दिसम्बर माह में पोप की प्रार्थना की प्रेरिताई
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, मंगलवार, 28 नवंबर 2023 (रेई) : संत पापा ने 28 नवम्बर को एक वीडियो संदेश जारी करते हुए विश्वभर के विश्वासियों को प्रोत्साहित किया है कि वे दिसम्बर माह में दिव्यांग लोगों के लिए प्रार्थना करें ताकि समाज का ध्यान उनकी ओर खींचा जा सके।
संत पापा ने कहा, “इसका मतलब है अपनी मानसिकता को बदलना और खुद को इन दिव्यांग लोगों की क्षमताओं और प्रतिभाओं के लिए खोलना।”
इसके अतिरिक्त संत पापा ने कलीसिया एवं संस्थानों से आग्रह किया है कि वे समावेशी कार्यक्रमों को अपनायें, ताकि दिव्यांग भी सक्रिय रूप से भाग ले सकें।
पोप के विश्वव्यापी प्रार्थना नेटवर्क की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बतलाया गया है कि दिसंबर माह की प्रार्थना की प्रेरिताई के लिए जारी वीडियो संदेश में पोप ने कहा है कि "ऐसे कार्यक्रमों और पहलों की आवश्यकता है जो दिव्यांग लोगों के समावेशन को बढ़ावा दें।"
प्रार्थना का यह मतलब इस महीने से मेल खाता है जिसमें संयुक्त राष्ट्र ने दिव्यांग लोगों के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विकलांग लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस (3 दिसंबर) की स्थापना की है। पोप फ्रांसिस "अलग तरह से सक्षम" की अवधारणा पर जोर देते हैं ताकि समाज में सबसे कमजोर लोगों के पूर्ण समावेश और सराहना से होने वाले विशाल योगदान को रेखांकित किया जा सके।
इस महीने के लिए पोप का वीडियो, समग्र मानव विकास को बढ़ावा देने हेतु गठित परमधर्मपीठीय विभाग के सहयोग से निर्मित, जीवन के लिए एक गीत है, साथ ही हमारे सोचने के तरीके को बदलने की अपील भी है।
समाज और कलीसिया
पोप फ्राँसिस की रिपोर्ट के अनुसार, आज हमारी दुनिया में, कुछ विकलांग लोग "अज्ञानता या पूर्वाग्रह के कारण अस्वीकृति सहते हैं, जो उन्हें हाशिए पर धकेल देता है।" इसलिए, अब समय आ गया है कि हम "अपनी मानसिकता को बदलें और खुद को इन लोगों की क्षमताओं और प्रतिभाओं के लिए खोलें, जो समाज के साथ-साथ कलीसिया के जीवन में भी भिन्न रूप से सक्षम हैं।"
तब पोप ने नागरिक संस्थानों से "शिक्षा, रोजगार एवं उन स्थानों तक पहुंच प्रदान करके विकलांग लोगों की परियोजनाओं का समर्थन करने की सलाह दी है, जहाँ वे अपनी रचनात्मकता व्यक्त कर सकें, और समावेश को अपनाया जाए ताकि उनकी सहभागिता को बढ़ावा दिया जा सके।"
देखने का एक गहरा तरीका
दिसंबर महीने के लिए संत पापा के वीडियो संदेश के बारे में, समग्र मानव विकास को बढ़ावा देने हेतु गठित विभाग के अध्यक्ष, कार्डिनल माईकेल चरनी कहते हैं: "कलीसिया और समाज के जीवन में विकलांग लोगों का स्वागत करने के लिए पोप का निमंत्रण प्रत्येक व्यक्ति के रहस्य को पहचानने की दिशा में एक बड़ी मदद है।" येसु ऐसे लोगों के नजदीक रहते थे जो शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक कमजोरी का अनुभव करते थे।
पोप की विश्वव्यापी प्रार्थना नेटवर्क के निदेशक फादर फ्रेडरिक फोरनोस येसु समाजी ने कहा, "इस महीने की पोप की प्रार्थना का उद्देश्य विकलांग लोगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना, ऐसे कार्यक्रमों और पहलों का निर्माण करना है जिनसे कोई भी बाहर न रहे, ताकि उन्हें समाज द्वारा समर्थन, स्वागत, एकीकृत और मान्यता प्राप्त हो सके। येसु ने यही किया - उसने सभी का स्वागत किया। किसी को भी उसके द्वारा बहिष्कृत महसूस नहीं हुआ। हम यह जानते हैं, लेकिन इसे जीना हमारे लिए कठिन है। यही कारण है कि हमें प्रार्थना करनी चाहिए, क्योंकि इसके लिए मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है कि हम चीजों को कैसे देखते हैं, चीजों को देखने के अपने तरीके से शुरुआत करें। इस तरह, पोप हमें बताते हैं कि हम 'खुद को इन लोगों की क्षमताओं और प्रतिभाओं के लिए खोल सकते हैं जो समाज के साथ-साथ कलीसिया के जीवन में भी भिन्न तरह से सक्षम हैं।''
संत पापा का संदेश
“शरीर रुप से विकलांग हमारे बीच में सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
उनमें से कुछेक का परित्याग कर दिया जाता है, यह उनकी अज्ञानता या पूर्वाग्रह में होता है, जिसके कारण वे छोड़ दिये जाते हैं।
नागरिक संस्थानों को चाहिए कि वे उनकी परियोजनाओं को शिक्षण की उपलब्धता, रोजगार और उनकी परिस्थितियों में सहयोग करें जिससे वे अपनी सृजनात्मकता को व्यक्त कर सकें।
उन्हें समाज में प्रोत्साहन देने हेतु हमें कार्यक्रमों और पहल लेने की जरुरत है।
उससे भी बढ़कर, उनके साथ चलने हेतु हृदय की विशालता जरूरी है।
इसका अर्थ- समाज और कलीसिया में, हमें उनके गुणों और योग्यताओं के संबंध में, अपनी मानसिकता में थोड़ा बदलाव और खुलापन लाने की आवश्यकता है, क्योंकि उनकी योग्याएँ अलग हैं।
अतः उनके लिए पल्ली को पूर्णरुपेण खुला रखना केवल भौतिक दूरियों को खत्म करना नहीं है, बल्कि यह “उनके” बारे में बातें करने के बदले “अपने” बारे में बातें करना है।
आइए, हम प्रार्थना करें कि विकलांग व्यक्ति समाज में हमारे ध्यान का केन्द्र बनें, और हमारे संस्थानों में उनके लिए कार्यक्रमों का आयोजन हो जिसमें वे सक्रिय भाग ले सकें।”
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