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संत पापा फ्रांसिस बहरीन की प्रेरितिक यात्रा , एकतावर्धक सम्मेलन में संत पापा फ्रांसिस बहरीन की प्रेरितिक यात्रा , एकतावर्धक सम्मेलन में  

संत पापाः धार्मिक नेता मानवता की सेवा करें

संत पापा फ्रांसिस ने बहरीन की प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन एकतावर्धक सम्मेलन में सहभागी हो रहे धार्मिक नेताओं को संबोधित कर उन्हें मानवता की सेवा करने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 4 नवम्बर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने बरहीन की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन सकहीर शाही स्थल के अल-फिदा प्रांगण में एकतावर्धक वार्ता सम्मेलन में सभी धार्मिक नेताओं को संबोधित किया।

संत पापा ने कहा कि बहरीन का अर्थ है “दो समुद्र”, जो हमें समुद्री पानी के बारे में चिंतन करने को प्रेरित करता है, जहाँ हम देशों और सुदूर लोगों से अपने को जुड़ता पाते हैं। एक प्राचीन कहावत है, “भूमि हमें अलग करती, समुद्र हमारा मेल कराती है। ऊपर से नीली दिखाई देने वाली पृथ्वी विभिन्न तटों को मिलाती है। स्वर्ग से हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हम सचमुच में महाद्वीप समूह स्वरुप एक परिवार हैं। ईश्वर हमसे और इस देश से यही चाह रखते हैं, जो तीस द्वीपों का एक संयोजन है।

संत पापा के कहा कि लेकिन आज हम एक ऐसे समय में जीवन जी रहे हैं जहाँ एकता से अधिक विभाजन का अनुभव करते हैं। यहाँ “बहरीन” हमें चिंतन में मदद करती सकती है। उन्होंने कहा कि बहरीन अर्थात दो समुद्र, एक जमीन के अन्दर शुद्ध पानी और दूसरा खाड़ी के काले पानी की ओर इंगित करता है, वहीं एक को हम शांत, शुद्ध पानी, शांतिमय जीवन की भांति पाते तो दूसरी ओर खारा पानी, उदासीनता युद्ध में अस्त-व्यस्त जीवन की ओर इंगित करता है। पूर्व और पश्चिम दुर्भाग्यपूर्ण ढ़ंग से दो विरोधाभास समुद्रों की निशानियाँ हैं। लेकिन हमारा यहाँ आना इस चाह को व्यक्त करता है कि हम एक साथ मिलन की राह में, न की टकराव के मार्ग में बढ़ने की इच्छा रखते हैं, यह अंतरराष्ट्रीय एकतावर्धक सम्मेलन की विषयवस्तु “पूर्व और पश्चिम मानवता का सह-अस्तित्व स्थल” से झलकती है।

संत पापा के कहा कि दो भयावह विश्वयुद्ध के बाद सदियों तक चलने वाली शीतयुद्ध ने विश्व के विभिन्न भागों को छिन-भिन्न कर दिया जहाँ अब भी हम अपने को एक नजुक स्थिति में पाते हैं जहाँ से हम गिरना नहीं चाहते हैं। वहीं हम अपने को एक बचकने परिदृश्य में पाते हैं जहाँ हम मानवता रूपी वाटिका की रखवाली करने के बदले आग, गोला-बारूद, हथियारों से खेलता पाते हैं जो हमारे लिए और कुछ नहीं बल्कि सामान्य निवास को राख और घृणा में तब्दील करती, हमारे लिए दुःख और मृत्यु लाती है।  

मानवता की चुनौती

संत पापा ने सम्मेलन के सदस्यों को सचेत करते हुए कहा कि यदि हम अपनी समझदारी का उपयोग करने के बदले युद्धों को बढ़ावा देते, ढ़िठाई में अपने आदर्शों, निरंकुश, साम्राज्यवादी, राष्ट्रवादी और लोकलुभावन विचारों में बने रहते, यदि हम दूसरों की संस्कृति की चिंता नहीं करते, अपने कानों को गरीबों और साधारण लोगों की पुकार सुनने से बंद कर देते, लोगों को अच्छे और खऱाब में विभाजित करते तो हमें इसका कटु परिणाम भुगतना पड़ेगा। वैश्विक दुनिया में आज हमारे लिए एक विकल्प है हम एक साथ मिलकर चलते तो हम आगे बढ़ते हैं, यदि हम अकेले चलने का चुनाव करते तो हमारा विनाश निश्चित है।

संत पापा ने संघर्ष की इस परिस्थिति में विश्व शांति और सह-अस्तित्व हेतु मानवीय भ्रातत्व के दस्तावेज की ओर ध्यान आकर्षित कराया जो पश्चिम और पूर्व को मिलन हेतु निमंत्रण देता है जिससे संकटों का सामाधान हो सके। उन्होंने कहा कि हम ईश्वरीय संतान के रुप में यहाँ हैं जिससे हम सिर्फ अपने स्वार्थ के दायरे से बाहर निकल सकें जिससे हमारे बीच की दूरियाँ कम हो। संघर्षों का उदय, मानव परिवार की त्रासदियों के प्रति हमें दृष्टिहीन न करे जैसे कि असामानताओं की समस्या जो अधिकांश लोगों के लिए अन्याय का कारण बनती है, भूखमरी का शर्मनाक दंश और जलवायु परिवर्तन, जो हमारे सामान्य निवास के प्रति हमारी बेफ्रिकी को दर्शाती है।

संत पापा ने सम्मेलन को इन समस्याओं के संबंध में मानव बंधुत्व और बरहीन साम्राज्य घोषणा के दस्तावेज में वर्णित तीन तथ्यों- प्रार्थना, शिक्षा और कार्य से अवगत कराया। 

प्रार्थना की चुनौती

प्रार्थना के बारे में संत पापा ने कहा कि यह मानव के हृदय का स्पर्श करती है। हमारे असंतुलन का मूल कारण हमारे हृदय में है क्योंकि हम अपने को स्वयं की छोटी पसंदगी चीजों में बंद कर लेते हैं। यह आज की समस्या नहीं अपितु मानवता के शुरूआती दौर से ही हमारे बीच उपस्थित है जिसे ईश्वर की सहायता से ठीक किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि प्रार्थना के माध्यम अपना हृदय सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए खोलें क्योंकि यह हमारे स्वार्थ, बंद मानसिकता, स्वयं की सोच, झूठेपन और अन्याय से परिशुद्ध करता है। “वे जो प्रार्थना करते हैं अपने में शांति का अनुभव करते और इसका साक्ष्य दूसरों को देते हैं।” वे गैर-ख्रीस्तीयता का शिकार नहीं होते बल्कि मानव में ईश्वरीय दिव्यता को पहचानते हैं। धर्म का अनुपालन करने वाले अपनी जीवन यात्रा में दूसरों को कोमलता और सम्मान में, अपनी निगाहों को स्वर्ग की ओर उठाने हेतु प्रेरित करते हैं। वे अपनी प्रार्थनाओं में जीवन की तकलीफों और सारी मुसीबतों को उस तरह ईश्वर की ओर उठाते जैसे अगरबर्ती का धुवाँ ऊपर उठती है।

बहरीन साम्राज्य घोषणा के दस्तावेज को उद्दृत करते हुए संत पापा ने प्रार्थना के एक दूसरे महत्वपूर्ण पक्ष के बारे में कहा, “ईश्वर हमें अपनी स्वतंत्रता के दिव्य उपहार का प्रयोग करने का निर्देश देते हैं, “दबाव डालने वाला धर्म किसी व्यक्ति को ईश्वर के संग अर्थपूर्ण संबंध स्थापित करने में मदद नहीं करता है।” धार्मिक जबरदस्ती ईश्वर को प्रिय नहीं है क्योंकि उन्होंने दुनिया को दासों के हाथों में नहीं बल्कि स्वतंत्र व्यक्ति के हाथों में सौंपा है। इस भांति संत पापा ने धार्मिक स्वतंत्रता पर चिंता करने का आहृवान करते हुए कहा कि अनुमति देना और धर्म की स्वतंत्रता को मान्यता देना पर्याप्त नहीं है; हमारे लिए धर्म की सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त करना आवश्यक है। हर धर्म को चाहिए कि वह अपने विश्वास के सार का आत्म-निरिक्षण करें, क्या वह विश्वासियों को सच्ची स्वतंत्रता में बढ़ने हेतु मदद करता है, जहाँ वे उन बातों के लिए स्वतंत्र होते जिनके लिए उनकी सृष्टि हुई है।

शिक्षा की चुनौती

शिक्षा की चुनौती के बारे में संत पापा ने कहा कि शिक्षा का तात्पर्य मुख्यतः दिमाग से है। बहरीन साम्राज्य घोषणा का दस्तावेज कहता है, “अज्ञानता शांति का शुत्र है”, यद्यपि यह विकास का मित्र है बर्शते कि यह नर-नारियों में संबंधपरक आयाम को विकसित करता हो। उन्होंने कहा यदि ऐसा होता तो यह समस्याओं की गरहाई में जाता और गहरे मुद्दों का आलिंगन करते हुए उसे सुलझाने की कोशिश करता है। इसका अर्थ यह है कि हम अपने में सवाल पूछें, अपने लिए चुनौती लें, धैर्य में दूसरों के संग वार्ता करें, सम्मान में स्वेच्छा से दूसरों को सुनें तथा दूसरों के इतिहास और संस्कृति से सीखें। “हम दूसरों के प्रति पारस्परिक समझ में विकास करते हुए अपने मस्तिष्क का शिक्षण करते हैं।” हमारा दूसरों के प्रति सहिष्णुता के भाव रखना प्रर्याप्त नहीं है बल्कि हमें उन्हें स्थान देने, उनके अधिकार को पहचाने और उन्हें अवसर देने की जरुरत है। इस मार्ग में चलने की शुरूआत शिक्षा से होती है और इसे सभी धर्म अपनाने हेतु बुलाये जाते हैं।

शिक्षा के संदर्भ में संत पापा ने तीन मुख्य बातों- जनमंच पर नारियों को पहचान देना विशेष रुप से उन्हें शिक्षा, रोजगार और उनके सामाजिक और राजनैतिक अधिकारों के उपयोग पर बल दिया।

बच्चों के मौलिक अधिकार की रक्षा करने के बारे में संत पापा ने कहा कि यह उन्हें विकसित होने में मदद करता है जहाँ वे भूखमरी और हिंसा का शिकार नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि हम युद्धों को बच्चों की निगाहों से देखते हुए स्वयं सीखे औऱ दूसरों को सिखलायें। यह हममें दूरदर्शिता का ज्ञान लाती है क्योंकि केवल बच्चों की चिंता करते हुए हम एक बेहतर मानवतापूर्ण समाज का विकास कर सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि शिक्षा की शुरूआत परिवार से होती और एक समुदाय, गांव या शहर में सदैव आगे बढ़ती है। अतः उन्होंने नागरिकता हेतु शिक्षा, अपने तीसरे बिन्दु पर प्रकाश डालते हुए कहा,“नागरिकता का संदर्भ सामान अधिकारों और उत्तरदायित्वों में निहित है।” यह हमसे निष्ठा की मांग करती है जिससे हम अपने समाज में भेदभाव और अल्पसंख्यक जैसे शब्द को दूर करते हुए पूर्ण नागरिकता के भाव को स्थापित कर सकते हैं।

कार्य की चुनौती

संत पापा ने तृतीय चुनौती कार्य के बारे में कहा कि इसे हम मानवीय क्षमताएँ कह सकते हैं। बहरीन साम्राज्य घोषणा का दस्तावेज कहता है कि जब कभी घृणा, हिंसा और अशांति का प्रवचन दिया जाता तो यह ईश्वर के नाम को अपवित्र करता है। वे सभी जो धार्मिक हैं, इन बातों को पूरी तरह से अनुचित बताते हुए अस्वीकार करते हैं। वे इन कार्यों को बढ़ावा नहीं देते हैं। हमें हिंसा और आपराधिक कार्यों की निंदा करने की आवश्यकता है। हमें असहिष्णुता और कट्टरवाद से अपने को दूर करने के बदले उनका सामना करने की जरुरत है। संत पापा ने इस संदर्भ में आंकतवादी गतिविधियों, हथियारों के प्रवाधान और आंतकी आंदलनों को सही ठहराने की बातों को गलत बतलाया। ऐसे कार्य अंतरराष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में आते हैं जो सुरक्षा और विश्व शांति को भंग करते हैं। “ऐसे आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की निंदा की जानी चाहिए।”

धार्मिक व्यक्तियों के कार्य

संत पापा ने कहा कि धार्मिक नर और नारियाँ पुन: शस्त्रीकरण, युद्ध तथा मृत्यु के बाजार के विरोधी हैं। वे “कुछ के खिलाफ गठबंधन” का समर्थन नहीं करते हैं, बल्कि सभी के साथ वार्ता के साधन बनते हैं। सापेक्षवाद या किसी भी प्रकार के समन्वयवाद के सामने झुके बिना, वे एक ही मार्ग का अनुसरण करते हैं, जो कि बंधुत्व, संवाद और शांति का मार्ग है। उन्होंने कहा, “हम अपने भाई-बहनों के लिए अपना हृदय खोलते हुए इस मार्ग का चुनाव करें।” सृजनहार ईश्वर के नाम पर जिन्होंने हमें एक साथ अपने भाई-बहनों की देख-रेख करने की जिम्मेदारी सौंपी है, एक-दूसरे के संग बिना भयभीत हुए, अपनी एकता को मजबूत करें। शक्ति, हथियार और धन शांति का भविष्य तैयार नहीं करेगा, अतः मानवता के खातिर और उनके नाम पर जो उसे प्रेम करते और जिनका नाम शांति है हमें एक होने में मदद करे। संत पापा ने विश्व शांति हेतु एक अंतरात्मा होने की बात कही।

हम नहीं तो कौन

अपने संबोधन के अंत में उन्होंने कहा कि सृष्टिकर्ता हमें उन लोगों के नाम पर कार्य करने को निमंत्रण देते हैं जो अपने लिए प्रार्याप्त स्थान नहीं पाते हैं। यदि हम जो ईश्वरीय करूणा पर विश्वास करते गरीबों और स्वरहीन लोगों के लिए कार्य नहीं करते तो कौन करेगाॽ हम घायल मानवता की चंगाई हेतु कदम बढ़ायें क्योंकि ऐसा करने के द्वारा हम सर्वोच्च ईश्वर की आशीष के हकदार बनाते हैं। वे हमारी यात्रा को ज्योतिर्मय बनायें और हमारे हृदय, मन को अपनी शक्ति से भर दें जिससे हम ईश्वर की आराधना अपने ठोस भ्रातृत्वमय प्रेम में कर सकें, जो हमें समुदाय के लिए नबी, एकता के शिल्पकार और शांति के निर्माता बनाते हैं।   

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04 November 2022, 11:51