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संत पापाः ईश्वर-पड़ोसी प्रेम सभी बातों का केन्द्र-विन्दु

धर्माध्यक्षों की धर्मसभा की आमसभा के समापन ख्रीस्तीयाग में, संत पापा फ्रांसिस ने “आत्मा से बातचीत” की बात कही, जिसे “प्रभु की प्रेमपूर्ण उपस्थिति” में अनुभव किया जाता और “भाईचारे की सुंदरता” में पाया जाता है।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने एक माह से चली आ रही धर्माध्यक्षों की धर्मसभा की आमसभा का समापन मिस्सा संत पेत्रुस के महागिरजाघर में समपन्न किया।

मिस्सा बलिदान के दौरान अपने प्रवचन में उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि धर्मसभा के प्रतिभागियों ने “किस भांति ईश्वर की उपस्थिति और भ्रातृत्व प्रेम की सुंदरता का अनुभव किया।”  29 अक्टूबर, रविवार की सुबह वाटिकन संत पेत्रुस के महागिरजाघर में अर्पित यूखारिस्तीय बलिदान धर्मसभा के पहले सत्र की चरमसीमा रही जिसमें एकता, भागीदारी और प्रेरिताई को चिन्हित किया गया। इसका अगला और दूसरा चरण अगामी साल 2024 में पूरा होगा।

धर्मविधि हेतु निर्धारित सुसमाचार, जहाँ येसु की परीक्षा लेते हुए एक शास्त्री येसु से संहिता की सबसे बड़ी आज्ञा पर सवाल पूछा है, संत पापा ने अपने चिंतन में कहा कि महत्वपूर्ण और हमारे जीवन में बने रहने वाला सवाल हमारे हृदय और कलीसिया के जीवन में उठ सकता है। येसु ने अपने उत्तर में कहा, उन्होंने कहा कि हमें अपने पूरे जीवन से ईश्वर को प्रेम करने और अपने पड़ोसियों को अपने समान प्रेम करने की आवश्यकता है, जो सारी चीजों का क्रेन्द-बिन्दु है।   

ईश्वर और पड़ोसी प्रेम को संत पापा ने दो क्रियाओं के आधार पर स्पष्ट किया- आराधना और सेवा करना।

प्रेम करना आराधना है

आराधना हमारे जीवन के द्वारा ईश्वर के अतुल्य और आश्चर्यजनक प्रेम का पहला प्रत्युत्तर है। आराधना का अर्थ “विश्वास में इस बात को स्वीकारना है कि वे ही एकमात्र ईश्वर हैं और हमारा व्यक्तिगत जीवन, कलीसिया का जीवन और इतिहास की सारी बातें उनके करूणामय प्रेम में निर्भर करती हैं।” यह हमारे जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है।

ईश्वर की आराधना करने के फलस्वरुप “हम अपने में इस बात को पाते हैं कि हम स्वतंत्र हैं।” यही कारण है कि धर्मग्रँथ हमें मूर्तिपूजा के विरूध, चाहे वे कुछ भी क्यों न हों सचेत करते हैं क्योंकि वे हमें गुलाम बना देते हैं। संत पापा ने सभी तरह की मूर्तिपूजाओं न केवल दुनियावी बल्कि बहुधा दिखावे में उत्पन्न होने वाली, सफला की चाह, आत्म-निर्भरता, धन की भूख और व्यक्तिगत धार्मिकता के रूप में व्याप्त मूर्पिपूजा से सचेत कराया। संत पापा फ्रांसिस ने सभी धर्मप्रांतों, पल्ली और समुदायों में आराधना करने पर जोर दिया क्योंकि केवल ऐसा करने के द्वारा ही हम अपने को येसु ख्रीस्त के संग निकट लाते और उनके संग अपने संबंध में मजबूत होते हैं।  

प्रेम करना सेवा करना है

संत पापा ने सेवा को प्रेम का प्रतिरुप घोषित किया। “पहली और सबसे बड़ी आज्ञा में ईश्वर अपने को पड़ोसी के संग संयुक्त करते हैं जिससे वे कभी अलग न हों।” पड़ोसी की चिंता के बिना हम अपने में ईश्वर के प्रेम को नहीं पाते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास कलीसिया में नवीनीकरण हेतु बेहतर विचार हो सकते हैं लेकिन हम इस बात को याद रखें कि ईश्वर की आराधना और अपने भाई-बहनों को उनके प्रेम से पोषित करना अपने में महान और चिरस्थायी नवनीकरण है।

“आराधना और सेवा की कलीसिया” हमें मानवता के घावों को धोने का निमंत्रण देती है।” संत पापा ने कमजोर, परित्यक्त गरीबों के अलावे युद्ध पीड़ितों की याद की जिन्हें मानवीय सहायता की जरुरत है। उन्होंने कहा कि येसु ख्रीस्त के शिष्यों स्वरुप हम दुनिया के लिए एक अलग तरह का खमीर, सुसमाचार लाने की चाह रखते हैं। “हमें ईश्वर को प्रथम स्थान में रखने की जरुरत है और उनके साथ उन लोगों को- गरीब और कमजोर, जिन्हें वे प्रेम करते हैं।”

संत पापा ने कहा “एक कलीसिया के रूप में हम अपने सबसे छोटे भाइयों और बहनों की सेवा करने का “सपना”  देखने के लिए बुलाये गये हैं।” “एक कलीसिया जो कभी भी “अच्छे व्यवहार” के सत्यापन की मांग नहीं करती है, बल्कि स्वागत करते हुए,  सेवा, प्रेम और क्षमा करती है। खुले द्वारों वाली एक कलीसिया जो दया का आश्रय है।”

पवित्र आत्मा के संग वार्ता

अपने प्रवचन के अंत में संत पापा ने कहा कि धर्मसभा में हमने पवित्र आत्मा की उपस्थिति का एहसास किया और “भातृत्व की सुंदर भावना” को पाया। उन्होंने कहा कि एक-दूसरे को सुनकर और विभिन्न पृष्ठभूमि तथा विचारों की समृद्ध विविधता से सीखकर, “हमने पवित्र आत्मा की बात सुनी है”, जहाँ हम “दूरदर्शिता के साथ” खुली क्षितिज को देखते और अनुभव के फलों को देख सकते हैं।

“प्रभु हमारा मार्गदर्शन करेंगे और हमें एक अधिक धर्मसभा और प्रेरितिक कलीसिया बनने में मदद करेंगे, एक ऐसी कलीसिया जो ईश्वर की आराधना करती है और हमारे समय की महिलाओं और पुरुषों की सेवा में संलग्न है, जो सभों को सुसमाचार का सांत्वना भरा आनंद प्रदान करता है।”

संत पापा ने धर्मसभा में भाग लेने वाले सभी लोगों को भ्रातृत्वमय यात्रा में सुनने और संवाद करने हेतु अपना योगदान देने के लिए धन्यवाद दिया।

“हम ईश्वर की आराधना और अपने पड़ोसियों की सेवा में आगे बढ़ें...प्रभु हमारा साथ दें। आइए हम खुशी के साथ आगे बढ़ें।”

धर्मसभा के समापन मिस्सा की अगुवाई करते हुए संत पापा

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30 October 2023, 12:49