जापान के शहीदों के प्रति श्रद्धान्जलि
जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी
नागासाकी, रविवार, 24 नवम्बर 2019 (रेई,वाटिकन रेडियो): नागासाकी के एटोमिक बम हाईपो सेन्टर पार्क से केवल तीन किलो मीटर की दूरी पर स्थित निशिज़ाका पहाड़ी पर रविवार को सन्त पापा फ्राँसिस ने काथलिक धर्म के शहीदों के प्रति श्रद्धान्जलि अर्पित की तथा कहा कि काथलिक शहीदों का साक्ष्य हमें अपने विश्वास में सुदृढ़ करता है।
निशिज़ाका पहाड़ी
निशिज़ाका पहाड़ी नागासाकी का वह स्थल है जहाँ 05 फरवरी 1597 ई. को सन्त पौल मिकी तथा उनके 25 साथियों को काथलिक धर्म पर उनके विश्वास के ख़ातिर मार डाला गया था। इन काथलिकों की हत्या के बाद ही जापान में काथलिकों पर अत्याचार शुरु हो गये थे जो अगली दो सदियों तक चलते रहे थे। जिस स्थल पर पौल मिकी एवं उनके साथियों को मार डाला गया था आज वहीं पर लाल ईंटों से निर्मित जापान के इन 26 शहीदों का स्मारक स्थल है। सन् 1981 में सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने, तीर्थयात्री रूप में, इस शहीद स्मारक पर श्रद्धार्पण किया था, इसके बाद से ही निशिज़ाका पहाड़ी पर स्थित जापानी काथलिक शहीदों का स्मारक स्थल तीर्थयात्रियों की आराधना-अर्चना का लक्ष्य बन गया है।
येसु धर्मसमाजी पौल निकी
पौल निकी का जन्म जापान के क्योटो शहर के एक अभिजात परिवार में सन् 1556 में हुआ था। 22 वर्ष की आयु में उन्होंने येसु धर्मसमाज में प्रवेश किया था तथा जापान के प्रथम मिशनरी सन्त फ्राँसिस ज़ेवियर के पद चिन्हों पर चल उन्होंने जापान में ख्रीस्तीय धर्म के प्रचार का बीड़ा उठाया था। येसु धर्मसमाजी पौल निकी के मिशनरी कार्यों तथा उनकी लोकप्रियता पर रोक लगाने के लिये ही जापान के तत्कालीन राजा शोगुन हिदेयोशी ने पौल एवं उनके साथियों की गिरफ्तारी का आदेश दिया था। ओसाका में 1596 ई. के दिसम्बर माह में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था तथा 800 किलो मीटर की दूरी पर स्थित नागासाकी तक, पैदल चलने के लिये बाध्य किया गया था। नागासाकी में ख्रीस्तीयों का बहुमत होने के नाते इसी शहर को उनकी हत्या के लिये चुना गया। कठोर ठण्ड में एक महीने तक पैदल चलने रहने के बाद पौल मिकी तथा उनके साथी निशिज़ाका पहाड़ी पर लाये गये जहाँ उन्हें क्रूस पर लटका कर मार डाला गया था। जीवन के अन्तिम क्षणों तक पौल मिकी अपने साथियों में विश्वास को मज़बूत करने का साहस भरते रहे थे।
1627 ई. में पौल मिकी एवं उनके साथियों को धन्य घोषित किया गया था तथा 1862 ई. में सन्त पापा पियुस नवम ने जापान के इन 26 शहीदों को सन्त घोषित कर कलीसिया में वेदी का सम्मान प्रदान किया था।
सन्त पापा फ्राँसिस ने रविवार को शहीद स्मारक पर प्रार्थना अर्पित की तथा कहा कि यह स्थल मात्र शहीदों का स्मारक नहीं है क्योंकि यह मौत का नहीं अपितु जीवन का सन्देश देता है। उन्होंने कहा कि यह, "शहीदों की पहाड़ी नहीं है अपितु, यह सच्चे अर्थों में आशीर्वचनों का पर्वत है।"
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here