डॉ. फेलिक्स का ईशशास्त्र और वार्ता में अहम योगदान
वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, गुरूवार, 09 जनवरी 2025 कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ, एशियाई धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष (एफएकबीसी) ने प्रतिष्ठित धर्मशास्त्री, पुरोहित और शिक्षाविद फादर डॉ. फेलिक्स विल्फ्रेड के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया।
कार्डिनल फेराओ, जो भारत के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीसीबीआई) के भी प्रमुख हैं, ने दिवंगत डॉ. विल्फ्रेड को “बौद्धिक और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रकाश स्तंभ" बताया, तथा वैश्विक धर्मशास्त्रीय परिदृश्य पर उनके परिवर्तनकारी प्रभाव की सरहाना की। सीसीबीआई महासचिवालय द्वारा जारी एक बयान में कार्डिनल फेराओ ने कहा, "डॉ. विल्फ्रेड का जीवन धर्मशास्त्रीय विद्वत्ता, अंतरधार्मिक संवाद और न्याय एवं सद्भाव को बढ़ावा देने के प्रति उनके असाधारण समर्पण का प्रमाण है।"
उन्होंने कहा, "उनका ज्ञान, विद्वत्तापूर्ण गहन पठन-पाठन और करूणामय प्रेरिताई ने दुनिया भर के धर्मशास्त्रियों, पुरोहितों और लोकधर्मियों को प्रेरित किया है।” कार्डिनल फेराओ ने डॉ. विल्फ्रेड के दूरगामी प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित विद्वान के रूप में, डॉ. विल्फ्रेड ने वाटिकन, अंतरराष्ट्रीय ईशशास्त्रीय संगठन को भी प्रभावित करते हुए एशिया और पूरे कलीसिया की प्रेरिताई को समृद्ध किया।” कार्डिनल ने डॉ. विल्फ्रेड के अभूतपूर्व कार्य विशेष रूप से सांस्कृतिक और धार्मिक विभाजन को भरने और एशियाई संदर्भ में मुक्ति ईशशास्त्रीय योगदान की प्रशंसा की।
भारत की कलीसिया प्रध्यापक के रुप में विल्फ्रेड के “शैक्षणिक उत्कृष्टता में समर्पण, छात्रों के मार्गदर्शन और उनकी अद्वितीय रचनाओं के लिए हमेशा ऋणी रहेगी, जो भावी पीढ़ियों को सदा प्रेरित करेगा।”
डॉ. विल्फ्रेड की मृत्यु 76 वर्ष की आयु में 7 जनवरी को हृदय आघात से भारत के चेन्नई राज्य में हो गई। उन्होंने ईशशास्त्र, दर्शनशास्त्र और अंतर-संस्कृति वार्ता को बढ़ावा देने में अपना विशेष योदगान दिया। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय में प्रध्यापक के रूप में कार्य किये, जहाँ उन्होंने कला संकाय के डीन और दर्शनशास्त्र और धार्मिक विचार स्कूल के अध्यक्ष सहित प्रमुख पदों पर अपना विशेष योगदान दिया।
उन्होंने अपनी पढ़ाई इटली और फ्रांस के विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों से पूरी की इसके साथ ही उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु तीन स्वर्ण पदक अर्जित किए।
वे तत्कालीन कार्डिनल जोसेफ रात्ज़िंगर के अधीन अंतरराष्ट्रीयय धर्मशास्त्र आयोग के सदस्य थे और उन्होंने अंतरराष्ट्रीय धर्मशास्त्र समीक्षा परिषद के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, जो कई यूरोपीय भाषाओं में प्रकाशित होती थी।
डॉ. विल्फ्रेड ने एक विश्वव्यापी कलीसियाई संस्थानों में विभिन्न रूपों में अपनी सेवाएं प्रदान की। वे फ्रैंकफर्ट विश्वविद्यालय, निजमेगेन विश्वविद्यालय, बोस्टन कॉलेज, एटेनेओ डी मनीला विश्वविद्यालय और फुडन विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अतिथि प्रध्यापक के रुप में अपनी सेवाएं दी।
उन्होंने आईसीसीआर प्रोफेसर के रूप में डबलिन के ट्रिनिटी कॉलेज में अध्यक्ष का पद भी संभाला। मद्रास विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त उपरांत उन्होंने चेन्नई में एशियाई क्रॉस-कल्चरल स्टडीज केंद्र की स्थापना की और उसके निर्देशक रहे।
उनके द्वारा लिखी गयी कई पुस्तकें और लेख उनकी विद्वत्ता के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं जिनका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उन्होंने द ऑक्सफ़ोर्ड हैंडबुक ऑफ़ एशियन क्रिश्चियनिटी (2014) का संपादन किया। वर्तमान में उनके कार्य, धार्मिक पहचान और वैश्विक दक्षिण: छिद्रल सीमाएँ और नवीन राहें (2021), समकालीन धार्मिक मुद्दों के साथ उनके स्थायी जुड़ाव को रेखांकित करते हैं।
डॉ. विल्फ्रेड इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ एशियन क्रिश्चियनिटी के प्रधान संपादक भी थे। अपने जीवन और कार्य के माध्यम से, डॉ. फेलिक्स विल्फ्रेड ने ईशशास्त्र के क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ी है जो संवाद को बढ़ावा देता और एक विभाजित दुनिया में न्याय और सद्भाव हेतु सेतु का कार्य करता है।
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