संत पापाः कजाकिस्तान एक मिलन का देश
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार 21 सितम्बर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
विगत सप्ताह मंगलवार से लेकर बृहस्पतिवार तक मैंने विश्व पारम्परिक धर्मों और उनके नेताओं के संग सातवें मिलन समारोह के अवसर पर मध्य एशिया के एक अति विशाल देश कजाकिस्तान की प्रेरितिक यात्रा की। संत पापा ने कजाकिस्तान के राष्ट्रपति और देश के अन्य सभी अधिकारियों की उदारतापूर्ण प्रयास हेतु जिसके कारण यह प्रेरितिक यात्रा समापन हो सका, अपनी कृतज्ञता के भाव प्रकट किये। उन्होंने कजाकिस्तान की कलीसिया और उसकी देख-रेख में समर्पित धर्माध्यक्षों और सभी सहयोगियों के कार्य हेतु उनका धन्यवाद अदा किया।
कजाकिस्तान की यात्रा का उद्देश्य
संत पापा ने कहा कि कजाकिस्तान की प्रेरितिक यात्रा का मुख्य उद्देश्य विश्व के पारंपरिक धर्मों के नेताओं से मिलन था। इसकी पहल विगत बीस सालों के की जा रही थी जो अपने को विश्व के लिए एक मिलन और वार्ता के स्थल स्वरुप पेश करता है, विशेष कर धार्मिक स्तर पर, जो इसे शांति और भ्रातृत्व के एक अग्रिम नायक स्वरुप प्रस्तुत करता है। यह इस सम्मेलन का सातवां संस्करण था। एक देश जिसकी आजादी के 30 साल हो चुके हैं, जबकि वह पहले ही हर तीन साल में इस सम्मेलन को सात बार आयोजित कर चुका है। इसका अर्थ धर्म को विश्व की धुरी पर रखना है जहाँ हम एक-दूसरे को सुनते और उनकी विविधता का सम्मान करते हैं। संत पापा ने इसके लिए कजाक सरकार की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि यह सापेक्षवाद नहीं है, बल्कि यह सुनना और सम्मान करना है। कजाक सरकार ने खुद को नास्तिक शासन के जुए से मुक्त करने के बाद, अपने को भ्रमित किये बिना, स्पष्ट रूप से कट्टरवाद और अतिवाद की निंदा की और अपने को एक संतुलित और एकता के देश स्वरुप पाया।
दूर-दर्शिता का प्रभाव
संत पापा ने कहा कि इस सम्मेलन ने सन् 2019 में, अबूधाबी में हुए मानव भ्रातृत्व के दस्तावेज पर चर्चा की। उन्होंने कहा,“मैं इसे संत योहन पौलुस द्वितीय द्वारा शांति के लिए ऐतिहासिक अंतरधार्मिक संगोष्ठी का एक अगला कदम कहता हूँ जिसका आयोजन उन्होंने सन् 1986 में असीसी में किया गया था। दूरदर्शिता नहीं होने के कारण इस आयोजन की बहुत आलोचना की गई थी।” संत पापा फ्रांसिस ने इस संदर्भ में संत पापा योहन तृतीय और संत पापा पौलुस 6वें की दूर-दर्शिता को घोषित किया जो विश्व के कई महान धर्मों और हस्तियों से मेल खाते हैं जिसमें से एक महात्मा गांधी हैं। हम कैसे उन असंख्य शहीदों, सभी देशों और भाषा-भाषियों के नर और नारियों को याद नहीं कर सकते हैं जिन्होंने ईश्वरीय शांति और भ्रातृत्व के प्रति निष्ठावान बने रहते हुए अपने प्राणों की आहूति दी। उन्होंने कहा, “हम सभी जानते हैं, गंभीर क्षण महत्वपूर्ण हैं, लेकिन फिर भी यह दैनिक प्रतिबद्धता है, यह ठोस साक्ष्य है जो सभी के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण करता है”।
संत पापा ने कहा कि इस सम्मेलन के अलावे इस प्रेरितिक यात्रा ने मुझे कजाकिस्तान के अधिकारियों और वहाँ की सजीव कलीसिया से भेंट करने का अवसर दिया।
मिलन का देश
उन्होंने कजाकिस्तान के अधिकारियों की उदारता की पुनः याद की और उन्हें मिलन का एक देश निरूपित करते हुए कहा कि वहाँ वास्तव में, करीबन एक सौ पचास विभिन्न जातियों का आपसी सह-अस्तित्व है जो करीब अस्सी भाषाएं बोलते हैं। “यह एक बुलाहट है, जो इसकी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास का प्रतिफल है, जिसका स्वागत और आलिंगन करते हुए, हमें इसे प्रोत्साहित और मदद करने की जरुरत है”। मुझे उम्मीद है कि एक ऐसे परिपक्व लोकतंत्र का निर्माण जारी रहेगा जो समग्र रूप से समाज की जरूरतों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि यह अपने में कठिन कार्य है जो समय लेता है लेकिन कजाकिस्तान ने इस बात का एहसास किया है और सकारात्मक कदम लेते हुए परमाणु हथियारों को “न” कहा है, वह अपने अच्छी ताकतों और पर्यावरण की नीतियों का विकास कर रहा है। यह एक साहसपूर्ण निर्णय है। ऐसे समय में जब कष्टदायक युद्ध हमें परमाणु हथियारों के बारे में सोचने को प्रेरित करते हैं, जबकि इस देश ने शुरू से ही परमाणु हथियारों को “नहीं” कहा है।
सुसमाचार का प्रचार, विश्वासमय जीवन साक्ष्य में
संत पापा ने कजाकिस्तान की कलीसियाई समुदाय के बारे में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे वहाँ के समुदाय से मिलकर खुशी हुई, वे अपने में आनंद और उत्साह से भरे हैं। “उस विशाल देश में काथलिकों की संख्या कम है”। लेकिन ऐसी परिस्थिति में भी यदि विश्वास के जीवन को जीया जाये तो यह सुसमाचार प्रचार को फलहित करेगा। “छोटे समुदाय के रुप में हमारा धन्य होना, खमीर बनना, नमक और दीये बनना जहाँ हम मानवीय बातों पर नहीं वरन सिर्फ ईश्वर के हाथों में अपनी निर्भरता को पाते हैं”। उन्होंने कहा कि ख्रीस्तियों का अल्पसंख्यक होना उन्हें दूसरे धर्मालंबियों के संग अपने संबंधों को विकसित करने की मांग करता है जहाँ वे भ्रातृत्व में बढ़ते हैं। एक छोटा समुदाय लेकिन वह अपने में बंद, सुरक्षात्मक न हो बल्कि पवित्र आत्मा में विश्वास करते हुए अपने को खुला रखें जो जहां चाहते स्वतंत्र रूप में हमें ले चलते हैं। संत पापा ने वहाँ की पवित्र ईश प्रजा, शहीदों की याद की जिन्हें विश्वास के कारण 30 सालों तक नास्तिकता का कष्ट सहना पड़ा। विश्वास के कारण वे प्रताड़ित किये गये, जेल में डाले गये और मार डाले गये।
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि उन छोटे विश्वासी समुदाय के साथ हमने नूर-सुल्तान, अति-आधुनिक वास्तुकला से घिरा, एक्सपो 2017 स्थल में यूखारिस्तीय बलिदान अर्पित किया। यह पवित्र क्रूस का त्योहार था जहाँ हमने इस बात पर चिंतन किया कि प्रगति और प्रतिगमन आपस में जुड़े हुए हैं, येसु का क्रूस हमारे लिए सदैव मुक्ति का स्रोत बनता है। यह हमारे लिए आशा की एक निशानी है क्योंकि यह ईश्वर के प्रेम, करूणा और निष्ठा से जड़ित है। संत पापा ने अपने प्रेरितिक यात्रा के लिए पुनः ईश्वर का धन्यवाद देते हुए कजाकिस्तान के भविष्य के लिए प्रार्थना की कि वह तीर्थयात्री कलीसिया स्वरुप अधिक फलदायी हो।
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