वर्तमान विश्व में सुसमाचार की व्याख्या, ईशशास्त्र का दायित्व
वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 3 नवम्बर 2023 (रेई, वाटिकन रेडियो): एक नवीन मोतू प्रोप्रियो, अर्थात् स्वप्रेरणा से रचित प्रेरितिक पत्र "आद थियोलॉजियाम प्रोमोवेंदाम" में, सन्त पापा फ्राँसिस ने ईशशास्त्र एवं धर्मतत्व विज्ञान सम्बन्धी परमधर्मपीठीय अकादमी ऑफ थियोलॉजी की विधियों को समसामयिक बनाकर, इसे "साहसी सांस्कृतिक क्रांति" और रहस्योद्घाटन के प्रकाश में संवाद हेतु प्रतिबद्धता निरूपित किया है।
पहली नवम्बर को प्रकाशित सन्त पापा फ्राँसिस के नवीन मोतू प्रोप्रियो में इस तथ्य को रेखाकिंत किया गया है कि कलीसिया जो "धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के आदेशों के साथ 'आगे बढ़ती है'" उसे ऐसे ईशशास्त्र की भी आवश्यकता है जो निरन्तर "आगे बढ़ता है"।
ईशशास्त्र एवं धर्मतत्व विज्ञान सम्बन्धी परमधर्मपीठीय अकादमी ऑफ थियोलॉजी की स्थापना 23 अप्रैल 1718 ई. में सन्त पापा क्लेमेन्त 11 वें द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य "कलीसिया एवं विश्व की सेवा में ईशशास्त्र एवं धर्मतत्व विज्ञान को स्थापित करना था"।
मौलिक प्रासंगिक ईशशास्त्र
सन्त पापा फ्रांसिस का कहना है कि अब उन मानदंडों को संशोधित करने का समय आ गया है जो इसकी गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं ताकि उन्हें "उस मिशन के अधिक अनुकूल बनाया जा सके जो हमारे युग में लागू होते हैं।"
मोतू प्रोप्रियो में सन्त पापा फ्राँसिस लिखते हैं, विश्व और मानवता के प्रति "इसकी समस्याओं, इसके घावों, इसकी चुनौतियों, इसकी क्षमता के साथ" उदार रहते हुए ईशशास्त्र एवं धर्मसिद्धान्तीय चिन्तन को "एक ज्ञानमीमांसीय और पद्धतिगत पुनर्विचार" के लिए जगह बनानी चाहिए, और इसलिए इसे "एक साहसी सांस्कृतिक क्रांति" कहा जा सकता है।
सन्त पापा लिखते हैं कि आज आवश्यकता है, "एक मौलिक प्रासंगिक ईशशास्त्र" की जो "उन परिस्थितियों में सुसमाचार को पढ़ने और इसकी व्याख्या करने में सक्षम हो, जिनमें पुरुष और महिलाएं विभिन्न भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण में अपना दैनिक जीवन यापन करते हैं"।
परंपराओं के साथ संवाद
सन्त पापा के प्रेरितिक पत्र में सम्वाद पर ज़ोर देते हुए कहा गया है कि ईशशास्त्र को "विभिन्न परंपराओं और विभिन्न ईसाई संप्रदायों तथा विभिन्न धर्मों के बीच संवाद और साक्षात्कार की संस्कृति में विकसित होना चाहिए।" इसे "विश्वासियों और ग़ैर-विश्वासियों, सभी के साथ समान रूप से उदारतापूर्वक" जुड़े रहना चाहिए। "यही है अनुशासनात्मकता का दृष्टिकोण।"
उन्होंने लिखा कि "वेरितातिस गाओदियुम" में स्पष्ट किया गया है कि इसका अर्थ है "ईश्वर के रहस्योद्घाटन से प्रवाहित ज्ञान द्वारा प्रस्तुत प्रकाश और जीवन की पृष्ठभूमि में सभी विषयों को स्थापित करना। इसीलिये, ईशशास्त्र को "विश्वास की सच्चाइयों को भेदने और संप्रेषित करने तथा आज की भाषाओं में येसु मसीह की शिक्षाओं को मौलिकता और आलोचनात्मक जागरूकता के साथ प्रसारित करने के लिए ज्ञान के अन्य रूपों द्वारा विकसित नई श्रेणियों का उपयोग करना चाहिए"।
सन्त पापा फ्राँसिस ने कहते हैं कि ईशशास्त्र एक ऐसा विषय है जिसे "अमूर्त और वैचारिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक होना चाहिए"। उन्होंने कहा, "आराधना और प्रार्थना के साथ-साथ इसमें एक उत्कृष्ट अनुशासन और, एक ही समय में, लोगों की आवाज़ के प्रति चौकस रहने की ज़रूरत होती है।"
उन्होंने कहा कि ईशशास्त्र को "मानवता और सृष्टि के खुले घावों और मानव इतिहास की तहों के भीतर दयापूर्वक संबोधित किया गया है। अस्तु, इसे समग्र रूप से, "सुसमचार प्रचार की सेवा" के प्रति समर्पण के साथ विभिन्न संदर्भों और ठोस स्थितियों में शुरू होकर लोगों तक पहुँचना चाहिये।"
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