संत पापाः सांत्वना एक अद्वितीय उपहार
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार, 23 नवम्बर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
हम आत्मा-परीक्षण पर अपनी धर्मशिक्षा माला जारी रखते हैं- यह हमें अपने हृदय में, हमारी आत्मा में होने वाली प्रेरणा को जानने में मदद करती है। निराशा की विषयवस्तु पर विचार करने के उपरांत जो हमारे हृदय का अंधकारमय क्षणों में होने को व्यक्त करता है, आज हम सांत्वना के बारे में जिक्र करेंगे जो हृदय का ईश्वरीय प्रकाश में होने की बात कहता है। यह आत्मा-परीक्षण का एक दूसरा महत्वपूर्ण कारक है जिसे हम सहज तरीके से नहीं ले सकते हैं, क्योंकि यह हमें भ्रमित कर सकता है। हमें इसे समझने की जरुरत है जैसे कि हमने निराशा को अच्छी तरह जानने का प्रयास किया।
आध्यात्मिक सांत्वना
संत पापा ने आध्यात्मिक सांत्वना के बारे में कहा कि यह आंतिरक खुशी की एक अनुभूति है, जहाँ हम सभी चीजों में ईश्वर की उपस्थिति को देखते हैं। यह हमारे विश्वास और आशा, यहाँ तक की अच्छे कार्य करने की योग्यता को मजबूत करती है। वह व्यक्ति जो अपने में ईश्वरीय सांत्वना का अनुभव करता है जीवन की कठिन परिस्थितियों में कभी निराशा नहीं होता है क्योंकि वह अपने अंदर एक शांति का अनुभव करता है जो किसी भी मुसीबत से अधिक मजबूत होती है। इस भांति यह आध्यात्मिक जीवन के साथ-साथ हमारे दैनिक जीवन के लिए एक अति बृहृद उपहार है।
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि सांत्वना एक आंतरिक अवेग है जो हमारे हृदय अंतःस्थल का स्पर्श करती है। यह चकाचौंध करने वाली नहीं बल्कि मुलायम, सुकोमल होती है मानों एक स्पंज में पानी की बूंदें गिरती हों (आध्यात्मिक साधना,335)। इस स्थिति में व्यक्ति अपने को ईश्वरीय उपस्थिति में घिरा पाता जहाँ वह अपने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सदैव सम्मान करता है। यह कभी विसंगति भरी नहीं होती जो हमारी चाहतों का दमन करती हो या न ही यह खत्म होने वाला एक उत्साह है। इसके विपरीत जैसे हमने देखा है, यहाँ तक की दुःख-दर्द की स्थिति में भी- उदाहरण के लिए जहाँ हम अपने पापों को देखते हैं यह हमारे लिए सांत्वना का एक कारण बनता है।
सांत्वना की अनुभूति शांति में
उन्होंने कहा कि हम संत अगुस्टीन के अनुभवों की याद करें, वे अपनी माता मोनिका के संग स्वर्गीय जीवन की सुन्दरता के बारे में बातें करते हैं, या हम संत फ्रांसिस के बारे में सोचें जिन्होंने अपने जीवन में घोर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, इस भांति हम बहुत से संतों के बारे में चिंतन कर सकते हैं जिन्होंने अपने जीवन में महान कार्य इसलिए नहीं किये क्योंकि वे अपने में वैभवशाली या अतियोग्य थे बल्कि उन्होंने अपने को ईश्वर के शांतिमय प्रेम की मधुरता से वशीभूत पाया। संत इग्नासियुस ने संतों की जीवनी पढ़ते हुए अपने लिए आश्चर्यजनक रुप में इसी शांति का अनुभव किया। सांत्वना का अनुभव करने हेतु हमें ईश्वर के संग शांति में रहने की जरुरत है, हमें यह अनुभव करने की आवश्यकता है कि सभी चीजें शांति में व्यवस्थित होती हैं, यह हमारे अंदर शांति लाती है। एडिथ स्टीन ने अपने मनफिराव के उपरांत इसी दिव्य शांति का अनुभव किया। अपने बपतिस्मा के एक साल बाद उन्होंने लिखा, “जैसे ही मैंने अपने को इस अनुभूति में छोड़ा, धीरे-धीरे एक नये जीवन की उत्पत्ति मुझ में हुई- जो मुझ पर कोई दबाव नहीं डाली- जहाँ मैं इस नयेपन का अनुभव करती हूँ। इस नये जीवन का प्रवाह एक क्रियाकलाप से उत्पन्न होता और मुझे शक्ति से भर देता है जो मेरा नहीं है, यह मुझमें कोई हिंसा बिना किये क्रियाशील हो जाता है”(Psicologia e scienze dello spirito, Città Nuova, 1996, 116)।
इससे भी बढ़कर सांत्वना हममें आशा उत्पन्न करती है जो हमें भविष्य की ओर एक यात्रा में आगे ले चलती है। यह हमें उन बातों की पहल करने हेतु प्रेरित करती है जिन्हें हम सदैव अपने से दूर करते रहे हैं या जिनकी हम आशा तक नहीं करते हैं, जैसे कि एडिथ स्टीन के साथ हुआ।
सांत्वना हमें क्रियाशील बनाती
संत पापा ने कहा कि यह सांत्वना एक ऐसी शांति है जो हमें बैठे नहीं रखती...यह शांति हमें ईश्वर की ओर उन्मुख करती और हमें एक मार्ग में अच्छे कार्यों को करने हेतु अग्रसर करती है। सांत्वना की घड़ी में हम सदैव बहुत सारे अच्छे कार्यों करने की चाह रखते हैं। वहीं निराशा की स्थिति में हम अपने में बंद हो जाते और कुछ करना नहीं चाहते हैं। सांत्वना हमें आगे बढ़ने को प्रेरित करती है, जहाँ हम दूसरों की, समाज और लोगों की सेवा करने के लिए आगे आते हैं। आध्यात्मिक सांत्वना हमारे लिए “नियंत्रण” के बाहर होती है इसे हम अपनी इच्छा के अनुरूप कार्यान्वित नहीं कर सकते हैं। यह हमारे लिए पवित्र आत्मा का एक उपहार है। यह ईश्वर के संग एक संबंध स्थापित करने में मदद करती है जो दूरियाँ खत्म कर देती है। बालक येसु की संत तेरेसा, चौदाह साल की उम्र में अपनी रोम यात्रा के दौरान, येरुसालेम के पवित्र क्रूस महागिरजाघर में उस कील जिसकी आराधना की जाती है, स्पर्श करने की कोशिश करती है जिससे येसु को क्रूसित किया गया था। अपने इस साहस को तेरेसा प्रेम और विश्वास की निशानी स्वरूप देखती और समझती है। बाद में उन्होंने लिखा,“मैं बहुत ही दुस्साहसी थी। लेकिन ईश्वर हमारे हृदय की गहराई को जानते हैं। वे जानते हैं कि मेरा इरादा पाक था...मैंने उनके साथ एक बच्चे की भांति व्यवहार किया जो यह विश्वास करता कि सारी चीजों की छूट है, और वह अपने पिता की संपत्ति को अपना समझता है।” (Autobiographical Manuscript, 183). वे ऐसा लिखती हैं, जो स्वाभाविक रूप में सांत्वना की एक अभिव्यक्ति है जो सारी चीजों को स्वतः ही करने हेतु हमें प्रेरित करता है, मानो हम बच्चों की तरह हों। चौदाह साल की एक बच्ची हमारे लिए आध्यात्मिक सांत्वना का एक सुन्दर विवरण प्रस्तुत करती है। ईश्वर के संग अपने संबंध में हमारी कोमलता का एहसास, अपनी चाहतों को लेकर उनके संग पेश आने में हमें दुस्साहसी बना देता है। हम उन सारी चीजों को करते हैं जो उन्हें अच्छी लगती हैं क्योंकि हम उनके संग निकटता का अनुभव करते हैं, उनका घर हमें अपना घर लगता है, जहाँ हम अपने में स्वागत किये जाते, प्रेम और तरल ताजा होने का अनुभव करते हैं। इस सांत्वना में हम अपनी कठिन परिस्थिति में हार नहीं मानते, वास्तव में, उसी साहस में तेरेसा ने संत पापा से यह अनुमति मांगी कि उन्होंने कार्मेल धर्मसमाज में प्रवेश करने की छूट दी जाये, जो उसे मिल गई यद्यपि वह बहुत छोटी थी।
सांत्वना में साहस है
संत पापा ने सांत्वना के एक दूसरे पहलू के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि सांत्वना हमें साहसी बनाता है वहीं जब हम निराशा की स्थिति में होते तो हम अपने में यह सोचते हैं कि मुझसे यह नहीं होगा। निराशा हमें नीचे गिरा देती है। “मुझसे नहीं होगा, मैं नहीं सकूंगा”। जबकि सांत्वना हमें आगे बढ़ने को मदद करती है क्योंकि यह हमें ईश्वर के सहचर्य का एहसास दिलाती है। यही सांत्वना की सुन्दरता है। लेकिन हमें सचेत रहने की जरुरत है क्योंकि हमें यहाँ अंतर स्पष्ट करना है कि यह ईश्वर से आती है या कोई झूठी चीजों से।
उन्होंने कहा कि यदि सच्ची सांत्वना हमारे लिए स्पंज में गिरते पानी की तरह है तो झूठी सांत्वनाएं अपने में शोर-शराबे और तड़क-भड़क के साथ हमारे लिए आती हैं जहाँ हम अपने को बंद कर लेते और दूसरों की चिंता नहीं करते हैं। अंततः झूठी सांत्वना हमें खालीपन में छोड़ देती है हम अपने जीवन के अस्तित्व से ही अलग हो जाते हैं।
झूठी सांत्वना खतरा है
उन्होंने कहा कि यही कारण है कि हमें सांत्वना की स्थिति में भी रहने पर आत्म-परीक्षण करने की आवश्यकता है। झूठी सांत्वना हमारे लिए खतरा बन जाती है जहाँ हम अपने को ईश्वर से अलग पाते हैं। इसके बारे में संत बेर्नाड कहते हैं कि यह ईश्वर से सांत्वना पाने की खोज करने के बदले सांत्वना के लिए ईश्वर की खोज करना है। हमें ईश्वर को खोजने की जरुरत है जो अपनी उपस्थिति से हमें सहायता प्रदान करते और हमें आगे ले चलते हैं। हम उस ईश्वर की खोज न करें जो हमें सांत्वना लाते हैं। इस संदर्भ में संत पापा ने बिगत सप्ताह बच्चे के बारे में किये गये जिक्र की याद दिलायी जो अपने माता-पिता की खोज करता है जिससे उसे कुछ मिले, वह उन्हें इसलिए नहीं खोजता है क्योंकि वह उनसे प्रेम करता है। हम अपने दैनिक जीवन में, ईश्वर के संग अपने संबंध को लेकर बचकाना व्यवहार करने की जोखिम में पड़ जाते हैं, हम इसे चीजों की भांति सीमित कर देते हैं जिसका उपभोग हम अपने जीवन में करते हैं, यह हमें उन्हें एक सुन्दर उपहार के रुप में देखने से वंचित कर देता है। इस प्रकार हम अपने जीवन में सांत्वना के ईश्वर और निराशा रूपी पापों की बुराई के साथ आगे बढ़ते हैं, लेकिन हम जानता हैं तो हमें आत्म-परीक्षण करना जानते हैं। ईश्वर से मिलनेवाली सांत्वना आत्मा की गहराई तक शांति प्रदान करती है, वहीं क्षणिक उत्साह खत्म हो जाती है क्योंकि यह ईश्वर की ओर से नहीं आती है।
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