यूक्रेन में रूस के पूर्ण आक्रमण के 1,000 दिन पूरे यूक्रेन में रूस के पूर्ण आक्रमण के 1,000 दिन पूरे  (ANSA)

महाधर्माध्यक्ष शेवचुक: 'दर्द के सागर के बावजूद, यूक्रेन में उम्मीद अभी भी जीवित है'

यूक्रेनी ग्रीक काथलिक कलीसिया के प्रमुख ने देश में 1,000 दिनों के युद्ध के बारे में वाटिकन न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि यूक्रेन के लोगों के लचीलेपन में दुनिया में आज के कई अन्यायों का समाधान निहित है।

वाटिकन न्यूज

कीव, बुधवार 20 नवम्बर 2024 : मेजर महाधर्माध्यक्ष स्वियातोस्लाव शेवचुक ने दर्द की बात की, लेकिन इससे भी ज़्यादा उम्मीद की। उन्होंने फरवरी 2022 से चल रहे हज़ार दिनों के युद्ध पर विचार किया, जिसने उनके देश यूक्रेन को तबाह कर दिया है।

वाटिकन न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में, यूक्रेनी ग्रीक काथलिक कलीसिया चर्च के प्रमुख ने युद्ध की निंदा दोहराई, इसे "बेतुका और अपवित्र" बताया। उन्होंने यूक्रेनी लोगों की ओर से दुनिया से अपील की कि वे उन्हें अकेला न छोड़ें: "हमें अकेला न छोड़ें।" वे कहते हैं, "हमारे साथ खड़े रहें, यहाँ तक कि चुपचाप भी।"

प्रश्न: एक हजार दिनों के युद्ध के बाद, तथा हाल ही में हुए रूसी हमलों को ध्यान में रखते हुए, आज यूक्रेनवासी की भावनाएं काया है, वे कैसा महसूस कर रहे हैं?

मेजर महाधर्माध्यक्ष शेवचुक: अगर हम भावनाओं की बात करें, तो एक तरफ दर्द की गहरी भावना बढ़ रही है। लोग गहरे रूप से घायल हैं, क्योंकि हर दिन हमें मौत और विनाश का भयानक चेहरा देखने को मजबूर होना पड़ता है। दूसरी ओर, पिछले हज़ार दिनों में हमने जिस तरह से जीवन जिया है, उसे देखते हुए, प्रबल भावना आशा है - या यूँ कहें कि आशा को थामे रखने का गुण और क्षमता। क्योंकि आशा के बिना, आज यूक्रेन में रहना असंभव है। जब हम देखते हैं कि कैसे यूक्रेनी ऊर्जा अवसंरचना कार्यकर्ता प्रत्येक मिसाइल हमले के बाद बार-बार काम शुरू करते हैं और कुछ ही घंटों में नुकसान की मरम्मत करते हैं, या कैसे हमारे डॉक्टर, खतरों के बावजूद, नष्ट हुए घरों से लोगों को बचाते हैं और जान बचाते हैं - तो, ​​दर्द के साथ-साथ, आशा भी है। आशा यूक्रेन के विभिन्न व्यवसायों, सामाजिक समूहों और क्षेत्रों के लोगों से उत्पन्न होती है।

प्रश्न: बहुत से यूक्रेनवासी कहते हैं कि युद्ध ने उन्हें बहुत बदल दिया है। आपके विचार में यूक्रेन में कीसिया ने क्या परिवर्तन या रूपांतरण अनुभव किए हैं?

मेजर महाधर्माध्यक्ष शेवचुक: जब युद्ध शुरू हुआ और हमने अचानक खुद को बमों के नीचे पाया, तो हमें गहरा सदमा लगा। कई मनोवैज्ञानिक और सामाजिक वैज्ञानिक, साथ ही हम, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, इस बात से सहमत हैं कि यह सदमा एक तरह की नई शुरुआत थी: एक पल में, सभी मानवीय रिश्ते बिखर गए और जो कुछ भी हमने उस बिंदु तक समझा, जाना और जीया था वह नष्ट हो गया। इस नई शुरुआत ने नवीनीकरण की ओर अग्रसर किया क्योंकि हमें अपने रिश्तों को फिर से बनाना था, सबसे पहले खुद के साथ - प्रत्येक व्यक्ति को पूछना था, "मैं कौन हूँ? मुझे क्या करना चाहिए?" सभी मुखौटे और दिखावे दूर हो गए, जिससे मानवता का गहरा सार उसकी महानता और नाजुकता दोनों में प्रकट हुआ। इस उथल-पुथल ने एक और घटना को भी जन्म दिया: ईश्वर के साथ अपने रिश्ते को खोना और फिर से खोजना।

जब आप बमबारी का अनुभव करते हैं, आपका घर हिलता है और बमों की भयानक गर्जना होती है, तो ऐसा लगता है कि आप आध्यात्मिक अंधकार में डूब गए हैं और चिल्ला रहे हैं, "प्रभु, आप कहाँ हैं? आपने मुझे क्यों छोड़ दिया है?" क्रूस पर येसु की तरह। फिर भी, उस क्षण में अनुपस्थित प्रतीत होने वाले ईश्वर स्वयं को प्रकट करते हैं, और कलीसिया एक गहन परिवर्तन का गवाह बनता है - पुरोहितों, धर्माध्यक्षों, मठवासियों और विश्वासियों के साथ-साथ कलीसिया से दूर रहने वालों का भी परिवर्तन। लोग आपदा और दर्द के बीच अपने जीवन के स्रोत के रूप में ईश्वर को फिर से खोजते हैं। यह आध्यात्मिक और कलीसियाई जीवन का सार है: खोना और फिर से पाना, विनाश से गुजरना और एक अलग दुनिया, समाज या देश में उभरना। यही कारण है कि हर कोई कहता है कि 24 फरवरी, 2022 से पहले जो यूक्रेन मौजूद था, वह अब मौजूद नहीं है। हमें इन लोगों, इस देश और उनके बीच मसीह की कलीसिया को फिर से खोजना होगा।

प्रश्न: ईश्वर की ओर से सबसे कीमती उपहार जीवन है। यूक्रेन में, कई परिवार अपने प्रियजनों के खोने का शोक मनाते हैं जो अग्रिम मोर्चे पर या बमबारी में मारे गए हैं। कलीसिया लोगों को जीवन से प्यार करने और उसकी रक्षा करने में कैसे मदद करती है?

मेजर महाधर्माध्यक्ष शेवचुक: इन परिस्थितियों में, हम दर्द के सागर में डूबे हुए महसूस करते हैं। मानवीय पीड़ा एक रहस्य है, और कलीसिया येसु मसीह के उदाहरण का अनुसरण करती है, जिन्होंने मानवीय पीड़ा की गहराई में प्रवेश करके उससे बाहर निकलने का रास्ता दिखाया। हमने कुछ महत्वपूर्ण सबक सीखा है।

पहला सबकः यह है कि जल्दबाजी में यह न कहें कि, “मैं आपको समझता हूँ।” विदेश में रहने वाले कई लोग, जिनमें दोस्त भी शामिल हैं, कहते हैं, “हम आपको समझते हैं,” लेकिन ये शब्द बहुत दर्द देते हैं क्योंकि आप एक ऐसे युवा से नहीं कह सकते जिसने अपने पैर खो दिए हैं, “मैं आपको समझता हूँ।”

दूसरा सबकः केवल उपस्थित रहने का महत्व है, भले ही हम कुछ न कह सकें। उपस्थिति का संस्कार बहुत महत्वपूर्ण है। हम कहते हैं, “चुप रहो, लेकिन हमारे साथ खड़े रहो। हमें अकेला मत छोड़ो।” कलीसिया की उपस्थिति एक ऐसा संस्कार है जो अपने लोगों के बीच प्रभु की वास्तविक उपस्थिति को दृश्यमान बनाती है।

तीसरा सबकः जो उतना ही महत्वपूर्ण है, वचन की शक्ति है। इसमें ईश्वर की शक्ति, जीवन, आशा और हमारे मानवीय और आध्यात्मिक संसाधनों को नवीनीकृत करने की क्षमता है। सुसमाचार का वचन वास्तव में जीवन है - यह केवल एक सुंदर वाक्यांश या रूपक नहीं है। मैंने अपनी आँखों से देखा है कि कैसे, जब मैंने ईश्वर के वचन की घोषणा की, तो इसने सचमुच लोगों को जीवन में वापस ला दिया। यह एक चमत्कार है!

प्रश्न: कई साक्षात्कारों में, हम यूक्रेन के लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि वे शांति की इच्छा रखने वाले पहले व्यक्ति हैं, लेकिन दुर्भाग्य से जो हो रहा है, वह इस लक्ष्य को और दूर धकेलता हुआ प्रतीत होता है। इस पीड़ित देश के लिए न्यायपूर्ण और स्थायी शांति आने की आशा का स्रोत क्या है?

हमने अनुभव किया है कि आशा का यह स्रोत यूक्रेन के बाहर, विदेश में नहीं, बल्कि हमारे भीतर पाया जाता है। उन्होंने हमें तीन दिन दिए... और अब हम एक निरर्थक, ईशनिंदापूर्ण, अपवित्र युद्ध के 1,000 दिनों की बात कर रहे हैं। हमने देखा है कि हमारे भीतर ही प्रतिरोध, लचीलापन, आशा का एक उबलता हुआ स्रोत है, जो एक राजनीतिक, सैन्य, कूटनीतिक मुद्दा बन जाता है।

हमलावर इस उबलते स्रोत को नष्ट करना चाहता है, इसके अस्तित्व को स्वीकार करने से इनकार करता है, और इसे मिसाइलों, बमों, टैंकों से नष्ट करना चाहता है। और कभी-कभी, आशा का यह स्रोत राजनेताओं के लिए भी समस्याएँ पैदा करता है: कई लोग यूक्रेन को एक समस्या के रूप में देखते हैं। लेकिन वे यह नहीं समझते कि इस स्रोत के भीतर आधुनिक दुनिया में कई अन्याय और कई स्थितियों का समाधान छिपा है जो अपनी मानवता के नुकसान का अनुभव कर रही है। यहाँ तक कि राजनयिकों को भी यूक्रेन में आशा और लचीलेपन के इस स्रोत से चुनौती मिलती है; वे विभिन्न शांति सूत्रों, राजनीतिक बातचीत के सूत्रों की खोज करते हैं, लेकिन अभी तक, उन्हें नहीं मिले हैं। मेरा मानना ​​है कि इस स्रोत का निश्चित रूप से विशुद्ध रूप से मानवीय मूल नहीं है: हर दिन, हम अपनी मानवीय शक्ति को क्षीण होते और फिर भरते हुए देखते हैं। जीवन की एक चिंगारी है।

प्रश्न: क्या आप कुछ और जोड़ना चाहेंगे?

मेजर महाधर्माध्यक्ष शेवचुक: मैं यह जोड़ना चाहूँगा कि आज यूक्रेन में, हम वास्तव में कुछ ऐसा अनुभव कर रहे हैं जो किसी एक राष्ट्र, एक देश या यहाँ तक कि एक कलीसिया की सीमाओं से परे है।

मानवता का प्रामाणिक चेहरा सामने आ रहा है और जो लोग इसे पहचानने में सक्षम हैं, वे समझेंगे कि यूक्रेन आज कोई समस्या नहीं बल्कि समाधान का हिस्सा है।

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20 November 2024, 16:20