सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में नॉट अलोन मानव भ्रातृत्व पर सम्मेलन, 10.06.2023 सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में नॉट अलोन मानव भ्रातृत्व पर सम्मेलन, 10.06.2023  

भाई-बहन रूप में हम एक साथ चलने के लिये आमंत्रित हैं, सन्त पापा

सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में शनिवार 10 जून को "मानव भ्रातृत्व" पर आयोजित अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन को प्रेषित अपने सन्देश में, संत पापा फ्राँसिस कहते हैं, "स्वर्ग हमें एक साथ चलने, भाइयों और बहनों के रूप में एक दूसरे को फिर से खोजने और भाईचारे में विश्वास करने के लिए आमंत्रित करता है...

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 12 जून 2023 (रेई, वाटिकन रेडियो): सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में शनिवार 10 जून को "मानव भ्रातृत्व" पर आयोजित अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन को प्रेषित अपने सन्देश में, संत पापा फ्राँसिस कहते हैं, "स्वर्ग हमें एक साथ चलने, भाइयों और बहनों के रूप में एक दूसरे को फिर से खोजने और भाईचारे में विश्वास करने के लिए आमंत्रित करता है, जो इस धरती पर हमारी तीर्थयात्रा का आधार है।" सम्मेलन में उपस्थित 30 नोबेल पुरस्कार विजेताओं द्वारा मानव भ्रातृत्व पर तैयार की गई तथा हस्ताक्षरित घोषणा की भी उन्होंने भूरि-भूरि प्रशंसा की।  

सम्मेलन में भाग लेनेवाले सभी प्रतिभागियों का सन्त पापा फ्राँसिस ने हार्दिक अभिनन्दन किया तथा विश्व के कई भागों से इस सम्मेलन हेतु वाटिकन में एकत्र होने के लिये आभार व्यक्त किया। हालांकि, इस समय रोम के जेमेल्ली अस्पताल में भर्ती सन्त पापा फ्राँसिस इस कार्यक्रम में उपस्थित होने में असमर्थ रहे तथापि उन्होंने सम्मेलन के प्रतिभागियों को एक सन्देश प्रेषित कर इस तथ्य की पुष्टि की कि वर्तमान विश्व को भाईचारे और शांति की नितान्त आवश्यकता है। सन्त पापा के शब्द सम्मेलन में सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के महापुरोहित तथा वाटिकन सिटी के प्रतिधर्माध्यक्ष कार्डिनल माओरो गाम्बेत्ती द्वारा पढ़े गये। सन्त पापा फ्राँसिस का सन्देश इस प्रकार है,

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,

भले ही मैं व्यक्तिगत रूप से आपका अभिवादन करने में असमर्थ हूं, फिर भी इस सम्मेलन में शरीक होने के लिये मैं तहे दिल से आपका स्वागत और धन्यवाद करना चाहता हूं। आपके साथ मिलकर विश्व में बंधुत्व और शांति की इच्छा की पुष्टि करते हुए मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ। एक लेखक ने असीसी के सन्त फ्रांसिस के अधरों से इन शब्दों को प्रस्फुटित किया थाः "प्रभु वहीं हैं जहां उनके भाई हैं" (ला सापियेन्सा दी ऊन पोवेरो)। सन्त पापा ने कहा, वास्तव में, ऊपर विराजमान स्वर्ग, इस धरती पर हमारी तीर्थयात्रा की नींव रूप में, हमें एक साथ चलने, भाइयों और बहनों के रूप में एक दूसरे को फिर से खोजने और भाईचारे में विश्वास करने के लिए आमंत्रित करता है।"

मानव व्यक्ति की गरिमा

अपने विश्व पत्र फ्रातेल्ली तूती के शब्दों को उद्धरित कर सन्त पापा ने लिखा, "भाईचारा आवश्यक रूप से कुछ श्रेष्ठकर की मांग करता है, जो बदले में स्वतंत्रता और समानता को प्रोत्साहित करता है" (अंक 103), इसलिये कि जो भाई या बहन के रूप में दूसरे को देखता है, वह उसमें एक चेहरा देखता है, संख्या नहीं। अन्य व्यक्ति सदैव "कोई" होता है जिसके पास गरिमा और सम्मान का गुण होता है, न कि "कुछ" जिसका उपयोग किया जाये,  शोषण किया जाये और फिर फेंक दिया जाये। हिंसा और युद्ध से विभाजित हमारी दुनिया में, सुधार और समायोजन पर्याप्त नहीं हैं। केवल हृदय के अन्तःस्थल से उत्पन्न और भाईचारे पर केंद्रित एक महान आध्यात्मिक और सामाजिक अनुबंध ही रिश्तों के मूल के रूप में मानवीय गरिमा की पवित्रता और अनुल्लंघनीयता को पुनर्स्थापित कर सकता है। और इसके लिये बंधुत्व पर सिद्धांतों की आवश्यकता नहीं है बल्कि ठोस संकेतों और साझा निर्णयों की आवश्यकता है जो शांति की संस्कृति का निर्माण करते हों। स्वतः से यह सवाल नहीं किया जाना है कि समाज और दुनिया मुझे क्या दे सकती है, बल्कि यह कि मैं अपने भाई-बहनों को क्या दे सकता हूं।"

सन्त पापा ने सम्मेलन में शामिल सभी प्रतिभगियों को आमंत्रित किया कि वे ठोस कृत्यों द्वारा अन्यों के प्रति भङ्रातृत्व का प्रदर्शन करें, उन्होंने कहा, "जब हम घर लौटें, तो आइए हम भ्रातृत्व के उन ठोस कृत्यों के बारे में सोचें जो हम कर सकते हैं: परिवार के सदस्यों, मित्रों और पड़ोसियों के साथ मेल-मिलाप करना, उन लोगों के लिए प्रार्थना करना जिन्होंने हमें चोट पहुँचाई है,  ज़रूरतमंदों को पहचानना और उनकी मदद करना, स्कूल और  विश्वविद्यालय में शांति के शब्द बोलना या समाज में अकेलापन महसूस करनेवालों का  "अभिषेक" निकटता से करना यही हैं, भ्रातृत्व के संकेत।"

"युद्ध न करें"

उन्होंने कहा, "हमें यह महसूस करना चाहिए कि हम अवसादयुक्त और घावों से भरे लोगों एवं लोगों के बीच के रिश्तों में कोमलता का लेप लगाने के लिए बुलाए गए हैं। आइए ईश्वर के नाम पर तथा शांति की आकांक्षा रखने वाले हर पुरुष और महिला के नाम पर हम  "युद्ध न करें" का नारा लगाने से न थकें। इस स्थल पर मुझे जुसेप्पे ऊंगारेत्ती द्वारा लिखे गए कुछ छंदों की याद आ रही है। युद्ध और हथियारों की गड़गड़ाहट के बीच उन्हें भाइयों के बारे में बोलने की आवश्यकता महसूस हुई जिन्हें उन्होंने "कांपते हुए शब्द/रात के अन्धकार में/अभी-अभी पैदा हुआ पत्ता" निरूपित किया।"

सन्त पापा ने लिखा, "भाईचारा नाजुक और कीमती चीज़ है। झूठ फैलाने वाले संघर्षों के तूफानी समुद्र में भाई-बहन सत्य के लंगर हैं। भाइयों और बहनों को जगाना उन लोगों को और हम सभी को याद दिलाना है जो लड़ रहे हैं, कि हमें एकजुट करने वाली भ्रातृत्व की भावना घृणा और हिंसा से कहीं अधिक मजबूत है। सच तो यह है कि वास्तव में दर्द ही सबको जोड़ता है। हम शुरू करते हैं और फिर यहीं से शुरू करते हैं, "एक साथ महसूस करने" की भावना से, जो  एक चिंगारी के सदृश है और उस रोशनी को फिर से प्रकाशमान कर सकती है जो संघर्षों की रात को रोकती है।"

जातीय संबंधों की सीमाओं से परे जायें

सन्त पापा ने लिखा, "यह विश्वास करना कि अन्य या दूसरा हमारा भाई या हमारी बहन है अर्थहीन नहीं है, वस्तुतः यही वह ठोस कार्य है जिसे हममें से प्रत्येक करना है। वास्तव में, इसका अर्थ यह मानने की दरिद्रता से स्वयं को मुक्त करना है कि मैं दुनिया का एकमात्र बच्चा हूँ। साथ ही, इसका मतलब है, भागीदारों या सहकारियों की मानसिकता को दूर करना जो केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए एक साथ रहते हैं। इसका अर्थ यह भी जानना है कि रक्त या जातीय संबंधों की सीमाओं से परे कैसे जाना है, जो केवल समानता को पहचानते हैं और विचारों की विविधता को अस्वीकार करते हैं। यहाँ मेरे विचार भले समारी के दृष्टान्त की ओर अभिमुख होते हैं। सन्त लूकस रचित  सुसमाचार में निहित इस दृष्टान्त में हम पढ़ते हैं कि दया खाकर भला समारी मदद के इच्छुक एक यहूदी व्यक्ति के समक्ष रुक गया। उनकी संस्कृतियाँ विषम थीं, उनके इतिहास अलग थे, उनके क्षेत्र एक-दूसरे के विरोधी थे; लेकिन उसने गली में पड़े आदमी और उसकी जरूरतों को पहला स्थान दिया।"

सन्त पापा ने आगे लिखा, "जब लोग और समाज भातृत्व को चुनते हैं, तो नीतियां भी बदल जाती हैं: लाभ की वरीयता के बजाय व्यक्ति पर वरीयता को मान्यता मिलती है और जिस घर में हम सभी निवास करते हैं, उसका उपयोग सभी के हितों के लिए किया जाता है। रोज़गार के लिये उचित मजदूरी का भुगतान किया जाता है,  स्वागत-सत्कार धन बन जाता है, जीवन आशा बन जाता है, न्याय क्षतिपूर्ति के लिए खुल जाता है, और पीड़ितों एवं अपराधियों के बीच साक्षात्कार पहले की गईं बुराई की यादों के घावों को भर देता है।"

धन्यवाद ज्ञापन

अन्त में सन्त पापा ने लिखा, "अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, मैं इस बैठक के आयोजन के लिए और उपस्थित विशिष्ट नोबेल पुरस्कार विजेताओं द्वारा आज सुबह तैयार किए गए "मानव भ्रातृत्व पर घोषणा" को पुनः सजीव करने के लिए धन्यवाद देता हूं। मेरा विश्वास है कि यह हमें भ्रातृत्व का एक व्याकरण प्रदान करता है तथा यह जीने एवं जीवन को हर दिन ठोस तरीके से देखने के लिए एक प्रभावशाली मार्गदर्शक है। आप सबने इसके लिये मेहनत की है जिसके लिये मैं आप सबके प्रति हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। आइए हम यह सुनिश्चित करें कि आज हमने जो अनुभव किया है वह हमारी यात्रा का पहला कदम है और भ्रातृत्व की प्रक्रिया शुरू कर सकता है।"

उन्होंने कहा, "मैं तमाम विश्व के विभिन्न शहरों के चौकों में एकत्रित हुए लोगों का स्नेहपूर्ण अभिनंदन करता हूं, जो इस सम्मेलन से  जुड़े हुए हैं। ये विविधता की समृद्धि और हमारे करीब न होने पर भी भाई-बहन होने की संभावना दोनों की गवाही देते हैं, जैसा कि मेरे साथ हुआ है। आप सब आगे बढ़ते रहे।

आपके सबके समक्ष मैं आलिंगन की एक छवि रखना चाहता हूँ। एक साथ बिताई गई इस दोपहर के फलप्रद अनुभवों के रूप में मैं आप सबको अपने हृदय और स्मृति में रखता तथा विश्व के प्रत्येक स्त्री और पुरुष का आलिंगन करता हूँ ताकि हम सब मिलकर शांति की संस्कृति का निर्माण कर सकें। वास्तव में शांति के लिए भाईचारे की   और भाईचारे के लिए मुलाकात की ज़रूरत है। आज दिया गया और प्राप्त किया गया आलिंगन, जो उस प्राँगण का प्रतीक है जिसमें आज आप मिल रहे हैं, जीवन की प्रतिबद्धता और आशा की भविष्यवाणी बन जाए। मैं खुद आपको गले लगाता हूं और आपके प्रति धन्यवाद का पुनरावृत्ति करता हूँ, दिल के आभ्यन्तर मैं आपसे कहता हूँ कि मैं आपके साथ हूं!"

           

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12 June 2023, 11:34