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संत पापाः संत बकिता क्षमा की प्रतिमूर्ति

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में सूडान की संत जोसेफिना बकिता के जीवन पर प्रकाश डाला जो क्षमादान और सेवा की एक मिसाल हैं।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

प्रेरितिक उत्साह की अपनी धर्मशिक्षा माला में आज हम अपने को सूडान की संत जोसेफिना बकिता के साक्ष्य से प्रेरित होने देंगे। दुर्भाग्य की बात है कि सूडान विगत महीनों में एक भयावह युद्ध से ग्रस्ति है, जिसकी चर्चा आज बहुत कम की जाती है। हम सूडान निवासियों के लिए प्रार्थना करें जिससे वे शांति में जीवन व्यतीत कर सकें। लेकिन संत बकिता की प्रसिद्धि दुनिया के हर कोने में फैल गई और उन लोगों तक पहुंची जो अपने को मानवीय सम्मान और पहचान से अछूता पाते हैं।

बकिता अर्थात भाग्यशाली

संत पापा ने कहा कि संकटग्रस्त दारफुर में उनका जन्म सन् 1869 को हुआ था। जब वे सात वर्ष की थीं उनका अपहरण परिवार से कर लिया गया, इस तरह वे एक गुलामी की तरह रहीं। उनके अपहरणकर्ता ने उन्हें “बकिता” के नाम से पुकारा जिसका अर्थ है “भाग्यशाली”। वे आठ मालिकों के हाथों से होकर गुजरी, जो एक के बाद एक उन्हें बिक्री करते गये। एक छोटी बच्ची के रुप में शारीरिक और नौतिक रुप से प्रताड़ित होना उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। उन्हें भयानक क्रूरता और हिंसा सहना पड़ा, उनके शरीर में सौ निशान थे। लेकिन वे स्वयं इस बात का साक्ष्य देती हैं,“एक गुलाम के रुप में मैं कभी निराश नहीं हुई क्योंकि मैंने एक रहस्यात्मक शक्ति से अपने लिए मदद का अनुभव किया।”

बकिता का रहस्य

इन सारी चीजों के मध्य एक सवाल हमारे लिए आता है, संत बकिता का रहस्य क्या थाॽ हम यह जानते हैं कि एक घायल व्यक्ति बदले में दूसरों को घायल करता है, प्रताड़ना का शिकार हुआ एक व्यक्ति दूसरों को प्रताड़ित करता है। जबकि, यहाँ हम देखते हैं कि प्रताड़ित व्यक्ति की बुलाहट प्रताड़ना देने वालों से अपने में मुक्त होते हुए मानवता को स्थापित करना है। केवल प्रताड़ित व्यक्ति की कमजोरी में, ईश्वर का प्रेम प्रकट होता है जो दोनों को मुक्ति देते हैं। संत बकिता इस सच्चाई को बहुत अच्छी तरह प्रकट करती हैं। एक दिन प्रताड़ित करने वाले ने उन्हें एक छोटा-सा क्रूस दिया और वो जिसका कभी कुछ अपना नहीं था, उसे अति उत्साहपूर्ण ढ़ंग से संजोकर रखती हैं। क्रूस की ओऱ देखते हुए, उन्होंने अपने में आंतरिक रूप में मुक्ति का अनुभव किया, क्योंकि वे अपने में समझे जाने और प्रेम किये जाने का अनुभव करती हैं और इसलिए वे  प्रेम करने और समझने के योग्य होती हैं। वास्तव में, वे आगे कहती हैं “ईश्वर का प्रेम रहस्यात्मक रूप में मेरे साथ रहा। ईश्वर ने मुझे प्रेम किया है, तुम्हें हर एक को प्रेम करना है...तुम्हें दया करनी है।” हम बकिता के जीवन में इसे देखते हैं। यह सच है, कि दया करने का अर्थ दोनों है, दुनिवायी की अमानवीय स्थिति में प्रताड़ित लोगों के संग दुःख सहना और साथ ही उनके प्रति दया के भाव रखना जो प्रताड़ित और अन्याय करते हैं, उन्हें न्यायसंगत बतलाते हुए नहीं बल्कि मानवीय भावना को ध्यान में रखते हुए। यह वह विनम्रता है जिसका पाठ वे हमें मानवता के रुप में पढ़ाती हैं। जब हम अपने बीच संघर्ष के भाव, विभाजन, द्वेष की भावना को पाते तो हम अपनी मानवता को खो देते हैं। और बहुत बार हम यह अनुभव करते हैं कि हमें अधिक मानव होने हेतु मानवता की आवश्यकता है। संत बकिता हमें अधिक मानवीय होने, अपने में मानवीय और दूसरे को लिए मानवीय होने की शिक्षा देती हैं।

ईश वचन का प्रभाव

संत पापा ने कहा कि संत बकिता, जो ख्रीस्तीय बनीं, ख्रीस्त के शब्दों से अपने जीवन में परिवर्तन लाती है जिसपर वह प्रतिदिन चिंतन किया करती थीं। “पिता, उन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं” (लूका.23.34)। और वे कहती हैं, “यदि यूदस ने येसु से क्षमा की याचना की होती तो उन्हें भी क्षमा मिली होती।” हम कह सकते हैं कि संत बकिता का जीवन क्षमा के अस्तित्व का दृष्टांत था। किसी व्यक्ति के बारे में यह कहना कितना सुन्दर है कि “वह अपने में योग्य था, उसमें क्षमा देने की शक्ति थी।” हमेशा, हमेशा ही। वह सदैव ऐसा करने के योग्य थी। वास्तव में, उनका जीवन क्षमादान के दृष्टांत का अस्तित्व है। हम क्षमा करें जिससे हम क्षमा किये जायें। हम इस बात को न भूलें कि क्षमादान हमारे लिए ईश्वरीय करूणा को व्यक्त करता है।

क्षमादान की शक्ति

इस भांति क्षमादान ने उन्हें मुक्ति दिलाई। उन्होंने पहले ईश्वर के करूणामय प्रेम को अपने में ग्रहण किया और तब दूसरों को वह क्षमादान दिया, और यह उनके लिए मुक्ति, खुशी और प्रेम का प्रतिरुप बनाता है।

संत बकिता ने गुलामी को सेवा के रुप में जिया, उन्होंने इसे स्वयं को मिले एक उपहार स्वरुप अभिव्यक्ति किया। यह बहुत महत्वपूर्ण है, वे स्वेच्छापूर्ण तरीके से एक सेविका रहीं, वे एक गुलाम की तरह बेची गयीं- और तब वह स्वतंत्र रूप से एक सेविका होने का चुनाव किया, उन्होंने दूसरों के भार को अपने कंधों में धारण किया।

बकिता हमारी आदर्श

संत जोसेफिना बकिता, अपने उदाहरण के द्वारा, हमारे लिए इस बात को दिखालाती हैं कि किस तरह हम अपनी गुलामी और भयों से स्वतंत्र हो सकते हैं। वे हमें अपनी आडम्बरता और स्वार्थी स्वभाव के मुखौटे को अपने से उतारने में मदद करती हैं, वे हमें अपने क्रोध और संघर्ष से परे जाने में मदद करती हैं। वे हमें सदैव प्रोत्साहित करती हैं।

प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा कि क्षमादान हमसे कुछ नहीं ले जाता बल्कि मानवीय सम्मान की वृद्धि करता है। यह हमारी निगाहों को दूसरों की ओर उठाने में मदद करता है, उन्हें अपनी तरह क्षणभंगुरता में, यद्यपि ईश्वर में अपने भाइयों एवं बहनों के रुप में देखने को मदद करता है। क्षमा हमारे लिए जोश का स्रोत है जो हमारे लिए करूणा बनती और हमें संत बकिता की तरह विनम्र और आनंदमय पवित्रता हेतु निमंत्रण देती है।  

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11 October 2023, 13:33