कि दया के सार्वभौमिक घर के कारण भी।
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