संत पापाः जीवन के स्रोत की खोज करें
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 04 नवम्बर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने बहरीन की प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन सकहीर शाही दरबार के मस्जिद में बहरीन मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवियों से मुलाकात की।
संत पापा ने मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवियों को प्रार्थनामय शांति का अभिवादन करते हुए कहा कि शांति आप सबों के ऊपर उतरे और निवास करें जिससे आप इसे दूसरों तक ले जाने में सक्षम हों।
ईश्वर शांति के जनक
उन्होंने कहा कि ईश्वर शांति के स्रोत हैं। वे हमें सभी जगह अपनी शांति का माध्यम बनने में मदद करें। ईश्वर की शांति कभी युद्ध की कामना नहीं करती है, कभी घृणा प्रसारित नहीं करती और न ही कभी हिंसा का समर्थन करती है। हम जो उन पर विश्वास करते, मेल-मिलाप, धैर्य और वार्ता के मार्ग का चुनाव करते हुए उनकी शांति को प्रसारित करने हेतु बुलाये जाते हैं जो सह-अस्तित्व हेतु ऑक्सीजन का कार्य करता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा,“यही धार्मिकता का सबसे प्रभावकारी मार्ग है।” शांति की शुरूआत भ्रातृत्व से होती है जो अन्याय और असामानता के विरूध संघर्ष करते हुए आगे बढ़ती है। यह दूसरों के हाथों को अपने में लेने से स्थापित होती है। शांति को हम सिर्फ घोषित नहीं कर सकते हैं बल्कि हमें चाहिए कि हम इसे जड़ के रूप में पनपने में मदद करें। यह तब संभव होता है जब हम असामानता और भेदभाव को अपने बीच से उखाड़ते जो हमारे बीच अस्थायित्व और शत्रुता उत्पन्न करती है।
संत पापा ने मुस्लिम समुदाय के द्वारा मिले निमंत्रण हेतु उनका धन्यवाद अदा करते हुए कहा कि मैं आप के बीच एक विश्वासी भाई की भांति, शांति के तीर्थ हेतु आया हूँ, जिससे हम अस्सीसी के संत फ्रांसिस के मनोभावों के अनुरूप एक साथ यात्रा कर सकें। वे कहा करते थे, “जिस भांति तुम मुंह से शांति घोषित करते हो, तुम यह निश्चित करो कि वह शांति तुम्हारे हृदय में विराजती हो।” संत पापा ने बहरीन में स्वागत के रिवाज की प्रंशसा करते हुए कहा कि अतिथ्य का भाव केवल हस्तमिलन में नहीं बल्कि हृदय के निकट हाथों को लेना है जो स्नेह के भाव प्रकट करता है। “यह स्वयं को दूर रखना नहीं बल्कि दूसरे के हृदय में प्रवेश करने को व्यक्त करता है। मैं इसी मुद्रा में आप सबों को भी अपनी ओर से अभिवादन करता हूँ।”
भ्रातृत्वपूर्ण मिलन जरुरी
संत पापा ने कहा कि हमें एक-दूसरे को जानते, समझते, सम्मान करते हुए भ्रातृत्वपूर्ण मिलन में आगे बढ़ने की आवश्यकता है। हमें अपने इतिहास की पुरानी बातों, पूर्वाग्रहों और नसमझियों को भूलकर शांति के स्रोत ईश्वर में भ्रातृत्वपूर्ण भविष्य की ओर बढ़ने की जरुरत है। यदि हम अपनी दूरियों में अलग-थलग बने रहते तो यह संभव नहीं है। उन्होंने इम्माम अली को विचारों को साझा करते हुए कहा,“दो तरह के लोग हैं या तो वे एक धर्म में भाई-बहनें हैं या मानवता में नर और नारियाँ।” अतः हम दिव्य योजना में उन लोगों की सेवा में अपने को सुपुर्द करें जिन्हें इस दुनिया में हमें सौंपा गया है। संत पापा ने अतीत की बातों को भूलने औऱ पारस्परिक समझ में बढ़ने का आहृवान किया जिससे दुनिया में शांति, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और नौतिक मूल्यों को बढ़ावा मिल सकें। “धार्मिक नेताओं के रुप में इस घायल और विभाजित विश्व में यही हमारा उत्तरदायित्व है जहाँ हम आशा और जीवन को बढ़ावा देने हेतु बुलाये गये हैं।”
ईश्वर से दूरी बुराई की शुरूआत
संत पापा ने अपने कल के संबोधन में किये गये “जीवन वृक्ष” की चर्चा की जो बहरीन की सूखी मरूभूमि में गहराई से अपने लिए जल संचित करती है, यह हमारे लिए मिलन और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का बोध करती है। उन्होंने धर्मग्रंथ बाईबल में वर्णित वाटिका के वृक्ष का जिक्र किया जो सारी सृष्टि में एक सामंजस्यपूर्ण मिलन को व्यक्त करती है। जब से मानव ने सृष्टिकर्ता की आज्ञाओं का उल्लंघन किया तब से सारी समस्याएं और असंतुलनों की शुरूआत हुई। संत पापा ने कहा कि बुराई की शुरूआत ईश्वर का परित्याग करने से हुई और इस भांति हम दो सावलों को सदैव अपने लिए चुनौती स्वरुप पाते हैं- तुम कहाँ होॽ (उत्पि.3.9) तुम्हारा भाई कहाँ हैॽ (उत्प.4.9)
जीवन के स्रोत की खोज
संत पापा ने कहा कि सामाजिक, अंतरराष्ट्रीय, आर्थिक औऱ व्यक्तिगत बुराइयों के साथ-साथ वर्तमान पर्यावरण संकट, सारी चीजें हमारे लिए ईश्वर और अपने पड़ोसी से उत्पन्न हुई दूरियों के कारण आती हैं। अतः हमारा अपरिहार्य कर्तव्य खोये हुए जीवन स्रोत को खोजने में मदद करना है, जो हम नर और नारियाँ को उस ईश्वर की आराधना करने हेतु अग्रसर करता है जिन्होंने पृथ्वी को रचा है।
दो हथियारः प्रार्थना और भ्रातृत्व
उन्होंने कहा कि हम इसे प्रार्थना और भ्रातृत्व के माध्यम करते हैं। हमारे लिए ये दो हथियार हैं जो अपने में साधारण लेकिन प्रभावकारी हैं। इसके आलावे दूसरे प्रलोभनों, शक्ति, ताकत और धन में पड़ना, ईश्वर के शांतिमय नाम का अनादर करना है। संत पापा ने कहा कि हम अपने पूर्वजों के ज्ञान को घोषित करने हेतु बुलाये जाते हैं जो ईश्वर और पड़ोसी को सभी चीजों से बढ़कर महत्व देना है। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि जीवन के इस स्रोत को हम किस भांति खोजते हैं यदि ऐसा नहीं होता तो मानवता सूखी और मृत रहेगी। उन्होंने कहा कि आज हमें अपने वचनों की अपेक्षा अपने कार्यों के माध्यम साक्ष्य देने की जरुरत है। “ईश्वर और मानवता के सामने हमारा उत्तरदायित्व बहुत बड़ा है।” आब्रहम की संतानों के रूप में हम अपने दायरे से बाहर जाते हुए सारे मानव समुदाय की चिंता करने हेतु बुलाये जाते हैं।
संत पापा ने कहा, “आइए हम एक दूसरे का समर्थन करें, हम आज की बैठक का अनुसरण करते हुए एक साथ यात्रा करें।” ऐसा करना हमें सर्वशक्तिमान ईश्वर की निगाहों में धन्य घोषित करेगा जो अपने प्रेम को सबसे छोटे और कमजोरों में व्यक्त करते हैं, जो अंधेरी रातों के बाद प्रकाश और शांति के उदय होने की की प्रतीक्षा करते हैं।
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