द्वितीय वाटिकन महासभा और कलीसिया ˸ 'सभी की प्यारी माता"
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
"काथलिक कलीसिया, इस ख्रीस्तीय एकता महासभा के माध्यम से धार्मिक सत्य का मशाल उठाकर, खुद को सभी की प्रेमी, दयालु, धैर्यवान, करूणामय और अच्छाई से भरी माता के रूप में दिखाना चाहती है ..."
संत पापा जॉन 23वें द्वारा के द्वितीय वाटिकन महासभा का उद्घाटन किए साठ साल बीत चुके हैं।
11 अक्टूबर 1962 को, संत पेत्रुस प्रांगण में, 2,449 धर्माध्यक्षों और भारी भीड़ के सामने लैटिन में 37 मिनट के सम्बोधन में, पोप ने एक सपना और एक दृढ़ संकल्प को पूरा करने हेतु प्रेरित किया।
पोप जॉन 23वें उस जहाज को बंदरगाह पर नहीं ला सके, जो उस दिन रवाना हुआ था।
हालांकि वे एक शांत और दृढ़ गति के साथ तथा समय के सकारात्मक आयाम के चिन्ह को परखने की शक्ति द्वारा, निर्णय लेकर बहुत कुछ कर पाते, जिसको उनके पूर्वाधिकारी ने छोड़ दिया था। उन्होंने सिर्फ महासभा का उद्घाटन किया।
उनके उत्तराधिकारी संत पापा पौल छटवें ने वाटिकन द्वितीय महासभा को पूर्णता तक पहुँचाया, लगभग सर्वसम्मति से महासभा के सभी दस्तावेजों को 'चमत्कारिक' रूप से सफलता दिलायी।
उसके बाद के दशक में संत पापा पौल छटवें ने आंतरिक प्रतिस्पर्धा एवं विभाजन का सामना किया, वे धीरज के शहीद बने, ताकि पेत्रुस के जहाज को स्थिरता पूर्वक आगे ले सकें। उन्होंने इसे इस तरह से स्थिर किया ताकि अनियंत्रित होकर आगे बढ़ने के कारण पीछे की चुनौतियों या चट्टान पर पड़कर, जहाज सतह की ओर न बढ़े।
60 सालों बाद भी यह यात्रा समाप्त नहीं हुई है
संत पापा फ्राँसिस ठोस रूप से उनके पदचिन्हों पर चल रहे हैं, यद्यपि आधी शताब्दी बाद उनके उत्तराधिकारी बनने के कारण, महासभा के धर्माचार्य या ईशशास्त्री के रूप में उन्हें सीधे अनुभव नहीं हुआ है।
वे ऐसा सिर्फ इस बात को याद करते हुए कर पाते हैं कि कलीसिया आज के स्त्री पुरूषों के लिए सुसमाचार की घोषणा करने के लिए ही अस्तित्व में है।
रोम के वर्तमान धर्माध्यक्ष की शिक्षा में 60 साल पहले संत पापा जॉन 23वें द्वारा कहे गये शब्द प्रतिबिम्बित होते हैं ˸ हमें कलीसिया सभी की प्यारी माता के चेहरे का साक्ष्य देना है, जो सौम्य, धैर्यवान, करुणामय और अच्छाई से भरी है" जो निकटता और कोमलता में सक्षम है, अंधेरे में और जरूरतमंद लोगों के साथ जाने में समर्थ है।
एक कलीसिया जो खुद पर और सांसारिक शक्ति पर भरोसा नहीं करती या मीडिया की प्रासंगिकता का पीछा नहीं करती, लेकिन विनम्रतापूर्वक खुद को प्रभु के पीछे रखती एवं केवल उन पर भरोसा करती है।
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