कजाकिस्तान में पोप की यात्रा का दूसरा दिन
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
उन्होंने उन्हें अपनी यात्रा का मकसद बतलाते हुए कहा कि वे इस देश में शांति और वार्ता की चाह लेकर एकता के तीर्थयात्री के रूप में आये हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी याद दिलाया था कि हमारी दुनिया को शांति और एकता की जरूरत है।
वार्ता और मिलन की आवश्यकता पर बल देते हुए संत पापा ने नेताओं का ध्यान युद्ध और अशांति की ओर आकृष्ट किया तथा कहा, “हमें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जो आपसी समझ और वार्ता में बढ़ते हुए शांतिमय विश्व की स्थापना कर सकें। इसके लिए हमें समझ, धैर्य और वार्ता की जरुरत है।" संत पापा ने भविष्य की चिंता करने का प्रोत्साहन देते हुए कहा कि आनेवाली पीढ़ी के युवाओं के लिए मानवता के बीज बोना हमारे ऊपर निर्भर करता है।
गौर किया जाए कि विश्व स्तर पर आयोजित यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब यूक्रेन समेत कई देशों में भयंकर युद्ध एवं तनाव जारी हैं।
विश्व और पारंपरिक धर्मों के नेताओं का सातवाँ कांग्रेस
कजाकिस्तान में प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन 14 सितम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने नूर सुल्तान के आजादी भवन में विश्व और पारंपरिक धर्मों के नेताओं के सातवें कांग्रेस में भाग लिया। हर तीन साल में होनेवाले कॉग्रेस के उद्घाटन के पूर्व मौन प्रार्थना की गई। संयुक्त राज्य अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 के दुखद हमलों के मद्देनजर और 2002 में संत पापा जॉन पॉल द्वितीय की ‘असीसी की भावना' नामक दूसरी बैठक के बाद विश्व और पारंपरिक धर्मों के नेताओं की कांग्रेस 2003 में अस्तित्व में आई।
धार्मिक, सांस्कृतिक, नागरिक, सरकारी और गैर-सरकारी प्रतिनिधियों से बनी कांग्रेस में 50 देशों के 100 से अधिक प्रतिनिधिमंडल भाग ले रहे हैं। राष्ट्रपति कसीम-जोमार्त टोकायेव के निमंत्रण पर, संत पापा फ्राँसिस इस सभा में व्यक्तिगत रूप से भाग लेने के लिए कजाकिस्तान पहुँचे हैं ताकि विश्व शांति को बढ़ावा देने हेतु मुलाकात और संवाद की जा सके। विश्व और पारंपरिक धर्मों के नेताओं के सातवें कांग्रेस की विषयवस्तु हैं, "कोविड-19 महामारी के बाद की अवधि में आध्यात्मिक एवं सामाजिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने हेतु विश्व और पारंपरिक धर्मों के नेताओं की भूमिका।"
भ्रातृत्व के साथ पोप का सम्बोधन
उद्घाटन समारोह 10 बजे एक आजादी भवन के बड़े गोल टेबल पर शुरू हुआ। कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कसीम-जोमार्त तोकायेव ने कॉन्ग्रेस का उद्घाटन किया। तत्पश्चात् संत पापा फ्राँसिस ने कॉन्ग्रेस को सम्बोधित किया। कांग्रेस में अपने भाषण को, संत पापा ने सभी को "भाइयो और बहनो" ... कहकर संबोधित करते हुए शुरू किया। उन्होंने अपने भाषण में, सच्ची धार्मिकता, धार्मिक स्वतंत्रता, दुर्बलता एवं जिम्मेदारी, शांति की चुनौती, हमारे आमघर की देखभाल, एक साथ आगे बढ़ने आदि जैसे महत्वपूर्ण आधुनियों विषयों की ओर नेताओं का ध्यान आकृष्ट किया।
धर्मों की भूमिका
रेलिजन ऑर्ल्ड के संस्थापक भव्य श्रीवास्तव जो विश्व और पारंपरिक धर्मों के नेताओं के सातवें कांग्रेस में भाग ले रहे हैं, वाटिकन न्यूज को बतलाया कि कॉन्ग्रेस में नेता किन मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "रेलिजन कॉन्ग्रेस के पीछे जो सोच हैं वो यही है कि दुनिया में आज जो हालात हैं उनको बदलने के लिए धर्मगुरू क्या कर सकते हैं।" उन्होंने कहा कि "महामारी के बाद इंसान के अंदर कहीं न कहीं एक प्रकार का भय समा गया था कि भगवान या फिर धार्मिक संस्थाएँ क्या कर रही हैं कि वो उन्हें बचा नहीं पा रही हैं। उसके बाद रूस यूक्रेन का मामला खुलकर सामने आया, उसके बाद से धर्म में कसमसाहट की नजर आ रही थी। ऐसे दौर में यहाँ हम देखते हैं कि पोप फ्राँसिस या फिर ग्रैंड ईमाम आते हैं और धर्म पर खुलकर बात करते हैं तो हममें एक आशा जगती है।"
श्रीवास्तव ने आज की परिस्थिति पर गौर करते हुए कहा कि इस माहौल में एक चीज देखने को मिल रही है। धर्मों में एक निश्चितता आ रही है कि समाज की जो चुनौतियाँ हैं या मानव के लिए जो चुनौतियाँ बनती जा रही हैं उसपे एक साथ कार्य करने की जरूरत है। उन्होंने स्वीकार किया कि धर्मों में विविधता तो हमेशा रहेंगी, फिर भी उनके लिए जरूरी है कि वे एक साथ काम करें ताकि जो मानवजनित चुनौतियाँ हैं उनसे लड़ा जा सके। और बड़ी चुनौतियाँ जो दुनिया में सिर उठा रही हैं उनको सिर उठाने से पहले ही रोका जा सके।
रेलिजन ऑर्ल्ड के संस्थापक ने संत पापा के शब्दों का हवाला देते हुए मानव की जिम्मेदारी की याद दिलायी। उन्होंने कहा "हमें देखना होगा कि धर्म की आजादी कितनी जरूरी है और कजाकिस्तान जैसे देश में भी इसका बड़ा मोल है, साथ ही साथ, सारी मानव जाति को अपनी जिम्मेदारियाँ लेनी होंगी और किसी भी निरंकुश व्यवहार से बचना होगा।" जिसके लिए धर्मगुरूओं एवं संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने गंभीरता से स्वीकार किया कि धर्म की बहुत बड़ी भूमिका है।
श्रीवास्तव ने बतलाया कि वे भारत में धार्मिक और आध्यात्मिक संगठनों के साथ सामाजिक बदलाव के मुद्दों पर काम करना चाहते हैं।
धर्मगुरूओं एवं नेताओं से पोप की व्यक्तिगत मुलाकात
कॉन्ग्रेस के उद्घाटन एवं अधिवेशन के उपरांत संत पापा फ्राँसिस ने कुछ धर्मगुरूओं एवं नेताओं से व्यक्तिगत मुलाकात की।
14 सितम्बर को दूसरे महत्वपूर्ण कार्यक्रम के रूप में संत पापा फ्राँसिस ने नूर सुलतान के एक्सपो ग्राऊंड में शाम पौने पाँच बजे समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया। क्रूस विजय महापर्व के अवसर पर अर्पित इस मिस्सा बलिदान में कजाकिस्तान के काथलिकों ने भारी संख्या में भाग लिया। ख्रीस्तयाग का अनुष्ठान लातीनी एवं रूसी भाषाओं में किया गया।
ख्रीस्तयाग के अंत में अस्ताना में संत मरिया असुन्ता महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष तोमाश पेता ने पवित्र मिस्सा अर्पित करने हेतु संत पापा फ्राँसिस को धन्यावाद दिया तथा शांति एवं एकता के संदेशवाहक बनने के लिए उनसे आशीष की कामना की। संत पापा फ्राँसिस बृहस्पतिवार को अपनी यात्रा समाप्त कर रोम वापस लौटेंगे।
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