संत पापाः गरीब स्वर्ग द्वार की कुंजी हैं
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।
हम सुसमाचार के प्रति उत्साह संबंधित अपनी धर्मशिक्षा माला के तहत आज संत दानियल कोम्बोनी के साक्ष्य पर चिंतन करेंगे। उनमें अफ्रीका के लिए प्रेरितिक उत्साह भरा था। वहाँ के लोगों के प्रति अपनी मनोभावनाओं को व्यक्त करते हुए वे लिखते हैं, “उन्होंने मेरा दिल चुरा लिया है जो सिर्फ उनके लिए जीता है, मैं अपने होंठो में अफ्रीका का नाम उच्चरित करते हुए मरूंगा।” वे पुनः लिखते हैं, “मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी तब होगी जब मैं वहाँ की जनता के लिए अपने प्राण निछावर करूंगा।” ये अभिव्यक्तियाँ उस व्यक्ति की थीं जो ईश्वर से प्रेम के कारण अपने भाई-बहनों की प्रेरितिक सेवा में संलग्न था, वे उनके लिए इस बात को घोषित करने में कभी नहीं थके कि येसु ख्रीस्त ने उनके लिए भी दुःख उठाया औऱ मर गये।”
मानव में गुलामी के रुप
इन बातों को उन्होंने एक भयावह गुलामी के संदर्भ में सुदृढ़ किया जिसका साक्ष्य वे स्वयं रहे। संत पापा ने कहा कि गुलामी लोगों को “वस्तुओं की तरह” बना देती है, जो किसी के द्वारा सिर्फ उपयोगिता तक ही सीमित होकर रह जाते हैं। लेकिन येसु, ईश्वर के पुत्र जो मानव बनें, हर मानव के सम्मान को ऊपर उठाते और गुलामी के झूठ को तोड़ते हैं। ख्रीस्त में आलोकित, कोम्बोनी गुलामी की बुराई से वाकिफ थे, उससे भी बढ़कर उन्होंने इस बात को समझा कि सामाजिक गुलामी की जड़ता गुलामी से कहीं अधिक है, जहाँ हम हृदय की गुलामी, पाप की गुलामी को पाते हैं जिनसे येसु हमें स्वतंत्र करते हैं। ख्रीस्तीयों के रुप में, अतः हम हर तरह की गुलामी से लड़ने हेतु बुलाये जाते हैं। दुर्भाग्यवश, यद्यपि गुलामी, उपनिवेशवाद की तरह अतीत की कोई चीज नहीं है। अफ्रीका जिसे कोम्बोनी बहुत अधिक प्रेम करते थे, आज बहुत सारे युद्धों से विखंडित है। राजनीतिक शोषण ने एक आर्थिक उपनिवेशवाद को जन्म दिया जो गुलामी के बराबर है...। यह एक अति दुःखद बात है कि आर्थिक रुप से विकसित देश बहुधा इस संबंध में अपनी आंखों, कानों और मुंह को बंद कर लेते हैं। संत पापा ने कहा, “मैं, अतः अपनी अपील को दुहराते हुए कहता हूँ, “अफ्रीका का गला घोंटना बंद करें, यह कोई खदान नहीं जिसका दोहन किया जाये या एक भूमि नहीं जिसे लूटा जाये।”
प्रेरिताई में आत्म-परख महत्वपूर्ण
उन्होंने संत दानियल कोम्बोनी के जीवन का जिक्र करते हुए आगे कहा कि अफ्रीका में पहली अवधि समाप्त करने के बाद स्वास्थ्य संबंधी कारणों से उन्होंने वहाँ प्रेरिताई छोड़ी। स्थानीय जटिल परिस्थिति की प्रर्याप्त जानकारी से अनभिज्ञ, मलेरिया के सम्पर्क में आने से बहुत से प्रेरितों की मृत्यु हो गयी। वहीं बहुतों ने अफ्रीका छोड़ दिया लेकिन कोम्बोनी ने ऐसा नहीं किया। आत्मपरीक्षण करने के उपरांत, उन्होंने इस बात का अनुभव किया कि ईश्वर उन्हें सुसमाचार प्रचार के नये मार्ग में बढ़ने को प्रेरित कर रहे हैं, जिसे उन्होंने अपने इन शब्दों के द्वारा व्यक्त किया, “अफ्रीका को अफ्रीका से बचाओ”। यह एक शक्तिशाली प्रेरणा थी जिसके फलस्वरुप उन्हें प्रेरिताई को नये रुप में शुरू करने को मदद मिली, वे लोग जिन्हें सुसमाचार सुनाया गया था वे न केवल “वस्तुएं” नहीं बल्कि प्रेरितिक “प्रज्ञा” थे। अतः संत दानियल कोम्बोनी सभी ख्रीस्तीयों को सुसमाचार प्रचार के नायक बनाना चाहते थे। इस उत्साह से, उन्होंने अपने विचारों को कार्यान्वित किया, उन्होंने स्थानीय धर्मबुधंओं की सहायता से लोकधर्मियों को धर्मप्रचार की सेवा हेतु प्रोत्साहित किया। इसमें उन्होंने मानवीय विकास की संभावना देखी, जिसके द्वारा कला और व्यावसायिकता को बढ़ावा दिया जा सकता है, अतः उन्होंने परिवार की भूमिका और परिवार की महिलाओं को समाज और संस्कृति में परिवर्तन लाने हेतु तैयार किया। संत पापा ने कहा कि यह आज भी कितना महत्वपूर्ण है, जिसके द्वारा हम विश्वास और विकास को प्रेरितिक संदर्भ में प्रगति के मार्ग में ले सकते हैं न की बह्या नीति या सूखी कल्याण की योजना को लागू करने में।
प्रेरितिक उत्साह ईश्वरीय कृपा का फल
कोम्बोनी का महान प्रेरितिक उत्साह यद्यपि मुख्य रुप से मानव प्रयास का प्रतिफल नहीं था। वे स्वयं अपने साहस या प्रेरणा के माध्यम आगे नहीं बढ़े जो महत्वपूर्ण मूल्यों जैसे स्वतंत्रता, न्याय और शांति से प्रेरित होता है। उनमें उत्साह का उद्गम सुसमाचार की खुशी से शुरू हुई, जो ख्रीस्त के प्रेम से उत्पन्न होती है और इस प्रेम ने उन्हें ख्रीस्त के प्रेम की ओर अग्रसर किया। संत दानियल ने लिखा, “इस तरह का कठिन और मेहनत भर प्रेरितिक कार्य जैसे कि हमारा है स्वार्थ और खुदगर्जी की टेढ़ी गर्दन से नहीं किया जा सकता है जो उनके स्वास्थ्य और आत्माओं को बचने की चिंता नहीं करते जैसे कि उन्हें करने की जरुरत है।” संत पापा ने इस तरह के मनोभावनाओं को याजकीयवाद की महामारी बतलायी। उन्होंने आगे लिखा, “यह जरूरी है कि हम उन्हें प्रेम से प्रज्वलित करें जिसकी उत्पत्ति ईश्वर और ख्रीस्त के प्रेम में होती है, जब कोई सच्चे अर्थ में ईश्वर को प्रेम करता है, तो कमियाँ, दुःख-तकलीफें और शहादत मीठी हो जाती हैं।” कोम्बोनी ने मेहनती, खुश और समर्पित प्रेरितों को देखने की चाह रखी। उन्होंने लिखा, “पवित्र और योग्य...सर्वप्रथम संतगण अर्थात पूरी तरह पाप मुक्त और ईश्वरीय भययुक्त और नम्र... लेकिन यह काफी नहीं है, हमें प्रेम की जरुरत है जो लोगों को सक्षम बनाता है। कोम्बोनी के लिए प्रेरितिक योग्यता इस भांति प्रेम था विशेष रुप से उत्साह जो लोगों की पीड़ा का आलिंगन करता है।
जीवन का सार
वहीं सुसमाचार के प्रति उत्साह ने उन्हें कभी अकेले कार्य करने को अग्रसर नहीं किया लेकिन वे सदैव कलीसिया के सुमदाय में रहे। “मेरे पास केवल एक जीवन है जिसे में आत्माओं की मुक्ति के लिए अर्पित कर सकता हूँ, मेरी चाह है कि इस लक्ष्य की प्राप्त हेतु हजारों समर्पित हों।”
सच्चा चरवाहा
संत पापा ने कहा संत दानियल ने भले चरवाहे का साक्ष्य दिया जो अपनी खोयी हुई एक भेड़ की खोज में जाता और अपने जीवन को झुण्ड के लिए अर्पित करता है। उनका उत्साह उदासी और अलगाव की परिस्थितियों में अदम्य और जोशीला था। अपने पत्रों में उन्होंने मातृत्वमयी कलीसिया का आहृवान किया जो लम्बे समय तक अफ्रीका को भूल गई थी। कलीसियाई सपने के संबंध में कोम्बोनी कहते हैं कि इतिहास से क्रूसित लोगों के लिए एक सामान्य प्रक्रिया का अनुसरण करने की जरुर है जिससे वे पुनरुत्थान का अनुभव कर सकें। संत पापा फ्रांसिस ने उन लोगों की याद दिलाई जो अन्याय और निर्दयता के शिकार हैं, उन्होंने उनके लिए प्रार्थना करने का आहृवान किया। उनका साक्ष्य हमारे लिए कलीसिया के हर नर और नारी से इस बात की मांग करती है कि हम गरीबों को न भूलें, उन्हें प्रेम करें, क्योंकि क्रूसित येसु उनमें उपस्थित हैं, जो जी उठने की प्रतीक्षा करते हैं।” संत पापा ने पुनः इस बात पर जोर दिया कि हम गरीबों को न भूलें क्योंकि ये वे हैं जो हमारे लिए स्वर्ग का द्वार खोलेंगे।
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