सेरमिग के सदस्यों से मुलाकात करते संत पापा फ्रांँसिस सेरमिग के सदस्यों से मुलाकात करते संत पापा फ्रांँसिस  (ANSA)

बाल मिशनरी सेवा से पोप : शांति निर्माण करने से कभी न थकें

इटली के बाल मिशनरी सेवा (सेरमिग) के ३०० सदस्यों से मुलाकात करते हुए पोप फ्राँसिस ने सेरमिग के अथक प्रयासों की सराहना की जो सुसमाचार से प्रेरित होकर भाईचारा एवं शांति के निर्माण करने के लिए युवाओं को तैयार करते हैं। पोप ने उन्हें याद दिलाया कि शांति हमेशा ईश्वर से आती है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 7 जनवरी 2023 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार ७ जनवरी को बाल मिशनरियों सेवा (सेरमिग) के सदस्यों से वाटिकन में मुलाकात की।

सेरमिग की स्थापना 1960 के दशक में इटली के तूरीन में हुई है जब वाटिकन द्वितीय महासभा का समय था एवं संत पापा जॉन २३वें कलीसिया के परमाध्यक्ष थे। संत पापा ने कहा कि एक छोटा बीज एक विशाल वृक्ष के रूप में बढ़ गया है, जो ईश्वर के राज्य की सच्चाई है। उन दिनों कलीसिया में सुसमाचार से प्रेरित होकर सेवा और सामुदायिक जीवन के कई अनुभवों की शुरूआत हुई।

सेरमिग

उनमें से एक है बाल मिशनरी सेवा, सेरमिग। इसकी स्थापना तूरीन में बालक-बालिकाओं के लिए हुई थी जिसको बेहतर रूप में, प्रभु येसु के साथ बालक बालिकाओं का दल कहा जा सकता है। प्रभु ने स्पष्ट रूप से कहा था, "मुझसे अलग रहकर तुम कुछ नहीं कर सकते।" (यो.15:5) इसके फल से साफ पता चलता है कि सेरमिग केवल सक्रियतावाद नहीं है, बल्कि प्रभु लिए एक स्थान देता, उनसे प्रार्थना करता, छोटे और गरीब लोगों में उन्हें पहचानता, हाशिये पर जीवनयापन करनेवालों में उनका स्वागत करता है।

सेरमिग के इतिहास की याद करते हुए संत पापा ने कहा कि इसके इतिहास में कई घटनाएँ हैं जिन्हें छोटे या बड़े रूप में जीवित सुसमाचार का चिन्ह कहा जा सकता है, लेकिन उनमें से एक है जो असाधारण ताकत के साथ खड़ा है : तूरीन के सैन्य अर्सेनल का "शांति के अर्सेनल" में परिवर्तन।  अर्सेनल को 1580 में बारूद के कारखाने के रूप में स्थापित गया था, फिर समय के साथ इसने अपना कार्य बदल दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में, अर्सेनल को सेरमिग के युवाओं को दिया गया, जिन्होंने इसे शांति के स्थान के रूप में बदलने का फैसला किया।  

संत पापा ने कहा, "यह एक ऐसा तथ्य है जो अपने बारे बतलाता है। यह एक संदेश है... ।" हमें "राह से भटकने" से सावधान रहना चाहिए। शांति के अर्सेनल और सामान्य रूप से ख्रीस्तीय समुदायों के सभी कार्य सुसमाचार के चिन्ह हैं। शांति के अर्सेनल, ईश्वर के सपने का फल है जिसे हम ईश्वर के वचन की शक्ति कह सकते हैं। राष्ट्र तलवार नहीं उठाएगा ... वे अब युद्ध की कला नहीं सीखेंगे।” यही ईश्वर का सपना है जिसको पवित्र आत्मा उनके विश्वासी लोगों द्वारा इतिहास में आगे ले चलता है।

शांति का अर्सेनल

संत पापा ने कहा कि एरनेस्तो, उनकी पत्नी एवं सेरमिग के पहले दल का विश्वास एवं सदइच्छा कई युवाओं के लिए सपना बन गया। एक ऐसा सपना जिसने हथियारों के अर्सेनल को शांति के अर्सेनल में बदल दिया। और शांति के अर्सेनल में किस चीज का उत्पादन किया जाता है? उन्होंने गौर किया इसमें शांति के शस्त्रों का उत्पादन किया जाता है, मुलाकात, संवाद और स्वीकृति के माध्यम से। उन्हें अनुभवों के द्वारा बनया जाता है। अर्सेनल में युवाओं को मुलाकात करना, बातचीत करना एवं स्वागत करना सिखाया जाता है, क्योंकि दुनिया तभी बदल सकती है जब हम बदलते हैं। ऐसे समय में जब युद्ध के स्वामी युवाओं को अपने भाई बहनों से लड़ने के लिए मजबूर कर रहे हैं हमें ऐसे स्थलों की जरूरत है जहाँ भाईचारा को महसूस किया जा सके। वास्तव में सेरमिग को आशा का भ्रातृत्व कहा जाता है जिसको दूसरे तरह से भी कहा जा सकता है, भ्रातृत्व की आशा। सेरमिग के मित्रों के दिलों को जीवंत करनेवाला सपना एक भ्रातृ संसार की आशा है।

संत पापा ने कहा कि इसी सपने को मैं विश्व पत्र फ्रातेल्ली तूती में कलीसिया और दुनिया में फिर से स्थापित करना चाहता हूँ। उन्होंने सदस्यों से कहा कि वे इसी सपने के हिस्से हैं और अपना हाथ, पाँव, आँख देकर उसे जीवन दे रहे हैं। इसके लिए उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दिया।  

शांति के अर्सेनल का निर्माण करने से कभी न थकें

संत पापा ने सेरमिग के सदस्यों को प्रोत्साहन देते हुए कहा, “शांति के अर्सेनल का निर्माण करने से कभी न थकें, भले ही लगे कि काम समाप्त हो गया है, किन्तु निर्माण जारी रखें।” इन दिनों, ब्राजील और जॉर्डन में भी आशा के अर्सेनल की शुरूआत की गई है। संत पापा ने याद दिलाते हुए कहा, “किन्तु शांति, आशा, मुलाकात और सौहार्द आदि सच्चाईयों का निर्माण पवित्र आत्मा, ईश्वर की आत्मा के द्वारा किया जाता है। उनकी आत्मा उन सभी लोगों के हृदयों में बोलता है जो उन्हें सुनना जानते हैं।

संत पापा ने मिशन में सहभागिता की शर्तों को सामने रखते हुए कहा कि सद इच्छा रखनेवाला हर स्त्री और पुरूष शांति, आशा, मुलाकात एवं सौहार्द के अर्सेनलों में कार्य कर सकता है। जिसके लिए हृदय को सुसमाचार में सुदृढ़, विश्वास एवं प्रार्थना के समुदाय से जुड़ा होना है। और जिन्हें एक पूर्ण मिशनरी के रूप में बुलाहट प्राप्त है वे पूरी तरह समर्पित होकर इसमें अपना योगदान दे सकते हैं। अंत में, संत पापा ने उन्हें धन्यवाद दिया और माता मरियम की मध्यस्थता से प्रार्थना की।   

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07 January 2023, 16:20