रोम के पुरोहितों से पोप : मैं यात्रा में आपके साथ हूँ
वाटिकन न्यूज
कृतज्ञता, सबसे पहले, एक बहुमूल्य और अक्सर छिपी हुई या कम मान्यता प्राप्त सेवा के लिए; फिर "खुशियों" और "कष्टों" के बीच कभी अकेले न रहने का आश्वासन; अंत में, उन प्रलोभनों के खिलाफ चेतावनी - जिनकी पोप ने अपने परमाध्यक्षीय काल के शुरुआत से ही निंदा की है - "आध्यात्मिक सांसारिकता" और "याजकवाद" (जिससे लोकधर्मियों को छूट नहीं है), जो प्रेरिताई को बंद होने, अभिजात्यवाद, स्वामित्व, अहंकार के रूपों में बदलने के खतरे में डालता है। इसलिए, वे उन्हें लोकधर्मी "भाइयों" और "बहनों" के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के लिए आमंत्रित करते हैं ताकि वे "सिनॉड के रूपों और मार्गों" की शुरुआत कर सकें और "सेवक" बनें न कि "मालिक", "भाइयों के पैर धोएँ और उन्हें कुचलें नहीं जो हमारे पैरों के नीचे हैं।”
पोप फ्राँसिस ने 7 अगस्त को रोम धर्मप्रांत के सभी पुरोहितों को एक पत्र भेजा, जिसमें एक चरवाहे का ध्यान और एक पिता की चिंता है - पोप के धर्मप्रांत का 'पुनर्गठित' पिछले जनवरी माह में एक्लेसियारूम कम्युनियोने में नए प्रेरितिक संविधान के साथ हुआ है, जिसने भिखारियेट के भीतर कई बदलाव लाए हैं।
संदेश, जिसे पोप फ्रांसिस ने विश्व युवा सम्मेलन के कई कार्यक्रमों के बीच एक परिचित शैली में तैयार किया था, उसपर 5 अगस्त 2023 की तारीख अंकित है, जो संत मरिया मेजर महागिरजाघर के समर्पण की यादगारी का दिन है और लगभग सात पृष्ठ लंबा है। पोप लिखते हैं, यह पत्र रोम की संरक्षिका के समक्ष की गई प्रार्थना का फल है, जिसमें "मैंने उनसे आपकी रक्षा करने और आपकी देखभाल करने, आपके गुप्त आँसू को सुखाने के लिए, आप में प्रेरिताई की खुशी को पुनजागृत करने और आपको हर दिन येसु के प्यार में चरवाहा बनाने के लिए प्रार्थना की है।”
आध्यात्मिक सांसारिकता और याजकवाद
पोप फ्राँसिस ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा है, "मुझे लगता है कि मैं आपके साथ यात्रा पर हूँ और मैं चाहता हूँ कि आप उसे महसूस करें कि मैं आपकी खुशियों और पीड़ाओं में, आपकी परियोजनाओं और परिश्रम में, आपकी कड़वाहट और प्रेरितिक सांत्वनाओं में आपके करीब हूँ।"
इसके बाद कलंक जिसके बारे उन्होंने कहा वह पुरोहितों की प्रेरिताई के लिए सबसे बड़ी बुराई है : आध्यात्मिक सांसारिकता और याजकवाद। ये प्रलोभन हैं जिनका वे एक दशक से सामना कर रहे हैं। संत पापा ने जोर देते हुए कहा कि यह आवश्यक चेतावनी है जिनपर ध्यान दिया जाना चाहिए। हमें आध्यात्मिक दुनियादारी से लड़ने के लिए गहराई में जाने की आवश्यकता है।
आध्यात्मिक सांसारिकता हमें 'आत्मा के व्यापारी', पवित्र रूप धारण करनेवाले पुरुष, जो वास्तव में दुनिया के फैशन के अनुसार सोचते और कार्य करते हैं, उनकी ओर ले जाती है।
येसु की ओर देखना
पोप फ्राँसिस के अनुसार, ईश्वर के प्रेम की "प्रशंसा," "अनुग्रह की भावना," "कृपा पर आश्चर्य", याजकवाद की प्रवृत्तियों को रोकने में मदद करती है। लेकिन इन सबसे ऊपर एक "दैनिक औषधि" है, वह है "क्रूस पर चढ़ाए गए येसु को देखना, हर दिन उस पर नजर रखना जिसने खुद को खाली कर दिया और हमारे लिए खुद को विनम्र बना लिया, यहाँ तक कि मृत्यु स्वीकार कर लिया।"
पोप कहते हैं कि "एक पुरोहिती भावना: "हमें ईश्वर की प्रजा का सेवक बनाता, स्वामी नहीं, हमारे भाइयों और बहनों के पैर धोने के लिए बुलाता और उन्हें अपने पैरों के नीचे नहीं कुचलता।"
सावधान रहें
संत पापा ने पुरोहितों का आह्वान करते हुए लिखा है, "आइए, हम याजकवाद के प्रति सतर्क रहें।" याजकवाद "हर किसी को प्रभावित कर सकता है, यहाँ तक कि लोकधर्मी लोगों और प्रचारकों को भी। जिसका चिन्ह है, “शिकायत करना, नकारात्मकता, गलती से दीर्घकालिक असंतोष", "विडंबना जो संशय बन जाती है।"
"इस प्रकार," पोप लिखते हैं, "ख्रीस्तीय धर्म की सादगी, नम्रता, दयालुता और सम्मान के साथ, अपने भाइयों और बहनों को असहिष्णुता के दलदल से बाहर निकलने में मदद करने के बजाय, व्यक्ति आलोचना और क्रोध के माहौल में लीन हो जाता है।”
निराश न हों
इतनी सारी "कमजोरियाँ", इतनी सारी "अपर्याप्तताएँ"... लेकिन "हमें निराश नहीं होना चाहिए!" पोप के प्रोत्साहन का शब्द है।
"आइए हम अपनी आस्तीनें ऊपर उठाएँ और अपने घुटनों को मोड़ें (आप जो कर सकते हैं!): आइए हम एक-दूसरे के लिए आत्मा से प्रार्थना करें, आइए हम उससे मदद मांगें कि हम व्यक्तिगत जीवन में या प्रेरिताई कार्यों में उस धार्मिकता में न पड़ें जो बहुत सारी चीजों से भरी हुई है लेकिन ईश्वर से रहित है, अतः पवित्रता के पदाधिकारी नहीं, बल्कि सुसमाचार के उत्साही अग्रदूत, 'राज्य के याजक' नहीं, बल्कि लोगों के पुरोहित हैं।”
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