संत पापाः कनाडा की प्रेरितिक यात्रा,“भिन्न”
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार, 3 अगस्त 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में जमा हुए विभिन्न देशों के लोगों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाई एवं बहनों, सुप्रभात।
उन्होंने कहा कि मैं आप सभों के संग फिलहाल ही अपनी कनाडा की पूरी की गई प्रेरितिक यात्रा के अनुभवों को साझा करना चाहूँगा। यह अन्य यात्राओं से भिन्न थी। वास्तव में, इस प्रेरितिक यात्रा का मुख्य उद्देश्य कनाडा के मूलवासियों से भेंट करते हुए काथलिकों और बहुत से ख्रीस्तियों द्वारा उन्हें दिये गये दुःखों के लिए क्षमा की याचना करना और उनके संग सामीप्य प्रकट करना था, जिन्हें अतीत में, उस समय की सरकारों की नीतियों को अपने ऊपर जबरन लेने और उन्हें आत्मसात करने को बाध्य होना पड़ा था।
नये इतिहास की शुरूआत
इस संदर्भ में कनाडा ने अपने लिए इतिहास के एक नये पन्ने को लिखना शुरू किया है जहाँ कलीसिया ने कुछ समय पूर्व आदिवासियों-मूलवासियों के संग चलने का एक बीड़ा उठाया है। वास्तव में, इस प्रेरितिक यात्रा का आदर्श वाक्य,“एक साथ चलना” हमें इसके बारे में जिक्र करता है। मेल-मिलाप और चंगाई की एक राह जो इतिहास के ज्ञान का पूर्वानुमान लाता, जो हमें बचे हुए लोगों को सुनने, सजग रहने और इससे भी बढ़कर अपने सोचने-विचारने में परिवर्तन लाने की मांग करता है। यह गहन अध्ययन, वहीं दूसरी ओर हमारे लिए यह दिखलाता है कि कुछ नर और नारियाँ थीं जिन्होंने आदिवासियों का सम्मान और उनकी रक्षा करने हेतु अपने में साहसपूर्वक कृतसंकल्प रहे। उन्होंने उनकी भाषा और संस्कृति की रक्षा की लेकिन वहीं दूसरी ओर दुर्भाग्यवश हम उन ख्रीस्तियों की भी कमी नहीं पाते विशेषकर पुरोहितों, धर्मबंधुओं-धर्मबहनों, लोकधर्मियों जिन्होंने उन कार्यक्रमों में अपने को सहभागी किया जिन्हें आज हम सुसमाचार के मूल्यों अनुरूप अस्वीकारणीय पाते हैं। संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि मैं वहाँ कलीसिया के नाम पर क्षमा याचना करने गया।
पश्चाताप का तीर्थ
उन्होंने कहा, “अतः यह एक पश्चाताप की तीर्थयात्रा थी”। इसमें बहुत से आनंद के क्षण रहे, लेकिन उन सबसे बढ़कर यह एक चिंतन, पश्चाताप और मेल-मिलाप का क्षण रहा। चार महीने पहले, मैंने वाटिकन में कनाडा आदिवासियों के भिन्न दलों, प्रतिनिधियों से मुलाकात की। मेरी चाहत उनकी चाहतों की तरह ही थी कि हमारी मुलाकात उनके पूर्वजों की भूमि में हो जहाँ उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया है। और ईश्वर ने इसे संभव बनाया हम उनके प्रति कृतज्ञता के भाव व्यक्त करते हैं।
तीन पड़ाव
संत पापा ने कहा कि इस तीर्थ के तीन मुख्य पड़ाव रहें, पहला एदमोटोन जो देश का पश्चिमी भाग है। दूसरा पूर्व का केबेक और तीसरा उत्तरी भाग इकालुइत। हमारी पहली मुलाकात मास्कवासिस में हुई जहाँ पूरे देश के अगुवे और मुख्य आदिवासी समुदाय, फस्ट नेशंस, मेतिस और इनुइट दलों में जमा हुए थे। हमने एक साथ मिलकर यहां के लोगों की हजारों साल पुराने इतिहास, मातृभूमि के संग एकता- जिसका शोषण वे कभी नहीं करते जो मूलवासियों की एक सबसे बड़ी सुन्दरता है, की याद की।। धरती के संग एकता के साथ हमने उन पर शोषण और आवासीय विद्यालयों में हुए यौन-दुराचार की दर्दभरी यादें जो सांस्कृतिक आत्मसात के परिणाम रहे, याद किये।
मेल-मिलाप स्थापित
यादों के बाद, हमारी तीर्थ का दूसरा चरण मेल-मिलाप स्थापित करना था। यह हमारे बीच एक समझौता नहीं था, यह अपने में एक भ्रम होता, बल्कि हमने अपने को येसु ख्रीस्त के द्वार मेल-मिलाप करने दिया, जो हमारी शांति हैं (एफे.2.14)। हमने इसे एक वृक्ष के प्रतीकात्मक रुप को वहन करते हुए पूरा किया जो आदिवासियों के जीवन का क्रेन्द-विन्दु और निशानी है।
यादें, मेल-मिलाप और इस प्रकार चंगाई। हमने अपनी यात्रा के तीसरे पड़ाव जो विशेष रुप से संत जोवाकिम और संत अन्ना के पर्व दिवस में, संत अन्ना झील के किनारे सम्पन्न हुआ। हम सभी येसु ख्रीस्त से जीवन जल को प्राप्त कर सकते हैं और वहाँ हमने येसु ख्रीस्त के संग अपनी निकटता का अनुभव किया, जहाँ पिता हमें अपने पापों और घावों से चंगाई प्रदान करते हैं।
यादगारी की इस यात्रा से कलीसिया के लिए मेल-मिलाप और चंगाई की आशा फूटकर, कनाडा और विश्व के हर जगह निकलती है। और वहाँ हम एम्माऊस की राह में शिष्यों को पाते जो येसु ख्रीस्त के संग यात्रा करते हुए अपनी निराशा से नये जीवन का अनुभव किया (लूका. 24.13-35)।
उपनिवेश के विभिन्न रुप
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि जैसे मैंने शुरू में कहा, आदिवासियों के संग यात्रा करना इस प्रेरितिक यात्रा की आधारशिला थी। “स्थानीय कलीसिया और अधिकारियों से मिलन और उनके द्वारा मेरा और मेरे सहयोगियों का स्वागत किया जाना, मुझे अगाध आतिथ्य के अनुभव से भर दिया जिसके लिए मैं उन्हें सच्चे दिल से धन्यवाद अदा करता हूँ”। गर्वनर जनरल, आदिवासी नेताओं और राजनायिक पुलिस अधिकारियों के समक्ष, मैंने परमधर्मपीठ और स्थानीय ख्रीस्तीय समुदायों के संबंध में, मैंने अपनी इच्छा को सुदृढ़ता से व्यक्त किया कि हमें मूलवासियों की संस्कृति को उचित आध्यात्मिक मार्गों के माध्यम प्रसारित करने की आवश्यकता है साथ ही उनके रीति-रिवाजों और उनकी भाषाओं पर ध्यान देना है। इसके साथ ही, मैंने इस बात को पाया कि कैसे आज भी हमारे बीच उपनिवेश के प्ररुप विभिन्न रूपों में व्याप्त हैं, जो हमारी परंपराओं, इतिहास और अपने लोगों के संग हमारी धर्मिक लगाव को, विभिन्नताओं को मिटाने का प्रयास करते हैं। वे केवल वर्तमान परिस्थिति को ध्यान में रखते और बहुधा सबसे संवेदनशील लोगों के प्रति अपने कर्तव्य और उत्तरदायित्वों को अनदेखा करते हैं। अतः यह हमारे लिए आधुनिकता और पौराणिक संस्कृति के बीच, सांसारिक और आध्यात्मिक मूल्यों के मध्य एक संतुलन को स्थापित करना है। संत पापा ने कहा कि और यह हमारे लिए कलीसिया की सीधी प्रेरिताई की चर्चा करता है, जहाँ हम सारी दुनिया में सुसमाचार का साक्ष्य देने और वैश्विक भ्रातृत्व के बीज बोने हेतु भेजे जाते हैं जो स्थानीयता का आदर करता उसकी समृद्ध को प्रसारित करता है। संत पापा अपनी हृदय की मनोभावना को व्यक्त करते हुए पुनः सभी कनाडावासियों के प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव प्रकट कियें।
जीवन का आगे बढ़ना जरूरी
संत पापा ने अपनी तीर्थ के अंतिम और तीसरे पड़ाव, इनयूत में युवाओं और बुजुर्गो से मिलन को आशा से भरा हुआ बतलाया। अपने इस पड़ाव को उन्होंने एक दर्द भरी कहर स्वरुप व्यक्त किया वहाँ उन्होंने बुजुर्गों के जीवन देखा जिन्होंने अपने बच्चों को खो दिया था। “यह एक दर्द भरा क्षण था लेकिन उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ना था, हमें अपने जीवन की गलतियों, हमारे पापों की स्थिति में भी आगे बढ़ने की आवश्यकता होती है”। कनाडा में भी हम समय की निशानियों को युवाओं और बुजुर्गों में वार्ता स्वरूप पाते हैं जहाँ वे इतिहास की यादागारी और भविष्यवाणी को लेकर आगे बढ़ते हैं। कनाडा के आदिवासियों का धैर्य और शांतिमय कार्य सभी मूलवासियों के लिए एक उदाहरण बनें, जिसे वे अपने को बंद न करें लेकिन एक अधिक भ्रातृत्वपूर्ण मानवता हेतु अपना अपरिहार्य योगदान दें, जो सृष्टि को और सृष्टि के निर्माता को प्रेम करना जानता है।
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