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ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट १६वें ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट १६वें 

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें : मुख्य घटनाएँ

स्वर्गीय पोप बेनेडिक्ट १६वें का कार्यकाल "ईश्वर को केंद्र में वापस लाने" के लक्ष्य पर केंद्रित था।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें का परमाध्यक्षीय काल 19 अप्रैल 2005 को शुरु हआ और 11 फरवरी 2013 को अपना पद त्यागने के आश्चर्यजनक घोषणा के बाद 28 फरवरी, 2013 को समाप्त हुआ। इस तरह उनका परमाध्यक्षीय काल सात साल, दस महीने और नौ दिन का था जो इतिहास में दूसरा सबसे लम्बे समय तक रहे संत जॉन पॉल द्वितीय की तुलना में बहुत कम होने के बावजूद कम महत्वपूर्ण नहीं है।  इन वर्षों के दौरान संत पापा ने बेनेडिक्ट सोलहवें ने दैनिक कार्यकलापों के अलावा विदेशों में 24 प्रेरितिक यात्राएं की हैं, तीन विश्व युवा दिवसों और एक परिवारों की विश्व बैठक में भाग लिया, तीन विश्वपत्र लिखे, एक प्रेरितिक संविधान, तीन प्रेरितिक उद्बोधन, चार धर्मसभा (2 साधारण और 2 विशेष) की अगुवाई की, कलीसिया की सेवा हेतु 84 कार्डिनलों को प्रतिष्ठापित किया, संत पापा जॉन पॉल द्वितीय सहित 45 संत घोषणा और 855 को धन्य घोषित किया है। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने पहले विश्वपत्र "देउस कारितास एस्त" द्वारा दुनिया में जहां "विश्वास" खतरे में है, मसीह के प्रेम के सुसमाचार "ईश्वर को केंद्र" में रखा। 10 मार्च 2009 को पूरी दुनिया के धर्माध्यक्षों को प्रेषित पत्र में उन्होंने लिखा, कि विश्वासियों को जागरुक होने, कलीसिया के अंदर शुद्धिकरण और संरचनाओं के रूपांतरण की आवश्यकता है।

‘विश्वास और विवेक’ पर संत पापा का वार्ता

अपने पूर्ववर्तियों संत पापा जॉन तेईस्वें से लेकर संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के बाद और "देउस कारितास एस्त" में बताये गये कार्यक्रमों को इंगित करने के बाद, संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें अंतर-धार्मिक और अंतर-सांस्कृतिक वार्ता के प्रति चौकस थे। ये वार्ता-यहूदी धर्म और अन्य धर्मों के साथ, अलग हुए ख्रीस्तीय भाइयों, विज्ञान और धर्मनिरपेक्ष विचारों और संत पियुस दसवें के बंधुता के रूप में काथलिक कलीसिया से अलग हुए भाइयों के बीच थी। कई कठिनाइयों, गलतफहमियों और अचानक बीच में ही रोक दिये गये संवाद को, हालांकि धर्माचार्य संत पापा ने दृढ़ता के साथ विश्वास और विवेक को संयोजित करते हुए दया और सत्य पर अपनी शिक्षा को केंद्रित किया। कई विचारों और लेखों में पाया जाने वाला मूल विचार यह था कि "विवेक स्वयं को विश्वास की सामग्री में खोलकर कुछ नहीं खोता है", जबकि 'विश्वास विवेक का अनुमान लगाता है और इसे प्रभावित करता है'। सन् 2006 के रेगेन्सबर्ग के मशहूर व्याख्यान के बारे में सोचें, सन् 2008 में पेरिस के डेस बर्नार्डिन्स कॉलेज में दुनिया की संस्कृति के प्रतिनिधियों को दिया व्याख्यान, सन् 2010 में वेस्टमिंस्टर हॉल में ऐतिहासिक व्याख्यान और सन् 2011 में जर्मनी के बुंडेस्टाग में ऐतिहासिक व्याख्यानों को उनके मजिस्ट्रेट दस्तावेज से जोड़ दिया जाना चाहिए।

एक तूफानी नाव की पतवार संभालने वाले संत पापा

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष के रुप में अपना पद संभाला तो कलीसिया कठिन दौर से गुजर रही थी। बाल यौनशोषण घोटाले और वाटिलिक्स मामले सभी जगह चर्चा में थी। जर्मन संत पापा ने सन् 2005 में पवित्र शुक्रवार को क्रूस रास्ता धर्मविधि के दौरान कलीसिया के अंदर और बाहर व्याप्त "गंदगी" की स्पष्टता और दृढ़ संकल्प के साथ निंदा की थी। उन्होंने इनके सुधार के लिए जमीन तैयार की जिसे संत पापा फ्राँसिस सामना करने में कामयाब रहे और महत्वपूर्ण कदम उठाया। संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने भी बाल यौनशोषण के मुद्दे को अकेले ही नियंत्रण करना शुरु किया। हालांकि उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा था। सन् 2011 और 2012 में 400 पुरोहितों की निलंबित करने की उल्लेखनीय पुष्टि हुई, क्योंकि वे दुर्व्यवहार के मामलों में शामिल थे। साथ ही अनेक धर्माध्यक्षों को उनके खराब प्रबंधन के लिए पद से हटा दिया गया।

 इतने बड़े आंकड़ों को देखते हुए उन्होंने सुधार के लिए ठोस कदम लेने हेतु "दे ग्रेवियोरिबुस डेलिक्टिस" नियम बनाया। वाटिकन से जुड़े वित्तीय घोटालों को सामने लाने की शुरुआत संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने ही की थी जिसे संत पापा फ्रांसिस ने आगे बढ़ाया। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें वाटिकन का वित्तीय प्रबंधन अधिक पारदर्शी बनाने के लिए ठोस कदम उठाया। 30 दिसंबर 2010 को ‘मोतु प्रोप्रियो’ के साथ “आपराधिक गतिविधियों का मुकाबला करना और आतंकवाद के वित्तपोषण से आये काले धन पर रोक लगाना शुरु किया।”

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31 December 2022, 12:09