आमदर्शन समारोह में पोप : विनम्रता से ईश्वर के सामीप्य का प्रचार करें
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार, 15 फरवरी 2023 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम सभागार में एकत्रित, सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
“हम अपनी धर्मशिक्षा माला को जारी रखें, हमने जो विषयवस्तु चुना है : वह है "सुसमाचार प्रचार के लिए उत्साह, प्रेरितिक उत्साह।” चूँकि सुसमाचार प्रचार करने के उत्साह में: मन, दिल और हाथ सब कुछ शामिल होता है। हम सुसमाचार प्रचार के उत्साह पर बात करेंगे। येसु को उद्घोषणा के आदर्श और गुरू के रूप में देखने के बाद, आज हम प्रथम शिष्यों की ओर मुड़ते हैं। सुसमाचार कहता है कि येसु ने बारह शिष्यों की नियुक्ति की (जिनको उन्होंने प्रेरित नाम दिया) ताकि वे उनके साथ रह सकें और उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिए बाहर भेज सकें।” संत पापा ने कहा कि यह एक पहलू है जो विरोधाभासी लगता है : उन्होंने उन्हें अपने साथ रहने तथा भेजे जाने और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बुलाया। कोई कह सकता है कि या तो ठहरना है या जाना है। लेकिन येसु के लिए साथ रहे बिना जाना नहीं हो सकता। और गये बिना साथ नहीं रहा जा सकता। आइये, हम समझने की कोशिश करें कि येसु ने इन चीजों के माध्यम से क्या कहा है।
येसु के साथ रहकर ही सुसमाचार का प्रचार संभव
साथ रहे बिना कोई नहीं जा सकता। शिष्यों को मिशन में भेजने के पहले, सुसमाचार बतलाता है कि ख्रीस्त ने उन्हें अपने पास बुलाया। (मती. 10:1) संत पापा ने कहा, “उद्घोषणा की शुरूआत प्रभु के साथ मुलाकात से होती है; हर ख्रीस्तीय क्रिया-कलाप, विशेषकर, प्रेरिताई की शुरूआत वहीं से होती है। साक्ष्य देने का अर्थ है उन्हें प्रतिबिम्बित करना। लेकिन यदि हम उनके प्रकाश को ग्रहण नहीं करते तब हम बुझ जायेंगे। यदि हम उनके साथ नहीं रहेंगे तो हम अपना ही साक्ष्य देंगे, और ये सब कुछ व्यर्थ होगा। इसलिए, सिर्फ उनके साथ रहकर ही हम येसु के सुसमाचार का प्रचार कर सकते हैं।”
प्रशिक्षण के लिए अनुभव करना जरूरी
उसी तरह, गये बिना साथ नहीं रहा जा सकता। वास्तव में, मसीह का अनुसरण करना अंतर्मुखी तथ्य नहीं है : बिना उद्घोषणा, बिना सेवा और बिना मिशन के येसु के साथ संबंध नहीं बढ़ता। सुसमाचार में प्रभु शिष्यों को उनकी तैयारी पूरी करने से पहले भेजते हैं: उन्हें बुलाने के कुछ ही समय बाद वे उन्हें भेज देते हैं। संत पापा ने कहा कि इसका अर्थ है प्रशिक्षण के लिए अनुभव करना जरूरी है। संत पापा ने कहा, “आइए, हम शिष्यों के लिए इन दो मूलभूत क्षणों को याद करें: येसु के साथ रहना और येसु के द्वारा भेजा जाना।”
शिष्यों को अपने पास बुलाने और उन्हें भेजने से पहले, ख्रीस्त उन्हें एक परामर्श देते हैं जिसको "मिशनरी अनुदेश" कहा जाता है। संत मती रचित सुसमाचार के अध्याय 10 में इसे घोषणा के एक "संविधान" के रूप में पाया जा सकता है। संत पापा ने इसका पाठ करने की सलाह देते हुए कहा, “मैं तीन पहलुओं की ओर ध्यान खींचता हूँ : प्रचार क्यों करना है, क्या प्रचार करना है और किस तरह प्रचार करना है।”
प्रचार क्यों करना है?
इसकी प्रेरणा येसु के शब्दों में है: "तुम्हें मुफ्त में मिला है मुफ्त में दे दो।" (पद. 8) संत पापा ने कहा कि हमने मुफ्त में ग्रहण किया है इसलिए मुफ्त में देना है। घोषणा हमसे शुरू नहीं होती लेकिन उस सुन्दरता से जिसको हमने मुफ्त में हमारी योग्यता के बिना प्राप्त किया है। येसु से मुलाकात करने, उन्हें जानने के द्वारा हम महसूस करते हैं कि हम उनसे प्यार किये गये एवं बचाये गये हैं। यह एक महान वरदान है जिसको सिर्फ अपने आप तक सीमित नहीं रखा जा सकता, हम इसे बांटना चाहते हैं, उसी तरीके से जिस तरीके से यह हमें मुफ्त में प्राप्त हुआ है। दूसरे शब्दों में, हमारे पास एक उपहार है अतः हम उसे बांटने के लिए बुलाये गये हैं। हमने एक उपहार प्राप्त किया है और हमारी बुलाहट है कि हम अपने आपको दूसरों को दें। हममें ईश्वर की संतान होने की खुशी है, इसे उन भाइयों एवं बहनों के बीच बांटा जाना है जो इसे अभी भी नहीं जानते। यही घोषणा का कारण है : जाना और प्राप्त आनन्द को बांटना।
क्या प्रचार करना है?
येसु कहते हैं, "यह उपदेश दिया करो- स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।" (पद.7) संत पापा ने कहा कि यही घोषणा कियe जाना है कि ईश्वर निकट हैं। किन्तु हम कभी न भूलें कि ईश्वर हमेशा लोगों के करीब रहे हैं, उन्होंने ऐसा स्वयं लोगों से कहा है। "देखो, कौन सा ईश्वर राष्ट्रों के निकट है जैसे मैं तुम्हारे निकट हूँ?" उन्होंने कहा कि सामीप्य ईश्वर का एक सबसे महत्वपूर्ण चीज है। तीन महत्वपूर्ण चीजें हैं : सामीप्य, करुणा और कोमलता। हम इसे न भूलें। यही ईश्वर की वास्तविकता है। हम अपने उपदेश में अक्सर लोगों को कुछ करने का निमंत्रण देते हैं जो उचित है लेकिन हम यह भी न भूलें कि मुख्य संदेश यह है कि वे सामीप्य, करुणा और कोमलता है। ईश्वर के प्रेम का स्वागत करना अधिक कठिन है क्योंकि हम हमेशा खुद को केंद्र में रखना चाहते हैं, हम ही मुख्य पात्र बनना चाहते हैं। हम अपने आपको आकार देने के बजाय, करने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं, सुनने की अपेक्षा अधिक बोलना चाहते हैं। लेकिन यदि अपने काम को ही प्राथमिकता देते हैं तो हम खुद को ही मुख्य पात्र बनाते हैं। जबकि घोषणा में हमें ईश्वर को पहला स्थान दिया जाना चाहिए और दूसरों को यह महसूस करने का अवसर देना चाहिए कि वे निकट हैं।
कैसे प्रचार करना है
इस पहलू पर येसु सबसे अधिक ध्यान देते हैं – कैसे प्रचार करना है, क्या तरीका है, किस भाषा में प्रचार करना है आदि महत्वपूर्ण है। यह बतलाता है कि साक्ष्य देने में तरीका महत्वपूर्ण है। साक्ष्य देने में सिर्फ मन और कुछ कह देना पर्याप्त नहीं होता बल्कि इसमें मन, हृदय, हाथ सब कुछ शामिल होता है। ये व्यक्ति की तीन भाषाएँ हैं : विचार की भाषा, स्नेह की भाषा और कार्य की भाषा।
व्यक्ति सिर्फ मन से अथवा हृदय से या सिर्फ हाथ से सुसमाचार का प्रचार नहीं कर सकता। इन सभी को एक साथ होना हैं। साक्ष्य देने में सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हम येसु के अनुसार साक्ष्य दें। वे नहीं चाहते हैं कि हम तर्क करें और अपने आपकी सफाई दें।
हम सोच सकते हैं यदि हम प्रासंगिक, असंख्य, प्रतिष्ठित बनेंगे और दुनिया हमारी बात सुनेगी और हमारा सम्मान करेगी एवं हम भेड़ियों पर विजय प्राप्त करेंगे। संत पापा ने कहा कि ऐसा नहीं है। वे कहते हैं मैं भेड़ियों के बीच तुम्हें भेड़ों की तरह भेज रहा हूँ। कहने का अर्थ है कि यदि हम भेड़ों की तरह नहीं होंगे तो प्रभु भेड़िये से हमारी रक्षा नहीं करेंगे। प्रभु कहते हैं विनम्र बनो और निर्दोष बने रहो एवं त्याग करने के लिए तैयार रहो। मेमना बनने का अर्थ है, विनम्र, निर्दोष, समर्पित और कोमल बनना। इस तरह चरवाहा अपनी भेड़ों को पहचानेंगे एवं भेड़िये से उनकी रक्षा करेंगे। इसके बजाय, भेड़ियों के कपड़ों में मेमनों का पर्दाफाश किया जाता और उन्हें मार डाला जाता है। कलीसिया के एक धर्माचार्य ने लिखा है – जब तक हम मेमने बने रहेंगे हम विजय प्राप्त करेंगे, चाहे कई भेड़िये क्यों न हमें घेर लें, हम उनसे बच जायेंगे। लेकिन यदि हम भेड़िये बन जायेंगे तो हम हारेंगे क्योंकि हम चरवाहे की मदद से वंचित होंगे। वे भेड़ियों की नहीं मेमनों की मदद करते हैं। (संत जॉन ख्रीस्तोस्तोम, संत मती रचित सुसमाचार पर उपदेश 33) यदि हम प्रभु के हैं तो प्रभु को अपना चरवाहा होने दें जो विनम्र, विनीत, प्रभु के लिए दीन मेमनों के चरवाहे हैं।
मिशन में बाधक
किस तरह घोषणा की जानी चाहिए इसपर आगे चर्चा करते हुए संत पापा ने कहा, “यह गौर करने वाली बात है कि येसु मिशन में किन चीजों को ले जाना है उनके बारे बोलने के बदले किन चीजों को नहीं ले जाना है उनका जिक्र करते हैं। उन्होंने याद किया कि कई बार शिष्य जिनके बारे कहा जाता है कि उसने अपना जीवन ईश्वर को समर्पित कर दिया है एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जाते समय, उसके पास बहुत सारे समान होते हैं।” जबकि प्रभु कहते हैं, "अपने फेंटे में सोना, चांदी या पैसा नहीं रखो। रास्ते के लिए न झोली, न कुरते, न जूते, न लाठी ले जाओ।" (पद 9-10) वे कहना चाहते है कि हम भौतिक निश्चितताओं पर निर्भर न करें, सांसारिकता के बिना संसार में जायें। संत पापा ने कहा कि एक कलीसिया का दुनियादारी में गिर जाना सबसे बुरी बात है। हमें सरलता से जाना है। प्रचार करने का अर्थ, बोलने की अपेक्षा अधिक दिखाना है। हम येसु को कैसे दिखायें? हम साक्ष्य के द्वारा येसु को प्रकट कर सकते हैं। अंततः, समुदाय में एक साथ आगे बढ़ते हुए येसु सभी शिष्यों को भेजते हैं वे किसी को अकेला नहीं भेजते। प्रेरितिक कलीसिया पूरी तरह मिशनरी है और मिशन में ही वह अपनी एकता को पाती है। अतः हमें विनम्र होकर एवं मेमने की तरह अच्छे बनकर दुनियादारी से रहित एक साथ आगे बढ़ना है। घोषणा करने की कुँजी यहीं है। यही सुसमाचार प्रचार की सफलता का राज है। संत पापा ने कहा, “आइये, हम येसु के निमंत्रण का स्वागत करें, उनके शब्द हमारे लिए संदर्भ बिन्दु बनें।”
इतना कहते हुए संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की। उन्होंने उपस्थित सभी लोगों एवं उनके परिवारों पर ईश्वर की आशीष की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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