प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठ, जीवन का स्वागत करें, संत पापा
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
जापान, सोमवार, 25 नवम्बर 2019 (रेई) संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि सुसमाचार जिसे हमने सुना वह येसु का प्रथम मुख्य उपेदश था। हम इसे पर्वत प्रवचन के रुप में जानते हैं यह उस सुन्दर राह की चर्चा करता है जिस पर हम सभी चलने हेतु बुलाये जाते हैं। धर्मग्रंथ में हम पर्वत को ईश्वर से एक मिलन स्थल के रुप में पाते हैं जहाँ वे अपने को प्रकट करते हैं। ईश्वर ने मूसा से कहा,“मेरा पास आओ” (निर्ग.24.1)। पर्वत की ऊंचाई पर हम अपनी इच्छा शक्ति से नहीं पहुँचते वरन इसके लिए हमें सतर्कता, धैर्य और संवेदनशीलता में अपने जीवन के हर मार्ग में येसु को सुनने की जरूरत है। पर्वत की चोटी हमें पिता की करूणा में केन्द्रित करता है। येसु ख्रीस्त में हम उस ऊँचाई को प्राप्त करते हैं जो हमें मानवता के अर्थ को समझने में मदद करती है, वे हमें उस मार्ग को दिखलाते जो हमें आशा में पूर्णता की ओर पुहंचने में सहायता करती है। हम उनमें एक नये जीवन को पाते जो हमें स्वतंत्रता में ईश्वरीय प्रिय संतान होने का अनुभव प्रदान करता है।
चिंताओं और प्रतियोगिताओं का प्रभाव
संत पापा ने कहा कि यह ईश्वरीय संतान होने की अनुभूति अपने में कमजोर हो जाती, दब जाती है यदि हम अपने जीवन में चिंता और प्रतियोगिता के घेरे में पड़ जाते हैं। यदि हम अपने जीवन की क्षमताओं को उत्पादन और उपभोगता की दृष्टिकोण तक ही सीमित रखते तो यह जीवन की असल बातों के संदर्भ में हमें असंवेदनशील बना देता और हम धीरे-धीरे भौतिक वस्तुओं तक ही बंध कर रह जाते हैं। वहीं, भौतिक चीजों का उत्पादन, उनका स्वामित्व या अपने नियंत्रण में रखना हमारी आत्मा को झंझोर कर रख देता है।
जापान अपनी अर्थव्यवस्था में एक उन्नतशील देश है। युवाओं से मेरी मुलाकात के दौरान उन्होंने मुझ से कहा कि देश में बहुत से लोग हैं जो सामाजिक रुप से अपने को अलग-थलग पाते हैं। वे हाशिये पर रहते और जीवन के अर्थ, स्वयं अपने जीवन को नहीं समझ पाते हैं। हमारे घर, विद्यालय और समुदाय जहाँ हमें एक दूसरे का सहयोग और सहायता करने की जरुरत है, लाभ और श्रेष्ठता में बने रहने के कारण प्रतियोगिता के वृहृद स्थल बन गये हैं। बहुत से लोग अपने में चिंतित और दिभ्रमित हैं क्योंकि उनके ऊपर कार्य का बोझ है जो उनकी शांति और स्थायित्व को हिला कर रख देती है।
ख्रीस्त के वचन हमारे मरहम
येसु ख्रीस्त के वचन हमें ताजगी के लेप प्रदान करते हैं जब वे हमें अपनी चिंता का परित्यग करते हुए अपने ऊपर विश्वास करने का आहृवान करते हैं। वे इस बात को तीन बार कहते हैं, “अपने जीवन...कल की चिंता मत करो”(मती.6.25.31.34)। यह हमें हमारे ईद-गिर्द में होने वाली घटनाओं को लेकर निश्चित रहने को प्रोत्साहन नहीं कहती और न ही हमें अपने उत्तरदायित्वों तथा कार्यों को लेकर बेफ्रिक रहने की बात कहती है। बल्कि, यह हमारे लिए एक निमंत्रण है जहां हम जीवन के अर्थ को अपनी प्राथमिकताओं की क्षीतिज से विस्तृत करने हेतु बुलाये जाते हैं, “पहले ईश्वर के राज्य की खोज करो, और बाकी अन्य सारी चीजें तुम्हें मिल जायेगी।” (मती.6.33)
भोजन और वस्त्र गौण नहीं
संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमें अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं जैसे भोजन और वस्त्र को गौण नहीं बतलाते हैं, बल्कि वे हमें अपने रोज दिन के जीवन का पुर्नमूल्यांकन करने को कहते हैं। वे हमें किसी भी कीमत पर सफलता हासिल करने के धुन में नहीं फंसने को कहते हैं जहाँ हमें अपने जीवन की कीमत चुकानी पड़ती है। दुनियावी मनोभव हमें स्वयं के लाभ और अपने स्वार्थीपन में व्यक्तिगत खुशी तक ही सीमित कर देता है जो वास्तव में हमें सच्ची खुशी से दूर कर देता और हम शांतिमय सच्ची मानवता के सम्पूर्ण विकास में बाधा बनते हैं।
संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि “हमारा जीवन आनंद में दिया गया एक उपहार है जहाँ स्वतंत्रता को हम कृपा स्वरुप देखते हैं। वर्तमान समय में यह सहज नहीं है जहाँ दुनिया अपनी कलात्मकता या स्वतंत्रता में अपने लिए कुछ रखना चाहती है।” (गौदाते एत अक्सुलाते, 55) आज का प्रथम पाठ दुनिया की सुन्दरता को सृष्टिकर्ता के मूल्यवान उपहार स्वरूप पेश करती है। “ईश्वर ने सारी चीजों की सृष्टि की और यह उसे बहुत अच्छा लगा” (उत्पि.1.13)। ईश्वर दुनिया की सुन्दरता और अच्छाई को हमें देते हैं जिससे हम इसे दूसरों के साथ बांट सकें, एक स्वामी की भांति नहीं वरन ईश्वरीय सुन्दर योजना के अंग, उनके सहयोगी स्वरुप। “हमारे जीवन की सच्ची देख-रेख और प्रकृति के संग हमारे अटूट संबंध दूसरों के संग हमारे भ्रातृत्वमय, न्यायपूर्ण और विश्वासमय संबंध को बयां करता है।” (लौदातो सी, 70)।”
समुदाय, सेवा का केन्द्र
इस सत्यता के आधार पर, ख्रीस्तीय समुदाय रुप हम जीवन की रक्षा करने और अपने विवेक और साहस में अपने जीवन द्वारा करूणा, उदारता और सुनते हुए कृतज्ञता में साक्ष्य देने हेतु बुलाये जाते हैं। हम एक समुदाय बनने हेतु बुलाये गये हैं जो सीखते हुए धैर्य में दूसरों को स्वीकार करता हो, “जो अपने में सम्पूर्ण, शुद्ध या सर्वोत्म नहीं हैं यद्यपि प्रेम के योग्य हैं।” संत पापा ने कहा कि क्या असक्षम या कमजोर व्यक्ति प्रेम के योग्य नहीं है। कोई जो परदेशी है, किसी ने कोई गलती की है, कोई बीमार या जेल में है क्या वह व्यक्ति प्रेम के योग्य नहीं हैॽ हम सभी जानते हैं कि येसु ख्रीस्त ने क्या किया, उन्होंने कोढ़ी, अंधे, लकवाग्रस्त व्यक्ति, फरीसी और पापियों को गले लगाया। उन्होंने डाकू को गले लगाया यहां तक कि उन्हें क्षमा प्रदान की जिन्होंने उन्हें सूली पर चढ़ा दिया।
सुसमाचार की घोषणा हमें से इस बात की मांग करती है कि हम एक समुदाय के रुप में सेवा का स्थल बनें, जहां हम घायलों के घावों की चंगाई कर सकें और क्षमा तथा मेल-मिलाप की राह बनें। ख्रास्तीय स्वरुप दूसरों का न्याय करने हेतु हमारे मापदण्ड केवल यही हो सकते हैं कि हम ईश्वरीय संतानों के रुप में सभों के लिए करूणा का स्रोत बनें।
ईश्वर से संयुक्त, अपने और दूसरे धर्मों के लोगों के लिए हम अपनी वार्ता के माध्यम प्रेरिताई की खमीर बने सकते हैं जो जीवन की सुरक्षा और उसकी देखभाल करती है।
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