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कनाडा से वाटिकन लौटते हुए विमान में पत्रकारों से वार्तालाप करते संत पापा फ्रांँसिस कनाडा से वाटिकन लौटते हुए विमान में पत्रकारों से वार्तालाप करते संत पापा फ्रांँसिस 

संत पापा ˸ यह मूलवासियों के विरूद्ध नरसंहार था

कनाडा की प्रेरितिक यात्रा से लौटने के क्रम में, संत पापा फ्रांसिस ने पत्रकारों के संग साक्षात्कार में अपनी प्रेरितिक यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए नये और पुराने उपनिवेशवाद के बारे बातें कीं। उन्होंने कहा कि सेवानिवृति के बारे उन्होंने कुछ नहीं सोचा है। उन्होंने जर्मनी की धर्मसभा, धर्मसिद्धांत के विकास, विश्वास के प्रसारण में नारियों की महत्वपूर्ण के बारे में जिक्र किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

विमान, 30 जुलाई 2022 (रेई) ˸ कनाडा की प्रेरितिक यात्रा से लौटने के क्रम में, संत पापा फ्रांसिस ने पत्रकारों के संग साक्षात्कार में अपनी प्रेरितिक यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए नये और पुराने उपनिवेशवाद के बारे बातें कीं। उन्होंने कहा कि सेवानिवृति के बारे उन्होंने कुछ नहीं सोचा है। उन्होंने जर्मनी की धर्मसभा, धर्मसिद्धांत के विकास, विश्वास के प्रसारण में नारियों की महत्वपूर्ण के बारे में जिक्र किया।

यह मूलवासियों का एक नरसंहार था। कनाडा के इकालूट से रोम वापसी की यात्रा करते समय संत पापा फ्राँसिस ने कनाडा के एक पत्रकार के सवालों के जवाब में पश्चाताप की तीर्थयात्रा, नये और पुराने उपनिवेशवाद के बारे चर्चा की। उन्होंने अपनी सेवानिवृत्त के बारे में भी पत्रकारों के सवाल का जवाब दिया।

जेसिका कान्हेसिओ डेएर (सीबीसी रेडियो - कनाडा स्वदेशी) एक आवासीय विद्यालय के वंशज स्वरूप,  मुझे पता है कि बचे हुए और उनके परिवार के लोग “खोज के सिद्धांत” को नकारते हुए, आपकी माफी के बाद ठोस कार्रवाई देखना चाहते हैं। इस बात पर विचार करते हुए कि यह अभी भी कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में संविधान और कानूनी प्रणालियों में निहित है, जहां स्वदेशी लोगों को उनकी भूमि से धोखा दिया जाता है और सत्ता से वंचित किया जाता है, क्या यह आपकी यात्रा के दौरान इस आशय  पर एक बयान देने का अवसर नहीं थाॽ

संत पापा-  मैंने आपके सवाल के दूसरे भाग को नहीं समझा, खोज के सिद्धांत से आप का तत्पर्य क्या है इसके बारे में कुछ चर्चा करेंगेॽ

जेसिका कान्हेसिओ डेएरः जब मैं मूलवासियों के बारे कहती हूँ, तो वे कहते हैं कि जब लोग अमेरिका में उपनिवेश हेतु आये, वहाँ हम खोज के सिद्धांत को पाते हैं, जो इस विचार को प्रसारित करता है कि मूलवासी काथलिकों से निम्न थे। इसी भांति कनाडा और संयुक्त राज्य अपने में “देशों” के रुप में उभरे।

संत पापा- सवाल के लिए धन्यवाद। मैं सोचता हूँ कि यह एक उपनिवेशवाद की समस्या है। हर कोई, यहाँ तक की आज भी, वैचारिक उपनिवेशों का एक ही स्वरुप है। जो कोई इस राह में प्रवेश नहीं करता वह अपने में निम्न स्तर का ही रह जाता है। लेकिन मैं इसके बारे में विस्तार से कहना चाहूँगा। वे अपने में केवल निम्न स्तरीय केवल नहीं समझे गये, कुछ सनकी ईशशास्त्रियों ने उनके बारे में यह भी सोचा कि क्या उनमें एक आत्मा भी है। जब योहन पौलुस द्वितीय अफ्रीका, गोरी द्वीप गये जहाँ गुलाम रहते थे, उन्हें एक निशानी दी गई जिससे हम सभी उस नाटक को समझ सकते हैं, अपराध के नाटक को- उन लोगों को जहाज में फेंका गया जहाँ वे विकट परिस्थितियों में थे, और इस भांति वे अमेरिका में गुलाम बन गये। यह सही है कि कुछ लोग थे जो उनकी आवाज बनें जैसे कि बरथोलेमेयो दे लास, कासास, या पेद्रो क्लाभेर लेकिन उनकी संख्या बहुत कम थी। मानवीय विवेचना का विकास बहुत धीरे हुआ। मैं विवेचना कहता हूँ क्योंकि अवचेतना में अब भी कुछ चीजें हैं। मुझे यह कहने की अनुमति दें कि हम सबों में एक उपनिवेश का मनोभाव है जिसके फलस्वरूप हम उनकी संस्कृति को घटा कर रख देते हैं। यह हमारे लिए इसलिए होता है कि हम अपने को विकसित समझते, जहाँ हम अपने स्वयं के मूल्यों को कई बार खो देते, जिन्हें हम उनमें पाते हैं। उदाहरण के लिए मूलवासियों का एक महान गुण सृष्टि की एकता के साथ बने रहना है, मैंने कुछ लोगों को यह कहते हुए सुना कि वे “सुखद जीवन” का अनुभव करते हैं। इसका यह अर्थ नहीं जैसे हम पश्चिमी लोग समझते हैं, सभी चीजों को खत्म करना जिसे जीवन अच्छी तरह जीया जा सकें, नहीं। अच्छी तरह जीने हेतु हमें एकता का लुफ्त उठाना है और यह मेरे लिए मूलवासियों का महान मूल्य है। एकता, हम सारी चीजों को अपने दिमाग तक सीमित कर रख देते हैं इसके विपरीत मूलवासियों के व्यक्तित्व जिसके बारे मैं सामान्य रुप में कहता हूँ- वे अपने को तीन भाषाओं में अभिव्यक्त करना जानते हैं- दिमाग की भाषा, हृदय की भाषा और हाथ की भाषा। ये तीनों एक साथ होते हैं। वे सृष्टि के संग अपनी इस भाषा को बोलना जानते हैं। तब, यह प्रगतिवाद हमारे लिए अतिशोयक्ति होती है, एक तरह से विक्षिप्त विकास जो हमारा है, सहीॽ मैं विकास के विरूध में नहीं कह रहा हूँ, विकास अपने में अच्छा है। लेकिन विकास की चिंता, प्रगति, प्रगति...देखिए, हमारे अति विकास, वाणिज्य सभ्यता के कारण हमने एक चीज काव्यात्मकता की क्षमता को खो दिया है- मूलवासियों में काव्य की क्षमता है। मैं उन्हें आदर्श नहीं बना रहा हूँ। उपनिवेशिता के सिद्धांत जो अपने में सही है, यह बुरा और अनुचित है, यहाँ तक कि आज भी इसका उपयोग होता है, चांदी के दस्ताने से, लेकिन यह आज भी जारी है। उदाहरण के लिए, कुछ देशों के धर्माध्यक्षों ने मुझे से कहा है, “लेकिन, हमारा देश, जब वे किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन से उधार मांगते हैं, तो वे हम पर शर्तें लगाते हैं, यहां तक कि विधायकी,  उपनिवेशवादी शर्ते भी। आपको उधार देने के लिए वे आपके जीवन के तरीके को थोड़ा बदल देते हैं।”

अमेरिकी उपनिवेशीकरण के बारे में- हम चाहे अमेरिका- ब्रिटिश,  फ्रांसीसी,  स्पैनिश,  पुर्तगाली किसी की चर्चा करें यह हमेशा एक खतरा रहा है,  यह हमारे लिए एक मानसिकता को व्यक्त करता है “हम श्रेष्ठ हैं और ये स्वदेशी लोग व्यर्थ” हैं,  और यह अपने में गंभीर है। इसलिए आप जो कहते हैं उस पर हमें काम करना है: वापस जाओ और सफाई करो,  जो गलत किया गया था। हम जानते हैं कि आज भी उपनिवेशवाद मौजूद है। उदाहरण के लिए, एक मामले के बारे में सोचें, जो सार्वभौमिक है, और मुझे यह कहने की अनुमति दें। मैं म्यांमार में रोहिंग्या मामले के बारे में सोचता हूँ: उन्हें नागरिकता का कोई अधिकार नहीं है,  वे आज भी निचले स्तर के हैं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

ब्रिटनी हॉब्सन (कनाडा प्रेस) – सुप्रभात, संत पापा। मैं ब्रिटनी हॉब्सन कनाडा प्रेस से। आपने कई बार स्पष्टता, ईमानदारी, सीधे तौर पर और खुलेपन की आवश्यकता के बारे में कहा है। कनाडा की सच्चाई और मेल-मिलाप आयोग ने आवासीय स्कूल प्रणाली को सांस्कृतिक नरसंहार के रूप में वर्णित किया है, और उस अभिव्यक्ति को केवल नरसंहार कहा गया है। जिन लोगों ने पिछले सप्ताह आपकी माफी शब्दों को सुना,  उन्होंने इस तथ्य पर शोक व्यक्त किया कि नरसंहार शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था। क्या आप उस शब्द का प्रयोग करेंगे और स्वीकार करेंगे कि कलीसिया के सदस्यों ने इस नरसंहार में भाग लिया थाॽ

संत पापा- यह सही है, मैं इस शब्द का उपयोग नहीं किया क्योंकि यह मेरे दिमाग में नहीं आया और मैंने इस नरसंहार के लिए संचालन हेतु क्षमा की याचना की। उदाहरण के लिए मैं बच्चों को ले जाने, संस्कृति में परिवर्तन लाने, सोचने-विचारने में बदलाव लाने, परंपराओं में परिवर्तन, जाति को बदलाने, कहें तो पूरी एक संस्कृति में परिवर्तन लाने की निंदा करता हूँ। हाँ, इसकी तकनीकी शब्दावली नरसंहार है, लेकिन मैंने इसका प्रयोग नहीं किया क्योंकि यह मेरे मन में नहीं आया, लेकिन मैंने इसकी व्याख्या की...यह सही है, हाँ, हाँ, यह नरसंहार है। आप इसके बारे में निश्चित रहें। मैं कह सकता हूँ कि यह एक नरसंहार था।

मारिया वेलेंटीना (टेलीविसा)-सुप्रभात, संत पापा। हम सोचते हैं कि कनाडा की तीर्थयात्रा एक जाँच के समान थी, अपने के लिए जांच, जिसे आपने आज की सुबह “शारीरिक सीमाएँ” कहा। अतः हम जानना चाहते हैं, इस सप्ताह के बाद, आप अपनी आगामी यात्राओं के बारे में हमें क्या कह सकते हैंॽ यदि आप इस भांति अपनी प्रेरितिक यात्रा जारी रखेंॽ यदि कोई यात्रा जिसे आप अपनी सीमाओं के कारण पूरा करने में असक्षम होंगे या शायद एक सप्ताह के बाद, आपके घुटनों की तकलीफ ठीक हो और पहले की तरह अपनी यात्रा कर सकेंॽ

संत पापा- शुक्रिया। मुझे नहीं पता... मुझे नहीं लगता कि मैं पहले की तरह यात्राओं में गतिशीलता जारी रख सकता हूँ। मुझे लगता है कि इस उम्र में और इस बाधा के साथ, मुझे कलीसिया की सेवा हेतु (अपनी ऊर्जा को) थोड़ा बचाना होगा या इसके विपरीत, एक तरफ होने की संभावना के बारे में सोचना होगा। यह (मैं कहता हूँ) पूरी ईमानदारी के साथ ˸ यह कोई विपत्ति नहीं है, संत पापा को बदलना संभव है, इसमें परिवर्तन लाना संभव है, इसमें कोई समस्या नहीं। लेकिन मुझे लगता है कि मुझे इन प्रयासों में खुद को थोड़ा सीमित करना होगा। मेरे लिए घुटने की सर्जरी कोई विकल्प नहीं है, मेरे मामले में, यह मेरे लिए ठीक नहीं है। तकनीशियन (स्वास्थ्य की देखभाल करनेवाले पेशेवर) कहते हैं कि यह बेहतर है, लेकिन एनेस्थीसिया एक बड़ी समस्या है। दस महीने पहले, मुझे छह घंटे से अधिक समय तक एनेस्थीसिया दिया गया था और इसके असर अब भी हैं। आप इसे सहज ढ़ंग से नहीं ले सकते हैं, आप एनेस्थीसिया से खिलवाड़ नहीं कर सकते हैं। और इसलिए मुझे नहीं लगता कि यह पूरी तरह से उचित है। लेकिन मैं यात्राओं पर जाना और लोगों के करीब रहने की कोशिश करूँगा, क्योंकि मुझे लगता है कि निकटता यह सेवा का एक तरीका है। लेकिन इससे ज्यादा मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है। आशा है... मेक्सिको में अभी तक कोई नहीं हुआ है ...

मारिया वेलेंटीना- नहीं, नहीं... कजाखिस्तान की यात्रा के बारे में क्या कहते हैंॽ और यदि आप कजाकिस्तान की यात्रा करेंगे, तो क्या आपको शायद यूक्रेन भी नहीं जाना चाहिए, यदि आप कजाकिस्तान जायेंगे तोॽ

संत पापा- मैंने कहा कि मैं यूक्रेन जाना पसंद करूँगा। आइए ,अब देखें कि घर पहुंचने पर मैं अपने को कैसे पाता हूँ। कजाकिस्तान, फिलहाल, मैं जाना चाहूँगा, यह एक शांति भरी यात्रा है, इसमें यहाँ-वहाँ की यात्रा शामिल नहीं है, यह धर्मों का एक सम्मेलन है। लेकिन फिलहाल सब कुछ जैसे के तैसे है। इसके अलावा, मुझे कांगो से पहले दक्षिण सूडान जाना है, क्योंकि यह कैंटरबरी के महाधर्माध्यक्षों और स्कॉटलैंड कलीसिया के धर्माध्यक्षों के संग एक यात्रा है, हम तीनों ने, दो साल पहले एक साथ आध्यात्मिक साधना की थी। लेकिन यह अगले साल होगा, क्योंकि हमें बारिश के मौसम को देखना है, मेरी बहुत सारी इच्छाएँ हैं, लेकिन देखते हैं कि पैर क्या कहता है।

कैरोलिना पिगोज़ी (पेरिस मैच)- आज प्रातः आप ने येसु संघ, अपने परिवार के सदस्यों से मुलाकात की,  जैसा कि आप हमेशा अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान करते हैं। नौ साल पहले ब्राजील से लौटने के क्रम में मैंने आपसे पूछा था कि क्या आप अभी भी येसु समाजी-सा महसूस करते हैं। आपका उत्तर सकारात्मक था। 04 दिसंबर को ग्रीस में येसु सामाजियों से मिलने के बाद, आपने कहा था कि जब कोई प्रक्रिया शुरू करता है, तो उसे विकसित होने देना चाहिए, काम को बढ़ने देना चाहिए और फिर व्यक्ति को सेवानिवृत्त होना चाहिए। “हर येसु समाजी को”, आपने कहा, यह करना चाहिए, कोई भी काम उसका नहीं है क्योंकि यह ईश्वर का कार्य है।" क्या यह कथन एक दिन येसु समाजी संत पापा पर लागू हो सकता हैॽ

संत पापा- मैं सोचता हूँ, हाँ।

कैरोलिना पिगोज़ी- आपके कहने का अर्थ क्या आप येसु सामाजियों की तरह सेवानिवृत होंगेॽ

हाँ, हाँ। यह एक निमंत्रण है।

कैरोलिना पिगोज़ी- संत पापा बने रहने का या एक येसु समाजीॽ

येसु समाजी। यह येसु की ओर से आये। येसु समाजी कोशिश करता है, वह प्रयास करता है, वह सदैव ईश्वर की इच्छा पूरी नहीं करता लेकिन कोशिश करता है। येसु समाजी संत पापा को भी ऐसा ही करना चाहिए। जब ईश्वर कहेंगे,यदि वे कहेंगे आगे बढ़ो, तो आप को आगे जाना है, यदि ईश्वर कहेंगे कोने में जाओ, तो तुम्हें कोने में जाना है। यह येसु हैं जो निर्देशित करते हैं...

कैरोलिना पिगोज़ी- आप क्या कहेंगे, कोई मरण की स्थिति में है इसका अर्थ...

संत पापा- लेकिन हम सभी को मृत्यु की प्रतिक्षा है...

कैरोलिना पिगोज़ी- मेरा कहने का अर्थ, इसके पहले कोई सेवानिवृत नहीं होताॽ

ईश्वर क्या कहते हैं। ईश्वर सेवानिवृति के लिए कहेंगे। ये ईश्वर हैं जो हमें आज्ञा देते हैं। संत इग्नासियुस के संदर्भ में यह एक बहुत महत्वपूर्ण बात है। संत इग्नासियुस जब किसी को थका हुआ, बीमार, पाया तो उसे प्रार्थना से दूर कर दिया, लेकिन आत्म-जाँच से कभी दूर नहीं किया। दिन में दो बार- आत्म-परीक्षण करो, आज मेरे हृदय में क्या हुआ है। पाप या पापरहित, बल्कि आज मुझे किस आत्मा ने प्रेरित किया। हमारा कर्तव्य यह देखना है कि मुझे आज क्या हुआ। यदि, मैं- यह एक परिकल्पना है -मैं देखता हूँ कि ईश्वर मुझे कुछ बता रहे हैं, कि मुझे कुछ हुआ है, कि मेरे लिए एक प्रेरणा है, मुझे यह आत्म-परीक्षण करते हुए देखना, समझना होगा कि ईश्वर मुझ से क्या कहना चाहते हैं। यह भी हो सकता है कि ईश्वर मुझे कोने में भेजना चाहते हैं, वे हमारे नायक हैं। यह एक येसु समाजी के आध्यात्मिक जीवन जीने की एक प्रक्रिया है, निर्णय लेने हेतु आध्यात्मिक विवेक में बने रहना, कार्य मार्ग का चुनाव करना, प्रतिबद्धता हेतु भी ... आत्म-परख येसु समाजी के बुलाहटीय जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह महत्वपूर्ण है। संत इग्नासियुस इस संदर्भ में सर्वोतम थे क्योंकि यह आध्यात्मिक जाँच उनका अपना अनुभव था जिसके कारण उनका मनपरिवर्तन हुआ। आध्यात्मिक साधना आत्म-परख की एक पाठशाला है। येसु समाजी को अपने आत्म-परख में पुख्ता होने की जरुरत है, परिस्थितियों की परख, अपने अतःकरण की जाँच, निर्णयों को लेने हेतु आत्म-परख। अतः प्रभु जो कुछ भी उससे मांगें, उसके लिए उसे खुला रहना होगा, यही हमारी आध्यात्मिकता है।

कैरोलिना पिगोज़ी- लेकिन आप संत पापा के रूप में होने का अधिक अनुभव करते हैं या येसु समाजीॽ

संत पापा- मैंने इसका मूल्यांकन कभी नहीं किया है कि मैं संत पापा हूँ या एक येसु समाजी। मैं अनुभव करता हूँ कि येसु समाजी के आदतन मैं ईश्वर का एक सेवक हूँ। संत पापा होने की कोई आध्यात्मिकता नहीं है। ऐसा कुछ नहीं है। हर संत पापा की अपनी अलग आध्यात्मिकता होती है। आप संत पापा जोन पौल द्वितीय के बारे में विचार कर सकते हैं जो मरियम की सुन्दर आध्यात्मिकता का अनुकरण करते थे। यह उनमें पहले से थी और संत पापा नियुक्त होने पर भी वे इसका अनुकरण करते थे। आप बहुत से अन्य संत पापाओं के बारे में सोच सकते हैं जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक का अनुसरण किया।

संत पापा का पद एक आध्यात्मिकता नहीं है, यह एक उत्तराधिकार, एक कर्तव्य, एक सेवा है। हर कोई इसका निष्पादन अपनी आध्यात्मिकता, ईश्वर से मिली कृपाओं, अपने विश्वास में निष्ठा के साथ और अपने पापों के अनुसार भी करता है। लेकिन संत पापा के पद हेतु कोई आध्यात्मिकता नहीं है। यही कारण है कि येसु समाजियों की आध्यात्मिकता और संत पापा के पद की आध्यात्मिकता के बीच कोई तुलना नहीं है क्योंकि पिछले का अपना कोई आधार नहीं है। क्या आप समझते हैंॽ

सेवेरिना एलिज़ाबेथ बार्टोनित्शेक (सीआईसी)- कल आप ने कलीसिया के भ्रातृत्व के बारे में कहा, एक समुदाय जो यह जानता है कि कैसे उसे सुनना और वार्ता में प्रवेश करना है, यह हमारे बीच अच्छे संबंध को स्थापित करता है। लेकिन कुछ दिन पहले, जर्मनी की धर्मसभा के संबंध में वाटिकन की एक अहस्ताक्षरित विज्ञप्ति आई। क्या आप सोचते हैं कि इस तरह का संप्रेषण वार्ता में सहायक होता या रोड़े उत्पन्न करता हैॽ

सर्वप्रथम, संप्रेषण वाटिकन सचिवालय की ओर से था...इसके बारे में खुलासा नहीं करना अपने में एक गलती थी...। मैं सोचता हूँ यह वाटिकन सचिवालय के विचारों का संचार था लेकिन मैं इसके बारे में निश्चित नहीं हूँ। इस पर हस्ताक्षर नहीं करना एक बड़ी गलती थी, जो कार्यालय द्वारा हुई थी, न कि बुरी योजना के तहत। मैं धर्मसभा को एक महीने की प्रार्थना, चिंतन और विचार-विमार्शों के बाद एक महीने उपरांत व्यक्तिगत रुप में एक खत लिखा। मैं उन सारी बातों की चर्चा की जिसे मुझे कहने की जरुरत थी उससे अधिक मैं और कुछ नहीं कहूँगा, धर्मसभा के मार्ग पर वाटिकन के सिद्धांत, यह पत्र मैंने दो वर्षों पहले लिखा था। मैं रोमन कुरिया से विचार-विमार्श किये बिना इस पर अपने निर्णय लिये। मैंने स्वयं इस मार्ग का चुनाव किया एक चरवाहे की भांति उस कलीसिया के लिए जो एक मार्ग को खोज कर रही है,एक भाई की तरह, एक पिता और एक विश्वासी की तरह। और यही मेरा संदेश है। मैं जानता हूँ यह सहज नहीं है लेकिन उस पत्र पर सारी बातें अंकित हैं, धन्यवाद। 

इग्नासियो इनग्रओ (राई-टीजी1) इटली इस समय एक कठिन दौर से होकर गुजर रहा है जो अंतरराष्ट्रीय चिंता का कारण बनती है। हम आर्थिक संकट, महामारी, युद्ध और अब सरकार की अस्थिरता देख रहे हैं। आप इटली के धर्माधिपति स्वरुप है, आपने राष्ट्रपति मात्तरेल्ला को जन्मदिन के अवसर पर शुभकामनाएँ देते हुए कुछ कठिनाइयों का जिक्र किया और उन्हें महत्वपूर्ण विकल्प की संज्ञा दी। द्रागी सरकार गिरने के आपके अनुभव क्या रहेॽ

संत पापा- सर्वप्रथम, मैं इटली की स्थानीय राजनीति में हस्तक्षेप करना नहीं चाहूँगा। दूसरा कोई भी यह नहीं कह सकता की द्रागी अंतरराष्ट्रीय कोटि का व्यक्तित्व नहीं था। वह यूरोपीय केन्द्रीय बैंक का अध्यक्ष था। उनका कैरियर उच्च रहा है। मैं अपने स्टाफ से केवल एक सवाल करना चाहूँगा- वे बतायें, कितनी सरकारे हैं जहाँ वे चीजे हैं जो इस सदी इटली में हैंॽ उन्होंने मुझे उत्तर दिया 20। मेरा उत्तर यही है....

इग्नासियो इनग्रओः इस कठिन परिस्थिति में आप और राजनीति शक्तियों के क्या कहना चाहेंगेॽ

संत पापा- उत्तरदायित्व, नागरिक उत्तरदायित्व...

क्लेयर जियानग्रेव (धर्म समाचार सेवा)- बहुत से काथलिक अपितु बहुत से ईशशास्त्रीगण, यह विश्वास करते हैं कि गर्भनिरोधक के संबंध में कलीसिया के धर्मसिद्धांत में विकास की जरूरत है। आप के पूर्व धर्माधिकारी संत पापा जोन पौल प्रथम ने भी यह विचार किया कि पूर्ण निषेध में शायद पुनर्विचार करने की जरुरत है। आप इसके बारे में क्या सोचते हैं, इस मुद्दे पर, क्या आप खुले हैं, संक्षेप में, इस पर पुनर्विचार करने हेतुॽ या क्या एक दंपति के लिए गर्भानिरोधक पर विचार संभव हैॽ

संत पापा- यह उपयुक्त समय है। लेकिन जैसे आप धर्मसिद्धांत, नैतिकता के बारे में जानते हैं, वह इस संदर्भ में सदा अपने विकास के मार्ग में है। एक चीज का उपयोग जो अपने में स्पष्ट है, मैं सोचता हूँ मैंने इसके बारे में पहले भी कहा है, नैतिकता और धर्मसिद्धांत के आधार पर यह एक स्पष्ट नियम है जो हमें प्रकाशित करता है। इसके बारे में लेरिन्स के भिन्सेट ने 10वीं सदी में कहा। वे कहते हैं कि सच्चा धर्मसिद्धांत जिसे आगे बढ़ना, गहराई में जाना है, अपने में चुपचाप नहीं रह सकता है यह  ut annis consolidetur, dilatetur tempore, sublimetur aetate. अर्थात, यह समय के साथ संगठित होता है, यह विकसित होता है, संगठित और विकसित होते हुए और अधिक स्थिर होता है लेकिन हमेशा प्रगति करता है। यही कारण है कि ईशशास्त्रियों का कर्तव्य अपने में खोज-पड़ताल करना है, ईशशास्त्रीय विचार-मंथन करना है, आप “न” के साथ ईशशास्त्रीकरण नहीं कर सकते हैं। यदि ऐसा होता तो या न का धर्मसिद्धांत हो जायेगा, आप को आगे जाने, पीछे लौटते हुए ईशशास्त्रीय विकास हेतु खुला रहने की जरुरत है, ईशशास्त्रियों का कार्य यही है। धर्मसिद्धांत हमें इसकी सीमाओं को समझने में मदद करता है। गर्भनिरोधक के संबंध में, मैं इस तथ्य के बारे और अन्य विवाह संबंधी मुद्दों के बारे में एक प्रकाशन से वाकिफ हूँ। इन सारी चीजों के संबंध में एक संगोष्ठी है और एक सम्मेलन की तरह विचार-विमार्श के तहत चीजों की रुपरेखा तैयार की जायेगी। हमें इसके बारे में स्पष्ट होने की आवश्यकता है, सम्मेलन ने इस पर कार्य किया है और कलीसियाई सिद्धांत को आगे बढ़ाने की कोशिश की है जैसे कि मैंने लेरिन्स के संत विन्सेट के नियमों के बारे में जिक्र किया। इस तरह धर्मसिद्धांत के बारे में, हाँ यह सही है या यह गलत है घोषित किया जायेगा। इसमें बहुत सारी चीजें हैं। आप परमाणु हथियार का उदाहरण ले सकते हैं, मैंने इसके बारे में यह घोषित किया है कि इसे धारण करना और उसका उपयोग अपने में अनैतिक है। आप मृत्युदंड के बारे में सोच सकते है- मैं कह सकता हूँ आज हम अनैतिकता के निकट है क्योंकि नैतिक विवेक ने अपने में विकास किया है। स्पष्ट रुप में कहा जाये तो जब धर्मसिद्धांत या नैतिकता विकास करता है यह उच्च है, लेकिन यह लेरिन्स के विन्सेंट के तीन नियमों के आधार पर हो। मैं सोचता हूँ यह स्पष्ट है- एक कलीयिसा जो कलीसियाई विचारों के अनुसार विकास नहीं करती, तो उसके कलीसियाई विचार पिछड़े रह जाते हैं, आज की समस्या यही है, जिसमें से बहुत से अपने को पारंपरिक कहते हैं। नहीं, नहीं वे पारंपरिक नहीं वे “विकास रोधक” हैं, वे बिना जड़ों के अपने में पीछे चलते हैं, यह हमेशा से ऐसा ही किया गया है, पिछली सदियों में ऐसा किया गया है। और “विकास-रोधक” अपने में एक पाप है क्योंकि यह कलीसिया के संग आगे नहीं बढ़ता है। बल्कि परंपरा, किसी ने कहा- मैं सोचना हूँ मैंने इसके बारे में कहा है- परंपरा मृतकों का जीवित विश्वास है, “विकास-रोधक” के बदले जो अपने को पारंपारिक कहते हैं, यह जीवितों का मृत विश्वास है। परंपरा खासकर जड़ है जहाँ कलीसिया प्रेरणा में आगे बढ़ती है और यह सदैव लंबवत है। “विकास-रोधक” पीछे की ओर जाना है, जो सदैव अपने को बंद करता है। यह महत्वपूर्ण है कि हम परंपरा को अच्छी तरह समझें, जो सदैव खुली है, पेड़ों की जड़ों के समान जहाँ वृक्ष का विकास होता है...एक संगीतज्ञ, गुस्ताव महलेर के सुन्दर बोल थे जो कहते हैं कि परंपरा इस अर्थ में भविष्य को सुनिश्चित करता है, यह संग्रहालय नहीं है। यदि आप परंपरा को बंद रुप में लेते तो यह कलीसिया की परंपरा नहीं है...यह सदैव मीठी जड़ है जो आप को आगे, आगे, आगे ले चलती है। तो उसके लिए, आप जो कहते हैं,  विश्वास और नैतिकता जो आगे ले चलती हैं, जो जड़ों की ओर ले चलता है, तो यह रस है, जो ठीक है। लेरिन्स के विंसेंट के तीन नियमों के आधार पर मैंने इसका उल्लेख किया।

एवा फरन्डेस(कादेना कोप)- अगस्त के अंत में, कार्डिनल मंडल की सभा है। हाल में, बहुतों ने आपसे पूछा है कि क्या आप त्यागपत्र  देने के लिए सोच रहे हैं। आप चिंता न करें, हम इस बारे में आपसे नहीं पूछ रहे हैं। लेकिन हम उत्सुक हैं कि क्या आपने सोचा है कि आप किस तरह के उत्ताधिकारी पाना चाहेंगे?

संत पापा- यह पवित्र आत्मा का कार्य है, आप जानते हैं? मैं उसपर विचार करने का कभी साहस नहीं करता। पवित्र आत्मा मुझसे, हम सभी से अधिक अच्छा जानते हैं कि क्या करना है। क्योंकि वे संत पापा के निर्णय को प्रेरित करते हैं, वे हमेशा प्रेरित करते। क्योंकि वे कलीसिया में जीवित हैं। पवित्र आत्मा के बिना कलीसिया की कल्पना नहीं की जा सकती। वे ही हैं जो हमें अलग बनाते, वे कोलाहल भी कराते हैं – पेंतेकोस्त की सुबह की याद करें – उसके बाद वे सामंजस्य लाते हैं। एकता की अपेक्षा सामंजस्य के बारे सोचना महत्वपूर्ण है। एकता, जी हाँ लेकिन सामंजस्य, न कि एक स्थिर वस्तु। पवित्र आत्मा हमें प्रगतिशील सद्भाव प्रदान करते हैं, जो चलता रहता है। पवित्र आत्मा के बारे संत बसिल जो कहते हैं उसे मैं पसंद करता हूँ- वे सामंजस्य हैं। वे सामंजस्य हैं क्योंकि विभिन्न विशिष्ठताओं के द्वारा पहले कोलाहल करते। अतः हम पवित्र आत्मा के इस कार्य को छोड़ दें। मेरे इस्तीफे के संबंध में, मैं कहना चाहूँगा, मैं उस लेख के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ जिसको आपमें से एक ने लिखा है जिसमें इस्तीफे की ओर अग्रसर होने का संकेत भी दिया गया है। यह एक पत्रकार का अच्छा कार्य है जो अंत में विकल्प देता है किन्तु (इस बीच वह) हर प्रकार के संकेतों की खोज करने जाता है, न कि केवल बयान देता, उस रहस्यपूर्ण भाषा के साथ जो (हालांकि) संकेत भी देती है। यह जानना कि संकेतों को कैसे पढ़ना है या कम से कम एक संकेत को दूसरे से समझने का प्रयास करना, यह एक अच्छा काम है और इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।

फोएबे नतानसन (एबीसी न्यूज)- क्षमा कीजिए संत पापा, मैं जानता हूँ कि आपको इस तरह के कई सवाल मिल चुके हैं, किन्तु मैं इस समय पूछना चाहता हूँ कि आपके स्वस्थ की कठिनाइयों एवं एक अन्य कारण से क्या आपने कभी अपनी सेवानिवृति के बारे सोचा? क्या कोई समस्या है जिसने आपको ऐसा सोचने के लिए प्रेरित किया। क्या कोई कठिन पल रहा जिसने आपको ऐसा सोचने के लिए मजबूर किया?

संत पापा- यह द्वार खुला है, यह एक स्वाभाविक विकल्प है किन्तु आज तक मैंने उस द्वार पर दस्तक नहीं दी है। मैंने नहीं कहा है कि मैं इस दिशा में जा रहा हूँ, इस संभावना के बारे सोचने की आवश्यकता मैंने महसूस नहीं की है। लेकिन इसका अर्थ नहीं है कि मैं कल ऐसा सोचना शुरू नहीं कर सकता, ठीक है? किन्तु फिलहाल बिल्कुल नहीं। यह यात्रा भी थोड़ी-सी जाँच के रूप में रही...यह सच है कि यात्रा इस स्थिति में नहीं किया जाना चाहिए, इसके तरीके को थोड़ा बदलना होगा, कम करना होगा, यात्रा के ऋण को चुकाना पड़ेगा जिनको अभी भी किया जाना है, पुनःव्यस्थित किया जाना है...किन्तु प्रभु ही उसे कहेंगे। दरवाजे खुले हैं जो सत्य है। और इसके पहले की मैं विदा लूँ, मैं आप सभों से एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज के बारे में कहना चाहूँगा। कनाडा की यह प्रेरितिक यात्रा बहुत हद तक संत अन्ना की प्रतिमूर्ति जैसे थी। मैंने नारियों के बारे में कुछ कहा, लेकिन विशेषकर बुजुर्ग नारियों के बारे में, माताओं और दादा-दादियों के बारे में। मैं एक चीज, विश्वास के बारे में स्पष्ट रुप से जोर देना चाहूँगा जिसे हमें स्थानीय रुप में प्रसारित करने की जरुरत है। मैंने इसे स्पष्ट रुप में मातृत्व की भाषा, दादा-दादी की भाषा कही, हमने विश्वास को अपने नारी सुलभ भाषा में ग्रहण किया है और यह अपने में बहुत महत्वपूर्ण है। विश्वास के प्रसार में नारियों का बहुत बड़ा योगदान है। ये माताएँ या दादियाँ हैं जो हमें प्रार्थना करना सिखलाती हैं। ये वे हैं जो हमें पहली बार उन बातों को समझाती हैं जिसे हम विश्वास के रुप में नहीं समझते हैं। मैं कह सकता हूँ कि स्थानीय भाषा में विश्वास का प्रसार नारीत्व है। किसी ने मुझ से कहा- लेकिन आप इसे ईशशास्त्रीय रुप में कैसे वर्णन करेंगेॽ मैं कहूँगा, कि जो विश्वास को प्रसारित करता है वह कलीसिया है, और कलीसिया एक नारी का रूप है, कलीसिया एक वधू है, कलीसिया वर नहीं है, कलीसिया नारी के रूप में एक माता है। हम नारी-कलीसिया के माध्यम से ही माता कलीसिया के विचारों से अपने को अवगत होता पाते हैं जो अपने में और अधिक महत्वपूर्ण है। माता कलीसिया जो हमारे लिए ईश्वर की माता के स्वरूप को प्रस्तुत करती है। इस अर्थ में हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम मातृत्व की भाषा के आधार पर विश्वास को प्रसारित करें। मैंने इसे मेक्काबेथ की शहादत को पढ़ते हुए खोज निकाला। यह दो या तीन बार माता के बारे कहती है कि यह मातृत्वमय भाषा में प्रोत्साहित करती है। विश्वास को स्थानीय भाषा में प्रसारित करने की जरुरत है। और स्थानीय भाषा माताओं के द्वारा बोली जाती है। यह हमारे लिए बड़ी खुशी का कारण है क्योंकि कलीसिया माता है, यह एक वधू है। मैंने संत अन्ना को अपने विचार में रखते हुए इस बारे में स्पष्ट रुप से कहना चाहा।

सुनने के लिए आप सभी को तहे दिल से धन्यवाद।

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31 July 2022, 14:32