मंगोलिया में पोप : धर्म संवाद, सद्भाव, आशा पैदा करें
वाटिकन न्यूज
मंगोलिया, रविवार, 3 सितंबर 2023 (रेई) : पोप फ्राँसिस ने रविवार को उलानबातर के प्रतिष्ठित हुन थियेटर में ख्रीस्तीय एकतावर्धक वार्ता एवं अंतरधार्मिक संवाद कार्यक्रम का नेतृत्व किया जहाँ शिंटोवाद, बौद्ध, इस्लाम, यहूदी, हिंदू, शमनवाद और अन्य ईसाई समुदायों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
संत पापा ने उन्हें सम्बोधित कर कहा, “मैं मुलाकात के इस महत्वपूर्ण क्षण में आप सभी के साथ रहकर खुश हूँ। मैं आप प्रत्येक को आपकी उपस्थिति और आपकी वार्ता के लिए धन्यवाद देता हूँ जिसने हमारे आम सोच को समृद्ध किया है।"
यह तथ्य कि हम एक ही स्थान पर एक साथ मिल रहे हैं, पहले से ही एक संदेश देता है: यह दर्शाता है कि धार्मिक परंपराओं में, उनकी सभी विशिष्टता और विविधता के बावजूद, समग्र रूप से समाज के लाभ के लिए प्रभावशाली क्षमता है।”
एक साथ मुलाकात करने के अवसर के लिए मंगोलिया के प्रति आभार व्यक्त करते हुए संत पापा ने कहा, “प्रिय मंगोलियाई लोगों ने हमारे आपसी संवर्धन के लिए एक साथ आना संभव बना दिया है, क्योंकि वे विभिन्न धार्मिक परंपराओं के अनुयायियों के बीच सह-अस्तित्व के इतिहास का दावा कर सकते हैं।” प्राचीन शाही राजधानी खाराकोरम की दीवारों के भीतर सराहनीय ढंग से रखे गये विभिन्न पंथों से संबंधित पूजा स्थल, इस प्रकार एक सराहनीय सद्भाव का उदाहरण हैं।
सौहार्द
संत पापा ने सौहार्द के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “मैं इस शब्द पर जोर देना चाहूँगा, इसके विशिष्ट एशियाई लहजे पर। सद्भाव वह विशेष संबंध है जो अलग-अलग वास्तविकताओं के रचनात्मक परस्पर क्रिया से, बिना किसी आरोपण के, सामान्य रूप से एक शांत जीवन को ध्यान में रखते हुए, उनकी विविधताओं के लिए पूर्ण सम्मान के साथ उत्पन्न होता है।”
उन्होंने कहा, “हमारी धार्मिक परंपराओं के सामाजिक महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हम इस धरती पर अन्य तीर्थयात्रियों के साथ किस हद तक सद्भाव से रहने में सक्षम हैं और जहां हम रहते हैं वहां उस सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं।”
परोपकारिता
धर्मों की दूसरी विशेषता पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा, “हर व्यक्ति और हर धर्म को परोपकारिता के मानक से मापा जाना चाहिए।” परोपकार को निराकार नहीं बल्कि उदार कार्यों के माध्यम से ठोस रूप में अपनाया जाना चाहिए। क्योंकि “बुद्धिमान व्यक्ति देने में आनन्दित होता है और वही उसकी खुशी का कारण है।”
संत पापा ने संत फ्राँसिस असीसी के शब्दों की याद की जो घृणा, अपराध, तिरस्कार के बीच प्रेम, क्षमा और एकता लाना चाहते थे।
उन्होंने कहा, “परोपकारिता सौहार्द लाता है और जहाँ सौहार्द है, हम समझदारी, समृद्धि और सौंदर्य को पाते हैं। जबकि संकीर्णता, एकतरफा थोपना, कट्टरवाद और वैचारिक बाधाएँ भाईचारे को नष्ट करती हैं, तनाव को बढ़ावा देती और शांति को कमजोर बनाती हैं। जीवन की सुंदरता सद्भाव से पैदा होती है, जो स्वाभाविक रूप से सामुदायिक है: यह दयालुता, सुनने और विनम्रता के माध्यम से पनपती है।”
और जो लोग हृदय के शुद्ध होते हैं वे सद्भाव को अपनाते हैं, क्योंकि “सच्ची सुंदरता,” जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा है, “हृदय की पवित्रता में निहित है।”
संत पापा ने प्रतिनिधियों को याद दिलाया कि सभी धर्म, दुनिया को इसी सौहार्द को देने के लिए बुलाये जाते हैं जो सिर्फ तकनीकी विकास से संभव नहीं है।
प्रज्ञा की विरासत
संत पापा ने सही रास्ते की ओर बढ़ने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “एक-दूसरे के साथ हमारी मुलाकात में, हम उस महान खजाने को साझा करना चाहते हैं जो हमें मानवता को समृद्ध करने के लिए प्राप्त हुई है, जो अक्सर लाभ और भौतिक आराम की अदूरदर्शी खोज के कारण अपनी यात्रा में भटक जाती है।” हमारे समय में अक्सर लोग सही रास्ते से भटक जाते हैं, सिर्फ सांसारिक हितों से प्रेरित होते, जिसके कारण मानवता, अन्याय, संघर्ष, उत्पीड़न, पर्यावरणीय आपदाओं और मानव जीवन के प्रति महान उपेक्षा की शिकार होकर “पृथ्वी को नष्ट” कर रही है।
संत पापा ने मंगोलिया की महान प्रज्ञा की सराहना की जो विभिन्न धर्मों की विरासत है। उन्होंने इस विरासत के दस पहलूओं के बारे बतलाया। वे 10 पहलू हैं : परम्परा के साथ एक स्वस्थ संबंध; अपने बुजूर्गों एवं पूर्वजों का आदर; पर्यावरण की देखभाल; मौन और आंतरिक जीवन का मूल्य जो आज दुनिया की कई बीमारियों का इलाज है; मितव्ययिता की एक स्वस्थ समझ; अतिथि सत्कार; भौतिक वस्तुओं के प्रति लगाव का विरोध करने की क्षमता; पारस्पारिक संबंध की संस्कृति से उत्पन्न एकजुटता; सादगी के प्रति सम्मान; एक निश्चित अस्तित्वगत व्यावहारिकता जो दृढ़तापूर्वक व्यक्तियों और समुदाय की भलाई का प्रयास करती है।
संत पापा ने कहा कि ये प्रज्ञा की विरासत के कुछ तत्व हैं जिन्हें मंगोलिया दुनिया को दे सकता है।
धर्म माननेवालों की जिम्मेदारी
मंगोलिया में रहने के स्थान “गेर” (घर) के महत्व पर प्रकाश डालते संत पापा ने कहा, “गेर एक मानवीय स्थान बनाता है: यह पारिवारिक जीवन, मैत्रीपूर्ण सौहार्द, मुलाकात और बातचीत का स्थान है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए भीड़ में भी जगह बनाने में सक्षम है।” उन्होंने इसे आशा का स्रोत बतलाया क्योंकि राह खोये पथिक के लिए यह जीवन देता है। यह मित्र, राहगीर, अजनबी सभी का स्वागत करता और उनकी आवश्यकता की पूर्ति करता है। मिशनरियों ने इसी अनुभव के साथ संस्कृति में प्रवेश किया और उनके बीच येसु ख्रीस्त के सुसमचार का साक्ष्य दिया।
संत पापा ने गौर किया कि “गेर” दिव्य के लिए खुलेपन का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के रूप में हम जिस सामंजस्यपूर्ण और समृद्ध मानवता को बढ़ावा देना चाहते हैं, वह उस सद्भाव, एकजुटता और पारलौकिक के प्रति खुलापन है, जो दिव्य (ईश्वर) के साथ हमारे संबंध के आधार पर न्याय और शांति की प्रतिबद्धता हेतु प्रेरित करता है। यही कारण है कि इतिहास के इस समय में हम एक बड़ी जिम्मेदारी को साझा करने के लिए बुलाये जाते हैं। क्योंकि धार्मिक विश्वास और हिंसा, पवित्रता और उत्पीड़न, धार्मिक परम्परा और साम्प्रदायिकता को मिस्रित नहीं किया जा सकता।
अतः संत पापा ने कामना की कि अतीत की पीड़ा की स्मृति अंधेरे घावों को प्रकाश के स्रोतों में, संवेदनहीन हिंसा को जीवन के ज्ञान में, विनाशकारी बुराई को रचनात्मक अच्छाई में बदलने के लिए आवश्यक शक्ति प्रदान करे।
जैसा कि बौद्ध समुदाय ने अनुभव किया है। संत पापा ने कहा, हमारे लिए भी ऐसा ही हो ताकि हम अपने-अपने आध्यात्मिक गुरूओं की शिक्षाओं के प्रति निष्ठावान रहकर, उन शिक्षाओं की सुन्दरता को अपने दैनिक जीवन में अपने साथियों और हमराहियों को बांट सकें।
सम्मान और वार्ता की आवश्यकता
संत पापा ने अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ मिलकर आगे बढ़ने की काथलिक कलीसिया की चाह को व्यक्त करते हुए कहा कि काथलिक कलीसिया जिसका विश्वास ईश्वर और मानवता के बीच अनन्त संवाद पर स्थापित है वह ख्रीस्तीय एकता, अंतरधार्मिक और सांस्कृतिक संवाद के महत्व के प्रति दृढ़ता से आश्वस्त है और इस रास्ते पर आगे बढ़ना चाहती है।
अपने प्रभु येसु ख्रीस्त की दीनता और सेवा की भावना से प्रेरित होकर कलीसिया अपने प्राप्त खजाने को हरेक व्यक्ति एवं संस्कृति को खुलेपन एवं दूसरे धर्मों के प्रति सम्मान की भावना के साथ देना चाहती है।
वार्ता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा कि यह घोषणा के प्रति विरोधात्मक नहीं है बल्कि यह विविधताओं को समझने, उनकी विशिष्ताओं को बनाये रखने और आपसी समृद्धि के लिए खुले रूप में बहस करने में मदद देती है। इस तरह हम एक आम मानवता...पृथ्वी पर हमारी यात्रा की कूँजी को पा सकते हैं। हम सभी का एक ही मूल है जो सभी को समान प्रतिष्ठा एवं एक साझा रास्ता प्रदान करता है जिसपर हम एक साथ चलकर ही यात्रा कर सकते हैं।
आशा सम्भव है
संत पापा ने विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों की इस मुलाकात को आशा का चिन्ह बतलाते हुए कहा, “भाइयो एवं बहनो, आज हम यहाँ एक साथ आये हैं जो एक चिन्ह है कि आशा संभव है।” एक ऐसी दुनिया में जो संघर्ष और फूट द्वारा खरीदी जा चुकी है। “फूलों की खुशबू सिर्फ हवा की दिशा में फैलती है लेकिन सदाचार के अनुसार जीने वालों की सुगंध सभी दिशाओं में फैलती है। आइए, हम इस दृढ़ विश्वास को विकसित करें, ताकि बातचीत को बढ़ावा देने और बेहतर दुनिया के निर्माण के हमारे साझा प्रयास व्यर्थ न हों। आइये, हम आशा जगायें। स्वर्ग की ओर उठायी गई हमारी प्रार्थना और इस पृथ्वी पर महसूस किया गया भाईचारा, आशा के बीज बोये।”
धर्म हमारी धार्मिकता, स्वर्ग की ओर आंखें उठाकर एक साथ चलने, इस दुनिया में सद्भाव से रहने का एक सरल और विश्वसनीय साक्ष्य बनें, जैसा कि तीर्थयात्रियों ने एक ऐसे घर के माहौल को संरक्षित करने का आह्वान किया है जो सभी लोगों के लिए खुला है।
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