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संत पापाः चंगाई हेतु क्रूस की ओर देखें

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय धर्मशिक्षा माला में क्रूस की ओर निगाहें फेरे का आहृवान करते हुए दुःख-दर्द से निजात के उपाय बतलाये।

दिलीप संजय  एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

पिछले रविवार की धर्मविधि में हमने प्रभु येसु ख्रीस्त का दुःखभोग सुना। इसकी समाप्ति, “उन्होंने पत्थर पर मुहर लगयी” से हुई। ऐसा प्रतीत हुआ मानो सारी चीजें खत्म हो गई हैं। शिष्यों के लिए वह पत्थर ऐसा लगा जैसे उनकी सारी आशाएं पूरी तरह से खत्म हो गई हैं। स्वामी को क्रूसित किया गया, उन्हें अति दर्दनाक और क्रूरता में, शहर से बाहर ले जाकर कुख्यात मौत दिया गया- यह एक सार्वजनिक विफलता थी, एक बहुत ही बुरा अंत। लेकिन आज की स्थिति में शिष्यों की निराशा जिससे वे दबे थे हमें एकदम से कुछ भी विचित्र नहीं लगता है। उदासी भरे विचार और निराशापूर्ण अनुभव हमारे जीवन के भी अंग बनते हैं। लेकिन क्यों ईश्वर के संबंध में हम इतने उदासीन हैंॽ क्यों दुनिया में इतनी सारी बुराइयाँ हैंॽ क्यों अन्याय निरंतर बढ़ते जाते हैं और क्यों शांति की लम्बी प्रतिक्षा में हम नहीं पहुंच पाते हैंॽ हम क्यों युद्ध में इतने उलझे हुए हैं और एक-दूसरों को नष्ट करने में लगे हैंॽ हर व्यक्ति के हृदय में, कितने ही आशाएं धूमिल हो गई हैं, हम कितनी निराशा को पाते हैं। इसके साथ ही, हम अपने में इसका अनुभव करते हैं कि बीता हुआ समय हमारे लिए, दुनिया के लिए बेहतर था, शायद कलीसिया में भी, चीजें ठीक से नहीं चल रही हैं जैसे कि वे एक समय में थी...संक्षेप में, यहाँ तक कि आज भी आशा हमारे लिए अविश्वास रूपी पत्थरों के नीचे दबी हुई लगती हैं। संत पापा ने सभों को इस बात के लिए निमंत्रण दिया कि हम अपनी आशा के बारे में विचार करें, कि वह किस में हैॽ क्या आप की आशा सजीव है या यह दबी हुई है या आपने उसे अपने दराज में एक स्मृति स्वरुप रखा हैॽ क्या यह आपको जीवन में आगे बढ़ने हेतु मदद करता है या एक संगीन याद की भांति है जिसका मानों अस्तित्व ही नहीं हैॽ आप की आशा आज कहाँ हैॽ

हमारी आशा कहांँ 

संत पापा ने कहा कि शिष्यों के जेहन में क्रूस की आकृति छाप जाती है- और वहाँ सारी चीजें खत्म हो जाती हैं। लेकिन थोड़े समय के बाद, वे उस क्रूस में एक नयी शुरूआत की खोज करेंगे। प्रिय भाइयो एवं बहनो, ईश्वरीय आशा का उद्भव ऐसे ही होता है। उसकी उत्पत्ति ऐसे ही होती है और पुनः जीवन के घने अंधेरे में, हमारे निराशा भरी आशाओं की स्थिति में होती है-और आशा हमें कभी निराश नहीं करती है। हम विशेष रुप से क्रूस के बार में विचार करें- यातना के सबसे भयानक यंत्र से, ईश्वर अपने प्रेम की सबसे बड़े निशानी को स्थापित करते हैं। हमारे रोज दिन के जीवन का वह गुण जो अपने में शांत, नम्र हमें आगे बढ़ने में मदद करता है। आशा के बिना हम जीवित नहीं रह सकते हैं। हम अपनी आशा के बारे में चिंतन करते हुए आज उस क्रूस की ओर देखें जिससे आशा हममें जन्मे, और हमें उदासी से चंगाई प्रदान करे। संत पापा ने कहा कि हम कितने ही लोगों को गलियों में दुःख से भरे पाते हैं। लोगों की आंखों में दुःख है जहाँ वे अपने में खोये चलते हैं, मोबाइल फोन में डूबे रहते, जिसमें शांति और आशा नहीं होती है। अपने दुःखों से निजात पाने हेतु हमें थोड़ी आशा की आवश्यकता है, अपने में व्याप्त दुःख भरी कटुता के कारण हम कलीसिया और विश्व को दूषित करते हैं। संत पापा ने सभों को क्रूस की ओर निगाहें फेरने का आहृवान किया। वहाँ येसु को नंगा, वस्त्रविहीन, घायल और पीड़ा में देखते हैं। क्या यह सभी चीजों की समाप्ति हैॽ वहाँ हमारे लिए आशा निहित है।

येसु की नग्नता

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि आइए हम दो बातों के आधार पर आशा को समझने की काशिश करते जो मरी लगती है, अपने में पुनर्जन्म लेती है। प्रथम स्थान में हम येसु की नग्नता को देखें। “उन्होंने येसु को क्रूस पर चढ़ाया औऱ चिट्ठी डाल कर उनके कपड़े बांट लिये” (35)। ईश्वर नंगा कर दिये जाते हैं- वे जिनका सबकुछ है अपने को सारी चीजें से लूट लिये जाने देते हैं। लेकिन वह अपमान हमारे लिए मुक्ति का मार्ग बनता है। इस प्रकार ईश्वर हमारे रूप-रंग, दिखावे पर विजय होते हैं। वास्तव में, हम अपने को नंगा करने, अपनी सच्चाई से रूबरू होने में कठिनाई का अनुभव करते हैं, हम सदैव अपनी सच्चाई को ढ़कने की कोशिश करते क्योंकि हम इसे पसंद नहीं करते हैं। हम बाह्य रुप से अच्छा दिखने हेतु अच्छे कपड़ों से ढ़ंकते हैं, यह मुखौटा लगाने जैसा होता है जिससे जो हम नहीं हैं उससे भी अच्छा दिखें। हमारा यह रूप-सज्जा दूसरे से बेहतर दिखने की चाह में होती है- हम सोचते हैं कि अपने को दिखलाना महत्वपूर्ण है जिससे दूसरे हमारे बारे में अच्छी बातें करें। हम व्यर्थ की चीजों से अपना श्रृंगार करते हैं लेकिन वे हमें शांति प्रदान नहीं करती हैं। श्रृंगार के खत्म होने पर हम अपने असली रुप को आईने में देखते जिसे ईश्वर प्रेम करते हैं न कि हमारे मुखौटे को। सारी चीजों से वंचित येसु हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि आशा का पुनर्जन्म हमारे लिए अपनी सच्चाई में बने रहने से होता है, जहाँ हम अपने बनावटीपन को छोड़ते हैं, अपने झूठे सह-अस्तित्व को शांतिपूर्ण ढ़ंग से परित्याग करते हैं। बहुत बार हम झूठी बातों के इतने आदी हो जाते कि वे हमें सच्ची लगने लगती हैं इस तरह हमारा जीवन जहरीला बन जाता है। संत पापा ने कहा कि हमें अपने हृदय की ओर, जरुरी बातों, साधारण जीवन की ओर लौटने की आवश्यकता है, हमें बहुत सारी व्यर्थ की चीजों से अपने को दूर करना है जो हमारी आशा को नष्ट करती है। आज की जटिल परिस्थिति में जहाँ सारी चीजों का अर्थ खोता नजर आता है, हमें साधारण जीवन जीने, संयम के मूल्य को फिर से खोजने की जरूरत है, त्यागमय जीवन, उन बातों को अपने जीवन से दूर करने की जरुरत है जो हमारे हृदय को दूषित करती और हमें दुःखित करती है। हमें अपने जीवन से अनउपयोगी चीजों को दूर कर, अपने में सफाई करने की जरुरत है। हमें अपने हृदयरुपी अलमारी की सफाई करने की आवश्यकता है। यह एक सुन्दर क्रिया-कलाप है।

घायल येसु को देखें

दूसरी बात हम क्रूस में घायल येसु को देखें। संत पापा ने कहा कि क्रूस हमें कीलों को दिखलाता है जो येसु के हाथों और पैरों में ठोंका गया था। शरीर के घावों के संग आत्मा के घाव भी जुड़ जाते हैं। येसु को हम क्रूस में अकेला पाते हैं, सभों ने उन्हें धोखा दिया, उन्हें छोड़ दिया। वे धार्मिक अगुवों और सामाजिक शक्तिशालियों द्वारा सजा दिये जाते हैं, यहाँ तक कि वे अपने पिता के द्वारा परित्यक्त अनुभव करते हैं। उनकी सजा का कारण क्रूस में अंकित है, “येसु नासरी, याहूदियों का राजा”। यह एक उपहास है, जब लोगों ने उन्हें राजा बनाना चाहा तो वे उनसे दूर भागे, अब वे राजा होने के लिए अपमानित किये जाते हैं। यद्यपि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था उन्हें दो अपराधियों के बीच में रखा गया, और येसु के बदले उन्होंने खूंखार बराबस का चुनाव किया। अंततः येसु को हम शरीर और आत्मा में घायल पाते हैं। किस रुप में येसु की नग्नता, सारी चीजों से उनका वंचित किया जाना हमारी आशा को बढ़ाता हैॽ

घावों का उपचार 

संत पापा ने कहा कि क्या हम जीवन में अपने को घायल नहीं पातेॽ हम अपने छोटे-बड़े घावों का  क्या करते हैं जो हमारे शरीर और आत्मा में सदैव एक निशानी छोड़ देता है। हममें से ऐसा कोई नहीं जो अपने अतीत में नसमझी के घाव, दुःख से छुटकारा पाने में कठिनाई का अनुभव नहीं किया  हो। वहीं हम अपने को गलतियों, कठोर शब्दों और अन्यायपूर्ण बातों के शिकार पाते हैं। ईश्वर अपने घावों को हमारी आंखों से नहीं छिपाते हैं। वे हमें उन्हें दिखलाते हैं जिससे हम उनके द्वारा नये जीवन, पास्का में प्रवेश कर सकें, अपने घावों को ज्योति पुंज बना सकें। येसु अपने क्रूस से किसी के साथ भेदभाव नहीं करते बल्कि वे सभों को प्रेम करते हैं। वे अपने दुःख देने वालों को प्रेम करते औऱ उन्हें क्षमा देते हैं (लूका.23.34)। इस भांति वे बुराई को अच्छी में, दुःख को खुशी में बदल देते हैं।

हमारे घाव ज्योतिर्मय बनें

संत पापा ने कहा कि हमारे जीवन के घाव छोटे या बड़े हैं इससे कोई क्यों मतलब नहीं, लेकिन हम उनका क्या करते हैं यह अधिक अर्थ रखता है। मैं उन्हें आक्रोश और उदासी से संक्रमित होने की अनुमति दे सकता हूँ, या इसके बजाय मैं उन्हें येसु के साथ जोड़ता हूँ, ताकि मेरे घाव भी ज्योतिर्मय हो सके। हमारे घाव भी आशा के उद्गम स्थल हो सकते हैं उनके लिए आंसू बहने के बदले हम दूसरों की आंसूओं को पोंछे। उन बातों के लिए दुःखित होने के बदले जो हमसे छीन ली गई हैं हम उनकी चिंता करें जो अपने जीवन में कमी का एहसास करते हैं। अपने चिंता में खोये रहने के बदले हम दूसरों की परवाह करें जो दुःख के शिकार हैं। प्रेम के लिए प्यासा होने के बदले हम उन्हें प्रेम करे जिन्हें हमारी जरुरत है। क्योंकि केवल अपने लिए सोचना बंद करने के द्वारा हम अपने को पाते हैं। और ऐसा करने के द्वारा ही जैसे कि धर्मग्रंथ हमें कहता है हमारे घाव शीघ्रता से भरते और हमारे आशा नवीन होती है।

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05 April 2023, 16:18