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संत पापाः हथियारों द्वारा युद्ध का समाधान असंभव

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में बहरीन की प्रेरितिक यात्रा का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिन से अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

उन्होंने बहरीन की प्रेरित यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने के पहले अपने पास आये दो बच्चों की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि ये दो बच्चे बिना अनुमति के मेरे पास आयें। “वैसे ही हमें ईश्वर के पास सीधे आने की जरुरत है” ये दोनों बच्चे हमें ईश्वर के सामने आने का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ईश्वर सदैव हम सभों का इंतजार करते हैं। उन्होंने कहा कि इन दोनों बच्चों ने हमारे लिए विश्वास को व्यक्त किया है, हमें इसी भांति स्वंतत्र रुप में हमेशा ईश्वर के पास आने की जरुरत है।

कृतज्ञता के भाव

इसके उपरांत संत पापा ने बहरीन की अपनी प्रेरितिक यात्रा का एक छोट विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि तीन दिन पहले मैं बहरीन की प्रेरितिक यात्रा कर लौटा जिसे मैं सचमुच नहीं जानता था। मैं उन सभों के प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव अर्पित करना चाहता हूँ जिन्होंने इस प्रेरित यात्रा में प्रार्थना और विभिन्न रूपों में मेरी सहायता की। संत पापा ने बहरीन के राजा, अन्य अधिकारियों और स्थानीय कलीसिया और विश्वासियों के गर्मजोशी स्वागत के लिए उन्हें धन्यवाद कहा। इसके साथ ही उन्होंने इस प्रेरितिक यात्रा की सफलता हेतु प्रबंधन में संलग्न प्रत्येक जन के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की।

क्यों का सवाल

संत पापा फ्रांसिसन ने कहा कि यहां हमारे लिए एक स्वाभाविक सवाल उत्पन्न होता है कि क्यों संत पापा ने इस छोटे देश की प्रेरितिक यात्रा की जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। जबकि बहुत से ख्रीस्तीय देश हैं वे उनकी यात्रा पहले क्यों नहीं करते हैंॽ इसके उत्तर में संत पापा ने तीन शब्दों- वार्ता, मिलन और यात्रा का जिक्र किया।

वार्ता

वार्ता के बारे में जिक्र करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि इस बहुप्रतिक्षित यात्रा की पूर्णतः बहरीन के राजा के निमंत्रण में पूरी हुई जिन्होंने पूर्व और पश्चिम के मध्य वार्ता के एक मंच में सहभागी होने हेतु मेरा स्वागत किया, एक वार्ता जो दूसरे देशों, उनकी परंपरा और विश्वास में निहित समृद्धि की खोज करना चाहती है। बहुतेक द्वीपों से बनी बहरीन हमें यह समझने में मदद करती है कि हम अपने को अलग रखते हुए जीवन नहीं जी सकते हैं बल्कि हमें एक-दूसरे के निकट आने की आवश्यकता है। संत पापा ने कहा कि शांति हमसे वार्ता की मांग करती है क्योंकि यह “शांति के लिए ऑक्सीजन” है। उन्होंने कहा, “घरेलू शांति में भी हमें वार्ता की जरुरत है, यदि पति और पत्नी के बीच युद्ध की स्थिति है तो वार्ता के द्वारा शांति कायम की जा सकती है।

वाटिकन द्वितीय महासभा की मांग

संत पापा ने कहा कि 60 साल पहले, द्वितीय वाटिकन महासभा ने शांति स्थापना की बात कहते हुए इस बात को सुदृढ़ से व्यक्त किया, “पुरुष और महिलाओं को चाहिए कि वे अपने विचारों और हृदय से, अपने राष्ट्र की सीमाओं से परे जाते हुए, अन्य राष्ट्रों पर हावी होने के राष्ट्रीय स्वार्थ और महत्वाकांक्षा से अपने को अलग रखें, जिससे वे पूरी मानवता के लिए एक बृहृद सम्मान को पोषित कर सकें, जो पहले से ही बड़ी एकता की ओर कठिन मेहनत से अपना रास्ता तय कर रही है” (Gaudium et spes, 82).। उन्होंने कहा कि मैंने बहरीन में इस तथ्य का अनुभव किया और मैं आशा करता हूँ कि धर्मसंघी और विश्व से सामाजिक नेतागण अपनी सीमाओं और समुदायों से परे जाते हुए सभों की चिंता करेंगे। केवल ऐसा करने के द्वारा ही हम विश्व में व्याप्त निश्चित समस्याओं का सामना कर सकते हैं, जैसे कि ईश्वर भूला दिये गये हैं, भूखमरी की त्रासदी, सृष्टि की देख-रेख, शांति इत्यादि। इस संदर्भ में वार्ता का मंच जिसका शीर्षक, “पूर्व और पश्चिम मानव हेतु सह-अस्तित्व” था, जहाँ हमने टकराव का परित्याग करते हुए मिलन के मार्ग का चुनाव किया। हमें इसकी कितनी जरुरत है। संत पापा ने कहा कि मैं युद्ध के पागलपन को सोचता हूँ जिसका शिकार येक्रेन हुआ है, वहीं अन्य दूसरी जगहों में युद्ध की स्थिति जिसका समाधान हथियारों के माध्यम नहीं बल्कि वार्ता की कोमल शक्ति से की जा सकती है। उन्होंने विश्व के विभिन्न स्थानों में युद्ध की स्थिति की याद की- सीरिया, यमन, म्यांमार और वर्तमान में यूक्रैन। इसके द्वारा क्या होता हैॽ ये केवल मानवता को नष्ट करते हैं, सारी चीजों को बर्बाद कर देते हैं। संघर्षों का समाधान युद्ध से नहीं किया जा सकता है।

मिलन बिना वार्ता नहीं

संत पापा ने कहा कि वार्ता मिलन के बिना नहीं हो सकती है। बहरीन में हम एक-दूसरे से मिले। उन्हेंने कहा कि मैंने वहाँ इस बात को बांरबार सुना कि ख्रीस्तियों और मुसलमानों के बीच मिलन निरतंर होती है, उनके बीच गहरे संबंध हैं, हमें इसे अपने हृदय में उतारने की जरुरत है। बहरीन में-जैसे की यह पूर्व में परांपरिक अभ्यास है, लोग जब एक दूसरे का अभिवादन करते तो वे अपने हाथ को हृदय के निकट रखते हैं। दूसरे का स्वागत ऐसा नहीं होता तो वार्ता हमारे लिए व्यर्थ की होती है, यह सच्चाई बनने के बदले केवल विचारी स्तर तक ही रह जाती है। उन्होंने अपने बहुत से मिलनों में एक मिलन की याद करते हुए कहा कि अपने अति प्रिय भाई अल-अजहर के गैंड इम्मान और स्क्रेड हार्ट स्कूल में युवा विद्यार्थियों से अपने मिलन की याद करता हूँ जिन्होंने ख्रीस्तियों और मुस्लिमों के एक साथ विद्यार्जन का एक बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि युवाओं को, लड़के और लड़कियों को, बच्चों को एक-दूसरे को जानने की आवश्यकता है जिससे वे भ्रातृत्वमय मिलन, विभाजन के आदर्श से अपने को दूर रखें। संत पापा ने स्क्रेड हार्ट स्कूल की धर्मबहन रोसलिन का, उनके कार्यक्रमों के उत्तम प्रबंधन हेतु धन्यवाद कहा। उन्होंने कहा कि यहाँ तक कि बुजुर्गों ने भी अपने भ्रातृत्वमय विवेक का साक्ष्य प्रस्तुत किया। इस संदर्भ में संत पापा ने मुस्लिमों के एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के बुद्धिजीवियों से भेंटवार्ता की याद की जो कुछ सालों से हिंसा औऱ कट्टवाद का विरोध करते हुए इस्लामी समुदाय की अगुवाई में सम्मान, शांति और सहचर्य को बढ़ावा देते हुए अच्छे संबंधों के लिए कार्यरत हैं।

बहरीन की यात्रा अलग नहीं

संत पापा ने यात्रा के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि बहरीन की यात्रा को एक अलग घटना के रुप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह संत पापा योहन पौलुस द्वितीय द्वारा पहल की गई मोरोक्को की यात्रा का एक अंग था। अतः संत पापा द्वारा बहरीन की की गई यात्रा अपने में ख्रीस्तियों और मुस्लिमों विश्वासियों के बीच एक नये कदम को व्यक्त करती है जहाँ हम घटनाओं को उल्ट-पुल्ट नहीं करते बल्कि विश्वास के पिता आब्रहम के नाम में भ्रातृत्व का एक संबंध स्थापित करते हैं, जो ईश्वरीय पिता की करूणामय निगाहों में, इस धरती पर शांति के ईश्वर के एक तीर्थयात्री थे। यही कारण है कि इस प्रेरितिक यात्रा का आर्दश वाक्य,“धरती में भली चाह रखने वालों को शांति” था। संत पापा ने कहा कि वार्ता अपने में व्यर्थ नहीं होती है क्योंकि इसकी शुरूआत एक पहचान से होती है। “यदि आप अपनी पहचान नहीं जानते तो आप वार्ता में प्रवेश नहीं कर सकते हैं, आप कुछ करेंगे लेकिन आप स्वयं नहीं समझेंगे की आप क्या कर रहे हैं। वार्ता की शुरूआत सदैव एक पहचान से होती है आप इसका ख्याल रखें।

संत पापा ने कहा कि बहरीन में वार्ता, मिलन और यात्रा ख्रीस्तियों के साथ भी हुआ। वास्तव में, प्रथम मिलन प्राधिधर्माध्यक्ष बार्थोलोमी के संग मिलकर एकतावार्धक मिलन, शांति हेतु एक प्रार्थना सम्मेलन में सहभागिता थी जिसमें दूसरे विश्वासी भाई-बहनों ने भी भाग लिया। यह अराबिया में माता मरियम को समर्पित गिरजाघर में हुआ जिसका प्रतिरुप धर्मग्रंथ में चर्चित तम्बू की भांति है, जहाँ मरूभूमि की यात्रा में ईश्वर मूसा से मिलते थे। उन्होंने कहा कि उन भाई-बहनों से जिन्हें मैं बहरीन में मिला सच्चे अर्थ में “एक यात्रा कर” रहे हैं। वे अपने में प्रवासी कार्यकर्ता के रुप में हैं, जो अपने घरों से दूर, ईश्वर की संतान स्वरूप अपनी जड़ों को खोजते हैं, वे कलीसिया रुपी बृहृद परिवार में अपने परिवार को पाते हैं। वे खुशीपूर्वक इस विश्वास में आगे बढ़ते हैं कि ईश्वर उन्हें कभी निराशा नहीं करेंगे। पुरोहितों, समर्पित भाइयों और बहनों तथा प्रेरिताई में संलग्न व्यक्तियों से मिलकर यूखारिस्तीय बलिदान अर्पित करना उन्हें एक पूर्ण कलीसिया के रुप में आनंद और प्रेम से भर दिया।

स्वयं को खोलें  

संत पापा ने कहा कि आज मैं उनकी सच्ची, सरल और सुन्दर खुशी को आप के संग साझा करता हूँ। एक-दूसरे से मिलना और प्रार्थना करना हमें इस अनुभूति से भर दिया कि हम एक हृदय और एक आत्मा के व्यक्ति हैं। उनकी यात्रा और दैनिक जीवन की वार्ता की याद करते हुए हम इस बात का अनुभव करें कि हम सभी अपनी क्षितिज को विस्तृत करने हेतु बुलाये गये हैं, हम अपने को खोलने और अपनी चाहतों को बृहृद करते हुए एक-दूसरे को जानने के लिए बुलाये गये हैं, क्योंकि हर किसी को जीवन यात्रा में भ्रातृत्व और विकास हेतु शांति की आवश्यकता है 

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09 November 2022, 16:43