संत पापाः हमारा जीवन, ईश्वर से मिलन का स्थल
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार, 19 अक्तूबर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
इन दिनों की धर्मशिक्षा माला में हम अच्छे आत्म-परीक्षण हेतु आवश्यक कारकों पर विचार मंथन कर रहे हैं। हम अपने दैनिक जीवन में सदैव निर्णय ले रहे होते हैं और निर्णय लेने हेतु हमें आत्म-परीक्षण के मार्ग में चलने की जरुरत है। हर महत्वपूर्ण कार्य की अपनी “रूपरेखा” है जिस हमें जानने की जरुरत है जिससे वह हमारे लिए मनमाफिक फल उत्पन्न कर सके। आज हम इसके एक अन्य अति महत्वपूर्ण तत्व पर आवलोकन करेंगे जो हमारे “व्यक्तिगत जीवन की कहानी” है।
मानव जीवन, एक किताब
संत पापा ने कहा कि हमारा जीवन एक अति मूल्यवान “किताब” है जो हमें दी गई है, एक किताब जिसे दूर्भाग्यपूर्ण ढ़ंग से बहुत कोई नहीं पढ़ते हैं, या ऐसा अपने मरण की स्थिति में करते तबतक बहुत देर हो चुकी होती है। अपने जीवन की उस किताब में व्यक्ति उन सारी बातों को पाता है जिसे वह व्यर्थ ही दूसरी जगहों में खोजता है। संत अगुस्टीन, सत्य की खोज करने वाले एक महान साधक ने अपने जीवन का पुनरावलोकन बारंबार करते हुए इस तथ्य को समझा, जहाँ उन्होंने मौन और विवेकपूर्ण ढ़ंग से, गहरे रुप में ईश्वर की उपस्थिति को पाया। अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर उन्हें इस बात को गौर किया, “आप मेरे अंदर थे और मैं बाहर था, और वहाँ मैंने आप को खोजा, मैं, अप्रिय ढ़ंग से, आप के द्वारा बनाई गई सुन्दर चीजों के बीच लापरवाही ढ़ंग से भाग-दौड़ की। आप मेरे संग थे, किन्तु मैं आप के साथ नहीं था” (Confessions X, 27.38) । अतः वे हमें यह निमंत्रण देते हैं कि हम अपने आंतरिक जीवन की थाह लें जिससे हम उसे प्राप्त कर सकें जिसकी हम खोज करते हैं, “आप अपनी ओर लौटें। मनुष्य के अंतरत्मा में सच्चाई निवास करती है”। (On True Religion, XXXIX, 72)। संत पापा ने इस बात पर जोर देते हुए कह, “आप अपने जीवन की ओर लौटें। अपने जीवन का अध्ययन करें, आपके जीवन का मार्ग कैसे था। शांति में, आप अपने जीवन में प्रवेश करें।”
जीवन की विषाक्त बातें
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम भी बहुत बार अगुस्टीन की तरह अनुभव करते हैं, हम अपने ही विचारों में कैद पाते हैं जो हमें अपने से दूर कर देती है, घिटा-पिटा संदेश हमें हानि पहुंचाता है,“मैं अपने में बेकार हूँ, सभी चीजें मेरे विरूद्ध जाती हैं”, “मैं कुछ भी विशेष नहीं कर पाऊँगा” इत्यादि, इत्यादि। निराशा के ये शब्द हमें नीचे गिरा देते हैं। अपने जीवन इतिहास को पढ़ने का अर्थ इन “विषाक्त” बातों की उपस्थिति को पहचाना है, बल्की हमें जीवन की कहानी को विस्तृत करना, अन्य दूसरी बातों को देखना, उन्हें समृद्ध बनाना, जटिलता का अधिक सम्मान करना, साथ ही उन्हें विवेकपूर्ण तरीकों को समझने की कोशिश करना है जो हमारे जीवन में ईश्वर के कार्य को व्यक्त करता है।
अच्छी चीजों को देखें
संत पापा ने अपने एक अनुभव को साझा करते हुए कहा कि एक माहिला अपनी नकारात्मक विचारों के लिए इतनी प्रसिद्ध थी उसे जानने वाले कहते थे कि उसे उसकी नकारात्मकता के लिए नोबल पुरस्कार दिया जायेगा। उसमें बहुत सारे दूसरे अच्छे गुण थे लेकिन वह कटुता से ग्रस्ति थी। वह हर समय किसी न किसी बात के लिए शिकायत करती थी। लेकिन एक व्यक्ति ने उससे कहा कि इसकी क्षतिपूर्ण हेतु आप अपने बारे में कुछ अच्छा कहें... और इस भांति धीरे-धीरे वह अपने में सकारात्मकता का विकास किया। हमें अपने जीवन का अध्ययन करते हुए न केवल बुरी चीजों को बल्कि अच्छी चीजों को भी देखना है जिसे ईश्वर नें हममें रोपा है।
संत पापा ने कहा कि आत्म-परीक्षण एक वर्णनात्मक दृष्टिकोण का चुनाव करता है, यह समय की पाबंदी पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है, बल्कि इसे एक संदर्भ में सम्मिलित करता है, मेरे विचार कहाँ से आ रहे हैंॽ मैं जो अनुभव कर रहा हूँ वह कहाँ से आ रहा हैॽ यह मुझे किधर ले जा रहा हैॽ मैंने ऐसा पहले अनुभव कब कियाॽ क्या मैं ऐसा पहली बार अनुभव कर रहा हूँ या मैंने इसे पहले भी अनुभव किय हैॽ पहले की तुलना में यह मुझमें अधिक दबावपूर्ण क्यों हैॽ इसके द्वारा जीवन मुझे क्या कहती हैॽ
अपने जीवन को खोलें
जीवन की घटनाओं का वर्णन करना के द्वारा हम महत्वपूर्ण बारीकियों और विवरणों को समझते है, जो अपने को अब तक छुपाए गए मूल्यवान सहायक स्वरूप प्रकट कर सकते हैं। उदाहरण के लिए संत पापा ने कहा कि एक पत्र, एक सेवा, एक मिलन पहली नजर में हमारे लिए कम महत्वपूर्ण लगते हैं, समय के साथ वे हमें शांति, जीवन की खुशी और अच्छे कार्यों की ओर अग्रसर करते हैं। रूक कर इन बातों की थाह लेना, उन्हें समझना हमारे लिए आत्म-परीक्षा का महत्वपूर्ण भाग है, यह उन कीमती गुप्त मोतियों को जमा करना है जिसे ईश्वर ने हमारी भूमि पर बिखेर कर रखा है।
ईश्वर की कार्य शैली गुप्त है
संत पापा ने कहा, “अच्छी चीजें छिपी, शांत रहती हैं, जो धीरे से और लगातार खुदाई की मांग करती हैं। यह इसलिए क्योंकि ईश्वर की कार्य शैली विवेकपूर्ण है, ईश्वर अपने को छुपाये रखना पसंद करते हैं, वे हमें अपने को नहीं थोपते, यह हमारी सांसों की भांति है-हम इसे नहीं देखते हैं लेकिन यह हमें जीवन प्रदान करती है और इसे खोने पर ही हम इसकी कमी महसूस करते हैं।
अतीत को जानें
अपने जीवन को पुन-पढ़ने में अभ्यस्त होना हमारे देखने के तरीकों को शिक्षित करती है, यह हमें धारदार बनाती है, जिसके फलस्वरुप हमें अपने रोज दिन के जीवन में ईश्वर के छोटे कार्यों और चमत्कारों को देखने के योग्य बनते हैं। जब हम यह अनुभव करते तो हम दूसरी बातों को देखते और समझते हैं जो हमारी आंतरिक स्वाद, शांति और सृजनात्मकता को सुदृढ़ बनाती है। इन सारी चीजों से ऊपर हम अपने को विषाक्त भरे भावों से मुक्त होता पाते हैं। यह उचित ही कहा कहा गया है कि व्यक्ति जो स्वयं के अतीत को नहीं जानता वह उस दुहराने की गलती करता है। यह उत्सुकता पूर्ण है कि यदि हम अपने अतीत की उस राह को नहीं जानते जहाँ हमने चला है तो हम उसका चक्कर लगाते रहते हैं। व्यक्ति जो चक्कर लगाते रहता है वह कभी आगे नहीं बढ़ता है, उसी भांति जैसे कुत्ता अपनी दुम को काटता हो।
संत पापा ने कहा कि हम अपने में यह पूछ सकते हैं, क्या मैंने अपने जीवन के बारे में किसी को बताया हैॽ यह अपने में एक अति सुन्दर और अंतरंग वार्ता के तरीकों में से एक है जहाँ हम अपने जीवन को दूसरों के संग साझा करते हैं। यह हमें अपने जीवन की अज्ञात बातों को खोजने में, जो छोटी और साधारण हैं जानने में मदद करती है, जैसे की धर्मग्रंथ हमें कहता है, “छोटी चीजों के माध्यम हम विशेषकर बड़ी चीजों को जानते हैं (लूका. 16.10)।
संतगण हमारे सहायक
संत पापा ने कहा कि संतों का जीवन भी हमारे लिए एक मूल्यवान सहायता बनती है जो हमें ईश्वरीय शैली को अपने जीवन में जनाने हेतु मदद करती है, वे हमें उनके कार्य करने के तरीके को बतलाते हैं। कुछ संतों के व्यवहार हमें चुनौती देते हैं, वे हमें नये अर्थ और अवसरों की ओर इंगित करते हैं। उन्होंने कहा कि लोयोला के संत इग्नासियुस के साथ ऐसा ही हुआ। अपने जीवन की आधारभूत खोज के बारे में वर्णन करते हुए वे एक महत्वपूर्ण व्याख्यान को संलग्न करते हैं, “अपने अनुभव के आधार पर वे इस निष्कर्ष पर पहुँचें कुछ विचारों ने उन्हें उदास किया और कुछ ने आनंदित, धीरे-धीरे उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि अलग-अगल आत्माएं उनके भीतर हलचल उत्पन्न करती हैं” (Autobiography, no. 8)।
हृदय में ईश का ज्ञान
संत पापा ने कहा कि आत्म-परीक्षण अपने में सांत्वना और मायूसी की एक कहानी है जिसे हम अपने जीवन के घटनाक्रम में अनुभव करते हैं। यह हृदय है जो हमें ईश्वर के बारे में कहता है और हमें उसकी भाषा को सीखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हम अपने हृदय की जाँच करते हुए अपने आप से पूछें, आज मेरे हृदय में क्या हुआॽ कुछ इसके अतःकरण की जाँच कहते हैं जहाँ हम अपने पाप-गलितीयों के बारे में विचार करते हैं। मेरे अंदर क्या हुआ, क्या मैंने खुशी का अनुभव कियाॽ मुझे किस बात से खुशी हुईॽ क्या मैं उदास थाॽ मुझे किस बात से दुःख हुआॽ अतः हम आत्म-परीक्षण में सीखते हैं कि मेरे अन्दर क्या होता है।
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