कार्डिनल परोलिन ˸ युद्ध कभी अपरिहार्य नहीं है
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
विश्व स्तर पर आयोजित यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब यूक्रेन समेत कई देशों में भयंकर युद्ध एवं तनाव जारी हैं।
संत पापा फ्राँसिस ने रविवार को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में देवदूत प्रार्थना के उपरांत यूक्रेन में पीड़ित लोगों के लिए प्रार्थना का आह्वान किया था तथा यात्रा की तैयारी करनेवालों को धन्यवाद दिया था।
कार्डिनल परोलिन ने वाटिकन न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में बतलाया कि कांग्रेस ने अपने मॉडल के रूप में, 24 जनवरी 2002 को संत पापा जॉन पॉल द्वितीय द्वारा असीसी में बुलाई गई विश्व शांति हेतु प्रार्थना के दिन को लिया है ताकि लोगों के बीच संवाद, सद्भाव और सामंजस्य के लिए विभिन्न धार्मिक परंपराओं के सकारात्मक योगदान को पुष्ट किया जा सके।
संत पापा की प्रेरितिक यात्रा का आदर्शवाक्य है, शांति एवं एकता का संदेशवाहक"। प्रतीक चिन्ह में एक कबूतर और जैतून की डाली है जो शांति के प्रतीक हैं।
कार्डिनल ने कहा कि कांग्रेस की अंतिम घोषणा का मसौदा "विश्व शांति और एक साथ रहने के लिए मानव बंधुत्व" पर दस्तावेज़ पर विशेष जोर देता है, जिसपर संत पापा फ्राँसिस एवं अल अजहर के ग्रैंड इमाम अहमद अल तायेब ने 4 फरवरी 2019 को अबूधाबी में हस्ताक्षर किया था।
यूक्रेन एवं विश्व के विभिन्न देशों में जारी युद्ध तथा संत पापा की प्रेरितिक यात्रा की विषयवस्तु शांति पर गौर करते हुए कार्डिनल परोलिन ने कहा कि युद्ध कभी भी एक अपरिहार्य घटना नहीं है। इसकी जड़ें मानव व्यक्ति के हृदय में हैं, जैसा कि कलीसिया के धर्माचार्य कहा करते थे यह घमंड, अहंकार, अभिमान और लोभ से प्रेरित है। जिनके हृदय कठोर होते एवं दूसरों के लिए नहीं खुल पाते।
उन्होंने बतलाया कि पीछे हटकर, आरोप-प्रत्यारोप एवं धमकी को छोड़कर, आपसी अविश्वास के कारणों को दूरकर, युद्ध को टाला जा सकता है। दुर्भाग्य से इन दिनों सुनने की क्षमता एवं अलग तरह से सोचनेवालों के तर्क को समझने का प्रयास हर स्तर पर कम हो गया है।
अतः उन्होंने आशा व्यक्त की है कि कजाकिस्तान में होनेवाला सम्मेलन मुलाकात एवं वार्ता का अवसर होगा।
कजाकिस्तान एवं वाटिकन के बीच कूटनीतिक संबंध की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए कार्डिनल ने कहा कि इसे दो शब्दों में, निरंतर और फलदायी कहा जा सकता है। परमधर्मपीठ ने सभी सम्मेलनों में हमेशा सक्रिय रूप से भाग लिया है और एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा प्रतिनिधित्व किया है।
मध्य एशिया में कजाकिस्तान पहला देश है जिसने परमधर्मपीठ के साथ 1998 में द्विपक्षीय समझौता पर हस्ताक्षर किया है। यह सितंबर 2001 में पोप जॉन पॉल द्वितीय द्वारा दौरा किया जानेवाला पहला मध्य एशियाई देश भी है। परमधर्मपीठ एवं कजाकिस्तान अभी भी एक साथ काम कर रहे हैं। यह इस तथ्य से प्रदर्शित होता है कि हाल में उपप्रधानमंत्री और विदेशमंत्री मुख्तार तिलुबेर्दी की वाटिकन यात्रा के दौरान, कजाकिस्तान के यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर और वाटिकन के बम्बिनो जेसू बाल अस्पताल के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इस साल कूटनीतिक संबंध का 30वाँ वर्षगाँठ है। इस अवसर पर संत पापा फ्राँसिस की यात्रा के साथ, हम कजाकिस्तान में सेवा कर रहे विदेशी मिशनरियों को वीजा और निवास परमिट जारी करने पर एक पूरक समझौते पर हस्ताक्षर करने की उम्मीद कर रहे हैं।
कजाकिस्तान की कलीसिया पर एक नजर
संत पापा कजाकिस्तान की अपनी यात्रा में वहाँ के स्थानीय काथलिक समुदाय से भी मुलाकात करेंगे और ख्रीस्तयाग अर्पित करेंगे।
कार्डिनल ने कहा कि वहाँ की काथलिक कलीसिया अत्यधिक मूल्यवान है और एक अत्यंत विविध धार्मिक-सांस्कृतिक परिदृश्य के भीतर एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करती है। स्थानीय कलीसिया संत पापा की उपस्थिति से निश्चित रूप से विश्वास, आशा एवं उदारता में नवीनीकृत होने का प्रोत्साहन महसूस करेगी।
उन्होंने आशा व्यक्त की कि कलीसिया, देश के धन्यों ˸ धन्य फादर वदिस्लाव बुकोविंस्की, धन्य फाद. अलेक्सिस जरेस्की और धन्य विशप मेकेता बुदका से प्रेरित होकर साक्ष्य देने के अपने मिशन को जारी रखेगी। इस तरह सभी विश्वासी मिलकर, एक एकजुट, सामंजस्यपूर्ण और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण कर पायेंगे।
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