ख्रीस्तियों ने दंगा प्रभावित मणिपुर में शांति की अपील की है
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
ख्रीस्तीय कार्यकर्ता मिनाक्षी सिंह ने 24 जून को ऊका समाचार को बतलाया कि “करीब 40 संगठनों ने मणिपुर के लोगों के प्रति एकजुटता व्यक्त की।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने म्यांमार की सीमा से लगे पहाड़ी राज्य में जातीय हिंसा पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन उन्होंने 26 जून को संघीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ बैठक की।
उत्तर प्रदेश में एक चैरीटी संस्था करुणा में एकता की महासचिव सिंह ने कहा, "हम मांग करते हैं कि प्रधानमंत्री तुरंत इस मुद्दे को संबोधित करें।"
दिल्ली रैली में भाग लेनेवाले संगठनों ने शाह को एक ज्ञापन सौंपा, जिन्होंने 24 जून को देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित इसी तरह के कार्यक्रमों के साथ एक सर्वदलीय बैठक बुलाई।
तीन पूर्वोत्तर राज्यों - असम, नागालैंड और मेघालय - तथा दक्षिणी तमिलनाडु राज्य में शांति बहाली की मांग को लेकर सार्वजनिक रैलियां आयोजित की गईं।
मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में भी एक रैली आयोजित की गई, जहां प्राथमिकता पाने के लिए बहुसंख्यक मितेई हिंदुओं को आदिवासी दर्जा देने के एक अदालती प्रस्ताव पर 3 मई को सांप्रदायिक दंगा शुरू हुआ था।
कुकी, ज्यादातर पहाड़ी स्थानों पर रहनेवाले ख्रीस्तीय, इस कदम का विरोध करते हैं क्योंकि उनका आरोप है कि उन्हें आदिवासी का दर्जा मिलने से समृद्ध मितेई हिंदुओं के लिए आदिवासी बहुल स्थानों में भूमि अधिग्रहण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
कथित तौर पर हिंसा में 131 से अधिक लोग मारे गए है, 419 लोग घायल हुए हैं और 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हैं।
हालाँकि कुकी का दशकों से मितेई हिंदुओं के साथ विवाद चल रहा है, लेकिन यह पहली बार है कि पूजा स्थलों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया है। गृहयुद्ध प्रभावित म्यांमार की सीमा से लगे मणिपुर में हिंदू समर्थक भारतीय जनता पार्टी का शासन है।
कलीसिया के सूत्रों के अनुसार हिंसक भीड़ ने 200 से अधिक कूकी गाँवों और 250 से अधिक पूजा स्थलों को जला दिया है।
ये संख्या बढ़ सकती है क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार हिंसा से प्रभावित इलाकों अधिकांश ख्रीस्तीय सुरक्षा के लिए भाग गये हैं और उन स्थानों से जानकारी प्राप्त करना कठिन है।
गृहमंत्री को सौंपे गये ज्ञापन में प्रदर्शनकारियों ने गिरजाघरों के विनाश एवं हजारों लोगों के विस्थापन पर चिंता व्यक्त की है।
दंगा प्रभावित मणिपुर राज्य के पादरी एजेकिएल एम ने कहा कि राज्य में कानून और व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है, जहां वर्तमान में सशस्त्र भीड़ शासन कर रही है।
पादरी ने कहा कि कई दशकों में निर्मित और विकसित की गई संपत्तियां कुछ ही घंटों में राख में तब्दील हो गईं।
एजेकिएल ने कहा कि राज्य सरकार जीवन की रक्षा करने और लोगों की सम्पति की रक्षा करने में अससमर्थ है।
संघीय सरकार ने 8 जून को "राज्य में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को राहत" प्रदान करने के लिए 1 बिलियन भारतीय रुपये (12.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर) की राशि को मंजूरी दी।
ग्रेस ने कहा कि पुनर्वास पैकेज उन व्यक्तियों की जरूरतों को पर्याप्त रूप से पूरा करने में कम है, जिन्हें शारीरिक हिंसा, अपने घरों और पशुधन की हानि एवं कुछ मामलों में उनकी आजीविका के पूरे साधन का नुकसान हुआ है।
करीब 1000 व्यक्ति जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं, पड़ोसी राज्यों असम और मिजोराम में शरण की खोज की है जहाँ उन्हें सबसे जरूरी चीजों जैसे भोजन, कपड़े और स्वच्छ पेयजल की जरूरत है।
मीनाक्षी ने कहा, विस्थापित बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं।
ज्ञापन में संघीय सरकार से राहत शिविरों में पर्याप्त सुविधाओं की मांग की गर्ई है। प्रदर्शनकारी मुआवजे में बढ़ोतरी चाहते है।
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