भारत: धर्मबहन परिधि से धर्मशास्त्र पढ़ा रही हैं
सिस्टर ग्रेटा परेरा, ओसीवी
नई दिल्ली, शनिवार 31 अगस्त 2024 : सिस्टर शालिनी मुलाक्कल 1999 से भारत के दिल्ली में स्थित एक प्रमुख जेसुइट विद्याज्योति थियोलॉजी कॉलेज में व्यवस्थित धर्मशास्त्र की प्रोफेसर हैं। उसी कॉलेज में अपनी मास्टर्स की पढ़ाई के दौरान, वे एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में रहती थीं, जहाँ उसके समुदाय की धर्मबहनें रहती और काम करती थीं।
झुग्गी-झोपड़ी में उनका अनुभव धर्मशास्त्र की प्रासंगिक पद्धति के उनके निरंतर उपयोग का आधार बन गया, जो व्यक्तियों और समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। पढ़ाने के दौरान, वे छात्रों के साथ झुग्गी-झोपड़ियों में जाती और उनके धर्मशास्त्रीय चिंतन में मार्गदर्शन देती थीं।
उपनगरों से संपर्क
सिस्टर शालिनी भारत में कई युवा धर्मशास्त्रियों के लिए प्रेरणास्रोत रही हैं, क्योंकि उनकी "धर्मशास्त्र पढ़ाने की विशिष्ट शैली" है। वे अक्सर अपने छात्रों को झुग्गी-झोपड़ियों में ले जाती हैं, उन लोगों के पास जो सचमुच बाहरी इलाके पर रहते हैं, जैसे कि कचरा डंपिंग साइट पर।
छात्रों के साथ, सिस्टर शालिनी अक्सर हिंसा और बलात्कार के खिलाफ लड़ने वाली महिलाओं की विरोध रैलियों में भाग लेती थीं, साथ ही मेगा-प्रोजेक्ट्स के खिलाफ विस्थापित और भेदभाव वाले लोगों के प्रदर्शनों में भी भाग लेती थीं। उनकी भागीदारी ने उनके बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित समूहों के साथ एकजुटता की प्रतीकात्मक कार्रवाई के रूप में कार्य किया।
सिस्टर शालिनी कहती हैं कि एक प्रोफेसर के रूप में उनकी प्रेरणा शक्ति "ईसा मसीह के लिए जुनून और अन्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के पीड़ितों के लिए करुणा" रही है।
संदर्भगत धर्मशास्त्र
संदर्भगत धर्मशास्त्र का मानना है कि धर्मशास्त्र पढ़ाई करने का उद्देश्य व्यक्ति और समाज दोनों में परिवर्तन लाना है। इसलिए, धर्मशास्त्र करने का संदर्भ गरीबों के दृष्टिकोण और अनुभव से होना चाहिए।
उनकी शिक्षण पद्धति गरीबों के लिए एक तरजीही विकल्प अपनाने की आवश्यकता पर जोर देती है और अपने छात्रों में भी यही जोश भरती है। उन्होंने वाटिकन न्यूज़ से कहा, "मेरे शिक्षण, उदाहरणों और छात्रों के साथ बातचीत के माध्यम से, मुझे उम्मीद थी कि कम से कम कुछ छात्र वास्तव में गरीबों की सेवा करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करेंगे।"
महिलाओं के दृष्टिकोण की आवश्यकता
सिस्टर शालिनी धर्मशास्त्र के सभी विषयों और कलीसिया के जीवन के सभी पहलुओं में महिलाओं के दृष्टिकोण को लाने की प्रबल समर्थक हैं। उन्होंने कहा, "सेमिनरी प्रशिक्षण की हमारी वर्तमान प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता है।" "भारत में सेमिनरी प्रशिक्षण के लिए जिम्मेदार कलीसिया के प्रमुखों को इस बारे में सोचना होगा कि सेमिनरी प्रशिक्षण और शिक्षण में अधिक महिलाओं को कैसे शामिल किया जा सकता है।"
सिस्टर शालिनी ने दिल्ली महाधर्मप्रांत और भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीसीबीआई) दोनों में चल रही धर्मसभा प्रक्रिया में योगदान दिया है। भारत में विभिन्न लैटिन संस्कार धर्मप्रांतों से दस-पृष्ठ संश्लेषण रिपोर्ट को देखते हुए, उन्होंने याद किया कि कैसे महिलाएँ तब भावुक हो गईं जब उन्हें पहली बार बिना किसी डर के बोलने और उनकी बात सुनने का अवसर मिला।
सिस्टर शालिनी ने कहा, "निश्चित रूप से संत पापा फ्राँसिस के नेतृत्व में कलीसिया महिलाओं की बात सुनने और उनकी स्थिति पर प्रतिक्रिया देने के लिए सभी प्रयास कर रहा है।" "उदाहरण के लिए, संत पापा फ्राँसिस ने कुछ समय पहले धर्माध्यक्षों के लिए बने विभाग में तीन महिलाओं को नियुक्त किया था। 2020 में, उन्होंने वाटिकन की अर्थव्यवस्था परिषद में छह महिलाओं को नियुक्त किया। संत पापा फ्राँसिस ने महिलाओं को धर्मसभा में मतदान करने की भी अनुमति दी।"
भविष्य की धर्मबहनें
सिस्टर शालिनी दृढ़ता से महसूस करती हैं कि आज पहले से कहीं ज़्यादा दुनिया को प्रतिबद्ध धर्मबहनों की ज़रूरत है जो अपने जीवन से गवाही देती हैं।
उनका मानना है कि उन्हें परामर्शदाता, सलाहकार, आध्यात्मिक मार्गदर्शक, धर्मशास्त्री, चिकित्सक, प्रेरितिक देखभाल कर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता और पर्यावरणविद के रूप में नई ज़रूरतों का जवाब देने की ज़रूरत है।
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