थाईलैंड एवं जापान में प्रेरितिक यात्रा की याद
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार, 27 नवम्बर 2019 (रेई)˸ संत पापा ने कहा, कल ही मैं थाईलैंड और जापान की प्रेरितिक यात्रा से वापस लौटा हूँ, जो मेरे लिए एक महान वरदान है जिसके लिए मैं प्रभु के प्रति कृतज्ञ हूँ। मैं दोनों देशों के अधिकारियों एवं धर्माध्यक्षों के प्रति पुनः आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने मुझे निमंत्रण दिया और मेरी बड़ी खातिरदारी की। सबसे बढ़कर मैं थाई और जापानी लोगों को धन्यवाद देता हूँ। इस मुलाकात ने इन लोगों के प्रति मेरे स्नेह एवं सामीप्य को बढ़ा दिया है। ईश्वर उन्हें प्रचुर समृद्धि एवं शांति की आशीष प्रदान करे।
थाईलैंड
थाईलैंड एक प्राचीन देश है जो प्रभावशाली ढंग से आधुनिकता प्राप्त कर लिया है। राजा, प्रधानमंत्री एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करते हुए मैंने थाई लोगों की धनी आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परम्परा को श्रद्धांजलि अर्पित की। मैं देश के विभिन्न घटकों के बीच सौहार्द लाने के प्रति समर्पण को प्रोत्साहन दिया ताकि सभी के हित के लिए आर्थिक विकास किया जा सके एवं शोषण के संकट को दूर किया जा सके, खासकर, महिलाओं एवं बच्चों पर। बौद्ध धर्म यहाँ के लोगों के जीवन एवं इतिहास का प्रमुख हिस्सा है अतः मैंने बौद्ध महामुन्नी से मुलाकात की और मेरे पूर्वाधिकारियों द्वारा शुरू किये गये रास्ते पर आगे कदम बढ़ाया ताकि विश्व में सहानुभूति और भाईचारा बढ़ सके। इस अर्थ में यह अंतरधार्मिक वार्ता एवं ख्रीस्तीय एकतावर्धक वार्ता के दृष्टिकोण से अत्यन्त प्रतीकात्मक रहा।
थाईलैंड की कलीसिया
थाईलैंड की कलीसिया रोगियों एवं वंचित लोगों की सेवा के माध्यम से साक्ष्य दे रही है। उनमें से एक, संत लुईस अस्पताल का दौरा मैंने किया, जहाँ मैंने वहाँ के कर्मचारियों एवं कुछ रोगियों से मुलाकात की। उसके बाद मैंने पुरोहितों, धर्मसमाजियों, धर्माध्यक्षों और जेस्विट भाइयों को विशेष रूप से समय दिया। बैंकॉक में मैंने राष्ट्रीय स्टेडियम में ईश प्रजा के साथ ख्रीस्तयाग अर्पित किया, तत्पश्चात् महागिरजाघर में युवाओं के साथ मुलाकात की। वहाँ हमने महसूस किया कि येसु ख्रीस्त द्वारा नये परिवार का निर्माण किया गया है जहाँ थाई लोगों के चेहरे एवं आवाज हैं।
जापान
उसके बाद मैं जापान चला गया। मेरे टोक्यो स्थित प्रेरितिक राजदूतावास पहुँचने पर देश के धर्माध्यक्षों ने मेरा स्वागत किया, जिनके साथ हमने शीघ्र छोटी कलीसिया के धर्माध्यक्ष होने की चुनौतियों और जीवन जल, येसु के सुसमाचार को फैलाने की बातों को साझा किया।
जापान में मेरी प्रेरितिक यात्रा का आदर्शवाक्य था "हर जीवन की रक्षा" जो एक ऐसा देश है जिसमें परमाणु बम हमले के घाव अंकित हैं और जो पूरे विश्व के लिए जीवन एवं शांति के मौलिक अधिकार का प्रवक्ता है। नागासाकी एवं हिरोशिमा में मैंने प्रार्थना की तथा कुछ पीड़ितों एवं उनके परिवार के सदस्यों से मुलाकात की। मैंने परमाणु हथियारों की निंदा की तथा बम बनाने एवं बेचनेवालों के द्वारा शांति के बारे में बात करने के पाखंड को दोहराया। इस बड़े संकट के बाद जापान ने जीवन के लिए संघर्ष करने की एक असाधारण क्षमता को प्रकट किया है; उसने हाल की घटनाओं जैसे 2011 में भुकम्प, सुनामी और परमाणु दुर्घटना के बावजूद ऐसा कर पाया है।
जीवन की रक्षा के लिए प्रेम करना आवश्यक
जीवन की रक्षा करने के लिए उससे प्रेम करना आवश्यक है और आज विकसित देशों में गंभीर खतरा है जीने के अर्थ को खो देना। आर्थिक स्रोत काफी नहीं हैं, तकनीकी भी पर्याप्त नहीं हैं इसके लिए पिता ईश्वर के प्रेम की आवश्यकता है जिसको येसु ख्रीस्त ने प्रदान किया और करते हैं। प्रेम जिसने शहीदों को गवाही देने के लिए प्रेरित किया, उदाहरण के लिए नागासाकी के संत पौल मिकी एवं उनके 25 साथी। इसी प्रेम ने धन्य जुस्तो ताकायामा उकोन एवं कई अन्य स्त्रियों और पुरूषों को बल प्रदान किया, जिन्होंने अत्याचार के दौरान विश्वास को सुरक्षित रखा।
भावना की शून्यता के पहले शिकार युवा हुए, अतः टोक्यो में एक मुलाकात का अवसर उन्हें भी दिया गया। मैंने उनके सवालों, उनकी आकांक्षाओं को सुना और उन्हें प्रोत्साहन दिया कि हर प्रकार की बदमाशी (धौंस) का एक साथ विरोध किया जाए, और भय पर विजय पाया जाए तथा प्रार्थना एवं पड़ोसी की मदद द्वारा ईश्वर के प्रेम के लिए खुला होते हुए एक-दूसरे के करीब आया जाए। युवाओं के दूसरे दल से मैंने सोफिया विश्वविद्यालय में वहाँ के शैक्षणिक समुदाय के साथ मुलाकात की। हर काथलिक स्कूल की तरह यह विश्वविद्यालय भी जापान में अत्यन्त सराहनीय है।
आभार
टोक्यो में मैंने सम्राट नारूहितो से मुलाकात करने का सुन्दर अवसर प्राप्त किया, जिसमें मैंने अपने आभार की अभिव्यक्ति को नवीकृत किया। साथ ही साथ, मैंने देश के वरिष्ठ अधिकारियों एवं राजनायिकों से मुलाकात की। मैंने वहाँ मुलाकात एवं वार्ता तथा प्रज्ञा और क्षितिज को विस्तृत करने जैसी विशेषताओं की उम्मीद जतायी।
अपने धार्मिक एवं नैतिक मूल्य के प्रति वफादार रहने तथा सुसमाचार के संदेश के प्रति खुला होने के द्वारा जापान, अधिक न्यायपूर्ण एवं शांतिमय विश्व तथा मनुष्यों एवं प्रकृति के बीच सामंजस्य के लिए एक अग्रणी देश हो सकता है।
शुभकामनाएँ
संत पापा ने विश्वासियों का आह्वान करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, आइये हम थाईलैंड एवं जापान के लोगों को ईश्वर की अच्छाई एवं कृपा को समर्पित करें।
इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया, खासकर, इंगलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा एवं अमरीका के तीर्थयात्रियों को। तत्पश्चात् उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति एवं परिवार को येसु ख्रीस्त के आनन्द एवं शांति की शुभकामनाएँ देते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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