बुजूर्गों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस बुजूर्गों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस  

पोप ˸ संकट व युद्ध के बीच, दादा-दादी की प्रार्थना दुनिया बदल सकती है

संत पापा फ्राँसिस ने दादा-दादी एवं बुजूर्गों को समर्पित द्वितीय विश्व दिवस के लिए अपने संदेश में बुजूर्गों को प्रोत्साहित किया है कि वे आशा बनाये रखें एवं उन्हें याद दिलाया है कि उनके पास प्रार्थना एवं कोमलता की महान शक्ति है जिनसे दुनिया बदल सकती है। विश्व दादा-दादी एवं बुजूर्ग दिवस जुलाई माह के अंतिम रविवार को मनाया जाता है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 10 मई 2022 (रेई) ˸ संत पापा फ्राँसिस ने दादा-दादी एवं बुजूर्गों को समर्पित द्वितीय विश्व दिवस के लिए अपने संदेश में बुजूर्गों को प्रोत्साहित किया है कि वे आशा बनाये रखें एवं उन्हें याद दिलाया है कि उनके पास प्रार्थना एवं कोमलता की महान शक्ति है जिनसे दुनिया बदल सकती है। विश्व दादा-दादी एवं बुजूर्ग दिवस जुलाई माह के अंतिम रविवार को मनाया जाता है।

85 वर्षीय संत पापा ने जोर दिया है कि "बुढ़ापा एक सजा नहीं बल्कि आशीर्वाद है।" हमारी "फेंकने वाली संस्कृति" के विपरीत संदेशों के बावजूद दादा-दादी अमूल्य हैं।     

संत पापा ने कहा है कि बुढ़ापा कोई सजा नहीं बल्कि आशीर्वाद है और भले ही समाज या उनकी अपनी कमजोरियाँ उन्हें दूसरे तरह से सोचने के लिए प्रेरित करें, वे अमूल्य हैं और ईश्वर चाहते हैं कि वे आशा में बने रहें!

कलीसिया बुजूर्गों एवं दादा-दादी के लिए विश्व दिवस को हर साल जुलाई के अंतिम रविवार को, येसु के नाना-नानी संत अन्ना और संत ज्वाकिम के पर्व के निकट मनाती है।

संत पापा फ्रांसिस ने 2021 में इस विश्व दिवस की स्थापना की है क्योंकि दादा-दादी को अक्सर भुला दिया जाता है, फिर भी वे "युवाओं के लिए जीवन और विश्वास के अनुभव को हस्तांतरित करने हेतु पीढ़ियों के बीच की कड़ी हैं।"

समाज का मतलब है कि बुजुर्ग बेकार हैं

संत पापा ने स्तोत्रकार के उन शब्दों की याद की, "वे अपनी लम्बी आयु में भी फलदार हैं। वे रसदार और हरे-भरे रहते हैं।" (स्तोत्र 92,15) संत पापा ने कहा कि ये शब्द खुशखबरी और "एक सच्चा "'सुसमाचार'" है जिसे हम घोषित कर सकते हैं, और जो "जीवन के इस चरण के बारे में दुनिया क्या सोचती है, इसके विपरीत हैं ..."

संत पापा ने खेद प्रकट करते हुए कहा, "कई लोग बुढ़ावे से डरते हैं, वे इसे एक ऐसी बीमारी के समान समझते हैं, जिससे दूर रहना ही बेहतर है। बुजूर्ग सोचते हैं कि उनकी कोई चिंता नहीं करता और उन्हें अलग रखा जाना चाहिए, शायद उन घरों या जगहों पर जहां उनकी देखभाल की जा सकती है, ऐसा न हो कि हमें उनकी समस्याओं से निपटना पड़े।" यही फेंकने की संस्कृति की मानसिकता है।

यहां तक कि "हम में से" जो पहले से ही बुढ़ापे का अनुभव कर रहे हैं, पोप ने स्वीकार किया, कि जीवन का यह समय आसानी से समझ में नहीं आता है। एक ओर, हम वृद्धावस्था से दूर रहने और अपनी युवावस्था को संरक्षित करने के लिए ललायित रहते हैं, "जबकि दूसरी ओर, हम कल्पना करते हैं कि केवल एक चीज जो हम कर सकते हैं वह है अपना समय व्यतीत करना, यह सोचकर कि हम आगे फल नहीं ला सकते हैं।"'

उन्होंने गौर किया कि सेवानिवृत्ति और बड़े हो चुके बच्चे कई चीजें बनाते हैं जो बुजुर्गों के समय और ऊर्जा को अपने वश में कर लेते हैं, जिसके कारण अधिक दबाव नहीं होता, फिर भी ताकत कम होने और बीमारी के आक्रमण से उन्हें अनिश्चितता महसूस करती है।

संत पापा ने कहा, "दुनिया की तेज गति - जिसके साथ हम संघर्ष करते हैं - ऐसा लगता है कि हमारे पास इस विचार को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है कि हम बेकार हैं।"

आशा बनाये रखना

वही स्तोत्र, जो इस बात पर ध्यान देता है कि प्रभु हमारे जीवन के प्रत्येक चरण में कैसे उपस्थित होते हैं, संत पापा ने कहा, "हमें आशा में बने रहने का आग्रह करता है।"

"बुढ़ापे और सफेद बालों के साथ, ईश्वर हमें जीवन का उपहार देना जारी रखते हैं और हमें बुराई से दूर रखते हैं। अगर हम उनपर भरोसा करते हैं, तो हम अब भी उसकी स्तुति करने की शक्ति पाएंगे। हम देखेंगे कि बुढ़ापा शरीर की स्वाभाविक गिरावट या समय के अपरिहार्य बीतने से कहीं अधिक है, बल्कि एक लंबे जीवन का उपहार है। बुढ़ापा अभिशाप नहीं, बल्कि एक आशीर्वाद है!"

इस कारण से, संत पापा ने कहा, हमें अपना ख्याल रखना चाहिए और अपने बुढ़ापे के वर्षों में भी सक्रिय रहना चाहिए, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी।"हमें अपने आंतरिक जीवन को ईश्वर के वचन, दैनिक प्रार्थना, संस्कारों को ग्रहण करने और पूजा-पाठ में भाग लेने के माध्यम से विकसित करना चाहिए। ईश्वर के साथ अपने संबंधों के अलावा, हमें दूसरों के साथ अपने संबंधों को भी विकसित करना चाहिए: सबसे पहले, अपने परिवारों, अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ, बल्कि गरीबों और पीड़ित लोगों के साथ भी स्नेही चिंता दिखाते हुए, उनके करीब आकर व्यावहारिक सहायता और अपनी प्रार्थना अर्पित करना चाहिए।”

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

10 May 2022, 15:47