देवदूत प्रार्थना में पोप: आसक्ति से मुक्त रहें, प्रभु के लिए रास्ता तैयार करें
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, रविवार, १५ जनवरी २०२३ (रेई) – वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार १५ जनवरी को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
आज का सुसमाचार पाठ (यो.1,29-34) यर्दन नदी में बपतिस्मा देने के बाद येसु के बारे योहन बपतिस्ता के साक्ष्य को पुनः प्रस्तुत करता है। जो इस प्रकार कहते हैं, “यह वही हैं जिनके विषय में मैंने कहा, ‘मेरे बाद एक पुरूष आने वाले हैं।’”(29-30)
सेवा की भावना
संत पापा ने कहा, “यह घोषणा योहन के सेवा की भावना को प्रकट करता है। वे मसीह का रास्ता तैयार करने के लिए भेजे गये थे और जिसको उन्होंने पूरी शक्ति से पूरा किया।”
मानवीय रूप से कहा जा सकता है कि उसे पुरस्कार दिया जाना चाहिए, उन्हें येसु के सार्वजनिक जीवन में एक प्रमुख स्थान मिलना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। योहन अपना मिशन पूरा करने के बाद, पीछे हट गया, येसु को स्थान देने के लिए वह दृष्य से अपने आपको हटा लेता है। उसने पवित्र आत्मा को उनके ऊपर उतरते देखा। (33-34), उन्हें ईश्वर का मेमना कहकर इंगित किया, जो दुनिया के पाप हर लेते हैं और अब विनम्रतापूर्वक उन्हें सुनता है। उन्होंने लोगों को उपदेश दिया, शिष्य को एकत्रित किया, उन्हें लम्बे समय तक सिखाया। लेकिन किसी को अपने साथ जोड़कर नहीं रखा। यह कठिन है लेकिन यही सच्चे शिक्षक की निशानी है: अपने आपसे बांधकर नहीं रखना। योहन ऐसा करता है, वह अपने लिए अनुयायी होने, प्रतिष्ठा और सफलता प्राप्त करने में दिलचस्पी नहीं लेता, लेकिन साक्ष्य देता और फिर एक कदम पीछे हट जाता है, ताकि बहुतों को येसु से मिलने का आनंद मिल सके।
आसक्ति से मुक्त
अपनी इस सेवा की भावना, स्थान देने की क्षमता द्वारा योहन बपतिस्ता एक महत्वपूर्ण शिक्षा देते हैं : आसक्ति से मुक्ति। क्योंकि अपनी नौकरी और पद से आसक्त होना आसान है, सम्मानित, मान्यता प्राप्त और पुरस्कृत किए जाने की चाह हो सकती है। और यह स्वाभाविक है लेकिन अच्छा नहीं है, क्योंकि सेवा मुफ्त होती है, दूसरों की देखभाल बिना किसी चीज की अपेक्षा किये की जाती चाहिए। योहन के आदर्शों को अपनाना भी हमारे लिए अच्छा होगा जो सही समय पर पीछे हट गये और दिखाया कि येसु ही जीवन के केंद्रविन्दु हैं।
संत पापा ने विश्वासियों को चिंतन हेतु आमंत्रित करते हुए कहा, “आइये हम चिंतन करें कि एक पुरोहित के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है जो खुद की रूचि या लाभ के लिए सुसमाचार का प्रचार करने और समारोहों का अनुष्ठान करने हेतु नहीं बुलाया गया है बल्कि दूसरों को येसु के पास जाने में मदद देने के लिए बुलाया गया है।
कब पीछे हटना है उसे जानना
आइये हम गौर करें कि उन माता-पिताओं के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है जो बड़े त्याग तपस्या से अपने बच्चों को बड़ा करते, लेकिन बाद में उन्हें स्वतंत्र छोड़ना पड़ता है ताकि वे नौकरी, विवाह और जीवन के लिए अपना रास्ता चुन सकें। यह अच्छा और उचित है कि माता-पिता यह कहते हुए अपनी उपस्थिति बनाये रख सकते हैं: "हम तुम्हें अकेला नहीं छोड़ेंगे", लेकिन बिना निर्णय और दखलंदाजी के। उसी तरह दूसरे क्षेत्र में भी होता है उदाहरण के लिए मित्रता, वैवाहिक जीवन, सामुदायिक जीवन में, किनारे होना कीमती होता है। किन्तु यह बहुत महत्वपूर्ण है। यह सेवा की भावना में बढ़ने हेतु एक निर्णायक कदम है।
माता मरियम से प्रार्थना
संत पापा ने कहा, “भाइयो एवं बहनो, हम अपने आप से पूछें, क्या हम दूसरों को जगह दे सकते हैं? उन्हें सुनकर, उन्हें स्वतंत्र छोड़कर, पहचान की मांग करते हुए उन्हें न बांधकर? क्या हम उन्हें येसु की ओर लेते हैं या अपनी ओर आकर्षित करते?” संत पापा ने कहा, “योहन के आदर्शों को अपनाते हुए क्या हम लोगों को अपना रास्ता चुनते और अपनी बुलाहट में आगे बढ़ते देख खुश होते हैं? और जब इसके कारण हम थोड़ा दूर होना पड़ता है? क्या हम ईमानदारी से और बिना किसी ईर्ष्या के उनकी उपलब्धियों पर खुशी मनाते हैं?”
तब कुँवारी मरियम की याद करते हुए संत पापा ने कहा, “कुँवारी मरियम, प्रभु की सेविका, हमें आसक्तियों से मुक्त होने, प्रभु और दूसरों के लिए स्थान बनाने में मदद दे।”
इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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