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बुजूर्गों से मुलाकात करते संत पापा फ्रांँसिस बुजूर्गों से मुलाकात करते संत पापा फ्रांँसिस   (Vatican Media)

पोप फ्राँसिस : ‘मेरे वर्षगाँठ के उपहार के रूप में मैं शांति चाहता हूँ’

संत पापा फ्राँसिस ने 13 मार्च को काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष चुने जाने का 10वाँ वर्षगाँठ मनाया। इस अवसर पर वाटिकन माडिया ने एक पोडकास्ट तैयार किया है जिसमें पोप बतलाते हैं कि उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी कि वे तीसरे विश्व युद्ध के समय में पोप बनेंगे। संत पापा ने बतलाया कि उनके लिए सबसे खुबसूरत पल था संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में बुजूर्ग लोगों से मुलाकात करना। वे एक चीज देखना पसंद नहीं करते हैं वह है जवानों का युद्ध में मारा जाना।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा ने कहा, “ मुझे पहला शब्द आता है वह है कि यह बीते कल के समान लगता है...”

संत मर्था आवास में, दूसरी बेला का समय था। यह एकमात्र साक्षात्कार नहीं था, इस अवसर के लिए पहले भी कई साक्षात्कार हो चुके हैं। सोच जो उनके परमाध्यक्षीय काल की एक गहन कलीसियाई अवधि की ओर जाती है। इस 10 साल के समय को “तनाव” में व्यतीत किये गये, उन्होंने कहा कि यह समय स्थान से बड़ा है और इसने मुलाकातों, प्रेरितिक यात्राओं और चेहरों को देखा है।     

पोप फ्राँसिस द्वार पर खड़े होकर प्रतीक्षा कर रहे थे, उनके हाथ में उनकी छड़ी थी। ...हमेशा की तरह वाटिकन मीडिया के माईक्रोफोन पर ‘लोगो’ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “एक पोडकास्ट? यह क्या है? बलताने के बाद उन्होंने कहा, “अच्छा है, चलिये करते हैं।” फिर सवाल: वे क्या महसूस कर रहे हैं जब वे अपने जीवन और प्रेरिताई के इस मील के पत्थर के अवसर को दुनिया के साथ साझा कर रहे हैं?

“समय उड़ता है...यह जल्दी में है। जब आप आज को पकड़ना चाहते हैं, तभी कल हो जाता है। इस प्रकार से जीना कुछ नया है। ये दस साल ऐसे ही गुजरे हैं: तनाव में रहते हुए।”

हजारों दर्शक, धर्मप्रांतों और पल्लियों से सैंकड़ों मुलाकातें, विश्व के हर कोने में करीब 40 प्रेरितिक यात्राएँ, संत पापा को इन सभी की याद स्पष्ट है।  

वे अपने सबसे खूबसूरत पल के बारे बतलाते हुए कहते हैं कि यह 28 सितम्बर 2014 का दिन था जब संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में उन्होंने विश्वभर के बुजूर्गों एवं दादा-दादी से मुलाकात की।

उन्होंने कहा, “बुजूर्गों के पास प्रज्ञा है और वे मुझे बहुत मदद करते हैं, मैं भी बुजूर्ग हूँ, है कि नहीं?”

इसके साथ उन्होंने इस बात को भी प्रकट किया कि कई बुरे क्षण रहे हैं और वे क्षण युद्ध के आतंक से जुड़े हैं। पहला, रेडिपुलिया और अंसियो में युद्ध कब्रस्थान का दौरा, नॉरमैंडी में मित्र राष्ट्रों के उतरने की स्मृति, सीरिया में युद्ध को रोकने के लिए जागरण प्रार्थना और इस समय, यूक्रेन में एक साल से अधिक समय से जारी बर्बरता।

संत पापा ने कहा, “युद्ध के पीछे, हथियारों का उद्योग है, यह शैतानी है।"

उन्होंने कहा कि वे “एक धर्माध्यक्ष के रूप में”, “दुनिया के आखरी छोर से आये थे”, उन्हें उम्मीद नहीं थी कि वे पोप चुने जायेंगे और सार्वभौमिक कलीसिया का संचालन तृतीया विश्व युद्ध के दौरान करेंगे। उन्हें लग रहा था कि सीरिया ही एकमात्र देश होगा, लेकिन दूसरे देश भी शामिल हुए।”

संत पापा ने कहा, “मुझे जवानों को मरते देखना बहुत दुःख देता है- चाहे वे रूसी हों या यूक्रेनी, मैं इसपर ध्यान नहीं देता- जो लौटकर नहीं आते। यह कठिन है।”

संत पापा फ्राँसिस को अपने इस महत्वपूर्ण वर्षगांठ के अवसर पर उपहार की मांग करने में कोई हिचकिचाहच नहीं है वे कहते हैं "शांति, हमें शांति चाहिए।"

अतः कलीसिया के लिए, दुनिया के लिए और जो मानवता के लिए दुनिया का संचालन करते हैं उनके लिए संत पापा के “तीन सपनों” के तीन शब्द हैं : “भ्रातृत्व, रोना, हंसना...”

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14 March 2023, 16:19